सभ्यता के विकास के पहले ही इनसान ने बैल, गाय, घोड़े की तरह दूसरे इनसानों को भी अपना गुलाम बनाना शुरू कर दिया था.
रोम में जनता के मनोरंजन के लिए गुलामों को बिना कपड़ों और बगैर सुरक्षा उपकरण के ग्लैडिएटर की तरह लड़ाया जाता था और उन का खून निकलते देख कर जनता खुशी के मारे तालियां पीटती थी.
यूरोपियन इन गुलामों को ‘हब्शी’ कहते थे. उन्होंने इन लोगों का खरीदनाबेचना शुरू कर दिया था. दासों को ‘स्लेव’ कहा जाता था.
पुर्तगाली आबादी बढ़ाने के लिए सुंदर दिखने वाले गुलाम मर्दों व औरतों का इस्तेमाल अपनी हवस मिटाने के लिए करने लगे.
पुर्तगाली मर्द गुलाम औरतों और पुर्तगाली औरतें गुलाम मर्दों को अपने घर में कैद कर के उन से अपनी हवस को शांत करते थे.
इस तरह गुलाम औरत से पैदा हुई औलाद को भी गुलामों की तरह इस्तेमाल किया जाता था, पर पुर्तगाली औरत और गुलाम मर्द से पैदा हुई औलाद को अच्छा माना जाता था.
एथेंस में एक समय गुलामों की तादाद आजाद नागरिकों से भी ज्यादा हो गई थी, लेकिन नेतृत्व की कमी में वे कुछ न कर सके.
भारत में दलितों की हालत अफ्रीका के दास, यूरोप के गुलाम और अमेरिका के ब्लैक के समान ही चिंतनीय है. भारत में आज भी गांवों में दलितों से बंधुआ मजदूर की तरह काम कराया जाता है और हर तरह से इन का शोषण किया जाता है. शारीरिक, मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न के साथ ही साथ इन के मालिक इन की बोटी नोच लेने को तैयार रहते हैं. जरूरत पड़ने पर इन के शरीर के किसी हिस्से को निकाल कर बेचने के लिए तैयार रहते हैं.
सरला एक दलित बस्ती में बीड़ी बना कर जिंदगी गुजार रही है. बीड़ी बनाने के लिए उसे एक सेठ से कच्चा माल खरीदना पड़ता है. सेठ का बेटा मुनाफा तो उठाता ही है, साथ में उस पर बुरी नीयत भी रखता है. कच्चा माल देने के बहाने वह सरला को जानबूझ कर ऐसे समय पर बुलाता, जब उस के सारे नौकर और पिताजी घर जा चुके होते.
सेठ का बेटा कभी सरला से सिर की मालिश कराता, तो कभी पैर दबाने का हुक्म देता. कच्चे माल के अलावा सरला पर 5,000 रुपए की उधारी थी और न चाहते हुए भी उसे सेठ के बेटे की नाजायज मांग पूरी करनी पड़ती थी.
सरकार ने दलित उत्पीडि़त और औरतों के स्वावलंबन के लिए सोसाइटी बनाई थी. सरला की योजना थी कि इस बार वह सोसाइटी से एडवांस रुपए ले कर सेठ की उधारी चुका देगी और फैक्टरी से सीधा माल खरीदेगी. इस से उस की कमाई बढ़ जाएगी और सेठ की बुरी नीयत और रोजरोज की छेड़खानी से भी वह बच जाएगी.
सोसाइटी के चुनाव के पहले सरला का बच्चा बीमार पड़ गया. महल्ले के सस्ते डाक्टर से इलाज के चक्कर में उस के बच्चे की हालत बिगड़ गई तो डाक्टर ने अपना पल्ला झाड़ने के लिए इसे देवीदेवताओं का प्रकोप बता दिया.
शहर के मैडिकल कालेज के इलाज से सरला का बच्चा ठीक हो गया, लेकिन मंदिर के पंडेपुजारियों ने उसे देवी प्रकोप से बचाने के बहाने अपने प्रभाव में ले लिया.
पंडेपुजारी किसी दलित को मंदिर में घुसने भी नहीं देते. कभी किसी मजबूरी में दलित मजदूर से मंदिर का काम कराना पड़ जाए तो मंदिर को गंगाजल से धोते हैं. उन्होंने एक हफ्ते तक देवी प्रकोप के बहाने सरला से खूब सेवा और खुशामद कराई.
पंडे की सिफारिश पर सरला ने सोसाइटी के चुनाव में अपना कीमती वोट बड़े घर की दीपशिखा को दे दिया. दीपशिखा ने चुनाव जीतने के बाद दलित बस्तियों में झांकना भी उचित न समझा.
दीपशिखा ने सोसाइटी का सारा फंड अपने समाज की औरतों में बांट दिया और सरला की अर्जी को रद्दी की टोकरी में डाल दिया.
सरला अपने बच्चे के ठीक हो जाने से संतुष्ट है.
आज शाम को उसे फिर से सेठ के बेटे ने अपने बंगले के पीछे भैंस के तबेले में बुलाया है. उस ने सरला को ठीक तरह से नहाने और इत्र छिड़क कर आने के लिए कहा है, क्योंकि उस के जिस्म से मरे हुए जानवर की बदबू आती है.