गरुड़ पुराण बनाम लूट पुराण

गरुड पुराण में 16 अध्याय हैं. इस में गरुड़ (एक खास पक्षी) और विष्णु का संवाद है. संवाद 2 विषयों को ले कर है. पहला यह कि नरक में कौन जाता है और वहां कैसी कैसी यातनाएं दी जाती हैं. दूसरा यह कि स्वर्ग में क्या सुख हैं और उन का अधिकारी कौन है. गरुड प्रश्न पूछता गया और विष्णु उत्तर देते गए. योजना यह है कि जब भगवान कहेगा तो अंधविश्वासी हिंदुओं को मानना ही पड़ेगा.

मरणासन्न व्यक्ति को नीचे लिटा देना चाहिए. दाह संस्कार के दूसरे या तीसरे दिन जिस स्थान से शव को उठाया गया है उस स्थान को प्रतिदिन लीपा जाए और दीपक जला कर मृतक के परिवार- जनों को 10 दिन तक ब्राह्मण के मुख से गरुड पुराण सुनना चाहिए. पुत्र या मृतक का सगासंबंधी हर रोज पिंडदान करे, जिसे दशगात्र कर्म कहा है. जो दशगात्र कर्म नहीं करता वह और मृतक दोनों नरक में जाते हैं.

मृतक यदि नारी हो तो 11वें दिन और पुरुष हो तो 12वें दिन पिंडदान के बाद ब्राह्मण की पूजा कर 7 प्रकार का अन्न, गौ, शैया, घर, जमीन, सोना, चांदी दान करे. साथ में पहनने के सब वस्त्र, छाता, जूते, ब्राह्मणी को कपड़े और शृंगार सामग्री, मीठा, फल दक्षिणा आदि भेट करे. तभी मृतक और पुत्र (मरने के बाद) को स्वर्ग की गारंटी है अन्यथा कल्पों (4 अरब 32 करोड़ वर्ष का होता है) तक दोनों को 84 लाख नरक की यातनाएं भोगनी पड़ेंगी.

इसे कहते हैं गहरी पैठ. ब्राह्मण लोभी कहलाने से साफ बच गए और विष्णु को अपना दलाल बना कर मृ्रतक परिवार को लूट लिया. कौन चाहेगा कि उस के मातापिता कल्पों तक नरक भोगें. गरुड पुराण लिखने वाले ने विष्णु से नरक की यातनाओं का वर्णन करा कर मृतक के परिवार वालों की भावनाओं के दोहन में भी कोई कसर नहीं रखी.

नरक का वर्णन

जिस तरह पुलिस सच उगलवाने के लिए शातिर चोरों को भयभीत करती है उसी तरह विष्णु ने नरक का हौवा दिखा कर हिंदुओं को भयभीत किया है. नरक कहां है विष्णु ने यह नहीं बताया है, केवल यातनाओं का वर्णन है. नरक का रास्ता 2 हजार योजन (8 हजार मील) लंबा है. रास्ता कांटों से भरा हुआ है, ऊंचे पहाड़ और गहरी खाइयां हैं, वहां छाया, अन्न जल नहीं मिलता और अंगारों की वर्षा होती है. पापी को रास्ते में कुत्ते, शेर व्याघ्र आदि हिंसक पशु नोचते हैं. अंत में यमदूत उसे पाश में बांध कर नरक में बहने वाली वैतरणी नदी में पटक देते हैं जो पापियों के लिए ही बनाई गई है.

वैतरणी नदी 100 योजन (400 मील) लंबीचौड़ी है. इस में पानी के बजाय हड्डियां, पीब  (मवाद), रक्त, मांस भरा हुआ है. नदी में बेशुमार जोंक, सर्प, बिच्छू, मगरमच्छ और जहरीले कीड़ेमकोड़ों की भरमार है जो पापी को डसते हैं. जोंक खून पीता है, चील, गिद्ध व कौए उस को नोचते हैं. यमदूत कुल्हाड़ी से काटते हैं, बारबार लोहे के डंडों, मुगदरों से मरने वाले को मारते हैं, उबलते हुए तेल की कड़ाही में डालते हैं. यातनाएं देते हुए यमदूत उस से कहते हैं :

‘‘हे पापी, तू ने केवल अपना और परिवार का पेट भरा है, ब्राह्मणों को गाय, सोना, चांदी, अन्न, भूमि, वस्त्र आदि का दान नहीं किया, अपने पितरों का श्राद्ध नहीं किया. अब तू उस की सजा भोग.’’

(गरुड पुराण अध्याय-3)

पुनर्जन्म, नरक व स्वर्ग काल्पनिक शब्द हैं. यहां नरक का वीभत्स वर्णन कर हिंदुओं को भयभीत किया है ताकि वे ब्राह्मणों को दान देते रहें व मालपुआ खिलाते रहें. प्रश्न यह उठता है कि हिंदू मृतक के शरीर को जला देते हैं. पुराणकार के अनुसार आत्मा दिखती नहीं है. फिर यमदूत पाश में किसे बांधते हैं? हिंसक जीवजंतु किस का खून पीते हैं व नोचते हैं? गरम तेल की कड़ाही में किस को तलते हैं?

विष्णुजी अगर नरक का पता बता देते तो आज के वैज्ञानिक उस की खोज करते और यमदूतों को भी पकड़ने का प्रयास करते.

नरक में कौन जाता है

ब्राह्मण को दान न देने वाले, गौ व ब्राह्मण की हत्या करने वाले, उन का धन अपहरण करने वाले, यज्ञहवन, श्राद्धतीर्थ न करने वाले, जो वेदपुराण, देव, वर्णव्यवस्था की निंदा करते हैं, ब्राह्मण को भोजन नहीं कराते, गायत्री मंत्र व भगवान के नाम का जाप नहीं करते वे सब नरक में जाते हैं. जो शूद्र कपिला गाय का दूध पीते हैं, वेद पढ़ते हैं व यज्ञोपवीत धारण करते हैं वे भी नरक में जाते हैं. जो राजा ब्राह्मण से कर लेता है व दंड देता है वह भी नरक में जाता है.

ब्राह्मण और गौ की हत्या करने वाले की सजा देखिए :

‘‘ब्रह्महा क्षयरोगी स्याद् गोहन: स्यात्कुब्जको जड:’’ (ग.पु.-5-3)
(अर्थात ब्राह्मण का हत्यारा क्षय रोगी, गाय का हत्यारा मूर्ख व कुबड़ा होता है.)

ब्राह्मणों का अपमान करने वाला, दान न देने वाला, बहस करने वाला, राक्षस बनता है तथा सात पीढि़यों तक अपने कुल का नाश करता है.

यहां पुराणकार को वर्ण व्यवस्था, कल्पित व पक्षपातपूर्ण धर्मग्रंथ श्राद्धतीर्थों की चिंता सब से अधिक है ताकि ब्राह्मणों को दान और मुफ्त का भोजन मिलता रहे. इसीलिए विष्णु के माध्यम से वीभत्स नरक का भय दिखाया गया है. तभी तो लोग विश्वास करेंगे. विष्णु ने यह तो बता दिया कि किस पाप से पुनर्जन्म में कौन क्या बनता है पर यह नहीं बताया कि शूद्र के लिए कपिला गाय का दूध पीना और वेद पढ़ना पाप कर्म कैसे हुए?

विष्णु का सेनापति इंद्र तो 15-20 बैलों का मांस एक बार में ही खा जाता था फिर उस को नरक में क्यों नहीं भेजा, उसे देवों का राजा क्यों बनाया? वैदिक काल में ब्राह्मण (आर्य) यज्ञ के नाम पर गाय का मांस खाते थे उन को वैतरणी नदी में क्यों नहीं डाला? कुल मिला कर जो अपने दिमाग का उपयोग करता है और लुटता नहीं है वही नरक को जाता है.

स्वर्ग कौन जाता है

स्वर्ग एक काल्पनिक शब्द है. इसे हिंदू धर्मग्रंथों में विष्णुलोक, इंद्रलोक, देवलोक और बैकुंठ आदि भी कहा गया है. यहां सब प्रकार के सुख मौजूद हैं इसलिए पंडेपुजारी, साधुसंत और कर्मकांडी ब्राह्मण स्वर्ग के नाम पर हिंदुओं को सदियों से ठगते आ रहे हैं. तारीफ यह है कि इस कल्पित नाम के मोह में पड़ कर शिक्षित हिंदू तक लुटता चला आ रहा है.

गरुड पुराण में ब्राह्मणों को पूजने, भोजन कराने, गाय, बैल, घर, जमीन, सोना, चांदी, अनाज और वस्त्र आदि दान की बात बारबार कही गई है. अगर इस को हटा दिया जाए तो 265 पृष्ठों का यह पुराण केवल 10 पृष्ठों का रह जाएगा. लोगों को स्वर्ग भेजने के लिए मैं भी दोहराव के दोष से नहीं बच सकता हूं.

स्वर्ग के दरवाजे की चाबी कर्मकांडी ब्राह्मणों के हाथों में रहती है. मरणासन्न अवस्था में और श्राद्ध के समय जो ब्राह्मण को सब प्रकार का दान देता है और मालपुआ खिलाता है उसे ही स्वर्ग का दरवाजा खुला मिलता है. स्वर्ण दान करने से धर्मराज का चार्टर्ड अकाउंटेंट चित्रगुप्त मृतक के समस्त पापों को खारिज कर देता है.

मरणासन्न अवस्था में गोदान करने से मृतक धर्मराज की सभा का कल्पों तक सदस्य बनता है. परंतु जो गाय हट्टीकट्टी, रोग रहित, जवान, सीधी (सुपाच्य) दुधारू, हाल की ब्याई हो उसे अलंकृत कर बछड़ा दान करने से ही स्वर्ग मिलता है.

दानदाता ‘‘सोने से गाय के दोनों सींग, चांदी से चारों खुर मढ़े, कांसे के पात्र की दोहनी  (दूध दुहने, चलाने का पात्र), लोहदंड (खूंटा), सोने की यममूर्ति, घी से भरा कांसे का पात्र, इन सब को ताम्रपत्र के ऊपर रख कर रेशम के धागे से गाय बांध कर दान करे.’’

(ग.पु.-8,-70,71,72)

ब्राह्मण को आभूषण, वस्त्र व दक्षिणा देते हुए इस प्रकार कहे :
‘‘हे ब्राह्मण श्रेष्ठ, विष्णु रूप, भूमिदेव, आप मेरा उद्धार कीजिए. मैं ने दक्षिणा सहित यह वैतरणी-रूपिणी गाय आप को दी है. आप को नमस्कार है
(ग.पु.-8, 78-79)

तारीफ यह है कि गाय ब्राह्मण को नहीं दी जाती बल्कि उस के माध्यम से देवों को दी जाती है.

‘‘गोदानं च ततो दद्यात् पितृणां तारणाय वै
गोरेषा हि मया दत्ता प्रीतये तेऽस्तु माधव.’’
(ग.पु. अध्याय 11, श्लोक 13)

(अर्थात हे माधव, यह गौ मेरे द्वारा आप की प्रसन्नता के लिए दी जा रही है. इस गोदान से आप प्रसन्न होवें.)

पुराणकार का दिमाग कितना चालाकी भरा है. उस ने स्वर्ग के बहाने मरणासन्न अवस्था में मृतक के परिवार से अपनी जीविका की पुख्ता व्यवस्था करा ली, क्योंकि भावनाओं के दोहन का सही समय यही होता है. जिस प्रकार भ्रष्ट मंत्रों और अधिकारी रिश्वत के बल पर अनियमित काम कर देते हैं उसी प्रकार धर्मराज और चित्रगुप्त दोनों रिश्वतखोर हुए. तभी दान करने वालों के समस्त पापों को खारिज कर देते हैं. ब्राह्मण स्वयं बच गया और देवों के नाम से मृतक परिवार स्वयं लुट गया अर्थात मियां का सिर और मियां की ही जूती वाली कहावत चरितार्थ कर दी. इसी को कहते हैं चतुराई. इसीलिए कहा जाता है कि जब तक मूर्ख हैं तब तक चतुर भूखे नहीं मर सकते हैं.

लेकिन केवल गोदान से स्वर्ग नहीं मिलने वाला. पिंडदान (श्राद्ध) करते समय पुत्र का कर्तव्य है कि वह ब्राह्मण को 7 प्रकार का अनाज, पुरुषोचित पहनने के सब वस्त्र, छाता, जूते, आसनी, 5 प्रकार के बरतन और इतनी जमीन दान करे जिस पर 101 गाएं बैठ सकें. ब्राह्मणी को पहनने के सब वस्त्र, बिछिया, चूडि़यां व समस्त शृंगार सामग्री दान करे.

शैया दान करने से मृतक अगले जन्म में पलंग पाता है. शैया मोटी, मजबूत और अच्छी बुनी हुई हो. दरी, गद्दा, चादर, रजाई व तकिया भी दिए जाएं. सोने से बनी विष्णु की मूर्ति, चांदी की बनी ब्रह्मा, शिव व धर्मराज की मूर्तियां ब्राह्मण के चरणों में दान करें. तभी पुत्र सुपुत्र कहलाएगा अन्यथा मल के समान है.

ब्राह्मण को दान देने व भोजन कराने से मृतक धर्मराज की सभा का कल्पों तक सदस्य बनता है. अलंकृत जवान अप्सराएं सदस्यों का सदैव मनोरंजन करती हैं. वहां किसी को कोई काम नहीं करना पड़ता, न कभी बूढ़े होते और न भूखप्यास लगती है.

अब बताइए स्वर्ग का टिकट कितना महंगा है. उस में केवल मालदार ही जा सकता है, भले ही वह कितना ही बेईमान और कुकर्मी हो. गरीब नहीं जा सकता, चाहे वह कितना ही ईमानदार और सदाचारी क्यों न हो.

एक बात विचारणीय है. पुराणकार के अनुसार मृतक 84 लाख योनियों को भोग कर मनुष्य बनता है. जिस प्रकार लेटर बाक्स में पता सहित पत्र डाला जाता है और वह पते वाले को प्राप्त हो जाता है. उसी प्रकार ब्राह्मण को जो खिलाया जाता है वह सूर्य की किरणों द्वारा पुरखों को खाने को मिल जाता है. ब्राह्मण को तो मालपुआ व मिठाई खिलाई जाती है. यदि आप का पुरखा शेर बना तो क्या मिठाई आदि मांस बनता होगा, क्योंकि शेर का भोजन तो मांस है. अगर गोबर का कीड़ा बना तो क्या ब्राह्मण का खाया पदार्थ गोबर बनता होगा? क्योंकि गोबर का कीड़ा मीठा नहीं खाता, अगर खाएगा तो डायबिटीज हो जाएगी, अगर सर्प बना तो क्या ब्राह्मण को खिलाया माल मेढक व कीड़ों में बदल जाएगा जो सर्प का भोजन है.

गरुड पुराण लिखने वाले ने नरक की यातनाओं और स्वर्ग के सुखों का वर्णन विष्णु के कहे अनुसार किया है. यहां प्रश्न उठता है कि विष्णु स्वयं पुराण लिखने वाले के पास आए थे या पुराण लिखने वाला विष्णु के पास गया था, अगर गया था तो कब, कहां और कैसे? क्योंकि विष्णु तो क्षीर सागर में सर्प पर विराजते हैं और क्षीर सागर का कहीं अस्तित्व नहीं है.

गरुड पुराण लिखने वाले ने विष्णु को पक्षपाती और ब्राह्मणों का दलाल बना दिया. तभी उन से कहलाया है कि ब्राह्मण पूजा ही मेरी पूजा है और ब्राह्मणों को दान देने से मैं प्रसन्न होता हूं. सोचना यह है कि ऐसे विष्णु की क्या औकात रही?

कुल मिला कर गरुड पुराण लूट पुराण है जो गपों से भरा हुआ है. फिर (अंधविश्वासी) हिंदू कल्पित नरक, स्वर्ग और पुनर्जन्म के चक्कर में पड़ कर क्यों लुटते हैं?

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