मगर कभी सत्ता के शीर्ष पर रहे अजीत जोगी ने जनता कांग्रेस पार्टी क्या बनाई उनका भाग्य उन्हें कहां से कहां ले आया. अगरचे वे कांग्रेस नहीं छोड़ते और शांत भाव से आलाकमान के अनुशासन में होते तो नि:संदेह उनकी जगह छत्तीसगढ़ में कोई मुख्यमंत्री नहीं बन सकता था.
अजीत जोगी ने विधानसभा समर के दो वर्ष पूर्व जो राजनीतिक गोटियां बिछाई उनमें उनके दोनों हाथों में लड्डू की स्थिति बन सकती थी. मगर अजीत जोगी का भाग्य इस करवट बैठेगा इसका अनुमान राजनीति के महा पंडितो को भी नहीं था.
अजीत जोगी ने अपनी पार्टी बनाई और छत्तीसगढ़ में धूम मचा दी उन्हे सुनने हजारों की भीड़ आती थी. यह सच है कि ऐसी भीड़ न कांग्रेस के नेताओं को सुनने आती थी ना ही भाजपा के नेताओं को . राहुल गांधी की विशाल सभा बिलासपुर के पेंड्रा के कोटमी में रखी गई थी अजीत जोगी ने इसे उनके घर में सेंध मान चुनौती दी और बीस किलोमीटर की दूरी पर उसी दिन अपनी सभा का आयोजन कियाऔर दिखा दिया कि उनकी सभा में भी हजारों लोग जुटते हैं और जूटे भी. मगर उस दिन राहुल के मन की फांस और बढ़ गई.
अजीत जोगी का दांव
अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने दांव खेला था . उन्होंने कांग्रेस और भाजपा दोनों के समकक्ष एक तीसरी पार्टी का गठन करके दोनों को चुनौती देनी शुरू कर दी थी . हालात ऐसे थे कि अजीत जोगी जब किसी मुद्दे पर आंदोलन का शंखनाद करते तो दूसरे दिन कांग्रेसी अपना बोरिया बिस्तर लेकर उसी आंदोलन को करने लगते . यह अद्भुत किंतु राजनीतिक सच था कि कांग्रेस और भाजपा दोनों को दो वर्षों तक अजीत जोगी ने अपने पीछे पीछे खुब दौड़ाया और एक तरह से राजनीतिक हलाहल पैदा कर दिया . राजनीतिक हलचल उत्पन्न कर दिया.
यह माने जाने लगा की अबकी चुनाव में अजीत जोगी को नकारा नहीं जा सकता . भाजपा को कुछ सीटे कम मिली तो और कांग्रेस को कुछ सीटें कम मिली तो दोनों स्थितियों में अजीत जोगी के हाथ सत्ता की रास होगी और हो सकता है मुख्यमंत्री भी बन जाए . मगर हा… भाग्य ! ऐसा नहीं हो सका क्यों नीचे पढ़ें-
अजीत जोगी का कलेजा !
यह सच है विरोधी भी स्वीकार करते हैं कि छतीसगढ़ के इस राजनीतिक हस्ती का कलेजा बहुत बड़ा है . राजनीतिक सोच, चिंतन, व्यक्तित्व और कृतित्व विशालतम है . प्रदेश मेंआपके समक्ष कोई टिक नहीं सकता था . जैसी सोच कार्यप्राणी है वह अनुपम है प्रदेश हितकारी रही है .
अजीत जोगी जन जन के नेता हैं . आम आदमी उनसे अपनी छवि,ताकत देखता है . और अजीत जोगी इस ताकत इस शक्ति के बूते काम करते रहे . कांग्रेस में लगभग तीन दशकों तक उन्होंने अनेक पदो पर रहते हुए दिखा दिया कि अजीत जोगी का कोई पर्याय नहीं हो सकता . यही कारण है इस माद्दे के बूते उन्होंने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसी अपनी मातृ पार्टी को चुनौती देनी शुरू कर दी . क्योंकि वे सच जानते थे कि छत्तीसगढ़ में राजनीतिक नेतृत्व देने की ताकत किसी भी दीगर कांग्रेस शख्स के पास नहीं है . कांग्रेस उन्हीं से प्रारंभ होती है और उन्हीं तक आकर खत्म होती है . उन्होंने बड़े साहस के साथ स्वयं होकर पार्टी को छोड़ा ऐसा इतिहास में शायद कभी नहीं हुआ है .
जो नहीं सोचा, वह हो गया …
छत्तीसगढ़ में अजीत प्रमोद कुमार जोगी और राजनीतिक दिग्गजों ने जो नहीं सोचा था वह घटित हो गया . कांग्रेस को 68 सीटें मिल गई जो ऐतिहासिक विजय थी. इसकी परिकल्पना स्वयं कांग्रेस ने भी नहीं की थी . डॉ रमन और उनकी पार्टी भाजपा के हाथों के तो मानो तोते ही उड़ गए . और अजीत जोगी की प्रक्कलना धरी की धरी रह गई . नरेंद्र मोदी की शैली और डॉक्टर रमन सिंह का शिकंजा दोनों विधानसभा चुनाव मे ध्वस्त हो गए .अन्यथा अजीत जोगी आज ही महानायक होते और राजनीति की क, ख, ग, उनके सागौन बंगले से शुरू होती .
दरअसल उन्होंने कुछ गंभीर गलतियां की . अजीत जोगी के पार्टी के विधायक और कभी कांग्रेस से विधानसभा के उपाध्यक्ष रहे धर्मजीत सिंह कहते हैं अगरचे साहब साफ स्वच्छ छवि के लोगों को तरजीह देते, केजरीवाल पैटर्न को अपनाकर नए जुझारू लोगों को टिकट देते तो स्थिति बदल सकती थी . वही उनके सिपहसालार विनोद शुक्ला कहते हैं साहब मैं कुछ अच्छाइयां है तो कुछ खामियां भी आप अपने मुंह लगे लोगों को छोड़ नहीं पाए .
जो भी हो समय बदल गया- समय मुट्ठी से रिसकर निकल गया और राजनीति का महानायक समय को शायद समझ नहीं सका.
मास्टर स्ट्रोक दांव धरा रह गया…
अजीत जोगी ने मायावती के साथ हाथ मिलाकर अपनी पार्टी खड़ी करने मास्टर स्ट्रोक खेला था. क्योंकि आज हिंदुस्तान की राजनीति में दो दलिय दलों का ही बोल बाला है. आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल दलित हर जगह ऐसे में छत्तीसगढ़ में यह प्रयोग अभिनव था और साहस पूर्ण भी .
आज विधानसभा समर में पराजय के पश्चात अजीत जोगी मानो विषाद में चले गए हैं . जैसे तेवर चुनाव पूर्व होते थे राजनीति पर बयान और सक्रियता वह शांत पड़ गई है .
उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद अपने युवा पुत्र अमित ऐश्वर्य जोगी को सौंप दिया है . और अमित जोगी ने एक तरह से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नाक मे दम कर रखा है .
अजीत जोगी निर्णय लेने में कभी देरी नहीं करते . राजनीति के नब्ज पर उनका हाथ कल भी था और आज भी है . आप एक ऐसी विभूति हैं जो जहां खड़ी हो जाती है लाइन वहीं से लगती है . छत्तीसगढ़ की यह अनुपम बेजोड़ शख्सियत अब आने वाले दिनों में नगरीय निकाय के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों के छक्के छुड़ाने की रणनीति में लगी हुई है….