1982 में गुजराती फिल्म ‘धूम्रसर’ में अभिनय कर राष्ट्रीय पुरस्कार जीतकर अभिनय करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता धर्मेश व्यास लगातार रंगमंच, टीवी फिल्मों में अभिनय करते आ रहे हैं. 1992 से 2010 तक वह हिंदी सीरियलों में काफी व्यस्त रहे. मगर पिछले पांच वर्षां से वह टीवी को अलविदा कहकर गुजराती भाषा की फिल्मों व रंगमंच पर व्यस्त हो गए थे. पर अब वह ‘मुबू टीवी’ चैनल के सीरियल ‘गुजरात भवन’ में अहम किरदार में नजर आ रहे हैं. प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के अंश…
आप पिछले कुछ समय से गुजराती फिल्में ही ज्यादा कर रहे हैं?
जी हां, पिछले चार वर्षों से मैंने टीवी पर काम करना बंद कर दिया था और गुजराती फिल्मों में व्यस्त हो गया था. इन दिनों गुजराती फिल्में काफी अच्छी बन रही हैं. गुजराती भाषा में मैं एकमात्र ऐसा कलाकार हूं, जो कि उस वक्त के वरिष्ठ कलाकार उपेंद्र त्रिवेदी व नरेश कनोडिया के साथ गुजराती फिल्में कर रहा था और अब नई पीढ़ी के कलाकारों के साथ भी काम कर रहा है.
चार वर्ष तक टीवी से दूरी बनाए रखने की मूल वजह क्या रही?
सच यह है कि टीवी जिस तरह से नारी प्रधान हो गया है, उसमें जिस तरह के सीरियल या कार्यक्रम बन रहे हैं, उसमें हम पुरूष कलाकारों के लिए करने को कुछ होता ही नही है. हम कहीं भी महज शो पीस की तरह खड़े नजर आते हैं. इसलिए मैंने टीवी से दूरी बनाई. मैं तो थिएटर से हूं, तो मुझे ऐसे सीरियलों में अभिनय कर मजा नहीं आ रहा था. फिर एक कलाकार के तौर पर मेरी अपनी एक अलग पहचान बन चुकी है. दर्शक पहचानते हैं. पैसा भी कमा ही लिया था. ऐेसे में मैने सोचा कि अब जो भी करना है, सिर्फ श्रेष्ठ ही करना है. मुझे रूटीन जिंदगी जीना पसंद ही नही है. टीवी पर अब 12 घंटे काम होने लगा है. तो मुझे लगा कि मैं तो मर जाउंगा. इसलिए मैं वापस फिल्म और थिएटर की तरफ लौट आया. पिछले चार वर्ष के दौरान मैंने करीबन 25 गुजराती भाषा की फिल्में की. हर फिल्म में मैंने अलग तरह के किरदार निभाए.
तो अब ‘मुबू टीवी’ के सीरियल ‘गुजरात भवन’ से जुड़ने की क्या खास वजह रही?
इस सीरियल के निर्देषक धर्मेश मेहता मेरे काफी पुराने दोस्त हैं. हम दोनो ने थिएटर पर एक साथ ही काम करना शुरू किया था. तो जब वह मेरे पास इस सीरियल का आफर लेकर आए,तो उसने मुझसे सिर्फ इतना ही कहा कि,‘धर्मेश इस सीरियल में एक किरदार है, जिसे करने में तुझे मजा आएगा.’ फिर उसने मुझे किरदार के बारे में विस्तार से बताया. मैंने किरदार के बारे में सुनते ही तुरंत हामी भर दी. उसके बाद मुझे पता चला कि यह एक नए चैनल ‘मुबू टीवी’ पर आने वाला है.
मैने कहा कि नया चैनल होगा तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि सीरियल का विषय बहुत सशक्त है. ऐसें में यदि चैनल ने प्रचार सही ढंग से किया और दर्शक ने एक बार सीरियल देखा, तो इस बात की गारंटी हे कि वह लगातार इस सीरियल को देखना चाहेगा. मैं अब जबकि इसका प्रसारण शुरू हो चुका है, तो भी दावा कर रहा हूं कि यह सीरियल बहुत जल्द सर्वाधिक लोकप्रिय सीरियल बनने वाला है.
नए चैनल ‘मुबू’के सीरियल ‘गुजरात भवन’में अभिनय करने का आफर मिलने पर आपके मन मस्तिष्क में पहला विचार क्या आया?
आज से तीस वर्ष पहले जब मैंने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था, उस वक्त कोई सेटेलाइट चैनल नहीं था. तब दूरदर्शन था. और मैं दूरदर्शन पर कई सीरियलों में अभिनय किया. उससे पहले थिएटर व फिल्में भी की थी. जब 1992 में जी टीवी नामक पहले सेटेलाइट चैनल की शुरुआत हुई, तो मेरे पास ‘परंपरा’ नामक सीरियल का आफर आया था,तो मैने उसे तुरंत स्वीकार कर लिया था. जबकि उस वक्त ‘जीटीवी’ चैनल को कोई जानता ही नहीं था. इस सीरियल को जबरदस्त लोकप्रियता मिली और मुझे भी. इसके बाद ‘तारा’, ‘बनेगी अपनी बात’, ‘हसरते’, ‘कैम्पस’ सहित कई सीरियल सफल हुए. आज जीटीवी किस मुकाम पर है, आप स्वयं जानते हैं. तब से लगातार मैंने कई सेटेलाइट चैनलों के सीरियलों में अभिनय करता रहा.
जब सोनी टीवी शुरू हुआ था,तब इसके पहले सीरियल ‘जदूगर’ में मैंने अभिनय किया था. जब ‘स्टार प्लस’ शुरू हुआ,तो ‘स्टार प्लस’ पर मेरा दूसरा सीरियल ’भाभी’ था, यह डेलीसोप था. इसे रौनीस्कू्रवाला और जरीन खान ने बनाया था. यह सभी हिट हुए थे. तो मैं काम कर चुका हूं और देख चुका हूं कि चैनल नया हो या पुराना, अच्छा सीरियल ही लोग देखना चाहते हैं. ‘गुजरात भवन’ इतना बेहतरीन सीरियल है कि इसे एक बार दर्शकों ने देखना शुरू किया, तो फिर इससे कोई दूर नहीं जाएगा, इसका फायदा चैनल के स्थापित होने को भी मिलेगा.
सीरियल ’गुजरात भवन’ को लेकर क्या कहेंगे?
यह रोजमर्रा की जिंदगी की कहानी है. यह मुंबई में रहने वाले गुजराती परिवार की कहानी हैं, जिनके दिलों में गुजरात समाया हुआ है. वह गुजरात से बाहर निकल ही नहीं पा रहे हैं. इसी के चलते इन लोगों ने घर के हर कमरे को गुजरात के शहरों का नाम दिया हुआ है. मसलन बेड रूम को बरोदा, किचन को अहमदाबाद, ड्राइंग रूम को गांधी नगर. क्योंकि ड्राइंग रूम में ही हर निर्णय बैठकर लिए जाते हैं. टेरेस को कछ का नाम दिया है. सीरियल में इस तरह की सामान्य बातें की जा रही हैं कि दर्शक रिलेट कर पा रहा है. इमानदारी की बात यह है कि 1992 में मैंने सीरियल ‘हसरतें’ में काम करते हुए जितना इंज्वौय किया था, उतना ही इंज्वौय अब मैं पहली बार ‘गुजरात भवन’ करते हुए कर रहा हूं.
‘गुजरात भवन’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?
यह किरदार मेरे टेम्परामेंट के विपरीत है. पूरी टीवी इंडस्ट्ी और दर्शक जानते हैं कि मुझे मुंबई बम की तरह जानते हैं कि यह सीन में आया, तो तोड़फोड़ धमाल होनी ही है. पर निर्देशक धर्मेश मेहता ने इस सीरियल में मेरे किरदार को खूबसूरती से गढ़ा है.
थिएटर में नया क्या कर रहे हैं?
थिएटर तो मेरा पैशन है. थिएटर की ही वजह से मैंने कई हिंदी फिल्में भी छोड़ी हैं. थिएटर में पिछले तीस वर्ष से मेरे समर्पित दर्शक हैं. दर्शक मेरा नाटक देखने के लिए इंतजार करते रहते हैं. कुछ दिन पहले मैने ‘बाप कमाल डीकरो धमाल’ नाटक किया था. इसका निर्देशन भी मैंने किया. इसके शो विदेशों में भी काफी किए.
क्या अब आप निर्देशन में कदम रखना चाहेंगें?
फिलहाल टीवी और फिल्म दोनों जगह मेरे अभिनय की दुकान बहुत अच्छी चल रही है. इसलिए निर्देशन में जाने की नहीं सोच रहा हूं. क्योंकि अब पैसा कमाने की मेरी चाहत नही रही. ईश्वर की अनुकंपा से मैंने एक अच्छी जिंदगी जीने लायक धन कमा लिया है. रंगमंच, फिल्म व टीवी ने मुझे अच्छा पैसा दिया. अब तो सिर्फ यादगार काम करना है. अब मैं आत्मसंतुष्टि के लिए ज्यादा काम कर रहा हूं.
आने वाली दूसरी फिल्में?
मेरी चार गुजराती भाषा की फिल्मं जल्द प्रदर्शित होंगी. एक फिल्म ’और्डर और्डर’ आउट औफ और्डर’ है, यह पारिवारीक और कोर्ट रूम ड्रामा वाली फिल्म है. दूसरी फिल्म ‘सफर द जीरो किलोमीटर’ है, जिसमें धर्मेश इलांडे हीरो है और मैने इसमें नगेटिव किरदार निभाया है. तीसरी फिल्म ‘पास ना पास जिंदगी की रेस मां’ है. इसके अलावा एक फिल्म ‘पटेल वर्सेस पथिक’ है. इसमें दर्शन रावल हीरो हैं. इसकी 10 प्रतिशत शूटिंग लंदन में होनी बाकी है.