मध्य प्रदेश के 57 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाठक अपने फेसबुक वाल पर अकसर कुछ न कुछ करंट न्यूज से संबंधित जानकारियां, टिप्पणियां, तसवीरें आदि पोस्ट किया करते रहे हैं.
कई बार सामयिक, राजनीतिक और सामाजिक घटनाओं पर अपने विचार भी लिख डालते हैं. साथ ही उन में पारिवारिक जिंदगी पर भी कुछ बातें होती हैं. जैसे बेटी की शादी, आयोजनों में भागीदारी, दिवंगत पत्नी से जुड़ी यादें, दोस्तों के साथ तसवीरें, साहित्य और देशदुनिया की बातें भी होती हैं.
इसी सिलसिले में पहली अप्रैल को उन्होंने हैशटैग के ‘सुखदुख’ का इस्तेमाल करते हुए एक भावुक पोस्ट लिखी थी.
दरअसल, चौंकाने वाली उस पोस्ट में उन्होंने अपने दिल की बात लिख डाली थी, जो एक तरह से उन की व्यक्तिगत सूचना भी थी. उस के जरिए उन्होंने अपनी जिंदगी की नई शुरुआत के बारे जानकारी दी थी. उसी के साथ एक अन्य हैशटैग के साथ भोपाल की एक 56 वर्षीया आईएएस आधिकारी शैलबाला मार्टिन का भी जिक्र किया था. उन का विशेष परिचय दिया था, जो एकदम से निजी था.
बात 2 साल पहले की है. एक टेलीविजन डिबेट पर राकेश पाठक और शैलबाला मार्टिन आमंत्रित किए गए थे. उन्हें एक ऐसे टौपिक पर बहस में हिस्सा लेने के लिए बुलाया गया था, जो सरकार की नीतियों को लागू करने में आड़े आने वाले ब्यूरोक्रेट की मंशा को ले कर थी. उस में भ्रष्टाचार ही मुख्य मुद्दा था. उस डिबेट में काफी गरमागरम बहस हुई.
बतौर ब्यूरोक्रेट मार्टिन ने अपना दमदार पक्ष रखा, जबकि एक पत्रकार के नजरिए से पाठक ने भ्रष्टाचार की वजहों का संतुलित विश्लेषण किया. उस डिबेट में राजनीतिक दलों से शामिल राजनेताओं ने भी अपनी बातें बड़ी साफगोई से रखते हुए अपने दामन पाकसाफ होने की दलीलें पेश की थीं.
डिबेट खत्म होने के बाद पत्रकार राकेश पाठक ने शैलबाला की तारीफ में सिर्फ इतना कहा, ‘‘आप के विचारों से मैं व्यक्तिगत तौर पर सहमत हूं.’’
शैलबाला ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप ने भी सटीक तर्क दिए.’’
‘‘इसी बात पर एकएक कप कौफी हो जाए,’’ पाठक तुरंत बोल पड़े.
‘‘हांहां, क्यों नहीं. पेमेंट आप को करनी होगी.’’ हंसती हुई बोली, ‘‘इस बीच आप के साथ कुछ और बातें शेयर करने का मौका मिल जाएगा. मुझे भी लिखने का शौक है.’’
कुछ मिनटों में दोनों एक छोटे से राउंड टेबल पर आमनेसामने बैठे थे. कौफी का प्याला आ चुका था. पाठक ने कौफी का प्याला हाथ में लेते हुए पूछा, ‘‘आप की नजर में भ्रष्टाचार की जड़ कहां है?’’
‘‘जनता में,’’ शैलबाला तुरंत बोल पड़ीं.
‘‘वह कैसे?’’ पाठक ने दूसरा सवाल किया.
‘‘जनता हड़बड़ी में रहती है. हर काम शार्टकट में चाहती है. जन प्रतिनिधि पर आंखें मूंद कर भरोसा कर लेती है. नियमकानून से दूरी बनाए रखती है. जाति के जरिए रास्ते बनाती है. केवल अधिकार की बात करती है. अपना कर्तव्य कुछ नहीं समझती है. जुझारूपन की बहुत कमी है.’’
शैलबाला बोलती चली जा रही थीं और पाठक हाथ में कौफी का प्याला पकड़े उन्हें एकटक निहार रहे थे. शैलबाला ने भी अचानक महसूस किया कि डिबेट तो कब की खत्म हो चुकी है और वह उसी रौ में बह रही हैं. सौरी बोलते हुए कौफी का अपना प्याला हाथ में उठा लिया.
‘‘इस में सौरी की क्या बात है, आप ने बिलकुल सही कहा. जनता में जागरूकता की कमी है,’’ पाठक बोले.
‘‘जिस दिन जनता जागरूक हो जाएगी, उस दिन ला एंड और्डर उन के कदमों में होगा,’’ शैलबाला ने कहा.
उन की बातों से एक विश्वास झलक रहा था.
‘‘लेकिन जनता को जागरूक करेगा कौन?’’ पाठक ने फिर सवाल किया.
‘‘कम से कम वैसे जनप्रतिनिधि तो नहीं, जो वोट बैंक बनाने का दिमाग लगाते हैं. मेरे पास इस के उदाहरण भरे पड़े हैं. शायद ही कोई चुना हुआ जनप्रतिनिधि हो, जिस ने कौमन समस्या के समाधान की बातें की हों.’’
‘‘इस के लिए क्या किया जाना चाहिए?’’ पाठक ने पूछा.
‘‘आप पत्रकार हैं, आप ही बताइए क्या होना चाहिए, जिस से भ्रष्टाचार की बुनियाद पर जोरदार हथौड़ा लगाया जा सके,’’ शैलबाला ने पाठक के प्रश्न का उत्तर उन से ही जानना चाहा.
‘‘मेरा तो एक ही बात पर हमेशा जोर रहा है, ब्यूरोक्रेट को भी जनता के बीच जाना चाहिए,’’ पाठक बोले.
‘‘अरे, आप ने तो मेरे मन की बात कह दी. मेरे विचार आप से मिलते हैं. मैं भी ऐसा ही काफी पहले से सोचती थी,’’ शैलबाला चहकती हुई बोलीं.
‘‘तो फिर इस का इंतजार क्यों?’’ पाठक बोले.
‘‘आप इस में मेरा साथ देंगे तो बोलिए. मैं इस की कार्ययोजना बना सकती हूं. इस बारे में मेरी एक प्लानिंग है. उस पर फिर कभी विस्तार से चर्चा करूंगी,’’ शैलबाला बोलीं.
‘‘क्यों आज क्यों नहीं? कौफी खत्म हो गई इसलिए तो नहीं?’’ पाठक हंसते हुए बोले.
‘‘उम्मीद करती हूं, आप से अगली मुलाकात इसी विषय को ले कर होगी,’’ शैलबाला बोलीं.
तभी मोबाइल पर एक नंबर फ्लैश हुआ और वह चलने को उठ खड़ी हुईं. पाठक समझ गए कि स्टूडियो के बाहर शैलबाला की गाड़ी तैयार है. उन्होंने फटाफट उन का निजी मोबाइल नंबर भी ले लिया. सोशल मीडिया पर दोनों दोस्त बन गए.
पाठक की सास ने कान में फूंका मंत्र
दरअसल, दोनों की वह पहली मुलाकात नहीं थी. उन की अकसर न्यूज और सरकार के प्रोजेक्ट के सिलसिले में औपचारिक मुलाकातें होती रहती थीं, लेकिन उस रोज की मुलाकात खास बन गई थी. उन्होंने एकदूसरे के मन को छू लिया था.
सामाजिक सरोकार की बातें करते हुए एक लक्ष्य पर निशाना साधने की पहल की थी. चेहरे पर प्रसन्नता और आत्मविश्वास के भाव थे. उन्होंने हाथ हिला कर अभिवादन के साथ एकदूसरे से विदा लिया था.
इस क्रम में दोनों की मुलाकातों का सिलसिला भी बढ़ गया. उन के बीच समाज और देशदुनिया की बातों के साथसाथ पारिवारिक बातें भी होने लगीं.
एक बार पाठक ने घर में छोटे से आयोजन के सिलसिले में शैलबाला को आमंत्रित कर दिया था. आयोजन काफी छोटा था, लेकिन उस मौके पर एक बड़ा निर्णय लिया जाना था. इस की जानकारी शैलबाला को तब हुई, जब वह पाठक परिवार के सदस्यों से मिलीं. पाठक ने बेटी के लिए एक रिश्ते की तलाश की थी. उस बारे में जब पाठक और उन की दिवंगत पत्नी की मां ने उन से राय मांगी, तब शैलबाला हतप्रभ रह गईं. यह बात उन के दिल को छू गई. परिवार में उन की अहमियत का एहसास हुआ.
इसी के साथ जब पाठक की बेटी ने निर्णय सुनाया कि वह भी उन की तरह आईएएस बनना चाहती है और वह उन की आदर्श हैं, तब शैलबाला और भी पाठक के परिवार के प्रति भावुक हो गईं. लौटते समय पाठक की सास ने उन के कान में धीमे से कहा था, ‘‘बेटी, जब फुरसत मिले, यहां आ जाया करो.’’
कहने को तो वह अपने राज्य मंत्रालय के दफ्तर और सरकारी बंगले के रहनसहन समेत रोजमर्रा के औपचारिक कामकाज में व्यस्त हो गई थीं, लेकिन अच्छा दोस्त बन चुके पाठक की सासूमां की बात दिमाग में रहरह कर आ ही जाती थी.
उन्हें अनायास लगने लगा था कि कोई है, जो उन्हें चाहता है. उन की बातों को महत्त्व देता है. एक परिवार है, जिस से जुड़ाव बन चुका है. कुछ लोग हैं, जिन से वह खुल कर बातें कर सकती हैं.
उन दिनों कोरोना काल के दूसरे फेज का दौर चल रहा था. महामारी के कारण प्रशासनिक कामकाज की व्यस्तताएं बढ़ी हुई थीं. इस दौरान अपने मातापिता, दोनों भाइयों का हालसमाचार लेती रहती थीं. साथ ही पाठक के परिवार वालों से भी फोन पर उन का समाचार ले लिया करती थीं.
यह कहें कि इस दौरान शैलबाला की पाठक समेत उन के परिवार के लोगों से निकटता और भी बढ़ गई थी.
शादी का प्रपोजल
शैलबाला पाठक के घर गई हुई थीं. घर में उस दिन भी उन की मुलाकात पाठक की सासूमां से हुई. उन से पारिवारिक बातें होने लगीं. बातों का सिलसिला जब शुरू हुआ, तब ऐसा लगा कि बातें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं.
तभी शैलबाला को मालूम हुआ कि पाठक की पत्नी प्रतिभा की 2015 में कैंसर से देहांत होने के बाद वह किस तरह से अपने आप को अकेला महसूस करने लगे थे.
बातोंबातों में पाठक की सास ने उन से पूछ लिया कि उन्होंने अभी तक शादी क्यों नहीं की? इस पर शैलबाला पहले तो थोड़ी देर चुप हो गईं, फिर उन्होंने बताया कि उन की शादी जब एक बार टल गई, तब टलती ही चली गई. कभी परिवार के लोगों को उन के योग्य लड़का नहीं मिला तो कभी कोई पसंद आया तो उस का धर्म आड़े आ कर दीवार बन गया.
पापा बहुत से रिश्ते बताते थे, लेकिन मुझे पसंद नहीं आया था. सच कहूं तो नौकरी के बाद मेरे पापा ने शादी को ले कर बात की थी. कई रिश्ते भी बताए, लेकिन मैं तब शादी के लिए तैयार नहीं थी.
कई बार कुछ लोगों ने मेरे मातापिता से बात किए बिना मुझ से संपर्क भी किया, लेकिन वे मुझे पसंद नहीं करते थे.
नौकरी के दौरान कई लड़कों से दोस्ती तो हो गई थी, लेकिन प्यार करने वाला कोई नहीं मिला था. कभी किसी को प्यार के लायक नहीं पाया. यह भी हो सकता है कि मैं ईसाई समुदाय से आती हूं, शायद इसलिए किसी ने मुझे प्रपोज नहीं किया.
मैं थोड़ी गुस्सैल स्वभाव की हूं, हालांकि दिल से नरम हूं. शायद मुझे लगता था कि कोई ऐसा इंसान मेरी जिंदगी में आए जो मेरे गुस्से को कम कर सके. मुझे अच्छी तरह समझ सके. जब से पाठक से दोस्ती हुई है, तब से मेरा गुस्सा कुछ कम हुआ है.
जहां तक शादी की बात है, तब मुझे लगता था कि शादी की कोई उम्र नहीं होती. महिलाओं को अपने जीवन के फैसले खुद लेने की आजादी होनी चाहिए. मैं ने भी अपनी जिंदगी खुद तय की है. इस में मेरा परिवार भी मेरे साथ है.
शैलबाला की बातें सुनने के बाद पाठक की सास ने कह दिया, ‘‘तुम एकदूसरे को जानते हो. तुम्हारे विचार आपस में काफी मिलते हैं. फिर तुम लोग शादी क्यों नहीं कर लेते? कहो तो मैं दामाद से बात कर लूं.’’
‘‘लेकिन..’’
‘‘लेकिन उन की बेटियों को ले कर है न! दोनों बेटियां भी चाहती हैं कि तुम उन की मां की जगह ले लो. उन्होंने ही मुझे प्रपोज करने के लिए कहा है.’’
‘‘फिर भी मुझे सोचने का कुछ वक्त चाहिए,’’ शैलबाला बोलीं.
उस रोज शैलबाला ने अपनी पुरानी जिंदगी के पन्ने खोल दिए थे. उन्होंने बताया कि 11वीं कक्षा के बाद उन्होंने कभी भी अपने मातापिता से पढ़ाई के लिए पैसे नहीं मांगे. ट्यूशन पढ़ा कर अपना खर्चा उठाया. डाक्टर बनना चाहती थी, लेकिन पीएमटी में 2 कोशिशों के बाद भी सेलेक्शन नहीं हो पाया.
फिर बी.एससी. में एडमिशन ले लिया. ग्रैजुएशन के बाद दोस्तों ने कहा कि वह पीएससी की तैयारी क्यों नहीं करती? लेकिन विज्ञान विषय से पीएससी कठिन था. फिर इतिहास में एमए किया.
इतिहास और लोक प्रशासन विषय के साथ पीएससी में शामिल हुई. मुख्य परीक्षा से पहले पापा की तबीयत बिगड़ गई, लेकिन मेंस क्लियर हो गया. फिर इंटरव्यू में भी सफलता मिल गई. पहले ही प्रयास में चयन हो गया. सफर यूं ही चलता रहा.
शैलबाला मार्टिन 9 अप्रैल को 57 साल की हो गईं. राकेश पाठक उन से उम्र में महज एक साल बड़े हैं. दोनों की अपनी अलग पहचान है. इंदौर की रहने वाली शैलबाला मूलत: झाबुआ इलाके से हैं. वह ईसाई समाज की हैं. उन के परिवार में मातापिता के अलावा 2 भाई हैं. शालीन, संभ्रांत, संवेदनशील, सुंदर व्यक्तित्व की धनी और सुलझी हुई 2009 बैच की आईएएस अधिकारी हैं.
एक अविवाहित, दूसरे विधुर
इन दिनों वह मध्य प्रदेश के राज्य मंत्रालय, वल्लभ भवन, भोपाल में अतिरिक्त सचिव (सामान्य प्रशासन विभाग) के पद की जिम्मेदारी संभाल रही हैं. इस से पहले वह निवाड़ी जिले की कलेक्टर और बुरहानपुर की नगर आयुक्त भी रह चुकी हैं.
दूसरी तरफ डा. राकेश पाठक मूलरूप से ग्वालियर के रहने वाले हैं. वह नवभारत, नईदुनिया, नवप्रभात, स्टेट टुडे अखबार के संपादक रह चुके हैं. इन दिनों कर्मवीर समाचार पत्र के मुख्य संपादक हैं.
जैसेजैसे समय बीतता रहा, वैसेवैसे पाठक और शैलबाला की दोस्ती प्रगाढ़ होती चली गई. उन के परिवार के सदस्यों का शादी को ले कर दबाव बनने लगा. पाठक की बेटियों ने भी पाठक और शैलबाला पर शादी करने की प्लानिंग तक कर डाली.
अंतत: वह दिन भी आ गया, जब पाठक ने न केवल शैलबाला को विवाह प्रपोजल दिया, बल्कि इसे अपने फेसबुक वाल पर सार्वजनिक भी कर दिया.
एक नजर पाठक के उस पोस्ट पर डालें, जो इस प्रकार है—
अब सुख दु:ख की साथी हैं शैलबाला मार्टिन आत्मीय स्वजनो,
आज हम आप से अपने सुखदु:ख की साथी मिस शैलबाला मार्टिन का परिचय करवा रहे हैं. शैलजी इंदौर की निवासी हैं. मध्य प्रदेश काडर की आईएएस अधिकारी हैं. कलेक्टर, निगम कमिश्नर रही हैं. मध्य प्रदेश सरकार में अनेक अहम पदों का दायित्व निभा चुकी हैं.
इन दिनों राज्य मंत्रालय, वल्लभ भवन भोपाल में एडिशनल सेक्रेटरी (सामान्य प्रशासन विभाग) के पद पर पदस्थ हैं. एक कर्मठ और संवेदनशील प्रशासक होने के साथ शैल यदाकदा लिखती भी हैं. उन की सीरीज ‘अमी एक जाजाबोर’ (मैं एक यायावर) उन की फेसबुक वाल पर पढ़ी जा सकती है.
इस में वह अपने आसपास की दुनिया को एक अलग नजर से देखती और दर्ज करती हैं. अगर ऐसे ही लिखती रहीं तो भविष्य में इसी शीर्षक से उन की किताब आएगी. जाहिर है लिखेंगी ही.
हम बीते लगभग 2 बरस से मित्र हैं. इस संगसाथ में हम ने जाना कि शैल हमारी हमखयाल होने के साथसाथ एक बेहतरीन इंसान हैं. अब हम जीवनसाथी होने जा रहे हैं.
बाबा कबीर कह गए हैं—
ये तो घर है प्रेम का खाला का घर नाय
सीस उतारे भूंय धरे तब बैठे घर माय.
…सो हम दोनों अपनाअपना शीश उतार कर प्रेम के घर में बस रहे हैं.
पिछले दिनों एक पारिवारिक आयोजन में दोनों बेटियों सौम्या और शची ने शैल का पूरे परिवार के साथ परिचय करवाया. बेटियों की नानी मां सहित पूरे कुटुंब ने शैल का पाठक परिवार में स्नेहसिक्त स्वागत किया.
शैल के बड़े भाइयों विनयजी और विनोदजी सहित पूरे परिवार का आशीर्वाद भी हम दोनों को मिला है.
मेरी धर्मपत्नी प्रतिमा प्रकृतिप्रदत्त आयु को पूर्ण कर सन 2015 में अनंत की यात्रा पर प्रस्थान कर गई थीं. अपनी अदम्य जिजीविषा से उन्होंने 5 साल ब्लड कैंसर से मोर्चा लिया था. अब आगे की यात्रा शैल के साथ तय होगी. आप की शुभकामनाएं हमारा मार्ग प्रशस्त करेंगी. इसी पोस्ट के साथ उन्होंने नई जिंदगी की महत्त्वाकांक्षाओं का जिक्र करते हुए ईस्टर के बाद विवाह बंधन में बंधने की घोषणा भी कर दी थी.
दिल को मिल गया मुकाम
इस पोस्ट के आते ही कुछ मिनटों में एक आईएएस और पत्रकार की शादी की खबर सोशल साइट पर वायरल हो गई. देखते ही देखते यूट्यूब, प्रिंट, इलेक्ट्रौनिक और डिजिटल मीडिया के लिए दोनों की लव स्टोरी अहम खबर बन गई.
मीडिया से ले कर ब्यूरोक्रेट जगत तक में दोनों चर्चा का विषय बन गए. उन के चाहने वालों के मन में जिज्ञासा जागी कि
आखिर उन के बीच प्रेम के बीज कब, कैसे अंकुरित हुए?
इस का जवाब जानने तक सोशल साइटों पर ही उन्हें अग्रिम बधाई देने वालों का तांता लग गया. शायद ही कोई हो, जिस ने नए रिश्ते को नजरंदाज किया हो. हालांकि अधिकतर उन के बीच की नजदीकियों से भी वाकिफ थे.
पाठक की दोनों बेटियों ने पिता के फैसले का दिल से स्वागत किया और सार्वजनिक रूप से शैलबाला मार्टिन को बधाई भी दी. बेटी सौम्या ने लिखा कि हमारे परिवार में आप का स्वागत है. इस नए खूबसूरत सफर के लिए आप को और पापा को ढेर सारा प्यार.
फिर भी एक बहस का हिस्सा बन गए. क्योंकि राकेश पाठक जहां ग्वालियर जिले के रहने वाले हिंदू ब्राह्मण परिवार से हैं, वहीं शैलबाला मार्टिन इंदौर की मूल निवासी ईसाई फैमिली से.
बहरहाल, कथा लिखे जाने तक उन की शादी की तारीख तय नहीं हुई थी. लेकिन ईस्टर के बाद होनी तय है. बताया जाता है कि उन की प्लानिंग कोर्ट मैरिज करने की है. उस के बाद रीतिरिवाजों के मुताबिक शादी होगी. विवाह की रस्मों में धर्म का कोई बंधन नहीं होगा.
शैलबाला के अनुसार उन्हें किसी तरह की कोई आपत्ति नहीं है. दोनों के दिलों में एकदूसरे के प्रति गहरा सम्मान है. इस में धर्म का कोई बंधन है ही नहीं.
(कहानी का नाटकीय रूपांतरण किया गया है)