कुछ समय पहले दिल्ली से मेरठ जाना हुआ था. बस का सफर था तो खिड़की वाली सीट यह समझ कर लपक ली कि सफर में हवा खाने का मजा उठाया जाएगा. जैसे ही कश्मीरी गेट आईएसबीटी से बस चलने को हुई कि तड़तड़ाते हरेपीले रंगों के विजिटिंग कार्ड खिड़की से अंदर आ गिरे.
कुछ कार्ड सवारियों के मुंह पर लगते हुए गोद में जा गिरे, कुछ टकरा कर बस के फर्श पर, कुछ वहीं सीट पर.
कार्ड बस के अंदर फेंकने वाला कोई 15-16 साल का लड़का ऐसे चलते बना मानो उस ने हमारे मुंह पर कार्ड मार कर कोई एहसान किया हो.
मैं ने बगल वाली सीट पर गिरे एक कार्ड को उठा कर देखा तो ऊपर पहली लाइन लिखी थी, ‘भटको चाहे जिधर, काम होगा इधर.’ अगली लाइन पढ़ कर मैं झेंप गया. लिखा था, ‘तंत्रमंत्र के सम्राट, गुप्त रोगों का इलाज, बाबा बंगाली.’
इस लाइन को पढ़ते हुए मैं ने नजर यहांवहां घुमाई, किसी का ध्यान नहीं था तो चुपके से आगे पढ़ने लगा. लिखा था, ‘शीघ्रपतन, धात, स्वप्नदोष, नामर्दी, बेऔलाद, लिंग का टेढ़ापन, छोटापन व पतलापन, शुक्राणु की कमी और स्त्री गुप्त रोगी शीघ्र मिलें.’
‘शीघ्र मिलें’ वाली बात से मुझे यह समझ आ गया कि यह समाज की एक बड़ी विकट समस्या है वरना कोई यों ही जल्दी क्यों बुलाएगा? दूसरा यह कि लोगों की इस तरह कि समस्याएं हैं वरना कोई कार्ड में क्यों छपवाएगा?
इस के अलावा कार्ड में वशीकरण, मुठकरनी, सौतन से छुटकारा, विदेश जाने में रुकावट, गृहक्लेश का इलाज शर्तिया था. इलाज शर्तिया था और इलाज का तरीका तंत्रमंत्र और भस्म बूटी से था, तो लगा देश में लोगों को बेवकूफ बनाना ज्यादा मुश्किल काम नहीं. या तो ‘अच्छे दिनों’ के वादे करो या ‘अच्छी रातों’ के, और जब देश में दिन और रात अच्छे करने वाले शर्तिया लोग बैठे ही हैं, तो आम आदमी को काहे का डर.
हालांकि मैं इस तरह के इश्तिहार सड़क किनारे बने शौचालय की दीवारों, बसस्टैंड और राह चलते सरकारी खंभों पर पहले भी देख चुका था. लेकिन सटीक स्टडी पहली बार हो पाया. दरअसल, यही वे इश्तिहार हैं जिन को हम उम्मीद का हद कहते हैं, ये इश्तिहार उन लोगों की उम्मीद बनते हैं, जो खुद की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाते और फिर भागेभागे फिरते हैं, इन बेसिरपैर के इश्तिहारों के पीछे.
ऐसे इश्तिहार अखबारों में भी दिख जाते हैं, जिन्हें पढ़ने से हम कतराते हैं. अखबारों में आने वाले इश्तिहार से लगता भी है कि इन के पास कस्टमर पक्के फंसते भी होंगे और कष्ट से मरते भी होंगे. तभी तो इन का इश्तिहार देने का खर्चा निकल रहा है.
अब ये लोग शर्तिया इलाज कर पाएं या न कर पाएं, पर ये एक जानकारी जरूर दिमाग में डाल जाते हैं कि आज लोगों को अपने साथी से सैक्स का सुखद अनुभव उस तरह से नहीं मिल पा रहा जैसा वे किसी पोर्न फिल्म में देख कर महसूस करते हैं. जहां मर्द अपने गठीले जिस्म और सुडौल अंग से अपनी औरत साथी को पूरी तरह से झकझोर देता है और वह औरत साथी सिसकियां लेले कर चरम सुख का मजा लेती है.
सैक्स का मनोविज्ञान
पोर्न फिल्मों में दिखाए गए ये सीन किसी आम मर्द को खुद की नजरों में और भी गिरा देने वाले होते हैं कि वह तो फलां रात को अपनी पत्नी या प्रेमिका के साथ बिस्तर पर ठीक से 10 सैकंड भी नहीं बिता पाया था. वह दुर्ग द्वार पर दस्तक तो दे आया, पर उसे ठीक से खटखटा नहीं पाया. ऐसे में 5 मिनट भी बिस्तर पर लगातार बने रहना किसी सपने सा ही लगता है.
महान मनोवैज्ञानिक सिंगमड फ्रायड ने अपने अनुभव में भी पाया था कि जब कोई मर्दऔरत बिस्तर पर सैक्स कर रहे होते हैं, तब उन दोनों के दिमाग के भीतर 2 और शख्स मौजूद रहते हैं.
उन का मानना था कि ये 2 शख्स उन की कल्पनाओं में तैरते हैं, जो उन की इच्छाएं दिखाते हैं. वे जिस तरह के साथी की अभिभूति चाहते हैं, उसे वे अपने दिमाग में भरना शुरू कर देते हैं. इस से समझा जा सकता है कि किसी इनसान की जिंदगी में सैक्स का ठीक से होना या न होना किस हद तक उस की जिंदगी को प्रभावित कर सकता है.
लोग चाहे कितना ही कह लें कि सैक्स गंदा है, अश्लील है, भौंड़ा है, पर असल में मर्दऔरत के बीच प्यार और लगाव का रिश्ता सैक्स के चलते पूरा होता है. यही सैक्स है, जो उस प्यार की डोर को कस कर बांधे रखता है, रिश्ते में ऊर्जा, उत्तेजना और उत्साह भरता है. यही सैक्स है, जो रिश्तों में कड़वाहट बनने और न बनने की वजह भी बनता है.
प्यार में बेवफाई
आजकल तो फिल्मों में भी सैक्स से जुड़े मुद्दों को लाने की कोशिशें होने लगी हैं. यौन सुख की कमी या खराब सैक्स संबंध को सिनेमा में भी दिखाया जा रहा है. बौलीवुड फिल्म और वैब सीरीज जैसे ‘वीरे दी वैडिंग’, ‘फोर मोर शौट्स प्लीज’, ‘लस्ट स्टोरी’ में औरतों को परदे पर सैक्स टौयज द्वारा सैक्स का मजा लेते हुए खुल कर दिखाया गया.
फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’ में मर्दाना कमजोरी पर फोकस किया गया था. फिर सवाल यह उठता है कि जब यह विषय इतना गंभीर है तो इस पर चर्चा क्यों न की जाए? क्यों न मर्दऔरत के बीच बेहतर सैक्स संबंधों को बनाने के लिए हल खोजा जाए? वजह, बात सिर्फ सैक्स संबंधों की नहीं, इस के इतर आपसी रिश्ते को जोड़े रखने की भी है. अगर सैक्स संबंध ठीक से नहीं चल रहे हैं तो रिश्ते बिगड़ने और धोखेबाजी की नौबत आ जाती है.
मनोचिकित्सक इस्थर पेरेल ने सकल 2017 में छपी अपनी किताब ‘द स्टेट औफ अफैयर्स : रीथिंकिंग इनफिडेलिटी’ में बताया था कि धोखा देना या बेवफाई को पूरी दुनिया में बुरा तो माना जाता है, लेकिन फिर भी यह सभी जगह होती है. वे लिखती हैं, ‘मौजूदा वक्त में प्रेम संबंध जल्दी टूटने लगे हैं. वे ज्यादा वक्त तक साथ निभाने वाले नहीं होते और उन में नैतिकता की कमी भी होती है.’
हम पूरी दुनिया में यह खोजने निकलें कि आखिर बेवफाई का मतलब क्या होता है तो आमतौर पर सैक्स संबंधों में धोखा मिलना बेवफाई का सीधा और तीखा संकेत माना जाता है. ठीक से सैक्स न मिलना और इसे पाने के लिए किसी दूसरी जगह मुंह मारना बेवफाई कहलाती है.
सैक्स टौयज हैं औप्शन
अब इन समस्याओं को रोकने के लिए बाबा बंगाली की भस्म और तंत्रमंत्र कितने काम आते हैं, यह बातें तो गुप्त रह जाती हैं, पर एक बेहतर सैक्स के लिए सैक्स टौयज की मांग जोरों पर है, जो भारतीय समाज में अनैतिक तो मानी जा रही है, पर ये ऐसे प्रोडक्ट हैं, जिन से इस्तेमाल करने वाला खुद को संतुष्ट महसूस कर रहा है.
संस्कारी कानूनों से इतर हकीकत यह है कि भारत में सैक्स टौयज का बाजार 2 अरब रुपए के आसपास हो चला है. इस में साल 2019 में 34 फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना जताई गई है. अगर इन से कानून की सख्ती हट जाती है तो यह बाजार और भी तेजी से बढ़ेगा.
सैक्स टौयज सैक्स संबंधित ऐसे उपकरण हैं, जिन का इस्तेमाल पार्टनर के न होने पर भी सैक्स का चरम सुख हासिल करने के लिए किया जाता है. इस के साथ ही अपने पार्टनर के साथ सैक्स संबंध को और मजेदार बनाने के लिए भी इन की मदद ली जाती है.
कोरोना महामारी के समय लगे लौकडाउन के दौरान लोगों ने इन सैक्स टौयज का खूब इस्तेमाल किया. उस दौरान तो इन की खरीद में 65 फीसदी का उछाल देखा गया. इन में मुख्य तौर से ‘मसाजर’ और ‘मास्टरबेटर’ यानी वाइब्रेटर की बिक्री सब से ज्यादा हुई. वहीं लोगों को इन उत्पादों से संबंधित जानकारी जानने की उत्सुकता पैदा हुई. यही वजह भी है कि बाजार में तमाम औनलाइन प्लेटफौर्म पर सैक्स टौयज के उत्पाद खुले बिकते दिखाई देते हैं.
ध्यान देने वाली बातें
जहां एक तरफ सैक्स टौयज के कुछ फायदे हैं, वहीं दूसरी तरफ इन की कुछ कमियां भी हैं. जैसे सैक्स टौय डिल्डो और बट प्लग्स मुलायम सिलिकोन के तो होते हैं, पर थोड़ेबहुत खुरदरे भी होते हैं, जिस के चलते अंग में जलन हो सकती है. ऐसे में संभल कर इस का इस्तेमाल जरूरी है.
अगर आप सैक्स टौयज को नियमित तौर पर साफ नहीं करते हैं (ऐसे टौयज, जिन्हें शरीर में अंदर डाला जाता है) तो शरीर से निकला हुआ तरल पदार्थ उन पर लगा रहता है और इस से संक्रमण होने का खतरा बना रहता है, इसलिए इंस्ट्रक्शन लेते हुए नियमित सफाई जरूर कर लें.
किसी और के साथ अपना सैक्स टौय शेयर न करें, क्योंकि इस से संक्रमण हो सकता है. हालांकि सैक्स टौयज में कुछेक प्रोडक्ट को छोड़ कर ज्यादातर बाहरी तौर पर सैक्स ऐक्टिविटी के मकसद से बनाए गए हैं, जिस के चलते ज्यादातर प्रोडक्ट को शेयर किया जा सकता है, पर फिर भी कोशिश करें कि अपने साथी के अलावा इन प्रोडक्ट को शेयर न करें.
रोहित