हरियाणा के फरीदाबाद जिले में एक 12वीं पास नौजवान क्लिनिक खोल कर बच्चों की जान से खेल रहा था. इलाज के नाम पर वह झोलाछाप डाक्टर आरोपी बच्चों को स्टेरौयड दे रहा था. आरोपी ने कबूलनामे में बताया कि उस ने निजी अस्पतालों में काम करने के दौरान डाक्टरों से थोड़ाबहुत सीख कर होडल में अपना क्लिनिक खोल लिया था.
सोमवार, 13 मार्च, 2023 को फरीदाबाद की सीएम फ्लाइंग स्क्वाड ने बस स्टैंड के पास चल रहे उस क्लिनिक में छापेमारी कर फर्जी डाक्टर अमर सिंह को गिरफ्तार किया और उस के पास से भारी मात्रा में दवाएं भी बरामद कीं.
क्लिनिक में टीम के पहुंचते ही अमर सिंह से उस की डिगरी और दूसरे दस्तावेज मांगे गए तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. टीम और लोकल पुलिस ने फर्जी रजिस्ट्रेशन इस्तेमाल करने और दूसरी दवाएं अपने पास रखने के मामले में आरोपी अमर सिंह को गिरफ्तार कर लिया.
सीएम फ्लाइंग के डीएसपी राजेश चेची ने बताया कि इस क्लिनिक के बारे में कई बार शिकायत मिली थी. पुलिस ने पलवल सिविल अस्पताल के मैडिकल अफसर डाक्टर अक्षय जैन, ड्रग कंट्रोल अफसर, फरीदाबाद डाक्टर संदीप गहलान के साथ मिल कर यह छापेमारी की.
ड्रग कंट्रोल अफसर के मुताबिक, इस क्लिनिक में दवा के नाम पर छोटे बच्चों को स्टेरौयड दिए जा रहे थे, जो एक बार तो मरीज को ठीक कर देते हैं, लेकिन बाद में शरीर को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. जांच के दौरान क्लिनिक के बाहर लगे बोर्ड पर ‘राहुल क्लिनिक नवजात शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ’ के अलावा रजिस्ट्रेशन नंबर भी लिखा मिला.
पकड़े गए फर्जी डाक्टर अमर सिंह ने फ्लाइंग टीम को बताया कि वह 12वीं जमात तक पढ़ा है. उस ने पलवल में बच्चों के अस्पताल में काफी दिन तक काम किया था. इस के बाद उस ने अपना क्लिनिक खोल दिया.
पूरे भारत में ऐसे फर्जी डाक्टरों की कमी नहीं है, जो दिनदहाड़े प्रशासन की नाक के नीचे अपने गैरकानूनी क्लिनिक चला रहे हैं और जब कोई ‘डाक्टर’ बड़ा कांड कर देता है, तो हड़कंप मच जाता है, पर यह सब कुछ दिनों तक ही हलचल मचाता है और फिर सब नौर्मल हो जाता है.
क्या कहता है नर्सिंग होम ऐक्ट
नर्सिंग होम ऐक्ट के मुताबिक, परची या क्लिनिक के बोर्ड पर रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं लिखना ऐक्ट का उल्लंघन है. पहली बार इस तरह की गलती मिलने पर 500 से 50,000 रुपए तक का जुर्माना हो सकता है.
बीएएमएस डिगरीधारी को नाम के आगे ‘आयुर्वेदाचार्य’ लिखना चाहिए. वह ‘डाक्टर’ शब्द नहीं लिख सकता. चिकित्सा शिक्षा संस्थान नियंत्रण अधिनियम 1973, 7 (ग) के तहत ‘डाक्टर’ शब्द का इस्तेमाल रजिस्टर्ड मैडिकल प्रैक्टिशनर ही कर सकता है. इस नियम का उल्लंघन पर 50,000 रुपए का जुर्माना व 3 साल तक की सजा हो सकती है.
उत्तराखंड में हुई हद
इस साल के जनवरी महीने में उत्तराखंड राज्य पुलिस की स्पैशल टास्क फोर्स ने 2 ऐसे बीएएमएस डाक्टरों को पकड़ा था, जो जाली डिगरियों के बलबूते आम लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहे थे. इसी तरह के राज्य में 36 दूसरे फर्जी डाक्टरों की निशानदेही की गई थी.
इन ज्यादातर फर्जी आयुर्वेदिक डाक्टरों की डिगरी राजीव गांधी हैल्थ ऐंड साइंस यूर्निवसिटी कर्नाटका की पाई गई, जो पूरी तरह से फर्जी निकलीं. इन्हें बाबा ग्रुप औफ कालेज मुजफ्फरनगर के मालिक इमरान और इमलाख द्वारा तैयार कराया गया था. 10 जनवरी, 2023 को स्पैशल टास्क फोर्स देहरादून की एक टीम द्वारा आयुर्वेदिक डाक्टर प्रीतम सिंह और मनीष को गिरफ्तार किया गया था.
आरोपियों से की गई पूछताछ में पता चला कि उन्हें जो बीएएमएस की फर्जी डिगरी दी गई थी, वह उन्होंने काफी पैसे दे कर बाबा ग्रुप औफ कालेज मुजफ्फरनगर के मालिक और चेयरमैन इमलाख और इमरान से हासिल की थी. वे दोनों मुजफ्फरनगर के रहने वाले हैं. इमलाख के बारे में जानकारी जुटाई गई तो वह कोतवाली मुजफ्फरनगर का कुख्यात हिस्ट्रीशीटर निकला. उसे उत्तर प्रदेश का सब से बड़ा ‘शिक्षा माफिया’ कहा जाता है.
स्पैशल टास्क फोर्स की जांच में तकरीबन 36 फर्जी आयुर्वेदिक डाक्टरों के साथसाथ इस गिरोह के संचालक इमरान और इमलाख के खिलाफ धारा 19/23, धारा 420, 467, 468, 471, 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज किया गया.
बाद में इमलाख के खुलासे पर पुलिस ने 3 सरकारी मुलाजिमों को गिरफ्तार किया. ये आरोपी पैसे ले कर फर्जी वैरिफिकेशन कर डिगरी जारी करने में इमलाख की मदद करते थे. इस के बदले उन्हें मोटी रकम मिलती थी.
पिछले साल सितंबर महीने में हरियाणा में गुरुग्राम के एक गांव अलियर में सड़क किनारे एक लाश मिली थी. जब मामला खुला तो पता चला कि उस गांव के एक पीजी में रहने वाले 20 साल के लीलाधर की मौत गांव में ही चल रहे एक क्लिनिक में इलाज के दौरान हुई थी. लीलाधर को बुखार था, जिस के इलाज के लिए वह 26 सितंबर, 2022 की शाम इस क्लिनिक में गया था.
क्लिनिक के संचालक डाक्टर फईम ने मरीज का इलाज सही से नहीं किया और लीलाधर की मौत हो गई. यह बात किसी को पता न चले, इसलिए आरोपी डाक्टर ने अपने एक मुलाजिम के साथ मिल कर लाश को सड़क किनारे फेंक दिया.
इस मामले की तह में पहुंच कर पुलिस ने बताया कि डाक्टर फईम मूल रूप से उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के गांव मुंडा का रहने वाला था और उस के पास से डाक्टर की कोई डिगरी नहीं थी. वह फर्जी तरीके से क्लिनिक चलाता था.
सही कहें तो देशभर में ऐसे फर्जी डाक्टरों का जाल बिछा है, जो कईकई साल से अपने दड़बेनुमा क्लिनिकों में इलाज के नाम पर लोगों की जान से खेल रहे हैं. सरकारें उन के बारे में जानती हैं, पर आंख मूंद कर रखती हैं. जब इमलाख जैसे बड़े जालसाज पकड़े जाते हैं तो कुछ दिन सुर्खियां बनती हैं, पर बाद में फिर किसी फर्जी डाक्टर के क्लिनिक के आगे गरीब बीमार जनता की लाइन लग जाती है. देश के ‘अमृतकाल’ में फर्जी डाक्टरों की डोज किसी जहर से कम नहीं है.