देश में सरकार के खिलाफ हर बात कहने वाले के साथ अब वही सुलूक हो रहा है जो हमारी पौराणिक कहानियों में बारबार दोहराया गया है. हर ऋषिमुनि इन कहानियों में जो भी एक बार कह डालता, वह तो होगा ही. विश्वामित्र को यज्ञ में दखल देने वाले राक्षसों को मरवाना था तो दशरथ के राजदरबार में गुहार लगाई कि रामलक्ष्मण को भेज दो. दशरथ ने खूब विनती की कि दोनों बच्चे हैं, नौसिखिए हैं पर विश्वामित्र ने कह दिया तो कह दिया. वे नहीं माने.
कुंती को वरदान मिला कि वह जब चाहे जिस देवता को बुला सकती है. सूर्य को याद किया तो आ गए पर कुंती ने लाख कहा कि वह बिना शादीशुदा है और बच्चा नहीं कर सकती पर सूर्य देवता नहीं माने और कर्ण पैदा हो गया. उसे जन्म के बाद पानी में छोड़ना पड़ा.
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अब चाहे पश्चिम बंगाल हो, कश्मीर का मुद्दा हो, किसानों के कानून हों, जजों की नियुक्ति हो, लौकडाउन हो, नोटबंदी हो, जीएसटी हो, सरकार के महर्षियों ने एक बार कह दिया तो कह दिया. अब तीर वापस नहीं आएगा.
कोविड के दिनों में तय था कि वैक्सीन बनी तो देश को 80 करोड़ डोज चाहिए होंगी पर नरेंद्र मोदी को नाम कमाना था पर लाखों डोज भारतीयों को न दे कर 150 देशों में भेज दी गईं जिन में से 82 देशों को तो मुफ्त दी गई हैं. भारत में लोग मर रहे हैं, वैक्सीन एक आस है पर फैसला ले लिया तो ले लिया.
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यह हर मामले में हो रहा है. पैट्रोल, डीजल, घरेलू गैस के दाम बढ़ रहे हैं तो कोई सुन नहीं रहा. चुनाव तो हिंदूमुसलिम कर के जीत लिए जाएंगे. नहीं जीते तो विधायकों को खरीद लेंगे जैसे कर्नाटक, असम, मध्य प्रदेश में किया.
जनता की न सुनना हमारे धर्मग्रंथों में साफसाफ लिखा है. राजा सिर्फ गुरुओं की सुनेगा चाहे इस की वजह से सीता का परित्याग हो, शंबूक का वध हो, एकलव्य का अंगूठा काटना हो. जनता बीच में कहीं नहीं आती. यह पाठ असल में हमारे प्रवचन करने वाले शहरों में ही नहीं गांवों में भी इतनी बार दोहराते हैं कि लोग समझते हैं कि राज करने का यही सही तरीका है. भाजपा ही नहीं कांग्रेस भी ऐसे ही राज करती रही है, ममता बनर्जी भी ऐसे ही करती हैं, उद्धव ठाकरे भी.
यह हमारी रगरग में बस गया है कि किसी की न सुनो. हमारा हर नेता, हर अफसर अपने क्षेत्र में अपनी चलाता है चाहे सही हो या गलत. यह तो पक्का है कि जब 10 फैसले लोगे तो 5 सही ही होंगे. पर 5 जो खराब हैं, गलत हैं, दुखदायी हैं, जनता को पसंद नहीं हैं तो दुर्वासा मुनि की तरह जम कर बैठ जाने का क्या मतलब? आज सरकार लोकतंत्र की देन है, संविधान की देन है, पुराणों की नहीं. पौराणिक सोच हमें नीचे और पीछे खींच रही है. हर जना आज परेशान है. आज धन्ना सेठों को छोड़ कर हर किसान, मजदूर, व्यापारी परेशान है पर वह भी यही सोचता है कि राजा का फैसला तो मानना ही होगा. उस के गले से आवाज नहीं निकलती.
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यह सोच हर गरीब को ले डूबेगी. गरीब हजारों सालों से गरीब रहा क्योंकि वह बोला नहीं. उस ने पढ़ा नहीं, समझा नहीं, जाना नहीं. इंदिरा गांधी ने इस का फायदा उठाया. आज मोदी उठा रहे हैं. जिस अच्छे दिन की उम्मीद लगा रखी थी वह आएगा तो तब जब अच्छा होता क्या है यह कहने का हक होगा और सुनने वाला सुनेगा.