छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में 15-15 साल, गुजरात में 20 साल और राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड जैसे राज्यों में राज कर चुकी भारतीय जनता पार्टी के समय में भले कुछ और न हुआ हो, वह दलित, पिछड़ी जातियों का हिंदूकरण कराने में जरूर कामयाब हुई है. निचली और पिछड़ी जातियों में हिंदुत्व का उभार हुआ है.
मिडिल क्लास में हिंदू धार्मिकता बढ़ रही है. इस के देशभर में प्रचारप्रसार में भाजपा के राज वाले राज्यों का बड़ा योगदान रहा है. निचली, पिछड़ी जातियों के हिंदूकरण की वजह से ऊंची जातियों में भाजपा के प्रति नाराजगी जाहिर होने लगी थी.
गुजरात दंगों ने गुजराती समाज का हिंदूकरण करा दिया था. भाजपा ने हिंदुत्व विचारधारा को घरघर पहुंचाया. दलित, पिछड़ों को मूर्तियां दी जा रही हैं.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके शिवराज सिंह चौहान ने अपने 15 साल के राज में सब से ज्यादा धार्मिक यात्राएं कराईं. वे खुद पिछड़े तबके से होते हुए भी हवनयज्ञ, तीर्थयात्राएं, मंदिर परिक्रमा करते रहे और गौ व ब्राह्मण महिमा का गुणगान करते रहे.
शिवराज सिंह चौहान ने दलितों को कुंभ स्नान कराने के पीछे इस तबके का शुद्धीकरण कर उसे ब्राह्मण बनाया था. हिंदू रीतिरिवाजों से जोड़ कर हिंदू धर्म में संस्कारित कराया था ताकि दलित तबका ब्राह्मणों की सेवा कर सके और दानदक्षिणा दे.
मुख्यमंत्री द्वारा सांसारिक सुखों का त्याग का दावा करने करने वाले 5 साधुओं तक को मंत्री बना दिया गया.
दलित, पिछड़े नेताओं की मूर्तियां लगाई गईं और इन तबके के लोगों को मूर्ति पूजा की ओर धकेलने की कोशिशें की गईं. चुनावों में हनुमान को दलित, वंचित जाति का बता कर इस तबके को हनुमान की पूजा करने और मंदिर बनाने का संदेश दिया गया.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आएदिन हिंदू धर्म की बात करते रहते हैं. राजस्थान में वसुंधरा राजे मंदिरों की परिक्रमा करती रहीं. दलितों और पिछड़ों का शुद्धीकरण कर उन्हें ब्राह्मण बनाने की कोशिश होती रही.
यह अलग बात है कि दलितों और मुसलिमों पर हमले जारी रहे. दलित और पिछड़े तबके वाले हिंदू धर्म के संस्कारों को अपनाने में हिचकिचाते थे या डरते थे, उन्हें भाजपा सरकार ने हौसला दिया.
भाजपा के पार्टी दफ्तरों में दलित, पिछड़े तबके के नेता, कार्यकर्ता माथे पर तिलक, भगवा जैकेट, कुरतापाजामा पहने नजर आने लगे. मौब लिंचिंग की घटनाओं में पिछड़े और दलित जातियों के नौजवान ज्यादा भागीदार पाए गए. पिछड़ी जातियों के नौजवान गौ रक्षक बना दिए गए.
उत्तर प्रदेश के दादरी में मोहम्मद अखलाक नामक शख्स के घर में घुस कर भीड़ ने लाठी और ईंटों से हमला किया गया और फिर उस की हत्या कर दी गई.
अखलाक का बेटा दानिश उन्हें बचाने आया तो उसे घायल कर दिया गया. आरोपी पिछड़ी जातियों के निकले. इन जातियों के कुछ नौजवानों ने अखलाक पर गौ मांस खाने और घर में रखने का आरोप लगाया और गांव के मंदिर में लाउडस्पीकर से ऐलान कर के भीड़ को इकट्ठा किया गया.
सहारनपुर में दलित बस्ती में तोड़फोड़ की गई और आगजनी का मामला भी दलितों पर हमले की बड़ी घटना थी. यहां महाराणा प्रताप जयंती पर जुलूस निकाला गया और उन्हें हिंदू धर्म का रक्षक बताया गया. यह जुलूस दलित बस्ती से निकला तो दोनों समुदायों का झगड़ा हो गया. बाद में दलितों के घर जला दिए गए और उन के घरों में तोड़फोड़ की गई.
इसी तरह राजस्थान के अलवर में गौ गुंडों द्वारा 55 साल के पहलू खान की हत्या कर दी गई. पहलू खान गायों को ले कर अपने घर जा रहा था.
इन्हीं दिनों शंभूलाल रैगर ने अफराजुल नामक युवक की लव जिहाद के नाम पर हत्या कर दी थी. शंभूलाल रैगर ने अफराजुल को न केवल मौत के घाट उतारा, बल्कि इस दिल दहला देने वाले अपराध का वीडियो बना कर उसे सोशल मीडिया पर अपलोड भी किया.
सरकारों का ऐसी घटनाओं को समर्थन मिलता रहा और आरोपियों का बचाव किया गया. सहारनपुर घटना में दलित युवा नेता चंद्रशेखर को देशद्रोह का मामला बना कर जेल भेज दिया गया.
टैलीविजन चैनलों पर शनि की दशा पर प्रवचन देने और उपाय बताने वाले मदन दाती को महामंडलेश्वर बना दिया गया.
मदन दाती राजस्थान के पाली के मेघवाल जाति के दलित समुदाय से हैं. यह बात अलग है कि अब वे अपने आश्रम में रह रही एक युवती के साथ बलात्कार मामले में फंसे हुए हैं और अपने सहयोगियों के साथ पैसों के लेनदेन मामले में विवादों में भी हैं.
मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जो विधायक चुन कर आ रहे हैं, वे अब पिछड़े, दलित नहीं, ब्राह्मण बन चुके हैं. ज्यादातर की 2-3 पीढि़यां सामाजिक और माली तौर पर बदल गई हैं.
लेकिन अभी भी इन तबकों का माली, सामाजिक विकास नहीं हो पाया. भाजपा ने इसे सामाजिक समरसता का नाम जरूर दिया, पर दलित दूल्हों को घोड़ी से उतारे जाने की सब से ज्यादा वारदातें भाजपा के राज वाले राज्यों में ही हुईं.
भाजपा के राज वाले राज्य शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मामलों में पिछड़े हुए हैं. इन राज्यों में निचली व पिछड़ी जातियों के लड़केलड़कियों की स्कूल छोड़ने की दर सब से ज्यादा है. इन तबकों के हाथों में ‘गीता’, ‘रामायण’ तो थमाईर् जा रही है, पर पढ़ाईलिखाई, रोजगार का इंतजाम कर के असली सामाजिक, माली विकास से अभी भी कोसों दूर हैं.