भोजपुरी सिनेमा को दिलाई पहचान: बृजेश त्रिपाठी

भोजपुरी सिनेमा के शुरुआती दौर से जुड़े कलाकारों की जब भी बात आती है, तो उन में सब से ऊपर एक ही नाम आता है और वे हैं भोजपुरी के सब से सीनियर कलाकार बृजेश त्रिपाठी. वे भोजपुरी सिनेमा से उस दौर से जुड़े हुए हैं, जब भोजपुरी में गिनीचुनी फिल्में ही बनती थीं.

भोजपुरी सिनेमा के उस दौर से लेकर आज तक बृजेश त्रिपाठी ने सैकड़ों फिल्मों में काम कर के चरित्र कलाकार और खलनायक के रूप में अपनी अलग ही पहचान बनाई है. उन के बिना भोजपुरी की फिल्में अधूरी सी लगती हैं.

ऐसी थी शुरुआत

‘भोजपुरी के गौडफादर’ कहे जाने वाले बृजेश त्रिपाठी ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 11 सितंबर, 1978 को हिंदी फिल्म ‘टैक्सी चोर’ से की थी, जिस में लीड रोल में मिथुन चक्रवती थे और हीरोइन थीं जरीना वहाब.

यह फिल्म साल 1980 में 29 अगस्त को रिलीज की गई थी. इस फिल्म में उन के रोल को इतना ज्यादा पसंद किया गया था कि उन्हें इस के बाद राज बब्बर के साथ दूसरी फिल्म में काम करने का मौका मिल गया था, जिस का नाम था ‘पांचवीं मंजिल’. इस फिल्म में भी जरीना वहाब ही हीरोइन थीं.

इस के बाद तो बृजेश त्रिपाठी सिनेमा के हो कर रह गए. इस दौरान उन्हें हिंदी के धारावाहिकों और फिल्मों में काम करने का मौका मिला, लेकिन उन की सही पहचान भोजपुरी फिल्मों से हुई. उन दिनों पद्मा खन्ना भोजपुरी की बहुत बड़ी हीरोइन हुआ करती थीं. उन के सैक्रेटरी शुभकरण अग्रवाल बृजेश त्रिपाठी के बहुत अच्छे दोस्त थे.

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उन्होंने बृजेश त्रिपाठी को साल 1979 में पहली भोजपुरी फिल्म ‘सइयां तोहरे कारन’ में काम दिलाया था, जिस में राकेश पांडेय हीरो थे और पद्मा खन्ना हीरोइन थीं. इस फिल्म में बृजेश त्रिपाठी ने एक बिगड़ैल लड़के का रोल किया था.

इस फिल्म के बाद बृजेश त्रिपाठी की हीरो राकेश पांडेय के साथ अच्छी दोस्ती हो गई थी. राकेश पांडेय ने जब साल 1982 में एक फिल्म बनाई थी, तो उस में बृजेश त्रिपाठी को मेन विलेन का रोल दिया गया था. उस फिल्म में पद्मा खन्ना और प्रेमा नारायण मुख्य भूमिकाओं में नजर आई थीं. इस के बाद उन का भोजपुरी फिल्मों  में ऐक्टिंग का कारवां आगे बढ़ा तो बढ़ता ही गया और वे भोजपुरी की कई कामयाब फिल्मों में मेन विलेन के रूप में नजर आए.

रवि किशन को लाए

बृजेश त्रिपाठी भोजपुरी के ऐसे चेहरे के रूप में स्थापित होने लगे थे, जो भोजपुरी के बड़े कलाकारों की इमेज पर भी भारी पड़ रहे थे. इस की खास वजह यह थी कि 90 के दशक में जब भोजपुरी की फिल्में बननी बंद हो गई थीं या कह लिया जाए कि इक्कादुक्का फिल्में ही बनती थीं, तब इस दौरान के सन्नाटे को तोड़ने के लिए भोजपुरी के बड़े डायरैक्टर मोहन जी. प्रसाद ने उन के सामने भोजपुरी और बंगला भाषा में एक फिल्म का औफर रखा. उन्होंने इस फिल्म का हीरो चुनने की जिम्मेदारी भी बृजेश त्रिपाठी के ऊपर छोड़ दी थी.

बृजेश त्रिपाठी ने उस समय रवि किशन को इस फिल्म में बतौर हीरो लिए जाने की सलाह दी, जो मोहन जी. प्रसाद को पसंद आ गई और आखिरकार भोजपुरी के तीसरे दौर की पहली कामयाब फिल्म ‘सईयां हमार’ में रवि किशन को बतौर लीड हीरो के रूप में काम करने का मौका मिल ही गया.

इस फिल्म में उदित नारायण और कुमार सानू ने गीत गए थे. गीत विनय बिहारी ने लिखे थे.

इस फिल्म ने कामयाबी का नया इतिहास रच दिया था. यहीं से भोजपुरी फिल्मों के बनने का नया दौर चल पड़ा और लगातार 14 कामयाब फिल्मों में रवि किशन हीरो और बृजेश त्रिपाठी विलेन रहे.

बढ़ती गई पहचान

बृजेश त्रिपाठी 2000 के दशक में भोजपुरी के बड़े विलेन के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे, लेकिन धीरेधीरे उम्र बढ़ने के साथसाथ विलेन के रूप में ऐक्शन फिल्मों को करने में कुछ मुश्किलें आने लगीं तो उन्होंने इमोशनल के साथ ही सीरियस और कैरेक्टर रोल भी करने का फैसला लिया और इस की शुरुआत उन्होंने मनोज तिवारी के साथ भोजपुरी फिल्म ‘धरतीपुत्र’ से की. यह फिल्म भी हिट साबित हुई.

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फिर क्या था, वे अपनी विलेन वाले इमेज से निकल कर एक और भोजपुरी फिल्म ‘पूरब’ में भी सीरियस रोल में नजर आए, जिस में उन के रोल को काफी सराहा गया.

इस के बाद तो भोजपुरी की ज्यादातर फिल्में बृजेश त्रिपाठी के साथ ही बनीं.

आज वे भोजपुरी सिनेमा के सब से उम्रदराज कलाकारों में शुमार हैं, इस के बावजूद उन का शैड्यूल इतना बिजी रहता है कि एक फिल्म खत्म होते ही उन की दूसरी फिल्म शुरू हो जाती है.

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