हंसाना सबसे मुश्किल काम: धामा वर्मा

भोजपुरी, हिंदी और बंगला फिल्मों के कलाकार धामा वर्मा ने कई सुपरहिट फिल्में दी हैं. वे बेहद मंजे हुए कलाकारों में गिने जाते हैं. फिल्मों में उन की संवाद अदायगी और ऐक्टिंग बेहद पसंद की जाती है. ‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ के दौरान उन से हुई एक मुलाकात में उन के फिल्मी सफर पर लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश :

आप ने अपने सफर की शुरुआत हिंदी फिल्मों से की थी, फिर भोजपुरी फिल्मों की तरफ रुझान कैसे हुआ?

मैं ने गौतम घोष के डायरैक्शन में बनी फिल्म ‘पतंग’ से अपने ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत की थी. उस फिल्म में मेरे साथ शबाना आजमी, ओम पुरी, मोहन अगाशे और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे दिग्गज कलाकारों की पूरी टीम थी.

इस के बाद मुझे लगा कि हिंदी फिल्मों के साथसाथ भोजपुरी सिनेमा में भी अपना हाथ आजमाना चाहिए, क्योंकि भोजपुरी का दर्शक वर्ग बहुत बड़ा है. कई फिल्मों में दमदार रोल कर के मैं दर्शकों के दिलों में आसानी से जगह बनाने में कामयाब रहा.

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आप ने हिंदी और भोजपुरी फिल्मों के साथसाथ बंगला फिल्मों में भी काम किया है. बंगला भाषा की कोई यादगार फिल्म?

मैं ने गौतम घोष के डायरैक्शन में बनी बंगला फिल्म ‘शून्य’ में काम किया था. यह फिल्म माओवादियों की बैकग्राउंड पर बनी थी.

आप फिल्मों के अलावा टैलीविजन पर भी काफी सक्रिय रहते हैं. आप ने अभी तक किनकिन धारावाहिकों में काम किया है?

मैं ने ‘क्या दिल में है’, ‘अर्जुन पंडित’, ‘जीजी मां’, ‘दीया और बाती हम’, ‘लाल इश्क’, ‘क्राइम पैट्रोल’, ‘सावधान इंडिया’ और ‘विधान’ जैसे धारावाहिकों में काम किया है. भोजपुरी के एक धारावाहिक ‘घरआंगन’ में भी अहम रोल निभाया है. इस के अलावा वैब सीरीज ‘किराएदार’ व ‘बैडगर्ल’ में भी काम कर चुका हूं.

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आप ने अमिताभ बच्चन के साथ भी काम किया है. उन से क्या सीखने को मिला?

मुझे भोजपुरी फिल्म ‘गंगा’ में अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का मौका मिला था. वे फिल्म सैट पर सहज रहते हैं और साथी कलाकारों का हर समय हौसला बढ़ाते हैं.

भोजपुरी सिनेमा में कई अच्छे कौमेडियनों की बाढ़ आ गई है. ऐसे में कितना कंपीटिशन बढ़ा है?

यह भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए अच्छा संकेत है कि अच्छे कौमेडी कलाकार आ रहे हैं. इस से भोजपुरी फिल्मों का दायरा बढ़ेगा.

एक कलाकार के लिए हंसाना सब से मुश्किल विधा मानी जाती है? ऐसा क्यों है?

ऐक्टिंग की सब से मुश्किल विधा है लोगों को हंसाना. इस में कलाकार अपनी पूरी कला लगा देता है. रुलाने के लिए किसी को मार कर रुलाया जा सकता है, गरीबी दिखा कर रुलाया जा सकता है, लेकिन हंसाने के लिए अंदर से फीलिंग लानी पड़ती है, जो मुश्किल काम है.

भोजपुरी के सब से ज्यादा दर्शक बिहार में ही हैं. क्या वजह है कि वहां फिल्मों की शूटिंग को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है?

बिहार सरकार अपने प्रदेश में फिल्मों को बढ़ावा देने के प्रति उदासीन है. अगर वह प्रदेश में शूटिंग को बढ़ावा देती है, तो वहां रोजगार की उम्मीद बढ़ेगी.

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