भारत में इस समय तकरीबन 50.4 लाख हार्ट फेल्योर रोगी हैं और जिस तरह से इस के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है, उसे देख कर लगता है कि अब हार्ट फेल्योर युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रहा है. इस के बढ़ते मामलों की वजह लोगों में हार्ट फेल्योर के बारे में जानकारी की कमी है और लोग इसे हार्ट अटैक से जोड़ कर देखते हैं.
कुछ ऐसा ही मामला मेरे पास आया था. विपिन सैनी जब अस्पताल में भर्ती हुए थे तो उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, पैरों और टखनों में सूजन थी, चक्कर आ रहे थे और जब भी खांस रहे थे तो बलगम हलके गुलाबी रंग का था. करीब डेढ़ साल पहले उन्हें हार्ट अटैक आया था और इस के बाद ही पता चला कि विपिन हार्ट फेल्योर की समस्या से ग्रस्त हैं.
दरअसल, विपिन की प्रोफैशनल जिंदगी में बहुत तनाव था और लगातार काम करते रहना व अस्वस्थ खानपान के चलते उन में हार्ट फेल्योर के लक्षण दिखाई देने लगे थे.
हार्ट फेल्योर
हार्ट फेल्योर लंबी चलने वाली गंभीर बीमारी है. इस में हृदय इतना रक्तपंप नहीं कर पाता कि जिस से शरीर की जरूरतों को पूरा किया जा सके. इस से पता चलता है कि हृदय की मांसपेशियां पंपिंग करने के लिए जिम्मेदार होती हैं जो समय के साथ कमजोर हो जाती हैं या अकड़ जाती हैं. इस से दिल की पंपिंग पर प्रभाव पड़ता है और शरीर में रक्त (औक्सीजन व पोषक तत्त्वों से युक्त) की गति सीमित हो जाती है. इस वजह से रोगी को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है और उस के टखनों में सूजन आने लगती है. यह बीमारी हार्ट अटैक से बिलकुल अलग है.
लक्षण भी जानें
हार्ट फेल्योर होने के कई कारण होते हैं जिन में पहले हार्ट अटैक होना सब से महत्त्वपूर्ण कारक हो सकता है. विपिन के मामले में भी ऐसा ही हुआ था. हार्ट अटैक के बाद विपिन में हार्ट फेल्योर के लक्षण सामने आए थे. इस के अलावा दिल से जुड़ी बीमारियां, ब्लडप्रैशर, संक्रमण या शराब या ड्रग की वजह से हृदय की मांसपेशियों का क्षतिग्रस्त होना शामिल हो सकता है. दिल के क्षतिग्रस्त होने की वजह डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, मोटापा, किडनी की बीमारी और थायरायड में विकार हो सकते हैं. कई मामलों में हार्ट फेल्योर के एक या इस से ज्यादा कारण भी हो सकते हैं.
क्या कहते हैं आंकड़े
दुनियाभर के आंकड़ों पर गौर करें तो यूरोप में 140.9 लाख लोग और अमेरिका में 50.7 लाख लोग हार्ट फेल्योर की समस्या से जूझ रहे हैं. भारत में हाल ही जर्नल औफ प्रैक्टिस औफ कार्डियोवैस्कुलर साइंसैज में प्रकाशित एम्स की स्टडी के अनुसार, हार्ट फेल्योर से अमेरिका व यूरोप में 4 -7 प्रतिशत के मुकाबले भारत में 30.8 फीसदी मृत्यु होती है. अगर संपूर्ण बीमारी का बोझ देखें तो पता चलता है कि दुनिया की आबादी में भारत आंकड़ों में 16 फीसदी है तो दुनिया के क्रोनोरी हार्ट डिसीज बोझ में यह 25 फीसदी है.
दुनियाभर के मुकाबले भारत में क्रोनोरी आर्टरी डिसीज (सीएडी) से युवा ज्यादा प्रभावित हैं. आमतौर पर सीएडी पुरुषों में अगर 55 साल से पहले और महिलाओं में 65 साल से पहले हो जाए तो उसे प्रीमैच्योर सीएडी कहा जाता है, लेकिन अगर यह बीमारी 40 साल से पहले हो तो माना जाता है कि यह युवाओं को अपनी चपेट में ले रही है.
क्या है फर्क
सब से महत्त्वपूर्ण हार्ट अटैक और हार्ट फेल्योर के अंतर को समझना है. हार्ट अटैक अचानक होता है और हृदय की मांसपेशियों को रक्त पहुंचाने वाली धमनियों में ब्लौकेज होने से आकस्मिक हार्ट अटैक हो सकता है जबकि हार्ट फेल्योर लगातार बढ़ने वाली बीमारी है जिस में हृदय की मांसपेशियां समय के साथ कमजोर होती जाती हैं.
कैंसर, अल्जाइमर्स, सीओपीडी और ऐसी कई बीमारियों की तरह हार्ट फेल्योर भी लगातार बढ़ने वाली बीमारी है. इसलिए इस के लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और दिल की मांसपेशियों के क्षतिग्रस्त होने से पहले इसे चेक कराना बहुत महत्त्वपूर्ण है. हार्ट फेल्योर में यह जानना बेहद जरूरी है कि क्षतिग्रस्त मांसपेशियों को दोबारा रिकवर नहीं किया जा सकता, इलाज की मदद से सिर्फ दिल व शरीर के दूसरे महत्त्वपूर्ण अंगों को अधिक खराब होने से बचाया जा सकता है.
हार्ट फेल्योर को लगातार अनदेखा करना बहुत रिस्की है क्योंकि जो लोग इस बीमारी की पहचान नहीं कर पाते या इलाज नहीं कराते, उन की अचानक मृत्यु होने का रिस्क बढ़ सकता है और वे बेहतर जिंदगी भी नहीं बिता पाते. बीमारी की काफी देर बाद पहचान होने के परिणाम काफी घातक होते हैं. इस वजह से एकतिहाई रोगियों की अस्पताल में भरती होने पर मृत्यु हो जाती है और एकचौथाई की पहचान होने के 3 महीनों में मृत्यु हो जाती है.
जीवनशैली है बड़ा कारण
लगातार शराब, धूम्रपान, ड्रग्स का सेवन, तनाव, कसरत न करने जैसी अस्वस्थ जीवनशैली हार्ट फेल्योर के कारण हो सकते हैं. इस से मोटापा, ब्लडप्रैशर बढ़ना, डायबिटीज जैसे रोग हो सकते हैं. ये बीमारियां दिल की मांसपेशियों को कमजोर करती हैं और इस से हृदय की कार्यक्षमता प्रभावित होती है.
अस्वस्थ जीवनशैली का उदाहरण हाल ही में एक मामले में देखने को मिला.
20 साल का लड़का सत्यम शर्मा जब परामर्श के लिया आया तो उसे बहुत थकान, सांस लेने में तकलीफ और बहुत ज्यादा पसीना निकलने की समस्या थी. जब जांच की गई तो उस में शुरुआती हार्ट फेल्योर के लक्षण नजर आए. इस उम्र में हार्ट फेल्योर के लक्षणों का कारण लगातार बहुत ज्यादा शराब पीना था.
हार्ट फेल्योर का इलाज
हार्ट फेल्योर की पहचान करना ज्यादा मुश्किल नहीं है. इस की पहचान मैडिकल हिस्ट्री की जांच कर के, लक्षणों की पहचान, शारीरिक जांच, रिस्क फैक्टर जैसे उच्च रक्तचाप, क्रोनोरी आर्टरी बीमारी या डायबिटीज होने और लैबोरेटरी टैस्ट से की जा सकती है. इकोकार्डियोग्राम, छाती का एक्सरे, कार्डियेक स्ट्रैस टैस्ट, हार्ट कैथेटराइजेशन और एमआरआई से इस समस्या की सही पहचान की जा सकती है.
पहचान न कर पाने या स्क्रीनिंग में दिक्कत होने के बावजूद हार्ट फेल्योर का इलाज आधुनिक तकनीकों से बेहतर तरीके से किया जा सकता है. इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए जीवनशैली में बदलाव करना बहुत जरूरी है.
इस के साथ कई थेरैपियों की मदद से हार्ट फेल्योर का उपचार किया जा सकता है. इस से लक्षणों को कम, जिंदगी की गुणवता में सुधार और मृत्युदर को कम किया जा सकता है.
इस के इलाज में बीटा ब्लौकर, एसीई इनहिबिटर जैसी दवाइयों, हाई बीपी या डायबिटीज जैसी बीमारियों का इलाज कर के, कार्डियेक उपकरण जैसे कार्डियेक रिस्नक्रोनाइजेशन थेरैपी (सीआरटी) व इंट्रा कार्डियेक डिफिबरालेटर (आईसीडी) और क्रोनोरी आर्टरी बीमारी के मामलों में सर्जरी व वौल्व के रिपेयर या रिप्लेसमैंट का सुझाव दिया जाता है.
नई उम्मीदें
हार्ट फेल्योर के इलाज के कई बेहतरीन विकल्प हैं. पिछले साल यूएस फूड व ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने नई दवाई इवाब्राडाइन को मंजूरी दी थी जो भारत में काफी समय से उपलब्ध है. इसी तरह ड्रग की नई श्रेणी एंजियोटेनसिन-रिस्पेटरब्लौकर निपरिलसिन इंहिबिटर (एआरएनआई) है.
2 संयोजकों से बनी यह दवाई मौजूदा ब्लडप्रैशर को कम करने में मदद करती है और यह काफी प्रभावी साबित हुई थी. इस से 20 फीसदी तक मृत्यु में कमी और बारबार अस्पताल में भरती होने में कमी आई थी, जोकि फिलहाल मौजूद थेरैपियों के मुकाबले काफी फायदेमंद है.
(लेखक नई दिल्ली स्थित एम्स में कार्डियोलौजिस्ट हैं)