जिस डौलर के मसले पर प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी डाक्टर मनमोहन सिंह की केंद्र सरकार और सोनिया गांधी को घेरते थे, देश की जनता को डराते थे, लाख टके का सवाल है कि आज उसी मुद्दे पर वे चुप क्यों हैं?
जैसा कि सभी जानते हैं, अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले भारत का रुपया गिरता चला जा रहा है और ये आंकड़े आज हमारे सामने हैं कि जब प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने शपथ ली थी, उस के बाद भी डौलर लगातार मजबूत होता चला गया है, महंगाई अपनी सीमाओं को तोड़ रही है.
यक्ष प्रश्न यह है कि क्या इस के पीछे सरकार की नीतियां दोषी हैं? यकीनन हैं, क्योंकि अगर सरकार जिम्मेदारी और ईमानदारी से काम करे, तो रुपए का गिरना रुक सकता है.
यहां यह भी एक बड़ा सवाल है कि जब देश पर अंगरेजों की हुकूमत थी और आजादी के समय डौलर और रुपए की कीमत बराबर थी, तो आजादी के बाद ऐसा क्या हुआ है कि भारतीय मुद्रा का गिरना लगातार जारी है?
दरअसल, आज श्रीलंका की हालत हमारे सामने है. वहां महंगाई बेलगाम हो चुकी है. नतीजतन, वहां सरकारें बदल गईं, मंत्रियों और प्रधानमंत्री के घर को जला दिया गया. इस सब का सबक तो भारत को लेना ही चाहिए.
जिस तरह श्रीलंका में डौलर के मुकाबले श्रीलंकाई मुद्रा 300 तक पहुंच गई है, ऐसी ही हालत धीरेधीरे भारत की बनती चली जा रही है.
जीएसटी का जो नया प्रावधान लागू हुआ है, उस के चलते भले ही सरकार के पास करोड़ोंअरबों रुपए का मुनाफा दिखाई देता है, मगर आम जनता छोटीछोटी चीजों पर जीएसटी दे कर महंगाई को झेल रही है, आंसू बहा रही है.
घरेलू बाजार, सुधार जरूरी
भारतीय बाजार के जैसे हालात हैं, उन पर अब काबू पाने के लिए जानेमाने अर्थशास्त्रियों से चिंतनमनन कर रुपए की कीमत सुधारना केंद्र सरकार की आज पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.
बीते दिनों अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 91 प्रति डौलर पर खुला और कारोबार के दौरान 80.05 के निचले स्तर को छू गया. कारोबार के रुपए में 79.91 से 80.05 रुपए के दायरे में बढ़ोतरी हुई.
कारोबार के अंत में रुपया अपने लैवल भाव के मुकाबले 13 पैसे की गिरावट के साथ दिन के निम्नतम स्तर 80.05 (अस्थायी) डौलर पर बंद हुआ. इस एक दृश्य को देख कर अंदाजा लग सकता है कि डौलर और रुपए में क्या चल रहा है.
19 जुलाई, 2022 को रुपया दिन के कारोबार के निचले स्तर 80.05 से उबर कर डौलर के मुकाबले 6 पैसे की तेजी दिखाता है और 79.92 रुपए प्रति डौलर पर बंद होता है.
बाजार सूत्रों ने कहा कि तेल आयातक कंपनियों की भारी डौलर मांग, कच्चे तेल की कीमतों के मजबूत होने के साथसाथ व्यापार घाटा की चिंताओं के चलते निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई, जो गिरावट की खास वजह बनी.
कुलमिला कर रुपया और डौलर की यह भागमभाग देशभर को चिंता में डुबोए हुए है. अगर हालात नहीं सुधरे तो देश कहां पहुंचेगा, इस की आसानी से कल्पना की जा सकती है.