भोजपुरी फिल्मों में परिवार होता है

परिवार समाज की बुनियाद माना जाता है और भारत में इस की अहमियत दूसरे देशों के बजाय ज्यादा है. इसलिए यह और भी अहम हो जाता है कि फिल्में इस पर रोशनी डालें और भोजपुरी फिल्मों का इस मामले में कोई सानी नहीं है.

कुछ फिल्में जैसे ‘नदिया के पार’, ‘गंगा’, ‘गंगा किनारे मोरा गांव’, ‘हमार बेटवा’, ‘आंगन की लक्ष्मी’, ‘ससुरा बड़ा पईसा वाला’, ‘तुलसी’, ‘गंगापुत्र’, ‘गंगा देवी’, ‘बीवी नंबर 1’, ‘जीजाजी की जय हो’, ‘जींस वाली भौजी’, ‘भैयादूज’, जैसी फिल्में पारिवारिक मसाले को ध्यान में रख कर ही बनाई गई हैं.

इस तरह की फिल्में बना कर भोजपुरी सिनेमा ने भारतीय समाज में अलग छाप छोड़ी है, क्योंकि फिल्में न केवल परिवार को एकजुट रखने का आईना दिखाती हैं, बल्कि परिवार के हर सदस्य को अपनी जिम्मेदारी का अहसास भी कराती हैं. इसलिए भोजपुरी फिल्मों की पारिवारिक तानेबाने में बहुत बड़ी जगह है.

फिल्म ‘नदिया के पार’ देख कर आप को लगेगा कि हम अपने घरपरिवार या फिर समाज की कोई कहानी सुन रहे हैं. इस फिल्म में एक किसान अपने

2 भतीजों के साथ उत्तर प्रदेश के एक गांव में रहता है. किसान के बीमार होने के बाद उस का इलाज वैद्य द्वारा किया जाता है और जब ठीक होने पर किसान इलाज की कीमत चुकाने के संबंध में वैद्य से बात करता है तो वह वैद्य अपनी बड़ी बेटी रूपा के लिए किसान के बड़े भतीजे ओमकार का हाथ मांगता है, जिस के लिए वह राजी भी हो जाता है क्योंकि दोनों का घरपरिवार अच्छा है.

राजीखुशी दोनों की शादी हो जाती है. जब रूपा पेट से होती है तो उस की छोटी बहन गुंजा कुछ दिनों के लिए उस के घर आती है जहां वह ओमकार के छोटे भाई चंदन के प्यार में पड़ जाती है.

इस बारे में जब रूपा की बहन को पता चलता है तो वह दोनों की शादी करवाने का वादा करती है लेकिन एक हादसे में रूपा की मौत होने के चलते उन दोनों के प्यार के बारे में किसी को पता नहीं चल पाता है.

इस बीच पारिवारिक हालात के चलते दोनों को अपने प्यार को कुरबान करने की नौबत आ जाती है और वे इस के लिए राजी भी हो जाते हैं लेकिन जब घर वालों को इस बारे में पता चलता है तो वे उन दोनों की शादी करवाते हैं.

यानी इस फिल्म में परिवार और रिश्तों की अहमियत को दिखाते हुए परिवार की एकजुटता पर फोकस किया गया है.

वहीं फिल्म ‘ससुरा बड़ा पईसा वाला’ में हम कह सकते हैं कि बहुत कम फिल्में ऐसी होती हैं जिन में ससुर और दामाद के रिश्तों पर कहानी की बुनियाद टिकी होती है लेकिन हीरो मनोज तिवारी की इस फिल्म में भले ही कौमेडी का तड़का लगाया गया है लेकिन ससुरदामाद के रिश्तों के बीच की तल्खी और भावनात्मक लड़ाई को भी बखूबी दिखाया गया है. इस तरह से इस में 2 परिवारों की कहानी को सिलसिलेवार तरीके से जोड़ा गया है.

ऐसी ही एक फिल्म ‘गंगा’ आई थी जिस में पारिवारिक रिश्तों के साथ ही सामाजिक बंधनों के बीच के टकराव को बखूबी दिखाया गया. वहीं फिल्म ‘गंगापुत्र’ में मांबेटे के रिश्ते को केंद्र में रखा गया.

आप को बता दें कि फिल्म ‘जीजाजी की जय हो’ में भी साली और जीजा के मजाक को बहुत ही चुटीले और मजेदार ढंग से दिखाया गया. इस से इस रिश्ते की अहमियत पता चलती है. फिल्म ‘जींस वाली भौजी’ में घर में भाभी के किरदार को अहमियत दी गई.

फिल्म ‘भैयादूज’ में भी भाईबहन के रिश्तों की मिठास को रुपहले परदे पर घोला गया.

कुलमिला कर हम कह सकते हैं कि जिस तरह से बौलीवुड फिल्में हीरोहीरोइन के इर्दगिर्द ही घूमती हैं वहीं भोजपुरी फिल्मों में जितनी अहमियत हीरोहीरोइन को दी जाती है उतनी ही दूसरे रिश्तों को भी मिलती है, जो हमें भोजपुरी फिल्में देखने पर मजबूर करता है.

एक जनवरी से भोजपुरी फिल्में और संगीत हो जाएगा “अश्लीलता मुक्त”

मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के भीतर अश्लीलता के खिलाफ क्रांति का बिगुल बज गया है. 5 लाख सदस्यों वाली ‘फेडरेशन औफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाइज’ ने ऐलान किया है कि भोजपुरी फिल्मों में अब अश्लीलता नहीं बर्दाश्त की जाएगी. ऐसी फिल्मों का बनना सामाजिक अपराध है. इसलिए कोई उनके निर्माण या प्रदर्शन में संलग्न न हो, जो लोग ऐसा नही करेंगे, उनकी सदस्यता रद्द की जाएगी. फेडरेशन ने इस बात का भी ऐलान किया है कि मुंबई, इलाहाबाद, पटना और रांची हाई कोर्ट में ‘‘पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान’’ द्वारा भोजपुरी मनोरंजन उद्योग में फैली अश्लीलता के खिलाफ दायर की जा रही याचिका में फेडरेशन भी सह याचिकाकर्ता बनेगा.

‘‘पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान’’ और ‘‘फेडरेनशन औफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाईज’’ने यह घोषणा मुंबई में ‘सिने एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन’ के दफ्तर में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में की. दोनों संगठनों ने ऐलान किया कि पहली जनवरी 2019 के बाद प्रदर्शित होने वाली हर भोजपुरी फिल्म की पूर्वांचल समाज और संस्कृति को जानने वाले किसी विद्वान व्यक्ति से समीक्षा करायी जाएगी और पूर्वांचल के समाज के मानदंडों के हिसाब से यदि कुछ गलत पाया गया, तो सेंसर बोर्ड के सामने यह सवाल प्रखरता से खड़ा किया जाएगा कि उसने इस फिल्म को कैसे पास किया?

इस अवसर पर फेडरेशन के अध्यक्ष बी एन तिवारी, महासचिव अशोक दुबे, कोषाध्यक्ष संजू श्रीवास्तव, प्रोड्यूसर एसोसिएशन के सदस्य शरद देराज शेलार और पूर्वाचल विकास प्रतिष्ठान की ओर से पूर्व मंत्री चंद्रकात त्रिपाठी, अश्लीलता विरोधी अभियान की ब्रांड अम्बेसेडर पद्मश्री डा शोमा घोष, ‘पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान’ के सचिव ओमप्रकाश सिंह, मुंबई हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करने जा रहे एडवोकेट विजय सिंह और गायक अविनाश तिवारी ने भोजपुरी फिल्मों, भोजपुरी के संगीत अलबमों व भोजपुरी गीतों से एक माह के अंदर अश्लीलता को जड़ से समाप्त करने की बात की.

इन सभी का मानना है कि भोजपुरी मनोरंजन उद्योग में अश्लीलता इन दिनों चरम पर है. यह स्त्रियों की अस्मिता पर हमला है. इससे बच्चों, किशोरी, तरूणों का भविष्य बिगड़ रहा है. समाज की छवि बिगड़ रही है. भाषा, साहित्य, संस्कृति और समाज आदि की अवमानना हो रही है.

इन परिस्थितियों को रेखांकित करते हुए बी एन तिवारी ने कहा -‘‘बंद यानी बंद. भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में अश्लीलता अब नहीं चलेगी. यदि सेंसर बोर्ड ने भी नियमों का पालन नहीं किया, तो हम उसके खिलाफ मुखर विरोध के लिए तैयार हैं. अब तक भोजपुरी फिल्मों में जो अश्लीलता परोसी जा रही है, इसके लिए सेंसर बोर्ड ही जिम्मेदार है. सेंसर बोर्ड अपना काम सही ढंग से नहीं कर रहा है. यदि सेंसर बोर्ड सही ढंग से काम कर रहा होता, तो एक भी भोजपुरी फिल्मों में अश्लीलता परोसकर औरतों की अस्मिता के साथ खिलवाड़ नजर न आता. अश्लीलता के खिलाफ हमारी लड़ाई यहीं नहीं रूकेगी. पहले भोजपुरी की यह लडाई जीत ली जाए, इसके बाद हिंदी सिनेमा में भी अश्लीलता का विरोध किया जाएगा. सबसे पहले जहां ज्यादा बुराई है, उसे खत्म कर लिया जाए.’’

पद्मश्री डा शोमा घोष ने कहा – ‘‘पूर्वांचल की भोजपुरी बहुत मीठी बोली है. भोजपुरी बहुत संपन्न संस्कृति की बहुत विस्तृत फलक की है. चंद तिजारती लोग इसे बिगाड़ रहे हैं. हमारी यह लड़ाई तो मां के दूध की मिठास बचाने की लड़ाई है. समाज के होने और जीने की लड़ाई है. समाज ने अब तक संगठित विरोध नहीं किया था. इसलिए यह बुराई फैलती चली गयी.’’

पूव मंत्री चंद्रकांत त्रिपाठी ने भी अश्लीलता के खिलाफ बिगुल बजाने की बात पर जोर देते हुए कहा – ‘‘हम सभी इस लड़ाई को एक तार्किक अंजाम तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.’’

‘‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया इम्प्लौइज एसोसिएशन’’ संस्था से जुड़े अन्य लोगों ने भी यही प्रतिबद्धता जताते हुए कहा – ‘‘फेडरेशन अश्लीलता के खिलाफ अपनी इस प्रतिबद्धता को सभी सदस्यों को सूचित कर रही है. फिल्म निर्माताओं के दूसरे संगठनों से भी इस बारे में बात हो रही है. हमें विष्वास है कि इस लड़ाई में सभी साथ खडे़ होंगे. सबकी इस बारे में एक व्यापक सहमति बनेगी. सेंंसर बोर्ड को भी इस बारे में फेडरेशन की इस प्रतिबद्धता की जानकारी दी जा रही है. इस बाबत फेडरेशन के सलाहकार जाने माने निर्देशक अशोक पंडित से भी बात हो रही है.

‘‘पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान’’ के सचिव ओमप्रकाश सिंह ने मुंबई, इलाहाबाद व अन्य हाईकोर्ट में फाइल की जा रही याचिका का विवरण देते हुए कहा – ‘‘धारा 29 में दिए गए जीने के हक के मौलिक अधिकार को विचार का मुख्य बिंदु बनाया जा रहा है. इस मामले में यह याचिका एक अनोखी याचिका बनेगी. सवाल यह भी है कि भाषा को, साहित्य को, संस्कृति को, लोक कलाओं को मर्यादाओं को मूल्यों को मानकों को भी जीने का सम्मान से जीने का कोई हक है या नही? यही याचिका उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के राज्य मानवाधिकार आयोग में भी दाखिल की जा रही है. निर्माताओं, निर्देशकों, प्रदर्शकों, वितरकों, कलाकारों आदि को मिलाकर कुल 600 लोगों को हमने व्यक्तिगत चिट्ठी भेज कर आग्रह किया है कि वह भोजपुरी फिल्मों में अश्लीलता का कारण ना बनें.’’

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