औक्सफोर्ड से पढ़ी दिल्ली की लड़की कैसे पहुंची सीएम की कुर्सी तक, आतिशी की कहानी

अब से दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी होंगी. खुद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद के लिए आतिशी के नाम का प्रस्ताव दिया है. विधायकों ने भी आतिशी के नाम का समर्थन किया है. जिस दिन से अरविंद केजरीवाल ने ये बयान दिया था कि मैं जनता के बीच में जाऊंगा..गली-गली में जाऊंगा..घर-घर जाऊंगा और जब तक जनता अपना फ़ैसला न सुना दे कि केजरीवाल ईमानदार है तब तक मैं सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगातब से दिल्ली के सीएम कौन होंगे इसके कयास लगाएं जा रहे थे और अब सबको अपना नया सीएम मिल गई है. लेकिन कैसे आतिशी राजनीति तक पहुंची और अरविंद केजरीवाल से मिली. दिल्ली की लड़की आतिशी की कहानी सभी जानना चाहते है.

 

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आतिशी बनीं दिल्ली की तीसरी महिला सीएम

आपको बता दें, कि दिल्ली में अभी तक सात मुख्यमंत्री रहे है. जिसमें से दो महिला सीएम ने कुर्सी संभाली है. आतिशी ऐसी तीसरी महिला होंगी जो दिल्ली की सीएम की कुर्सी पर बैठेंगी और आठवीं सीएम बनेंगी जो दिल्ली का कार्यकाल संभालेंगी.

इनसे पहले भाजपा की ओर से सुषमा स्वराज और कांग्रेस की ओर से शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. सबसे लंबा कार्यकाल शीला दीक्षित का रहा है.

सुषमा स्वराज- 12 अक्टूबर 1998 – 3 दिसम्बर 1998 (52 दिन तक दिल्ली की सीएम रहीं)

शीला दीक्षित – नई दिल्ली सीट- 3 दिसम्बर 1998 – 28 दिसम्बर 2013 (15 साल, 25 दिन तक दिल्ली की सीएम रहीं)

आतिशी की पढ़ाई और राजनीति

आतिशी 8 जून 1981 में दिल्ली में जन्मीं है. इनकी स्कूली पढ़ाई नई दिल्ली के स्प्रिंगडेल्स स्कूल में हुई हैं. फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कौलेज से साल 2001 में ग्रैजुएशन की है. फिर आगे की पढ़ाई के लिए आतिशी इंग्लैंड चली गई. आतिशी ने औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की स्टीजिज की. इशके बाद आतिशी पढ़ाई करके भारत वापस लौटी, कुछ दिन आंध्र प्रदेश के ऋषि वैली स्कूल में काम किया. इतना ही नहीं, एक गैर-सरकारी संगठन संभावना इंस्टीट्यूट औफ पब्लिक पौलिसी के साथ भी जुड़ी रहीं. इतनी पढ़ाई करने बाद आतिशी को स्कूलों और संगठनों से जुड़ना पड़ा. लेकिन किसे पता था कि दिल्ली विश्व विद्यालय के प्रोफेसर विजय सिंह और तृप्ता सिंह के घर की लड़की एक दिन दिल्ली की सीएम पद पर बैठेंगी और राजनीति में अपनी वर्चस्व अपनाएंगी.

राजनीति में कब और कैसें पहुंची आतिशी

राजनीतिक सफर की बात करें तो आम आदमी पार्टी की स्थापना के समय से ही आतिशी इस पार्टी से जुड़ गई थी. आम आदमी पार्टी ने 2013 में पहली बार दिल्ली के विधानसभा से चुनाव लड़ा था और तभी से आतिशी पार्टी की घोषणा पत्र मसौदा समिति की प्रमुख सदस्य थीं. आतिशी आप प्रवक्ता भी रहीं. उन्होंने जुलाई 2015 से अप्रैल 2018 तक दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री रहे मनीष सिसोदिया के सलाहकार के तौर पर काम किया और दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का लेवल सुधारने के लिए कई योजनाओं पर काम किया.

पार्टी के गठन के शुरुआती दौर में इसकी नीतियों को आकार देने में भी आतिशी की अहम भूमिका रही है. बाद में साल 2019 के लोकसभा चुनाव में आतिशी को पूर्वी दिल्ली से पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया. मुकाबला बीजेपी के प्रत्याशी गौतम गंभीर से था. चुनाव में आतिशी गौतम गंभीर से 4.77 लाख मतों से हार गईं थी.

साल 2020 के दिल्ली चुनाव में उन्होंने कालकाजी क्षेत्र से चुनाव लड़ा और बीजेपी प्रत्याशी धर्मवीर सिंह को 11 हजार से अधिक वोट से मात दी. इसके बाद से ही आतिशी का सियासी ग्राफ तेजी से बढ़ा. 2020 के चुनाव के बाद उन्हें आम आदमी पार्टी की गोवा इकाई का प्रभारी बनाया गया.

केजरीवाल ने गिरफ्तारी का संकट मंडराने से पहले अपनी कैबिनेट में फेरबदल किया और 9 मार्च 2023 को आतिशी को कैबिनेट मंत्री पद की शपथ दिलाई गई. दिल्ली शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आतिशी की भूमिका और भी जरूरी हो गई. केजरीवाल के इस्तीफे के ऐलान के बाद से ही आतिशी के नाम की चर्चा तेज थी और आज विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर मुहर लग गई और वे दिल्ली की मुख्यमंत्री बन गई.

आतिशी के नाम को लेकर हुई थी कंट्रोवर्सी

आपको बता दें कि सबसे पहले आतिशी सरनेम में सिंह का यूज करती थीं. उनके पिता विजय सिंह है. इसलिए वे अपने नाम के पीछे सिंह लगाती थी. बाद में लेफ्ट आइडियोलौजी वाले पैरेंट्स के चलते उन्होंने नया सरनेम यूज करना शुरू किया है, जो कि मार्क्स और लेनिन के नाम से मिलकर बना है. यह था मार्लेना, लेकिन इसे भी बाद में उन्हे हटाना पड़ा. क्योंकि इस सरनेम पर विरोधी दल के लोगों ने उन्हे ईसाई धर्म का कहना शुरु कर दिया. जिसके बाद उन्होंने ये भी हटा दिया.

आतिशी की जिनसे शादी हुई है, वह भी सिंह हैं. ऐसे में उनका नाम आतिशी मार्लेना सिंह भी हुआ. हालांकि, यह नाम भी बहुत दिनों तक नहीं चला. आतिशी को विवाद के चलते मार्लेना सरनेम हटाना पड़ा.

ऐसा कहा जाने लगा कि दिल्ली के कालकाजी में बड़ी संख्या में पंजाबी आबादी रहती है. हो सकता है कि यह उनका रणनीतिक कदम हो, जिसके जरिए वह उस वोटबैंक को साइलेंटली लुभाना चाहती हों. लेकिन मौजूदा समय में वह सिर्फ आतिशी लिखती हैं. नाम के साथ कोई सरनेम यूज नहीं करती हैं.

माता पिता अफजल गुरु के समर्थन में लड़े थे

आतिशी एक बाद तब भी कंटोवर्सी में आई थी जब आतिशी के माता-पिता आतंकी अफजल गुरु को बचाने के लिए लड़े थे. इसी पर हाल में स्वाति मालीवाल ने एक्स पर पोस्ट मे लिखा है, ‘दिल्ली के लिए आज बहुत दुखद दिन है. आज दिल्ली की मुख्यमंत्री एक ऐसी महिला को बनाया जा रहा है जिनके परिवार ने आतंकवादी अफ़ज़ल गुरु को फांसी से बचाने की लंबी लड़ाई लड़ी. उनके माता पिता ने आतंकी अफ़ज़ल गुरु को बचाने के लिए माननीय राष्ट्रपति को दया याचिकाऐं लिखी. उनके हिसाब से अफ़ज़ल गुरु निर्दोष था और उसको राजनीतिक साज़िश के तहत फंसाया गया था. वैसे तो आतिशी मार्लेना सिर्फ़ ‘Dummy CM’ है, फिर भी ये मुद्दा देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है. भगवान दिल्ली की रक्षा करे!’ 

केजरीवाल, जेल की दुनिया और लोकतंत्र, पर भाजपा क्यों हलकान

देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक मुख्यमंत्री अपने पद पर रहते हुए जेल में है. इस पर जहां दुनियाभर में बात हो रही है, वहीं अरविंद केजरीवाल ने इतिहास में अपना नाम लिखवा लिया है. आने वाले समय में यह साफ होगा कि सचमुच अरविंद केजरीवाल ने शराब घोटाले में रुपए कमाए या फिर उन पर केंद्र सरकार के इशारे पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने झूठी कार्यवाही की थी.

दरअसल, अरविंद केजरीवाल जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुखर हुए हैं और कांग्रेस से गठबंधन किया है, तब से सत्ता में बैठी हुई भाजपा सरकार और उस के मुखौटे मानो अरविंद केजरीवाल के पीछे पड़ गए हैं, जिस का अंत शायद अरविंद केजरीवाल को 10-20 साल जेल में सजा दिलाने और आप पार्टी को खत्म करने के बाद ही होगा.

पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले में एक आरोपी हैं और अभी उन पर या आप पार्टी के किसी भी नेता पर आरोप साबित नहीं हुए हैं, मगर उन के साथ बरताव कुछ इस तरह किया जा रहा है मानो वे देशदुनिया के सब से बड़े अपराधी हों.

केंद्र में सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी के समयकाल में विरोधी नेताओं और राजनीतिक पार्टियों के साथ जैसा बरताव किया जा रहा है, वह याद दिलाता है जब सिकंदर ने राजा पोरस को कैद कर लिया था और पूछा था कि बताओ तुम्हारे साथ कैसा बरताव किया जाए?

तब सिकंदर की कैद में राजा पोरस ने कहा था कि वैसा ही बरताव, जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है, मगर नरेंद्र मोदी और उन के सलाहकार यह भूल गए हैं कि देश में लोकतंत्र है और अगर सत्ता में बैठे हुए किसी मुख्यमंत्री के साथ अपराधियों जैसा बरताव होगा, तो इस का संदेश जनजन में अच्छा नहीं जाएगा और आने वाले समय में जब इतिहास लिखा जाएगा तब नरेंद्र मोदी एक ऐसे ‘विचित्र’ प्रधानमंत्री के रूप में चित्रित किए जाएंगे, जिन्होंने अपने विरोधियों को बिला वजह परेशानहलकान किया और शायद इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं कर पाएगा.

यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी ने आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर तीखा प्रहार करते हुए कहा है कि आबकारी नीति में घोटाला जैसा शर्मनाक काम कर के जेल गया आदमी जेल से सरकार चलाना चाहता है.

भाजपा के नेता और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि केजरीवाल में नैतिकता नाम की चीज नहीं है. वे पहले एनजीओ बना कर फिर राजनीति में केवल जेबें भरने आए थे. उन्होंने एक भ्रष्ट सरकार चलाई और यही वजह है कि उन के तमाम मंत्री, सांसद और यहां तक कि वे खुद जेल में हैं.

अरविंद केजरीवाल दिल्ली सरकार की आबकारी नीति में कथिततौर पर गलत तरीके से धन लेने के आरोप में 28 मार्च, 2024 तक प्रवर्तन निदेशालय की हिरासत में हैं और उन के सहयोगियों की ओर से उन का एक कथित पत्र जारी किया गया है, जिस में उन्होंने दिल्ली में पानी और सीवर की व्यवस्था में सुधार के लिए काम करने निर्देश दिए हैं.

दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल के जेल जाने की खबर पर बहुत दूर जरमनी तक बात हुई है, जिस से केंद्र में बैठी हुई भारतीय जनता पार्टी की सरकार को बड़ी पीड़ा हुई है. केंद्र सरकार ने जरमनी की बात पर कहा है कि यह उस का अपना आंतरिक मामला है और अदालत में चल रहा है, पर भाजपा यह भूल जाती है कि दुनिया में बहुत सारे मामलों में भारत सरकार भी अपना पक्ष रखती है और यह दुनिया के हित के लिए होता है. ऐसी बातों को सकारात्मक ढंग से लिया जाना चाहिए.

इस तरह अरविंद केजरीवाल ने एक तरह से जेल से सरकार चलाना शुरू कर दिया है, जो अपनेआप में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को रास नहीं आ रहा है. भाजपा को मानो अरविंद केजरीवाल और आप पार्टी से निजी लड़ाई है और भाजपा यह चाहती है कि आप पार्टी नेस्तनाबूद हो जाए, मगर लोकतंत्र में हर विचारधारा को अपना काम करने और जनता के बीच जाने का अधिकार है, यह बात सत्ता में बैठे हुए भाजपा के कर्ताधर्ता भूल जाते हैं. वे यह भी भूल जाते हैं कि पहले आप सत्ता में नहीं थे और विपक्ष में जाते हुए आप को सत्ता में बैठे हुए लोगों ने एक माहौल दिया, तो आप का भी कर्तव्य है कि आप विपक्ष का सम्मान करें और उसे अपनी विचारधारा को लोगों को बताने का मौका मिलना चाहिए. इसी में देश और लोकतंत्र का भला है.

गड़बड़झाला: मुख्यमंत्री और राजपाल पद बिक रहे हैं

मुख्यमंत्री और राजपाल पद बिक रहे हैं आजादी के बाद संवैधानिक रूप से देश में नेताओं का एक ऐसा समूह पैदा हुआ, जो आम जनता के बीच से निकल कर देशसेवा के नाम पर सत्ता का संचालन करने लगा. देशसेवा के नाम पर नेताओं का यह जत्था देशभर में किस तरह माफियागीरी और लूट का दूसरा नाम बन गया है, यह आज दक्षिण भारत की फिल्मों में खासतौर से दिखाया जा रहा है. दरअसल, देश में राजनीति कितनी नीचे गिर गई है, इस की आम जनता कल्पना भी नहीं कर सकती. विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री पद तो बिकते हम देख रहे हैं,

सारी दुनिया देख रही है, यह सब संविधान की आड़ में होता रहा है. नतीजतन, आम जनता भी देख कर कर चुप रह जाती है और देश की सुप्रीम कोर्ट भी, क्योंकि इस मर्ज का इलाज किसी के पास नहीं है. मगर, अब तो हद हो गई है कि राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद भी बिकने लगे हैं. बेवकूफी की हद देखिए कि करोड़ों रुपए खर्च करने के लिए धनपति तैयार हैं. इन में इतनी भी समझ नहीं है कि राज्यपाल जैसा पद, जो सीधेसीधे केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री के फैसले पर ही नवाजा जाता है, किसी भी हालात में रुपएपैसे दे कर हासिल नहीं किया जा सकता. यह एक ऐसा पद है, जो कोई भी पार्टी अपने बड़े चेहरों को ही देती आई है. ऐसे में राज्यपाल पद के लिए रुपए लुटाना और ठगी का शिकार हो जाना उदाहरण है कि हमारे यहां कैसेकैसे लोग हैं,

जिन्हें न तो कानून की जानकारी है और न ही जनरल नौलेज. ऐसा एक मामला देश में पहली दफा केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने राज्यसभा सीट और राज्यपाल पद दिलाने का झूठा वादा कर लोगों से तथाकथित तौर पर 100 करोड़ रुपए की ठगी की कोशिश करने वाले एक अंतर्राज्यीय गिरोह का भंडाफोड़ कर इस के 4 बदमाशों को गिरफ्तार किया है. सीबीआई ने इस मामले में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में 7 जगहों पर छापेमारी कर के आरोपियों को धर दबोचा है. अफसरों के मुताबिक, सीबीआई ने महाराष्ट्र के लातूर जिले के रहने वाले कमलाकर प्रेमकुमार बंदगर, कर्नाटक के बेलगाम के रवींद्र विट्ठल नाईक और दिल्ली एनसीआर के रहने वाले महेंद्र पाल अरोड़ा और अभिषेक बूरा को गिरफ्तार कर लिया.

कार्यवाही के दौरान मोहम्मद एजाज खान नामक एक आरोपी फिल्मी स्टाइल में सीबीआई अफसरों पर हमला कर के फरार होने में कामयाब हो गया. फरार आरोपी के खिलाफ जांच एजेंसी के अफसरों पर हमला करने के आरोप में स्थानीय थाने में एक अलग से प्राथमिकी दर्ज कराई गई है और उसे ढूंढ़ा जा रहा है. लगती फिल्म स्क्रिप्ट, मगर है सच किसी को सांसद बनाने का मामला तो समझ में आता है और न जाने कितने लोग सांसद बनाने के लालच में लूटे भी जा चुके हैं, मगर देश में शायद यह पहला मामला है, जब किसी राज्य के राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठाने या नियुक्ति के नाम पर ठगी हुई है. केंद्रीय जांच ब्यूरो ने मामले के सिलसिले में 5 आरोपियों को प्राथमिकी में नामजद किया है. लेकिन यह भी बात सामने है कि इतनी बड़ी ठगी के बाद भी सीबीआई की एक विशेष अदालत ने एजेंसी द्वारा गिरफ्तार किए गए सभी 4 लोगों को जमानत दे दी है. सवाल है कि क्या सीबीआई की जांच अधूरी है?

क्या इस जांच पर राजनीतिक नजर है? क्या सीबीआई ऐसे बड़े लोगों पर हाथ डाल चुकी है, जिन्हें राजनीतिक सरपरस्ती हासिल है या वे बेकुसूर हैं? यह सब तो निष्पक्ष जांच से ही सामने आएगा, मगर जो तथ्य आज हमारे सामने हैं, उन की बिना पर हम कह सकते हैं कि प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि कमलाकर प्रेमकुमार बंदगर खुद को एक वरिष्ठ सीबीआई अफसर के तौर पर पेश करता था और ऊंचे पदों पर बैठे अफसरों के साथ अपने ‘संबंधों’ का हवाला देते हुए अभिषेक बूरा, महेंद्र पाल अरोड़ा, मोहम्मद एजाज खान और रवींद्र विट्ठल नाईक से कोई भी ऐसा काम लाने को कहता था, जिसे वे भारीभरकम रकम के एवज में पूरा करवा सकें. प्राथमिकी के मुताबिक, आरोपियों ने राज्यसभा की सीट दिलवाने, राज्यपाल के रूप में नियुक्ति करवाने और केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों के अधीन आने वाली अलगअलग सरकारी संस्थाओं का अध्यक्ष बनवाने का झूठा भरोसा दे कर लोगों से भारीभरकम रकम ऐंठने के गलत इरादे से साजिश रची.

प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि आरोपी 100 करोड़ रुपए के एवज में राज्यसभा की उम्मीदवारी दिलवाने के झूठे वादे के साथ लोगों को ठगने की कोशिशों में जुटे थे. प्राथमिकी के मुताबिक, सीबीआई को सूचना मिली थी कि आरोपी सीनियर नौकरशाहों और राजनीतिक पदाधिकारियों के नाम का इस्तेमाल करेंगे, ताकि किसी काम के लिए उन से संपर्क करने वाले ग्राहकों को सीधे या फिर अभिषेक बूरा जैसे बिचौलिए के जरीए प्रभावित किया जा सके. प्राथमिकी के मुताबिक,

कमलाकर प्रेमकुमार बंदगर ने खुद को सीबीआई के एक बड़े अफसर के तौर पर पेश किया था और अलगअलग पुलिस थानों के अफसरों से अपने परिचित लोगों का काम करने को कहा था और अलगअलग मामलों की जांच को प्रभावित करने की कोशिश भी की थी. सच तो यह है कि ऐसे मामलों में सीबीआई या दूसरी जांच एजेंसियां अपनी कामयाबी की बड़ीबड़ी बातें मीडिया के जरीए देश के सामने रख देती हैं और अपनी इमेज बनाने का काम कर लेती हैं, मगर आखिर में नतीजा यह आता है कि सुबूत न होने के चलते आरोपियों को अदालत बेकुसूर मान कर रिहा कर देती है. ऐसे में जरूरत यह है कि जो सांसद, राज्यपाल, मंत्री, मुख्यमंत्री पद आज देश में बिक रहे हैं, उन्हें रोकने के लिए कानून के साथसाथ सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों को निष्पक्ष तरीके से काम करना चाहिए और चाहे यह काम सत्ता पक्ष करे या विपक्ष, उसे जेल के सींखचों के पीछे भेज देना चाहिए.

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