कितने भरोसेमंद साबित होंगे राजा भैया

राजा भैया पर पोटा लगाकर जेल भेजने को लेकर क्षत्रिय समाज उस समय की मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ खड़ा हुआ. मायावती को सरकार से जाना पड़ा. राजा भैया को न्याय मिला. वह मंत्री बने. समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच खेलते रहे.

दलित एक्ट और प्रमोशन में आरक्षण को लेकर ऊंची जातियां खासकर क्षत्रिय समाज ने भाजपा का विरोध करते चुनाव में विकल्प के रूप में ‘नोटा’ का बटन दबाने का अभियान चलाया, तब राजा भैया को एक बार फिर से क्षत्रिय समाज की याद आई.

अब वह अपनी नई पार्टी बनाकर राजनीतिक विकल्प बनने का दावा कर रहे है. राजा भैया कांग्रेस की मुखर आलोचना करते यह कहते हैं कि राजीव गांधी के समय ही दलित एक्ट बना था. वह यह भूल जाते हैं कि मोदी सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण और दलित एक्ट पर सही फैसला नहीं किया. ऐसे में यह सवाल उठना जायज है कि चुनाव के बाद राजा भैया किसके मददगार होंगे?

राजा भैया यानि रघुराज प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की कुंडा विधनसभा सीट से लगातार 6 बार विधायक चुने जा रहे हैं. उनकी गिनती बाहुबली नेताओं में होती है. मायावती ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में राजा भैया पर अपनी सरकार गिराने का आरोप लगाकर पोटा एक्ट के तहत कार्यवाही करके जेल भेजा.

राजा भैया के समर्थन मे पूरा समाज एकजुट हो गया. मायावती और राजा भैया की इस लड़ाई में मायावती को मुंह की खानी पड़ी. पोटा रद्द हुआ. राजा भैया जेल से बाहर आये. मंत्री बने, करीब 15 साल के बाद अब राजा भैया को क्षत्रिय समाज की पीड़ा का अहसास हुआ, अब वह नया दल बनाकर आरक्षण और प्रमोशन में आरक्षण की लडाई लड़ने की बात करने लगे हैं.

समाज को एकजुट करने खासकर क्षत्रिय समाज की एकजुटता की बात करने वाले राजा भैया अपने ही जिले में राजशाही से जुडे राजनीतिक परिवारो को एकजुट नहीं कर पाये हैं. प्रतापगढ़ में राजा दिनेश प्रताप सिंह कालाकांकर स्टेट है. वहां की राजकुमारी रत्ना सिंह कांग्रेस नेता है. राजा भैया कुंडा के भदरी स्टेट के राजा हैं. दोनों हर राज परिवारों में आपसी दूरी बनी हुई है. राजा भैया जहां भाजपा और सपा दोनों से करीबी रिश्ते बनाने में सफल थे, वहां रत्ना सिंह शुरू से ही कांग्रेस के साथ रही है. दोनों ही राजपरिवारों के बीच दूरी क्षत्रिय राजनीति को कमजोर करती रही है.

केवल प्रतापगढ़ ही नहीं दूसरे कई जिलों में भी राज परिवार अलग अलग दलों में रहकर क्षत्रिय एकता को किसी सूत्र में पिरोने में असफल रहे हैं. यही वजह है कि क्षत्रिय समाज राजनीतिक रूप से हाशिये पर खड़ा है. राजा भैया ने अपनी नई पार्टी बनाने का एलान तब किया जब लोकसभा चुनाव के 6 माह भी नहीं बचे है. अभी तक न राजा भैया की पार्टी का नाम रजिस्टर्ड हुआ है और ना झंडा बना है. ऐसे में वह किसी दल का विकल्प कैसे बन पायेंगे?

ऐसे में वह महज किसी दल से समझौता करने के अलावा और कुछ हासिल नहीं कर पायेंगे. राजा भैया निर्दलीय विधायक बनने के बाद भी सपा-भाजपा के बीच झूलते रहे हैं. ऐसे में उन पर भरोसा होने की कोई ठोस वजह नजर नहीं आती.

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि ठाकुर बिरादरी की भाजपा से नाराजगी को किसी और दल में जाने से रोकने के लिये राजा भैया ने यह प्रयास किया है. चुनाव के बाद वह जरूरत के अनुसार भाजपा के साथ खड़े हो सकते हैं. सपा में अखिलेश यादव से मतभेद होने के बाद से ही राजा भैया भाजपा के साथ खड़े हैं. भाजपा से ठाकुर बिरादरी की नाराजगी के बाद वह नया दल बनाकर नाराजगी के रूख को भांप नई पार्टी की कवायद कर रहे हैं. हवा का सही रुख तब सामने आयेगा, जब धीरे धीरे सारे पत्ते खुलेंगे. 30 नवबंर को राजा भैया अपनी नई पार्टी का ऐलान करेंगे. तब कुछ और धुंध साफ होगी.

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