नवंबर दिसंबर में हुए 5 विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की हालत पतली होगी, इस का अंदाजा महीनों पहले होने लगा था जब जनता को नोटबंदी, पैट्रोलडीजल के बढ़ते दामों, जीएसटी के शिकंजों, गौभक्तों की हिंसक करतूतों, महिलाओं की बढ़ती असुरक्षा और भाजपा की हठधर्मी दिखने लगी थी. सरकार और पार्टी को शासनप्रशासन की नहीं, बल्कि मूर्तियों, उद्घाटनों, आरतियों, बाबाओं का आशीर्वाद लेने, अखबारों में बड़ेबड़े विज्ञापन देने की लगी रहती थी.
नरेंद्र मोदी की सरकार और अमित शाह की भाजपा ने ऐसा माहौल बना दिया था कि आमजन की तकलीफों को नजरअंदाज कर के मोदी व शाह के गुणगान किए जाने की आवाज ही सुनाई दे रही थी. पहले गुजरात और फिर कर्नाटक के चुनावों ने साफ कर दिया था कि केवल हिंदूहिंदू चिल्लाने से वोट नहीं मिलने वाले. पर मोदी, शाह और नागपुर (आरएसएस) को इस के अलावा न कुछ सूझता है, न आता है.
फिर भी लग यही रहा था कि पार्टी को कम सीटों के साथ हर राज्य में सफलता मिल ही जाएगी और इसलिए भाजपा दंभ व विश्वास से भरी थी. तभी तो मोदी ने बजाय विकास और आर्थिक मामलों की चर्चा करने के, अपनी रैलियों का इस्तेमाल जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राहुल गांधी की खिंचाई में किया.
दूसरी तरफ राहुल गांधी ने कांग्रेस ने 1905 से 2014 तक क्या किया, की चर्चा न के बराबर की जबकि लोगों की आज की तकलीफों की चर्चा ज्यादा की. उन्होंने राफेल विमानों के सौदे में हुए घोटाले की बात की जिस की भाजपा ने साफसफाई नहीं दी. चौकीदार को खुले शब्दों में राहुल ने चोर कहा पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आजादी से पहले क्या किया या बाद में, भारत में हिंदूमुसलिम बैर किस ने बढ़ाया, की बात की ही नहीं.
समय आया, तो जनता ने फैसला कर दिया. राजनेता इस फैसले से सबक लें, न लें, इस का उन्हें अधिकार है. जाहिर है कि कांग्रेस जनता के ज्यादा करीब रही. कांग्रेस 3 राज्यों में जीत गई. 2 राज्यों में वह नहीं जीती पर भाजपा, जो पूरे जोरशोर से लड़ी थी, इन दोनों राज्यों में तीसरे नंबर पर, कांग्रेस के बाद रही.
कांग्रेस में कोई लाल लगे हों, ऐसा नहीं है, पर कांग्रेस देशवासियों को विभाजित नहीं करती. कांग्रेस का शासन हमेशा भ्रष्टाचार से भरा रहा है, छोटेबड़े घोटाले हुए हैं पर काफी ऐसे काम भी हुए हैं जो अब दिख रहे हैं. भाजपा ने बीते साढ़े 4 साल में या तो पिछले कामों के पूरा होने पर उस का उद्घाटन किया या नामों का शिलान्यास किया. सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति बनवाने के अलावा कोई काम है ही नहीं उस का कि जिस का गुणगान किया जा सके. वैसे यह कोई काम भी नहीं और यह मूर्ति भी भारतीयों ने नहीं बल्कि चीनियों ने बनाई.
अब 2019 के लोकसभा चुनावों का प्रचार शुरू हो गया है. कांग्रेस को यह फायदा है कि अभी जीते तीनों राज्यों में वह कुछ करे या न करे, जनता को तो मई में होने वाला आम चुनाव दिखेगा. नरेंद्र मोदी का सारा समय अब पार्टी की सीटें और साख बचाने में लगेगा. वे अब ज्यादा जोड़तोड़ भी नहीं कर सकेंगे क्योंकि अब पार्टियों के एनडीए छोड़ने का समय आ गया है, उस से जुड़ कर जोखिम लेने का नहीं, चाहे वह मई 2019 में फिर जीत जाए.
चुनावी परिणामों से भगवा गैंगों से राहत मिलेगी, तो पक्का है. अब ये गैंग उत्तर प्रदेश में ही कुछ कर पाएंगे. पर योगी आदित्यनाथ, जो भाजपा के प्रमुख प्रचारक रहे, अब मुंह छिपाते फिरेंगे और कोई जोखिम न लेंगे, ऐसी उम्मीद है. वैसे, पौराणिक इतिहास ऐसी कहानियों से भरा है जिन में हिंदू राजा अपने पुरोहितों, सहायकों के कहने पर एक के बाद एक गलत काम करते रहे हैं.