कृपाल सिंह खुद निशा की कनपटी पर पिस्तौल टिकाए चिल्ला रहे थे, ‘‘हट जाओ तुम लोग, वरना इस लड़की की लाश यहां नजर आएगी.’’ मगर हरिजन टस से मस न हुए. वे चारों तरफ से विधायक और उन के आदमियों को घेरे खड़े थे. एक आदमी ने चिल्ला कर कहा, ‘‘यह लड़की हमारी इज्जत है, एमएलए साहब. इसे मारने से पहले आप को हम सभी की लाशों पर से गुजरना पड़ेगा. फिर जो हंगामा होगा, आप सुलट लेना.’’ तभी राजन जोर से चिल्लाया, ‘‘पिताजी…
’’ ठाकुर साहब के साथसाथ सभी ने उस की तरफ देखा. वे अपनी पिस्तौल अपनी ही कनपटी पर टिकाए हुए था, ‘‘पिताजी, छोड़ दीजिए निशा को, वरना मैं अपनेआप को भी गोली मार लूंगा.’’ बेटे की ऐसी हालत देख कर ठाकुर कृपाल सिंह टकटकी लगाए बेटे को ही देखने लगे. निशा किसी की परवाह किए बिना राजन की तरफ भागी और उस की बांहों में समा कर फूटफूट कर रोने लगी. राजन ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. अचानक धमाके की आवाज हुई. निशा और राजन के साथसाथ सभी उधर ही मुड़े. राजन ‘पिताजीपिताजी’ चिल्लाते हुए ठाकुर साहब की तरफ लपका. ठाकुर साहब अपनेआप को गोली मार चुके थे. ‘‘पिताजी, यह आप ने क्या कर लिया?’’ ठाकुर साहब किसी तरह बोल पाए, ‘‘नहीं… नहीं… राजन बेटे, रोते नहीं. मैं ने तुम्हें बहुत दुख दिया है न..
.’’ फिर वे निशा की तरफ मुड़े और उस का हाथ पकड़ कर राजन के हाथ में देते हुए बोले, ‘‘निशा बेटी, मुझे माफ कर देना. राजन सिर्फ तुम्हारा है. मैं ने ऊंचनीच की दीवार खड़ी कर के… तुम्हारे साथ बहुत नाइंसाफी की है…’’ कौन जानता था कि सिर्फ 7 साल बाद निशा इलाके की विधायक बनेगी और राजन एक बड़ी कंपनी का डिप्टी सीईओ. दोनों ने विधायक के मरने के बाद जम कर पढ़ाई की,
आईआईटी में एडमिशन लिया. वे दोनों 2 साल अमेरिका में रहे, फिर निशा और राजन भारत लौट आए. निशा नौकरी छोड़ कर विधायक साहब की सीट पर जनरल कोटे से लड़ी और कट्टरपंथी पार्टी को हरा कर जीती. वह मंत्री तो नहीं बनी, पर जब विधानसभा में बोलती, तो मुख्यमंत्री पसीनेपसीने हो जाते. राजन और निशा ने एक शहर के बाहर एक बड़ी बिल्डिंग के 10वें माले पर 4 कमरे का मकान लिया था, पर निशा के पिता आज भी पुराने मकान में रहते हैं.