धूमिल होता पाखंड

कर्नाटक में हुए उपचुनावों के परिणाम कांग्रेस के पक्ष में जाने से यह बात सिद्ध हो गई है कि भ्रष्टाचारमुक्त और अच्छे दिनों के सपनों के पीछे धार्मिक धंधे के प्रचारप्रसार के एजेंडे की राजनीति का एकाधिकार नहीं रह गया है. कांग्रेस को 5 सीटों में से 4 पर भारी जीत मिली है. भाजपा का गढ़ बेल्लारी भी उस के हाथ से निकल गया है. राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मिजोरम के विधानसभा चुनावों में चाहे जो भी हो, पर 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद केंद्र में किसी की भी सरकार बने, अब बात एकतरफा नहीं होगी.

हिंदू धर्म के स्पष्ट और छिपे दोनों उद्देश्यों का लक्ष्य एक ही है, वर्णव्यवस्था को कायम रखना और सर्वोच्च वर्ण का एकाधिकार रखना. धर्म का काम भगवान की शरण में ले जाना नहीं, बल्कि मंदिर की शरण में ले जाना है जहां भक्त अपनी जेबें अघोषित टैक्स के रूप में खाली कर, राज जैसा है, अच्छा है, को मान लें.

धर्म ने हमेशा यही कहा है कि जो राजा दान करता है, यज्ञ कराता है, गोदान करता है, ऋषिमुनियों को औरतें उपलब्ध कराता है, वही श्रेष्ठ है. पुराणों, महाभारत, रामायण की कथाएं इन प्रसंगों से भरी पड़ी हैं. इन में पुरोहितों को पैसा देना और औरतों का दान किया जाना ही मुख्य है. आज भाजपा सरकारें यही करने में लगी हुई हैं.

सरदार पटेल की मूर्ति बनाना, राममंदिर का मुद्दा उठाना, इलाहाबाद, फैजाबाद का नाम बदलना, कुंभ की महान तैयारी करना, देशभर के तीर्थस्थलों को सुधारना भाजपाई सरकारों की प्राथमिकता बन गई है. पिछली सरकार द्वारा शुरू किए गए काम, जो अब पूरे हो रहे हैं, का श्रेय ले कर मौजूदा सरकार चाहे कह दे कि यह हो गया, वह हो गया पर 5 सालों में कुछ नया दिखा नहीं है.

यह न भूलें कि यह देश हमेशा से ही कुछ न कुछ करता रहा है. तभी विदेशी सदियों से यहां आते रहे. अच्छी भूमि, अच्छा मौसम होने के कारण यह भूभाग दुनिया में अद्भुत है. पर इस का सदुपयोग तकनीकी तरक्की के बावजूद नहीं हो रहा है.

250 वर्षों में अमेरिका ने बंजर, खाली जमीन पर शहर, फैक्टरियां उगा लीं.

50 वर्षों में चीन ने 89 डौलर प्रतिव्यक्ति आय बढ़ा कर 9,000 डौलर कर ली, अमेरिका ने 3,000 से बढ़ा कर 60,000 डौलर कर ली जबकि भारत ने 81 से बढ़ा कर सिर्फ 1,900 डौलर ही की. हमारी क्षमता आसानी से 20,000 डौलर करने की थी पर पहले कांग्रेस सरकारों के समाजवादी ढोंग और अब धार्मिक सरकारों के धर्म के ढोंग के चलते देश पिछड़ता जा रहा है.

दुनिया की दूसरी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था चाहे हम बन जाएं और चाहे सब से तेज गति से बढ़ने का दावा कर लें, लेकिन हाल उस गरीब का सा होगा ही जिस के हाथ में एक लोटे की जगह 3 लोटे हो गए. इस से ज्यादा कुछ नहीं. इन उपचुनावों के परिणामों से लगा है कि कम से कम एक और पाखंड का मोह कुछ फीका पड़ा है.

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