अतिक्रमण की समस्या सरकार की खुद की देन है

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली के बाद अब बिहार में शासक जो अपने को किसी पौराणिक चक्रवर्ती राजा से कम नहीं समझते, बुलडोजर ऐसे चला रहे हैं जैसे चतुरंगी सेनाएं चल रही हों. ऐसा एक दृश्य हौलीवुड की फिल्म ‘अवतार’ में है जब पृथ्वीवासी एक अन्य ग्रह में रह रहे लोगों की जमीन से खनिज निकालने के लिए विशाल बुलडोजर टाइप मशीनें ले कर चलते हैं. उन का उद्देश्य उस जमीन से नीले रंग के उन लंबे कान व पूंछ वाले आदिवासियों को हटाना ही नहीं था, उन्हें या तो गुलाम बनाना था या मार डालना था.

ये राज्य सरकारें और उन के अधीन काम करने वाले नगरनिगम भी बुलडोजरों के इस्तेमाल से पूरीपूरी कौमों को नष्ट करने की कोशिश में हैं. आज ये बुलडोजर मुसलमानों पर चल रहे हैं, आज सरकारी या पब्लिक जमीन पर अतिक्रमण पर चलाए जा रहे हैं, कल दूसरे विरोधियों पर नहीं चलेंगे, इस की क्या गारंटी है? महाभारत में बहुत से ऐसे अस्त्रों का बखान है जो झूठा ही सही, है, था शत्रुओं के लिए. उस समय के पौराणिक शत्रु दस्यु और दानव थे जो महाभारत के ही अनुसार लाखों में थे, उन के अपने राज्य भी थे.

लेकिन उन अस्त्रों का इस्तेमाल हुआ कहां. अर्जुन का गांडीव भाइयों पर चला. कर्ण का शक्ति शस्त्र घटोत्कच पर चला. कृष्ण का सुदर्शन चक्र शिशुपाल पर चला. ये सब एक ही घर के लोग थे. ये पराए नहीं थे, ये विदेशी नहीं थे, ये विधर्मी नहीं थे, ये नीची जाति वाले भी नहीं थे. ये एक परिवार के ही थे जिन से राज और संपत्ति को ले कर विवाद हुआ और दादा पर चले, चचेरे भाइयों पर चले, मामा पर चले, भतीजों पर चले, गुरुओं पर चले, पत्नियों, बहुओं, सगों पर चले.

ये बुलडोजर भी अपनों पर चल सकते हैं. पी. चिदंबरम जब गृह मंत्री और वित्त मंत्री थे तो उन्होंने बहुत से कठोर कानून बनवाए, ताकि देश में आर्थिक व शासकीय अनुशासन बने. इन कानूनों का इस्तेमाल उन्हीं के खिलाफ  106 दिन की जेल में किया गया जिस में कुछ दिन तो वे एक ऐसे कमरे में बंद रहे जिस में नहाने का गुसलखाना तक न था, ऐसी जेल में रहे जिस में पखाने में भी सीसीटीवी लगा था.

यह बुलडोजर संस्कृति कौनकहां चलाएगा, पता नहीं. बुलडोजर निर्माण के लिए है, विनाश के लिए नहीं. कुछ बनाने के लिए जमीन समतल करने के लिए है, तोड़ने के लिए नहीं. यह आधुनिक तकनीक का सिंबल है जिस पर चढ़ कर इंगलैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जौनसन भारत आने पर तसवीर खिंचवाते हैं, क्योंकि ज्यादातर बुलडोजर इंगलैंड की कंपनी जेसीबी की फैक्टरी से ही निकल कर आ रहे हैं.

निर्माण की चीज को तोड़ने का प्रयोग 1975-76 में संजय गांधी ने भी किया था और दिल्ली के तुर्कमान गेट के आसपास काफी इलाके में मुसलिम मकान तोड़े गए थे.

अतिक्रमण की समस्या सरकार की खुद की देन है. सरकारी अफसर पहले हफ्ता ले कर पटरियों, सड़कों, खाली पड़ी निजी या सरकारी जमीन पर कब्जा होने देते हैं और जब लोग वहां अपनी गृहस्थी जमा लेते हैं तो उन्हें डरानेधमकाने लगते हैं. सरकारों ने शहरी जमीनों पर तो नियंत्रण कर ही रखा है, शहर के बाहर खेती की जमीन पर मकान बनाने पर बीसियों कानून और भारी फीस लगा रखी है. जहां उन की कौड़ी नहीं लगती वहां काम शुरू होने से पहले वसूलना अन्याय और लूट है पर जो इस के खिलाफ बोलेगा उस के लिए न कानून है, न अदालत, न दलील, न वकील, बस फैसला वह भी बुलडोजर का.

निश्चित है कि ऐसी सरकारों का अंत पांडवों और कृष्ण जैसा होता है. इंदिरा गांधी को गोल्डन टैंपल में बुलडोजर चलाने की सजा मिली और राजीव गांधी को श्रीलंका में 3,000 तमिल टाइगर्स के खिलाफ  एक लाख इंडियन पीस कीपिंग फोर्स बुलडोजरों समेत भेजने की मिली.

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