सत्तर और अस्सी के दशक के मशहूर खलनायक रंजीत ने छह सौ से भी अधिक फिल्मों में खलनायकी के अपने ऐसे खंूखार अंदाज विखेरे,जिन्हे आज तक कोई अन्य कलाकार नही विखेर पाया.अब उन्ही के बेटे जीवा ने भी बौलीवुड में कदम रख दिया है.जीवा की पहली फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’16 दिसंबर को ‘डिज़्नी प्लस हाॅटस्टार’ पर स्ट्ीम होने वाली है.शशांक खेतान निर्देशित इस फिल्म में जीवा के साथ विक्की कौशल, किआरा अडवाणी,भूमि पेडणेकर,रेणुका शहाणे व अमेय वाघ जैसे कलाकार हैं.मजेदार बात यह है कि एक वक्त वह था जब अभिनेता रंजीत के बंगले में जीवा अपने दो दोस्तों टाइगर श्राफ व रिंजिंग के साथ मार्शल आर्ट सीखा करते थे.तभी अनुमान लग गया था कि यह तीनों बौलीवुड से जुड़ेंगे.टाइगर श्राफ ने 2014 में फिल्म ‘हीरोपंती’ से बौलीवुड में कदम रखा और एक्शन स्टार के रूप में उनकी पहचान बन चुकी है.रिन्जिंग डेंजोगपा भी ‘स्क्वाड’ से बौलीवुड मे कदम रख चुके हैं और अब ख्ुाद जीवा ने ‘गोविंदा नाम मेरा’ से बौलीवुड में कदम रखा है.
प्रस्तुत है जीवा से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश..
सवाल – आप अभिनेता रंजीत के बेटे हैं.आपके साथ मार्शल आर्ट सीखने वाले आपके दोनोे खास दोस्त काफी पहले ही अभिनय जगत से जुड़ चुके हैं,तो फिर आपने इतनी देर से बौलीवुड मे कदम क्यो रखा?
जवाब – यह सच है कि टाइगर श्राफ व रिंजिंग मेेरे खास दोस्त हैं.हम तीनों कभी एक साथ मार्शल आर्ट की ट्ेनिंग भी लिया करते थे. मगर यह ट्ेनिंग लेते वक्त हम तीनों मे से किसी के भी मन में बौलीवुड से जुड़ने की इच्छा नही थी.हम तीनों तो स्पोर्टस के शौकीन रहे हैं.हमने मार्शल आर्ट की ट्ेनिंग भी स्पोटर्् समझ कर ही ली थी.
सवाल – आप लोग किस तरह के स्पोर्ट्स खेलते थे?
जवाब – मैने राज्य स्तर पर बैंडमिंटन खेला है.मेरे बहुत खास दोस्त टाइगर श्राफ बहुत बढ़िया फुटबालर था.बास्केटबाल भी बहुत अच्छा खेलता था.वह मुझे फुटबाल व बास्केट बाल सिखाता था और मैं उसे बैडमिंटन व मोटर स्पोर्ट्स सिखाता था.कार रेसिंग करना सिखाता था.स्पोर्टस में हम दोनों एक दूसरे को ‘पुष’ किया करते थे.हम दोनों पढ़ाई से ज्यादा स्पोटर््स में ध्यान दिया करते थे.
सवाल – स्पोर्ट्स से भी पैसा व शोहरत बटोरी जा सकती है.तो फिर आपने स्पोर्ट्स को अलविदा कह कर फिल्मो में अभिनय करने का निर्णय क्या सोचकर लिया?
जवाब – सच कहें तो उन दिनों स्पोटर््स में कैरियर बनाना आसान नहीं था.उन दिनों क्रिकेट ही लोकप्रिय था.हम जिस स्पोटर््स के खेलते थे,उसे ज्यादा लोकप्रियता हासिल नही थी.इसके अलावा माना कि बचपन में मुझे फिल्म इंडस्ट्ी से नफरत थी.क्यांेकि मैं बचपन से देखता आ रहा था कि मेरे पिता जी फिल्मों में मार खा रहे हैं.मैने फिल्में देखनी बंद कर दी थी.उसके बाद 15-16 साल की उम्र से मैने पुनः फिल्में देखनी षुरू की.तब मुझे ‘ओंकारा’, ‘मकबूल’, ‘वास्तव’,‘कई पो चे’ जैसी फिल्में काफी पसंद आयीं.‘कई पो चे’ की कहानी तो मुझे काफी पसंद आयी और इस फिल्म को देखकर मेरे अंदर फिल्म इंडस्ट्ी से जुड़ने की बात आयी.सच कहॅूं तो ‘कई पो चे’ देखने के बाद मुझे लगा कि अब अच्छी कहानियों पर काम हो रहा है,जिससे मेरे अंदर धीरे धीरे फिल्म इंडस्ट्ी के प्रति पैशंन बढ़ता गया.इसके अलावा मुझे समझ में आया कि फिल्मों में काम करने वाला कलाकार कैमरे के सामने एकदम अलग इंसान होता है और कैमरे के सामने से हटने पर वह इंसान अलग होता है.यह बात मुझे बहुत ही ज्यादा फैशिनेटिंग लगी.फिल्मों मंे अभिनय करने पर किसी को पता नहीं होता कि जीवा कौन है? तो स्पोटर््स खेलते हुए भी फिल्म का कीड़ा लग गया था.
सवाल – आप भी टाइगर श्राफ पहले भी बौलीवुड से जुड़ सकते थे?
जवाब -जब मैं और टाइगर श्राफ एक साथ मार्शल आर्ट सीख रहे थे,उस वक्त हम दोनो का अप्रोच अलग था.मुझे कैमरे के पीछे क्या होता है,वह सीखने का शौक था.मुझे बिजनेस का भी शौक है.मैं अपना स्टार्ट अप शुरू करना चाह रहा था.मैं अभिनय को कैरियर बनाने की दिशा मंे सोचने की बजाय इस बात को सीख रहा था कि फिल्म का व्यवसाय है क्या? यहां फिल्में कैसे बनती हैं.क्या अप्रोच होती है? किसी फिल्म में फलां हीरो या फलां हीरोईन को क्यों लेते हैं,यह समझने पर ध्यान दे रहा था.तो मैने टाइगर श्राफ के साथ अभिनय की तरफ कदम नही बढ़ाए थे.जबकि उसका फोकश अभिनेता बनना ही था.
सवाल – तो फिर अभिनय की तरफ मुड़ना कैसे हुआ?
जवाब – जब मैने अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय लिया,तब मेरा पहला निर्णय यह था कि मैं अपने पिता से मदद नही लॅूंगा.इसलिए मैने अपने माता पिता को भनक लगे बिना अपने तरीके से तैयारी करनी षुरू की.सबसे पहले मैने खुद ही परखना शुरू किया कि क्या मैं कर पाउंगा? इसलिए मैने कुछ वर्ष पहले औडीशन देना शुरू किया था.मैं चाहता था कि मैं अंदर से श्योर हो जाउं कि मैं कर पाउंगा या नहीं…मैं जो कदम उठाने जा रहा था,जिस दिशा में आगे बढ़ना चाहता था,उसके बारे में जानकारी भी लेना चाहता था.वर्किंग मैथड को समझना था.देखिए,संघर्ष का अपना अलग मजा होता है.औडीशन देते हुए मैंने काफी रिजेक्शन सहे.औडीशन के वक्त किसी को पता नहीं चल रहा था कि मैं कौन हॅूं.औडीशन करते हुए मैं सीख रहा था कि मैं क्या गलत कर रहा हॅंू और उसे किस तरह से सुधारना है.फिर मुझे एक्टिंग वर्कशाॅप करने का भी मौका मिला.वर्कशाॅप की वजह से मैने कुछ लघु फिल्मों में भी अभिनय कर लिया.मैने इंटरनेशनल स्टूडियो की एक फिल्म के लिए औडीशन दिया था,वह कुछ वजहो ंसे आगे नहीं बढ़ी.मगर उसी स्टूडियो के लिए मैने ख्ुाद एक लघु फिल्म का निर्माण कर डाला.इस तरह फिल्म निर्माण का अनुभव हासिल हुआ.तो मैने कैमरे के पीछे जमीनी काम करने में काफी समय बिताया और बहुत कुछ सीखा.इसके अलावा मैने अपने पिता जी को अक्सर देखा करता था कि वह अपने किरदार के लिए किस तरह से तैयारी करते हैं.तो जाने अनजाने वह सब मैं सीख ही रहा था.औडीशन देते हुए मेरे अंदर का आत्म विश्वास जागा.आज कल तो सोशल मीडिया पर सभी लोकप्रिय कास्टिंग डायरेक्टरों के बारे में पता चलता रहता है कि वह किस तरह के किरदार के लिए कलाकार ढूंढ रहे हैं,कहंा औडीशन हो रहे है.तो मैं भी औडीशन देने पहुॅच जाता था.
सवाल – बतौर अभिनेता पहली फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ से जुड़ने का अवसर कैसे मिला?
जवाब – तकदीर ने मुझसे इस फिल्म में अभिनय करवा लिया.हकीकत में मुझे लिखने का भी शौक रहा है.मैने दो कहानियां लिखी हैं,जिन पर मैं चाहता हॅंू कि फिल्म बने.इसीलिए मैं शशंाक खेतान से मिला.षंषंाक खेतान ने मुझसे कहा कि वह हमारी कहानियों पर काम करेंगे,पर पहले मैं औडीशन दे दॅूं.तो उनके कहने पर मैने काॅस्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा के यहां जाकर औडीशन दिया. मुझे दो तीन बार औडीशन देना पडा और फिर एक दिन मुझे पता चला कि मुझे फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ में अभिनय करने के लिए चुन लिया गया है.फिल्म की स्क्रिप्ट भी मजेदार थी.स्क्रिप्ट पढ़ते हुए मुझे हंसी आ रही थी.फिर शशंाक खेतान के निर्देषन में काम करना था,तो मना नही कर पाया.मेरी समझ से कोई पागल ही इस फिल्म के करने से मना करता.
सवाल – फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ मंे आपका अपना किरदार क्या है?
जवाब – मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहॅूंगा कि मैने अपनी जिंदगी मंे नहीं सोचा था कि इस तरह के बेहतरीन किरदार के साथ मेरे कैरियर की शुरूआत होगी.मुझे तो यकीन भी नहीं था कि मैं इस किरदार को निभा पाउंगा.पर निर्देशक शशांक खेतान ने मुझ पर विश्वास किया और मुझसे काम करवा लिया.सोलह दिसंबर को जब आप फिल्म देखेंगंे,तो आपकी समझ में आएगा कि मेरा किरदार क्या है.अभी से कुछ कहना ठीक नहीं होगा.
सवाल – आपके पिता रंजीत को कब पता चला कि आप भी बौलीवुड से जुड़ चुके हैं?
जवाब – फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ की षूटिंग षुरू करने से पहले मेरी मम्मी का जन्मदिन था.उस दिन मैने जन्मदिन उपहार के रूप में यह खबर अपने पिता के समाने अपनी मां को दी थी.मगर मेरी मां या पिता जी या बहन किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया.मैं काम करता रहा.जब फिल्म का ट्ेलर रिलीज हुआ,तब पहली बार मेरे पिता जी को यकीन हुआ कि मैं अभिनेता बन गया हॅूं.
सवाल – आपने भी कुछ कहानियंा लिखी हैं.ऐसे में किरदारों को समझने की अलग ताकत अपने आप विकसित हो जाती है.इसकी वजह से भी आपके लिए अभिनय करना आसान हो हुआ होगा?
जवाब – आपने एक दम सही कहा.मैंने तीन कहानियां लिखी हैं.यह तीनों एकदम अलग जाॅनर की कहानियंा हंै.कहानियंा लिखते हुए मुझमे किरदार की बैकस्टोरी विकसित करने की कला आ गयी.तो इस किरदार को निभाते हुए मैने किरदार की बैक स्टोरी को समझा, जिससे किरदार में ढलने में मुझे आसानी हुई.
सवाल – लिखने का शौक कब पैदा हुआ?
जवाब – मुझे बचपन से ही लिखने व स्केच बनाने का शौक रहा है.मुझे गाड़ियों /कार का भी शौक है,तो मैं गाड़ियों की स्केच बनाता था.मुझे टेकनोलाॅजी का भी शौक है,तो मैं गाड़ियो के कम्पोनेंट डिजाइन करता था.मेरे कमरे मे भी आपको इस तरह की किताबें बहुत मिल जाएंगी.मुझे पढ़ने का भी बेहद शौक है.फिर जब मेरी रूचि फिल्मों में बढ़ी,तो कहानी लिखने की गति भी बढ़ गयी.मैं हर फिल्म देखते समय उसकी तकनीक व उसके बिजनेस अस्पेक्ट पर ध्यान देता रहता हॅूं.
सच कहॅू तो मैं बचपन मंे पत्र और कविताएं बहुत लिखता था.मेरे खास दोस्त अभिनेता डैनी के बेटे रेंजिल हैं.वह बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते थे,तो हम उन्हे पत्र लिखा करते थे.फिर मंैं,टाइगर श्राफ व रेंजिल ने कए साथ मार्षल आर्ट की ट्ेनिंग भी ली. उस वक्त हम तीनों मार्षल आर्ट अपने लिए सीख रहे थे.उस वक्त इसे सीखने के पीछे हम तीनो का मकसद फिल्मों से जुड़ना नहीं था.हमारे लिए मार्षल आर्ट सीखना मतलब एक्सरसाइज करना था.
सवाल – शौक?
जवाब – मुझे बिजनेस का शौक है.मैं अपने तीन स्टार्ट अप विकसित कर रहा हॅूं.सब कुछ ठीक ठाक रहा,तो 2023 में घोषणा करुंगा.