कब और कैसे लग जाता है सेक्सुअल ब्लाॅक

Sex News in Hindi: औरत और आदमी में सेक्स की जरूरत अलग-अलग होने के बावजूद स्वस्थ सेक्स संबंध तब बनता है, जब वे एक-दूसरे को वक्त देते हैं. आपसी भावनाओं को समझते हैं. दरअसल औरत सीधे सेक्स नहीं चाहती. वह चाहती है पहले इसके लिए माहौल बनाया जाए. वह सेक्सुअल बातें करना चाहती है. सेक्स टाॅक से महिलाएं दिमागी तौरपर रिलैक्स हो जाती हैं और सहज रूप से सेक्स के लिए तैयार हो जाती हैं. इससे विपरीत का व्यवहार होने पर उनके दिमाग पर ब्लाॅक लग जाता है. जिस कारण वे सेक्स न करने के बहाने ढूंढ़ने लगती हैं.

कई बार स्त्रियों में अपनी शारीरिक सुंदरता को लेकर हीनभावना होती है. मसलन, कई स्त्रियों में अपने छोटे या बहुत बड़े वक्षों को लेकर हीनग्रंथि बन जाती है. सुंदर फिगर न होने का फितूर उनमंे सेक्स के दौरान भी बना रहता है, जो कि उन्हें इसमेें डूबने नहीं देता. किसी औरत ने अगर अगर शादी से पहले किसी के साथ सेक्सुअल संबंध बनाये होते हैं तो वह सालों तक दिमागी तौरपर इसे लेकर डरी रहती है. कई बार वह सोचती है कि यह सब पति को बता दे, फिर सोचती है कहीं पति नाराज होकर उसे छोड़ न दे, इस कशमकश में सालों गुजार देती है. जबकि ऐसे मामलों में पहली घड़ी से यह स्पष्टता होनी चाहिए कि जो हो गया, उसे भूल जाओ.

कई औरतें बचपन में यौन उत्पीड़न का शिकार होने के कारण जीवन में सेक्स को सहज रूप में नहीं ले पाती हैं. उनके दिमाग में सेक्सुअल ब्लाॅक रहता है. कई बार पहली बार के संसर्ग पर दर्द होने से भी हमेशा हमेशा के लिए सेक्स का नाम लेते ही दर्द का फोबिया अपनी गिरफ्त में ले लेता है. सेक्सोलाॅजिस्टों के पास ऐसे तमाम मामले आते हैं, जब पति बताता है कि उसकी पत्नी उसे पास ही नहीं फटकने देती. वास्तव में यह शादी से पहले घटी किसी घटना की वजह से हुए सेक्सुअल ब्लाॅक का नतीजा होता है. ऐसे मामलों में सेक्सोलाॅजिस्ट काउंसलिंग, सेक्स थेरैपी के चलते इस ब्लाॅक को हटाता है. कई बार स्त्रीरोग विशेषज्ञ भी इसमें सहायक साबित होती है.

ऐसा नहीं है सेक्सुअल ब्लाॅक सिर्फ महिलाओं की ही समस्या होती है. पुरुषों में भी कई बार सेक्स के दौरान परफाॅरमेंस एंग्जाइटी यानी परफाॅरमेंस की चिंता सताने लगती है. नतीजा ये लगता है कि वेे सफल सेक्स नहीं कर पाते. इस तरह की मानसिक परेशानियों का एक कारण सेक्स को लेकर प्रचलित कई किस्म के मिथ भी होते हैं जैसे- हस्तमैथुन को लेकर यह धारणा कि इससे नपुंसकता आ जाती है. कई बार कई युवा इस सेक्सुअल ब्लाॅक के चलते शारीरिक रूप से फिट होने के बावजूद भी सेक्सुअल संबंध नहीं बना पाते. जबकि हकीकत यह है कि हस्तमैथुन से कोई नपुंसक नहीं होता. लेकिन नीम-हकीमों के जो विज्ञापन यहां-वहां दिखते हैं वे अच्छे पढ़े लिखे युवाओं तक में यह धारणा बना देते हैं कि हस्तमैथुन के कारण वे सेक्स के लिए फिट नहीं रह गये.

शीघ्रपतन, स्वप्नदोष ये भी इसी तरह के मिथ हैं. हकीकत तो यह है कि पहले तो यह किसी किस्म की बीमारी नहीं है और अगर बीमारी है तो इनका इलाज उपलब्ध है. लेकिन सड़क किनारे और मूत्रालयों में रहस्य की तरह चिपकाये गये हैंडबिल लोगों को इस तरह से डरा देते हैं कि अच्छे भले लोग भी खुद को बीमार समझने लगते हैं. युवकों में अपने लिंग के आकार को लेकर भी हीनभावना आ जाती है. जबकि सेक्स की सारी वैज्ञानिक किताबों में ये बातें शुरु में लिखी होती है कि औरत की योनि के शुरुआती दो इंच में ही सेंसेशन होता है. इसलिए दो इंच लंबा लिंग भी स्त्री को संतुष्ट करने के लिए काफी होता है. सेक्स में चरम सुख यानी संपूर्ण सुख हासिल करने की, की गई चिंता भी कई बार सेक्सुअल ब्लाॅक बना देती है. जब भी सेक्स के लिए मानसिक रूप से तैयार हों तो निराशा, तनाव, चिंता, चिड़चिड़ेपन आदि से मुक्त होना चाहिए. तभी तन-मन यानी रोम-रोम तक को पुलकित कर देने वाला संपूर्ण सेक्स सुख हासिल होता है.

सेक्स ब्राइब : रिश्वत में सेक्स की मांग करने वालों से ऐसे बचें

Sex News in Hindi: गुरुग्राम (Gurugram), हरियाणा (Haryana) की एक गृहिणी विनीता (बदला हुआ नाम) बताती हैं, ‘‘मैं मकान की रजिस्ट्री के सिलसिले में रजिस्ट्री कार्यालय (Registry Office) गई. वेहां कागजात तैयार करवाने के सिलसिले में कई लोगों से मिली. हर जगह यही जवाब मिला, 30 से 40 हजार रुपए लगेंगे. यह मेरे लिए मुश्किल था, क्योंकि मैं इतना खर्च करने की स्थिति में नहीं थी. ‘‘उन का तर्क था कि यदि आप अंदर से खुद कागजात पास करवा लें तो हम यह काम 5 हजार रुपए में करवा देंगे. कई जगह इस से मिलताजुलता जवाब पा कर मैं ने खुद ही कागजात बनवाने का निर्णय लिया. सब का यही कहना था कि तुम ने बेकार ही यह पचड़ा मोल लिया. ‘‘खैर, पहले कागजात तैयार करा कर, नियम के मुताबिक स्टैंप ड्यूटी (Stamp Duty), ड्राफ्ट (Draft) आदि बनवाए. मेरी उम्र 50 साल से अधिक है. कार्यालय में कैमरे लगे होने के बावजूद मुझ से वहां औफिस इंचार्ज (Office Incharge) ने सेक्स की मांग की. मैं घबरा गई. मैं ने उन्हें समझाया कि आप बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं. काम करना तो आप का काम है, मैं इसे करवा कर रहूंगी. इस की फीस जो सरकार ने तय की है उसे मैं दे ही रही हूं.

‘‘खैर, मैं एफआईआर कराने की सोच रही थी, पर घर वालों ने मेरा जरा भी साथ नहीं दिया. अब मैं सोशल ऐक्टिविस्ट बन गई हूं. कई महिलाओं की मदद कर चुकी हूं.’’

पैसा भी, सेक्स भी

सरकारी, निजी और ऐसी ही तमाम जगहों पर जहां पब्लिक डीलिंग है, वहां यह बात बहुत कौमन है. पैसा भी चाहिए और देहसुख भी. सीधे तरीके से मिल जाए तो ठीक अन्यथा काम रोकने, अटकाने तथा जोरजबरदस्ती में भी कोई कमी नहीं है. गरीब की जोरू वाला हाल है.

प्रेरणा एक एनजीओ में नौकरी के लिए गई. उस का आकर्षक व्यक्तित्व देखते हुए एनजीओ की फाउंडर ने कहा, ‘‘आप का काम हमारे लिए फंड लाना और उसे सैंक्शन कराना रहेगा. आप इस कार्य के लिए ट्रैंड हैं, आप को कोई दिक्कत तो नहीं है न.’’

मैं उन का इशारा नहीं समझी, इसलिए इस काम के लिए तुरंत हां कर दी. लेकिन पहले ही असाइनमैंट पर मुझे असली बात समझ में आ गई जब मुझ से हमबिस्तर होने के लिए कहा गया. मैं उस व्यक्ति पर आक्रामकता दिखा कर फाउंडर के पास गई तो वे बोली, ‘मैं ने तो आप से पहले ही कह दिया था और आप ने ही हामी भरी. तभी आप को भेजा गया.’ मैं ने शिकायत भी दर्ज कराई पर कुछ नहीं हुआ. उलटे, मेरी ही फजीहत करने की पूरी कोशिश की गई.

छात्रा कुमारी नैना का कहना है, ‘‘आज नौकरी पाना मेरे लिए मुश्किल हो गया है. जहां भी मेरे साथ कोई हरकत करता है, मैं उस का जम कर विरोध करती हूं. इस वजह से हर जगह मुझे बदनाम करने की कोशिश की जाती है. अब हर कोई मुझ से डरता है, कोई काम करवा कर राजी नहीं है. इतनी पूंजी भी नहीं है कि मैं अपना ही कोई काम शुरू कर सकूं.’’

तमाम नियमकायदों के बावजूद महिलाओं का जीवन काफी कठिन है. किसी के प्रति आवाज उठाना खतरे से खाली नहीं है. बाहरी दुनिया के खतरों को जानना तथा उन्हें हल करना जितना आसान दिखता है उतना वास्तव में है नहीं.

एक छात्रा रुचिका का कहना है कि जब उस ने अपने क्लास टीचर द्वारा छात्राओं को छूने की बात घर आ कर पेरैंट्स को बताई तो भाई ने 2 झापड़ उसी को जड़ दिए और बोला कि उस की हिम्मत तुम्हारे ही साथ ऐसा करने की कैसे हो गई और लड़कियां भी तो क्लास में हैं. यह मेरे लिए काफी बड़ा आघात था.

रुचिका ने घर वालों को बताया कि टीचर ने अन्य युवतियों के साथ भी ऐसा किया हो, इस का मुझे यह उसे क्या पता. खैर, यह बात प्रिंसिपल तक पहुंची. माफीनामे और टीचर को स्कूल से निकाल देने पर मामला शांत हुआ. कानूनी ऐक्शन न लेने का मलाल रुचिका को आज भी है.

अंकिता कहती है कि एक प्रोजैक्ट की स्वीकृति पर अनुभाग अधिकारी जब मेरे जिस्म को छूने लगा तो मैं ने उसे वहीं रोक दिया. पति को ये बातें बताईं. उन्होंने जब उस से बात की तो वह मेरे कागज दाएंबाएं न कर सका. सरकारी कार्यालय में सैक्सुअल हैरासमैंट के खिलाफ कमेटी भी बनी होती है.

नियति ने डाक्टर की आशिकमिजाजी की बात अपने पति को बताई तो वह उस पर ही आरोप मढ़ने लगा और जबतब इस बात का ताना मारने लगा. ऐसे में नियति ने परिवार में इस मुद्दे को उठाया तो सब ने उस के पति को समझाया कि गलत समझे जाने के फेर में बातों को दबाना ठीक नहीं है. यदि घर का कोई सदस्य अन्याय के खिलाफ आप के साथ खड़ा न हो और आप को ही दोषी ठहराए तो उस के खिलाफ भी आवाज बुलंद करने में देरी न करें.

अपनी ओर से कोई संकेत न दें : सेक्स ब्राइब की मांग करने वाले लोग सौफ्ट टारगेट की तलाश में रहते हैं. सो, ऐसे लोगों से बेकार की बातचीत न करें और ऐसा कोई संकेत भी न दें जिस से उन्हें अनुचित काम करने का मौका मिले.

लक्ष्मीकांता बताती हैं, ‘‘मैं बिजली के दफ्तर गई तो वहां एक कर्मचारी मुझ से व्यक्तिगत बातें पूछता रहा. फिर बोला कि ब्याज तो मैं 10 हजार रुपए भी माफ करा दूंगा पर कभी बाहर मिलें.’’ लक्ष्मीकांता ने आगे बताया, ‘‘कहने लगीं कि शायद मेरी बातों से उस ने मेरे विधवा होने का पता लगा लिया, इसीलिए वह ऐसा प्रस्ताव रख रहा था. लेकिन मैं ने उसी समय तय कर लिया कि इस दफ्तर में मुझे दोबारा नहीं आना है. मैं ने उपभोक्ता फोरम से निवेदन किया. ट्रेन के टिकट पेश कर के अपनी अनुपस्थिति जताई. तब मेरा गलत बिल ठीक हुआ. हां, आधे घंटे के इस काम में 6 महीने जरूर लग गए.

शौर्टकट न तलाशें 

कोई भी काम करने के लिए अवैध शौर्टकट या ऐसा कोई तरीका न अपनाएं जिस से कोई व्यक्ति आप से गलत मांग करे. ईमानदार व तेजतर्रार व्यक्ति के सामने हर कोई अमान्य, अवैध प्रस्ताव रखते हुए डरता है.

बस, साहब को खुश कर दो

रचना कहती है कि साहब के पीए ने मुझ से यह प्रस्ताव रखा कि ‘बस, साहब को खुश कर दो’ तो मैं सन्न रह गई पर हिम्मत कर के मैं ने कहा, ‘‘साहब सरकार द्वारा हमारा काम करने के लिए रखे गए हैं. तुम्हें पता है ऐसा कहने से तुम्हारी नौकरी और जिंदगी पर बात आ सकती है. तुम अपनेआप को समझते क्या हो.’’ पीए बजाय डरने के मुझे ही धमकाते हुए बोला, ‘‘अपना लैक्चर अपने पास रखो. आप जैसी दोचार महिलाएं रोज आती हैं औफिस में और तीसरे दिन साहब की शरण में होती हैं.’’

खैर, मैं ने संबंधित अथौरिटी से शिकायत की. लेकिन जब मैं ने जानना चाहा कि पीए को क्या सजा हुई, यह पूछने पर कहा गया कि हम बाहर के लोगों को जानकारी नहीं दे सकते. आखिर, 6 महीने बाद उस पर कार्यवाही हुई.

प्रमाण नहीं होता

सेक्स की मांग करने वालों के खिलाफ पुख्ता सुबूत जुटाना मुश्किल होता है. मोबाइल में रिकौर्डिंग व फोटोग्राफी की व्यवस्था होने पर भी उस का उपयोग कई विभागों में सुरक्षा के नाम पर प्रतिबंधित होता है. फिर भी महिलाओं को चुप्पी साधने के बजाय अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए. कोर्ट तक में नारी की इस बात पर संज्ञान लिया जाता है कि ऐसी गैरवाजिब बातों के कोईर् प्रमाण नहीं छोड़ता.

घर वालों को विश्वास में लें

यदि किसी भी विभाग में आप से काम करने के एवज में कोई कर्मचारी अनुचित मांग यानी सेक्स या ऐसी ही कोई दूसरी मांग करता है तो तुरंत अपने घर वालों को इस की जानकारी दें.

सूचना का अधिकार तथा ऐसे ही जनफ्रैंडली टूल आ रहे हैं, जिन से सरकारी बाबुओं को काम को रोकना मुश्किल होता है. हर महकमे का विजिलैंस विभाग भी है जहां शिकायत दर्ज होने पर उन्हें ऐक्शन लेना पड़ता है. फिर अब तो सैक्सुअल हैरासमैंट औन वर्कप्लेस जैसे कानून भी महिला फ्रैंडली हो रहे हैं.

कहीं भी कोई भी जोरजबरदस्ती या नम्रता से सेक्स की सीधे या छद्म मांग करे तो उस को मुंहतोड़ जवाब दें तथा कानूनी कार्यवाही करें. सहने और टालने से काम हो जाने पर नजरअंदाज करने से आप सिर्फ अपने को बचा पाती हैं. कानूनी ऐक्शन ले कर आप अपने जैसी कई महिलाओं को बचाती हैं और समाज में नारी गरिमा की मिसाल पेश करती हैं.

Sexting: बड़े काम के हैं सेक्सटिंग टिप्स

Sexting Tips in Hindi: हम टेबल पर, बिस्तर पर, वौशरूम में, सार्वजनिक जगहों पर, मूवी थिएटर में, डिनर टेबल के नीचे सभी जगह तो करते हैं शरारतभरी बात… है ना? पर हम फोन के इस्तेमाल की बात कर रहे हैं. भई, जब तकनीक आपके पास है तो इसका इस्तेमाल दिलों को वाइब्रेट करने के लिए क्यों न किया जाए? और एक समय हम उस जगह भी तो जाते थे-जब सेक्सटिंग (Sexting) को साइबर सेक्स (cyber Sex) के नाम से जाना जाता था, वो अस्त-व्यस्त से चैट रूम्स, जहां लोग औनलाइन (Online) बड़े ही व्यस्त नजर आते थे-तब हम एज/सेक्स/लोकेशन की भाषा में बात करते थे. हमें लगता है कि सेक्सटिंग कूल है, क्योंकि लोग इसे बार-बार पढ़ना चाहते हैं. पर सच्चाई ये भी है कि ये आसान और बहुत सुविधाजनक भी है. हम आपको इस कला के कुछ सामान्य नियमों का पालन करने कहेंगे.

साथी को जानें

क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ सेक्सटिंग कर रही हैं, जिसे जानती हैं और जिसपर भरोसा कर सकती हैं? तो थम्स अप, आगे बढ़ने के लिए. यदि आप उसे नहीं जानती हैं तो सावधानीपूर्वक आगे बढ़ें. व्यक्तिगत जानकारियां न दें और तस्वीरें भेजने से बचें. टेलेग्राम जैसे ऐप का इस्तेमाल करें, जो आपके और उनके, दोनों ही ओर के सेक्स्ट को ‘सेव’ ना करने का विकल्प देता है.

चैट-अप लाइन तय करें

रियल लाइफ के लिए पिक-अप लाइन्स होती हैं तो आपके औनलाइन वर्जन के लिए चैट-अप लाइन क्यों न हो? ऐसी लाइन का चुनाव करें, जो आपके लिए सही हो, जो सेक्स्ट-स्टार्टर की तरह काम करे. सामनेवाले व्यक्ति की इसपर मिली प्रतिक्रिया आपको बताएगी कि आपको रोमांटिक गीत गाने हैं या अपने लिए किसी दूसरे चौकलेट केक की तलाश करनी है. हां, यदि वे रात 11 बजे के बाद आपके साथ सेक्सटिंग कर रहे हैं तो फिर चाहे जो भी बातें हो रही हों-आप उनकी नजरों में आ चुकी हैं.

स्पष्ट रहें

केवल लिखे हुए शब्दों के माध्यम से आपको अस्पष्ट व सांकेतिक और स्पष्ट व ग्रैफिक होने की पतली-सी रेखा के बीच अंतर रखना है. थंब रूल ये है कि जितना हौट आपका ऐक्शन होगा, उतना ही मुश्किल होगा सेक्सटिंग को समाप्त कर पाना. आपका सेक्स-टेंशन ऐसा होना चाहिए, जो उन्हें फोन से चिपके रहने पर मजबूर कर दे. यहां इमोजीज का इस्तेमाल न करें. शब्द और वाक्य यहां आपके दोस्त बनेंगे, इमोजीज पर्याप्त नहीं हैं.

अजीबोगरीब अब्रीविएशन्स से बचें

कुछ अब्रीविएशन्स आपकी बातों को अंदाजा तो दे देते हैं, लेकिन लोगों को पसंद नहीं आते. प्रसन्नता जैसे मनोभावों को जताना कठिन होता है, पर एलओएल या एलएमओज से बचें.

वैज्ञानिकता न बघारें

अपने नारीत्व का विवरण देने के लिए क्लीनिकल टर्म्स का इस्तेमाल करने से बचें.

सेक्सटिंग के आंकड़े

33% युवा वयस्क (20-26) कभी न कभी सेक्स्ट भेज चुके होते हैं. जुलाई 2011 में हुए एक सर्वे में सामने आया कि सोशल नेटवर्किंग और डेटिंग साइट्स पर मौजूद दो तिहाई महिलाओं ने कभी न कभी सेक्स्ट किया है, इनकी तुलना में यहां मौजूद केवल आधे पुरुषों ने ही सेक्स्ट किया है.

महिलाएं (48%), पुरुषों (45%) से ज़्यादा सेक्स्ट करती हैं, कुछ सर्वेज़ का कहना है. महिलाओं की तुलना में पुरुष सेक्सटिंग की पहल ज़्यादा करते हैं. आंकड़े बताते हैं कि 60% सेक्स्ट उस साथी को भेजे जाते हैं, जिसके साथ महिला/पुरुष रिश्ते में हैं और 33% संभावित बॉयफ्रेंड्स या गर्लफ्रेंड्स को.

सिर्फ दम दिखाने के लिए नहीं होती सुहागरात!

Sex Tips in Hindi: इस रात का इंतजार हर युवा को होता है. लेकिन अगर कहा जाए कि हर किशोर को भी होता है तो भी यह कुछ गलत नहीं होगा. क्योंकि मनोविद कहते हैं 15 साल की होने के बाद लड़की और 16 साल के बाद लड़के, इस सबके बारे में कल्पनाशील ढंग से सोचने लगते हैं. सोचे भी क्यों न, आखिर इस रात को ‘गोल्डेन नाइट’ जो कहते हैं.इस रात में दो अजनबी हमेशा हमेशा के लिए एक हो जाते हैं. दो जिस्म एक जान हो जाते हैं. इस एक रात में न कोई पर्दा होता है, न दीवार. बत्तियां बुझी होती हैं, सांसें उफन रही होती हैं, फिजा में जिस्मानी गंध होती है और दिल की धड़कनों में तूफान आया होता है. गोल्डेन नाइट की यही खासियत है. हर कोई इस रात में अपनी पूरी जिंदगी जी लेना चाहता है. ताकि पूरी जिंदगी यह रात याद आने पर आपके चेहरे पर संतोष और धीमी सी मुस्कान लाती रहे. जब भी इसका जिक्र हो तो उम्र चाहे कोई भी हो चेहरे पर एक गुलाबी आभा खिल जाए.

यह रात सिर्फ भावनाओं के स्तर पर ही नहीं बल्कि बायोलाॅजिकल स्तर पर भी जीवन के लिए एक टर्निंग प्वाइंट होती है. इस रात के बाद लड़की, लड़की नहीं रहती महिला बन जाती है. एक औरत बनते ही उसकी अब तक की दुनिया पूरी तरह से बदल जाती है. रातोंरात जिस्म में कई किस्म की तब्दीलियां आ जाती हैं. इस सबकी नींव इसी रात पड़ती है.

दुनिया में शायद ही कोई ऐसा युवा हो, जो सामान्य हो और जिसके दिल में इस रात को लेकर हसीन ख्वाब न हो. लेकिन सुहागरात या गोल्डेन नाइट के मायने सिर्फ शारीरिक सम्बंध तक ही सीमित नहीं होता. इस रात को जिस्म भी बदल जाता है, मन भी बदल जाता है और मस्तिष्क भी. विशेषज्ञ कहते हैं क्योंकि सेक्स महज दो टांगों के बीच की जोर अजमाइश भर नहीं है. यह दो कानों के बीच की वह गुनगुनाहट है, जिसका असर हमारी पूरी जिंदगी में रहता है. अगर यह रात लय में कटती है, तो जिंदगी तरन्नुम में रहती है.

अगर यह डर, दहशत और एक दूसरे पर हावी होने में गुजरती है तो जिंदगी नर्क बन जाती है. मतलब साफ है कि पहली रात जिस्म के नहीं आत्मा के मिलन की होती है. दो आत्माओं के बीच सेक्स की रात होती है और अगर दो आत्माएं इस रात एक दूसरे से तृप्त हो जाती है तो यह तृप्ति ताउम्र सुकून देती है.

इस रात में हमें एक दूसरे के जिस्म में ही नहीं मन और आत्मा में भी प्रवेश करने और छा जाने की कोशिश होनी चाहिए. क्योंकि दिल से दिल के मिलन की यह सबसे नाजुक रात होती है. निश्चित रूप से हमें इस रात के पहले बहुत कुछ पता होना चाहिए. लेकिन यह जानकारी सिर्फ सेक्स रोगों के संक्रमण से बचाव भर की नहीं होनी चाहिए. यह जानकारी जिंदगी को कितनी स्मूथ बना सकें इसकी भी होनी चाहिए. अगर इस रात हमने एक दूसरे को दिल की गहराईयों में उतरकर आजमा लिया तो फिर जीवन की राहों में कभी रेगिस्तान नहीं आयेगा. जिंदगी का यह सफर हमेशा सुनहरे नखलिस्तान से होकर गुजरेगा.

अगर हमने इस रात सिर्फ बिस्तर में जिस्म भर की जोर अजमाइश की और फिर अजनबियों की तरह सो गये तो इस रात का यह मिलन हमारी पूरी जिंदगी को रुखा और बेजान बना देगा.

सुहागरात हर किसी की ज़िंदगी का सबसे हसीन सपना होता है. इस सपने को देखने की इजाजत हर उस शख्स को है जो प्राकृतिक रूप से स्वस्थ और पूर्ण है. सुहागरात शब्द में इतना आकर्षण है कि युवक-युवतियां इसका नाम सुनते ही या इसकी याद आते ही रोमांटिक हो जाते हैं. उनका मन आनंद की हिलोरें लेने लगता है. इसकी कल्पना से ये अलौकिक सुख के सागर में डूब जाते हैं. हनीमून या गोल्डेन नाइट का हमारी पूरी जिंदगी में असर पड़ता है. इस रात के जरिये ही दो अपरिचित विपरीत लिंगी एक दूसरे के सही मायनों में होते हैं.

संभोग से सिर्फ भावनात्मक रूप से ही नहीं बल्कि जैविक रूप से भी एक दूसरे के प्रति आकर्षण और प्रेम में बढ़ोत्तरी होती है. इस रात के बाद ही पता चलता है कि वाकई दुनिया में स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक होते हैं.

हमें भावनाओं के समंदर में गोते लगाते हुए इस हकीकत से भी रूबरू रहना चाहिए कि यदि पति पत्नी दोनो में शारीरिक रूप से कोई कमी है तो लाख पाखंड के बावजूद वह आत्मीयता, वह लगाव नहीं पैदा होता जो दो स्वस्थ जिस्मों का आपस में होता है. इसलिए शादी में सेहत की भी तैयारी करनी चाहिए. सिर्फ सजने संवरने पर ध्यान देने से काम नहीं चलेगा, शादी के कई महीनों पहले ही लड़के और लड़की दोनो को ही अपने शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर सजग रहना चाहिए ताकि सुहागरात वाले दिन किसी अक्वर्ड की स्थिति न पैदा हो. क्योंकि अगर सुहागरात वाले दिन अगर लड़का, लड़की की जिस्मानी इच्छा पूरी नहीं कर पाता यानी वह उसे संतुष्ट नहीं कर पाता तो लड़की इस स्थिति से आमतौर पर कभी समझौता नहीं करती. मनोविद कहते हैं अगर लड़की कुछ नहीं भी कहती तो भी उसके मन में एक तूफान उठ चुका होता है.

बेहतर है पहले से ही इस सबकी तैयारी रहे. हमें स्वीकारना ही होगा कि शरीर के दूसरे अंगों की तरह सेक्सुअल अंगों की भी समस्याओं का वैसे ही इलाज होता है. अगर ऐसी परेशानियों को शुरु से ही ध्यान न दिया जाए तो जल्द ही ये परेशानियां नासूर बन जाती हैं. एक मशहूर सेक्सोलाॅजिस्ट डाॅ. प्रकाश कोठारी कहते हैं कि युवा दंपति हनीमून के पहले थोड़ी सी सावधानी बरतें तो हनीमून के दौरान उसे किसी तरह की परेशानी से दो चार नहीं होना पड़ेगा, न शारीरिक, न मानसिक.

सैक्स से जुड़ी बात करते ही शर्मिंदगी से मुंह न बिचकाएं

Sex News in Hindi: कुदरत ने हम इनसानों के भीतर सैक्स (Sex) को ले कर जबरदस्त इमोशन दिए हैं. ये इमोशन इतने मजबूत हैं कि इनसान इन के बारे में सोचे बगैर नहीं रह सकता. यही वजह है कि हम अपनी सैक्स इच्छाओं को जितना दबाते चले जाते हैं या बगैर चर्चा के सही दिशा में आगे नहीं बढ़ने देते तो यह इच्छा उतने ही गलत व ओछे तरीकों से हमारे सामने आ खड़ी होती है. सावधान, यह मुद्दा हमारी सोच से थोड़ा अटपटा है, तो पाठकों को सुझाव है कि मैगजीन (Magazine) के पन्ने को हलका सा अंदर की तरफ मोड़ लें, ताकि अगलबगल का कोई इनसान इसे पढ़ते हुए आप को न देख ले. वह क्या है न कि सैक्स से जुड़ी बातें कहीं आप को शर्मिंदा न कर दें.

माफ कीजिएगा, ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है कि भारत में सैक्स के बारे में हर कोई अपने भीतर इच्छा तो पालता है, लेकिन सैक्स से जुड़ी बात करते ही शर्मिंदगी से मुंह बिचकाते हुए गरदन  झुका लेता है.

खैर, दिल्ली के अशोक नगर में रहने वाले जोड़े 32 साला विक्रम और  29 साला मालती की शादी को तकरीबन 8 साल बीत चुके हैं. दोनों की साल 2012 में अरेंज मैरिज हुई थी. अच्छी बात यह है कि दोनों ने एकदूसरे को पसंद किया था.

शादी के पहले साल में मालती ने एक बेटे ने जन्म दिया और एक साल होल्ड कर के अगले साल एक बेटी को. फिलहाल उन का एक भरापूरा परिवार है और वे अब आगे और बच्चे पैदा करने के बारे में नहीं सोच रहे हैं. लेकिन इस में जरूरी यह है कि उन्होंने अपने जिस्मानी रिश्ते को बच्चा पैदा करने तक खत्म नहीं किया. वे उस के बाद भी नियमित रूप से सैक्स करते रहे.

इस जोड़े ने इन 8 सालों में न जाने कितनी बार एकदूसरे की गरमाहट भरी उस छुअन को महसूस किया होगा, जो पतिपत्नी की डोर को बनाए रखने में जरूरी होती है. कितनी ही बार उन्होंने एकदूसरे के जिस्मानी सुख में गोते लगाते हुए चरमसुख का मजा लिया होगा.

जाहिर है कि जितनी बार भी उन्होंने आपसी संबंध बनाए होंगे, उन में से 99.9 फीसदी वजह शरीर का चरमसुख हासिल करना रहा होगा यानी कहा जा सकता है कि किसी मर्दऔरत के लिए सैक्स सिर्फ उन के बच्चे पैदा होने पर निर्भर नहीं करता.

लेकिन मसला यह है कि भारत में सैक्स बहुत ज्यादा निजी और गुप्त रखा गया है. यह इतना निजी होता है कि  8 साल से हर रोज एकदूसरे के साथ हमबिस्तर होने वाले विक्रम और मालती सरीखे जोड़े तक भी खुले में एकदूसरे का हाथ पकड़ने, एकदूसरे के साथ बैठने तक में हिचक जाते हैं.

वे एकदूसरे का हाथ पकड़ने को सैक्स के दायरे में रख देते हैं, क्योंकि समाज और खुद उन की नजर में सैक्स गुप्त है, तो एकदूसरे को खुले में किसी भी तरह छूना गलत है. उन को एकदूसरे को निहारना, गाल पर चुंबन लेना, तारीफ करना, सहलाना और यहां तक कि करीब आना बेहूदा लगने लगता है.

यह मसला सिर्फ कुछ लोगों का नहीं, हर घर में इस पर यही भाव आम है. खुद मेरे परिवार में ऐसा कोई पल आज तक मेरे जेहन में नहीं, जहां मेरे पिता ने मेरी माताजी का हाथ हमारे सामने थामा हो या गाल तो दूर की बात माथा भी चूमा हो. हालत तो यह है कि आज भी जब वे कहीं बाहर एकदूसरे के साथ कहीं निकलते भी हैं, तो उन में भारी असहजता होती है. यही वजह है कि मेरे पिताजी मेरी माताजी से 10 कदम आगे चलते हैं. वे पिछले 30 सालों से ऐसी ही शादीशुदा जिंदगी जीते आ रहे हैं?

सैक्स पर चर्चा है मना

भारत में ‘सैक्स’ व ‘सैक्स पर चर्चा’ को निजी रखा जाता है. यहां तक कि इस के गुप्त होने पर गर्व भी महसूस किया जाता है. इसे कथित महान संस्कृति से जोड़ दिया जाता है.

हम भारतीयों के मुताबिक सैक्स पर चर्चा करने से हमारी संस्कृति, समाज और नई पौध के नौजवानों पर इस का गलत असर पड़ता है.

भारत में सैक्स का मतलब गंदा और शर्मिंदा होने से है. ज्यादातर भारतीय अपनी चर्चा इस विषय में बहुत ही गुप्त रखते हैं. उन्हें डर होता है कि कहीं इस वजह से उन को चरित्रहीन के कैटिगरी में न डाल दिया जाए, खासकर औरतों के लिए यह शब्द ही बेशर्म है.

औरतों को इस बारे में ऐक्स्ट्रा केयरफुल रहना सिखाया जाता है. इस की ट्रेनिंग बचपन से ही घर में मां द्वारा देनी शुरू हो जाती है. उन्हें सम झाया जाता है कि उन के निजी अंग पूरे परिवार की इज्जत हैं, उन्हें हर हाल में शुद्ध व पवित्र रखने की खास जरूरत है, चाहे जान ही क्यों न चली जाए.

एक अच्छी औरत या लड़की वही मानी जाती है, जो सैक्स और इस से संबंधी चर्चा से खुद को दूर रखे. यहां तक कि वे इन विषयों के बारे में सोचें तक नहीं. अगर वे कभी अपने दोस्तों में भी सैक्स संबंधी विषयों पर चर्चा करती हैं, तो उन के चरित्र पर लांछन लगने में देर नहीं लगती.

हालांकि, भारत में सैक्स को थोड़ीबहुत जगह कहीं मिलती भी है, तो वह शादी के बाद है, लेकिन उस के बावजूद भी यह इतना निजी है कि पतिपत्नी इस पर की गई चर्चा को बंद कमरों के बाहर ही नहीं आने देते. बहुत बार वे एकदूसरे से बेहतर सैक्स की इच्छा जाहिर करने से भी कतराते हैं और नए प्रयोग करने से  िझ झकते हैं. इस से खुद उन के जीवन में नीरसता आ जाती है, नयापन खत्म हो जाता है.

मर्द तो जैसेतैसे अपनी जरूरत पूरी कर लेते हैं, लेकिन इस का बड़ा खमियाजा औरतों को भुगतना पड़ता है. वे मर्द के सामने सिर्फ उस की इच्छा पूरी करने में रह जाती हैं और खुद की इच्छाएं अपने सीने में ही दबा लेती हैं.

इस का असर सिर्फ पतिपत्नी पर ही नहीं, बल्कि उन के बच्चों पर भी पड़ता है. मातापिता, जो अपने बच्चों को किशोर उम्र से ही सैक्स ऐजूकेशन के जरीए बेहतर शिक्षा दे सकते हैं, वे ऐसी चर्चा घर में बच्चों के साथ करने में  िझ झकते हैं. यहां तक कि यह सब उन के लिए अनैतिकता और फूहड़ता के दायरे में आ जाता है. इस वजह से बच्चे इस के बारे में जहांतहां से गलत जानकारी हासिल कर लेते हैं. ये अधकचरी जानकारी उन की सैक्स लाइफ को तो खराब करता ही है, साथ ही बेहतर इनसान बनने के भी आड़े आ सकता है.

सवाल उठता है कि आखिर शादी में ढोलनगाड़े, बैंडबाजा, गुलाब के फूलों से सजे सुहागरात के बिस्तर पर चरमसुख लेने के बावजूद भारतीय लोग सैक्स से जुड़ी चर्चाओं से इतना क्यों बचते हैं?

धर्म यही सिखाता

दुनिया की अलगअलग धर्म व संस्कृतियों में अगर किसी विषय के बारे में सब से ज्यादा लिखा और सम झाया गया है, तो वह यौनिकता को नियंत्रित किए जाने को ले कर है.

लंबे अंतराल के बाद आधुनिक समय में यूरोप के देशों में भले ही इस विषय में सकारात्मक बदलाव आए हों, लेकिन दक्षिण एशिया और मध्यपूर्व देशों में रूढि़वाद अभी भी काफी हावी है.

यही वजह है कि इस विषय पर कोई भी तर्क दिए जाने को ले कर तमाम रूढि़वादियों को यह विषय हमेशा वैस्टर्न संस्कृति का हिस्सा लगे, जबकि वे यह कह कर खजुराहो और कामसूत्र के अपने ही इतिहास का गला घोंटने का काम करते रहे हैं.

हिंदू समाज में तमाम धर्मग्रंथों और धर्म के ठेकेदारों ने मर्दऔरत के संबंधों पर नियमकानून और अनेक रोकटोक की हैं. उन्हें ‘किस से सैक्स करना है’, ‘कब करना है’ और ‘कैसे करना है’ कई तरीकों से कंट्रोल किया गया.

जाहिर है, सैक्स दो लोगों के बीच आपसी सम झदारी और मजा लेने का विषय है. इस में दोनों का खुल कर एकदूसरे से मिलन जरूरी है, लेकिन धर्म ने इस मामले में सिर्फ मर्द को छूट दी है कि वह औरत से जिस्मानी हसरत पूरी कर ले. औरत की तमाम इच्छाएं दबा दी गईं. उन के उठनेबैठने, बोलनेहंसने, कपड़ेलत्ते और घर में कैद रखने से यौन इच्छा को नियंत्रित किया गया.

ऐसा तकरीबन सभी धर्मों के पोंगापंथियों द्वारा स्थापित करने की कोशिश की गई. यहां तक कि आज भी जहांजहां धार्मिक कट्टरपन हावी है, वहां सैक्स संबंधी चर्चाओं को हद से ज्यादा दबाने की बात की जाती रही है.

ऐसे में औरतें खुल कर अपनी बात रखने से हिचकिचाती हैं. अपनी यौन जरूरतों को कह नहीं पातीं. पति चाहे कैसा भी हो, उसी के मुताबिक खुश रहना पड़ता है. क्या आज यह सामने नहीं है कि मर्द सैक्स के लिए कहीं भी हामी भरने की आजादी रख लेता है, लेकिन औरत को इस तरह के फैसले लेने के लिए खुद को कई तरह से सम झाना और तैयार करना होता है?

ऐसे में दोनों की आपसी सम झदारी, जो खुल कर इस विषय को सही आधार दे सकती है, वहां धर्म की मोटी दीवार क्या इस पर आड़े आने का काम नहीं करती है?

रहनुमा ही बुझेबुझे

भारत में सैक्स ऐसा विषय है, जिस पर चर्चा हमारे द्वारा चुने गए नेता प्रतिनिधि तक नहीं करना चाहते. यहां तक कि भारतीय समाज में उन नेताओं की ही ज्यादा तूती बोलती है या लोगों द्वारा उन नेताओं पर ज्यादा भरोसा किया जाता है, जिन्होंने खुद को ब्रह्मचारी के तौर पर प्रचारित किया हो.

लोगों का मानना रहता है कि उक्त नेता की अगर पत्नी या परिवार नहीं तो वह तमाम तरह की ‘मोहमाया’ से दूर है और वह जनता की सच्ची सेवा कर सकता है.

एक वजह यह भी है कि आज इस तरह के नेताओं, जो खुद को मोहमाया से दूर और साधुसंत बता रहे हैं, पर लोग जल्दी से विश्वास कर लेते हैं. ऐसे में भारत में किसी नेता का खुद को सैक्स लाइफ से अलग दिखाना उस की मजबूरी भी बन जाती है और उस के नेता बनने की योग्यता भी, फिर चाहे वह भीतरखाने में कुछ भी कर रहा हो.

अमेरिका में जहां राष्ट्रपति की वाइफ को ससम्मान ‘फर्स्ट लेडी’ के तौर पर पुकारा जाता है, उन के निजी जीवन को स्वीकृति दी जाती है, वहीं हमारे देश में प्रधानमंत्री से ले कर तमाम नेता अपनी फैमिली को चर्चाओं से दूर रखने की पूरी कोशिश में जुटे रहते हैं.

यह सिर्फ संयोग नहीं हो सकता कि महात्मा गांधी से ले कर नरेंद्र मोदी तक कई नामी बड़े नेता अपने निजी जीवन के त्याग के चलते ज्यादा चर्चित रहे. वहीं अगर कोई नेता दूसरी शादी कर ले तो वह इस कारण ही आलोचना, लांछन का शिकार हो जाता है यानी कुलमिला कर समाज को अपने नीतिनियमों और विचारों से चलाने वाले नेता भी इस विषय में या तो रूढि़वादी होते हैं या असहज हो जाते हैं या फिर वे विचारों से खुले भी हैं, जो तमाम दबाव के चलते सैक्स संबंधी विषयों को हाथ लगाने से कतराते हैं.

यह इस बात से सम झा जा सकता है कि लौकडाउन के दौरान जहां यूरोप के कुछ देश कपल्स व लवर्स के मिलने के लिए स्पैशल परमिट दे रहे थे, वहीं इन विषयों पर हमारे देश के नेताओं द्वारा सोचना तो दूर, कोई सोच ले तो उसे अधर्मी बता कर विरोध जरूर हो जाता.

बात करना है जरूरी

भारत में बच्चा पैदा होते ही भगवान या अल्लाह की देन वाले वाक्यों ने तो मांबाप का सारा क्रेडिट ही खा लिया है. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि देश में 130 करोड़ की आबादी तो सिर्फ भगवान का नाम जपतेजपते ही पैदा हुई है.

आज भी सैक्स पर बात करते हुए हमारी ज्यादातर आबादी को ऐसी शर्म महसूस हो जाती है मानो यह सैक्स दूसरे ग्रह का विषय है, जिस का उन की जिंदगी से कोई लेनादेना नहीं. सैक्स से संबंधित तमाम सामग्रियां तक भी हमारे लिए किसी अनबु झी पहेलियों सरीखी लगती हैं.

किसी शख्स की जेब में अगर कंडोम पाया जाता है, तो वह उस के लिए शर्मिंदगी का विषय बन जाता है मानो कंडोम पास में होना अपराध हो, जबकि सोचा जाए तो यह सब से जरूरी सामग्री में से एक है. फिर वे सारी चीजें जैसे अंडरवियर, ब्रा, पैंटी, इमर्जैंसी पिल्स, सैनेटरी पैड सबकुछ हमारे लिए अजूबा चीजें बन जाती हैं.

किंतु हकीकत यह है कि भारत इस समय पूरी दुनिया में सब से ज्यादा पोर्न देखने वाला देश है. भारत में आमतौर पर 70 फीसदी इंटरनैट ब्राउजिंग पोर्न कंटैंट के लिए होती है खासकर एंड्रौयड फोन के आने के बाद भारत में तमाम रोकटोक और पाबंदियों के बावजूद पोर्न की खपत काफी बढ़ गई है. ऐसे में यह तो कहीं से नहीं लगता है कि हम लोग सैक्स नहीं चाहते, बल्कि सैक्स को ले कर सामने आए आंकड़े हैरान करने वाले हैं. लौकडाउन के दौरान भारत में सैक्स टौयज में 65 फीसदी की बढ़ोतरी हुई.

सच तो यही है कि हम भारतीय बाद में हैं, पहले इनसान हैं. कुदरत ने हम इनसानों के भीतर सैक्स को ले कर जबरदस्त इमोशन दिए हैं. ये इमोशन इतने मजबूत हैं कि सैक्स के बारे में सोचे बगैर हम नहीं रह सकते.

यही वजह है कि हम यौन इच्छाओं को जितना दबाते चले जाते हैं या बगैर चर्चा के सही दिशा में आगे नहीं बढ़ने देते, तो ये विचार उतने ही गलत व भौंड़े तरीकों से हमारे सामने आ खड़े होते हैं. फिर इस का अंजाम ‘बाल यौन शौषण’, ‘महिला छेड़छाड़’, ‘क्रूर बलात्कार’, ‘महिला असुरक्षा’ जैसे अपराधों के तौर पर बांहें फैला कर सामने दिखने लगते हैं, जो भारत में काफी आम हो चले हैं.

सैक्स संबंधी विषयों को चर्चा में न ला कर हम खुद के लिए दोहरापन भरे हैं. एक तरफ हमारे दिमाग में अधिकाधिक यौन इच्छाएं पलती रहती हैं, वहीं दूसरी तरफ हम इसे अधिकाधिक दबाते चले जाते हैं. यही दोहरापन इनसान की भावनाओं को कुंठित करता है.

सैक्स को ले कर गलत व आधीअधूरी जानकारी से खुद को अक्षम सम झने वाले मानसिक बीमारी से घिरने लगते हैं. ऐसे में गुप्त समस्याओं का इलाज करने वालों की फौज तो बढ़ती रही है, लेकिन इलाज के चक्कर में उन्हें दरदर भटकना ही पड़ता है. यह भी हमारे देश की हकीकत है कि सैक्स की जानकारी की कमी में भारत लगातार वर्ल्ड फोरम पर एचआईवी एड्स के मामलों में ऊपर की ओर अग्रसर है. भारत में एड्स से होने वाली मौतों का भी आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है.

जरूरी है कि हमें सैक्स को ले कर अपने उसूलों को फिर से ताजा करने की जरूरत है. रूढि़वाद बनाम आधुनिकता के इस संतुलन में थोड़ा और अधिक आधुनिक होने की तरफ बढ़ना चाहिए और सैक्स की चर्चा को वर्तमान के समय के मुताबिक अधिक अनुकूल बनाने की जरूरत है, वरना इस से जुड़ी गलत धारणाओं, अपराधों और पाखंडों को खत्म नहीं किया जा सकेगा.

सैक्स गेम : नाजुक पलों को ऐसे जीएं

Sex News in Hindi: हर कोई बिस्तर पर अपने साथी के साथ मौजमस्ती करना चाहता है. लेकिन समय के साथसाथ लोगों का जोश ठंडा होने लगता है और मौजमस्ती गायब सी हो जाती है. पर क्यों? इस सवाल की तह में जाएं तो सैक्स के शुरुआती दौर में लोग जो जोशीला अंदाज दिखाते हैं, बाद में उस की हवा निकल जाती है और पार्टनर से दूरियां बनाने को मजबूर कर देती है या सैक्स संबंध (Relation) को उबाऊ बनाती है.  इस सब से कैसे निकलें और अपने रोमांस पार्टनर(Romance Partner) के साथ नए अंदाज में सैक्स के आखिरी पलों में पूरी तरह मौजमस्ती कैसे करें, इस के लिए कुछ खास बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है, जैसे :

करें कुछ जरूरी बदलाव

शुरुआती प्यार का दौर बड़ा नाजुक होता है, जो कुछ समय के बाद कठोर होने लगता है. ऐसा रोजाना एक ही अंदाज से एक ही जगह पर, एक ही स्टाइल के साथ सैक्स करने के चलते होता है. अपने पार्टनर को बदलने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता, लेकिन पार्टनर के साथ मजा लेने के लिए सैक्स करने का अंदाज जरूर बदला जा सकता है, जो मस्ती से भरपूर, जोशीला और पार्टनर को मस्त कर देने वाला होना चाहिए.

रखें याद पहली मुलाकात

आप जब भी पहली बार एकदूसरे से मिले होंगे, तो आप की बातें भी कुछ अलग ही हुई होंगी. कोई ऐसी बात, जो आप ने अपने पार्टनर से कही होगी और वह मस्ती से हंस पड़ी होगी या कुछ इसी तरह की बातें, जिस ने आप को अपने पार्टनर के बारे में ज्यादा जानने का मौका दिया होगा. उसे याद कर के आप हार रात को सुहागरात की तरह खूबसूरत मना सकते हैं.

बदलाव को समझें

आप का मूड नहीं है और आप की पार्टनर जोशीले अंदाज में आप पर टूट पड़ती है, तो आप उस वक्त कभी सीधे मना मत कहें. आप के मना करने का तरीका अलग होना चाहिए. आप उसे प्यार से गले लगा कर समझा सकते हैं, ‘‘जानेमन, आज नहीं.’’

अगर फिर भी वह नहीं मानती है, तो उस का मन रखने के लिए जोश के साथ संबंध बना लें, क्योंकि इस तरह के नाजुक पलों में पार्टनर के रूठने से आप के संबंध पर बुरा असर पड़ सकता है.

तारीफ के बांधें पुल

आप जिस के साथ रिलेशनशिप में हैं, उस के लिए आप की हर बात फूलों के समान नाजुक होती है, इसलिए आप अपने पार्टनर की जम कर वाहवाही करें और जो भी बोलें उसे पहले से तैयार रखें, क्योंकि आप के मुंह से अगर मजाक में भी पार्टनर की बुराई निकलती है, तो काफी मुसीबत हो सकती है. इस के उलट जब आप अपने पार्टनर की तारीफ करते हैं, तो उस का उखड़ा हुआ मूड भी ठीक हो जाएगा.

सैक्स गेम को दें बढ़ावा

अगर आप का मन सैक्स करने से ऊबने लगा है और आप कुछ नया चाहते हो, तो उस हालत में आप सैक्स से जुड़े गेम खेल सकते हो, जैसे कि आप शतरंज खेलो और शर्त रखो कि हारने वाला पार्टनर जीतने वाले पार्टनर के कहे मुताबिक चुम्मा देगा. इस तरह के खेल सैक्स के प्रति आप को नया जोश तो देते ही हैं, साथ ही आपसी प्यार भी बढ़ता है.

प्यार के लिए नई चुनें जगह

अपने पार्टनर के साथ रोजाना एक ही बिस्तर पर और एक ही तरह के माहौल में सैक्स संबंध बनाने से थोड़ा उबाऊ माहौल बन जाता है.

आप को हर बार यह कोशिश करनी चाहिए कि साल में कम से कम 2 बार किसी जगह घूमने जाएं और नए माहौल में सैक्स संबंध बनाएं. इस से आप में नया जोश आ जाएगा.

‘स्लीप सेक्स’ बर्बाद न कर दे आपकी जिंदगी

स्लीप सेक्स को मेडिकल भाषा में सेक्सोनोमिया भी कहते हैं जो कि एक सेक्सुअल डिसऑर्डर है. इस बीमारी में इंसान सोते हुए सेक्स करता है. आपको याद होगा कि आपने 2014 में एक स्वीडिश घटना की एक न्यूज पढ़ी या सुनी होगी. जिसमें एक स्वीडिश आदमी को 2014 में रेप के आरोप से बाइज्जत बरी कर दिया गया था. क्योंकि उसके वकील ने कोर्ट में प्रूफ कर दिया था कि वो उस समय नींद में था और उसका दिमाग क्या कर रहा है इसके बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी. उसके वकील ने कोर्ट को बताया था कि वह इंसान सेक्सोनोमिया का शिकार है और उसने नींद में रेप किया है, इसलिए वह निर्दोष है. जिसके बाद इस घटना की चर्चा पूरी दुनिया में होने लगी.

जहां इस केस के बाद सेक्सोनोमिया पर रिसर्च होने लगी वहीं एक्टिविस्ट इस फैसले का विरोध करने लगे. उनका कहना था कि इससे मुजरिमों को रेप के जुर्म से बचने का आसान वैज्ञानिक रास्ता मिल जाएगा जो एक हद तक सच भी है. आज सेक्सोनोमिया के कारण कई लोगों की वैवाहिक जिंदगी तो खराब हो चुकी है. लेकिन फिर भी भारत में इस पर शायद ही चर्चा हो. तो आइए आज इस लेख के जरिए इस पर चर्चा करना शुरू करते हैं और पता करते हैं कि क्या है सेक्सोनोमिया और कैसे एक इंसान करता है स्लीप सेक्स.

स्लीप सेक्स या सेक्सोनोमिया

स्लीप सेक्स एक भयंकर बीमारी है जो मरीजों के साथ मरीजों के आसपास रहने वालों की जिंदगी बर्बाद कर देती है. जैसे की नींद में चलने की बीमारी होती है वैसे ही ये नींद में सेक्स करने की बीमारी है. इसमें इंसान नींद में सेक्स करने लगता है. कई बार स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि इंसान रेप तक कर देता है और अगली सुबह जब उठता है तो उसे कुछ याद भी नहीं रहता.

सेक्सोनोमिया के एक ऐसे ही मामले के बारे में मिनेसोटा विश्वविद्यालय में प्रफेसर, एमडी, न्यूरोलॉजिस्ट मिशेल क्रेमर बोर्नेमन बताते हैं जिसमें एक वैवाहिक दंपति के सो जाने के बाद पति नींद में मैस्टर्बेट करने लगता था. शुरू में पत्नी ने इसे नजरअंदाज किया लेकिन जब ये ज्यादा हो गया तो दोनों ने डॉक्टर से बात की. डॉक्टर से मिलने के बाद पता चला कि वो ऐसा सेक्सुअल डिसऑर्डर से ग्रस्त होने के कारण करते हैं, जिसे स्लीप सेक्स या सेक्सोम्निया भी कहते हैं.

इस डिसऑर्डर पर 1996 में टोरंटो विश्वविद्यालय के डॉ. कॉलिन शापिरो और डॉ. निक ने ओटावा विश्वविद्यालय से डॉ. पॉल के साथ मिलकर कनाडा में इस पर एक रिसर्च पेपर तैयार किया. इस रिसर्च पेपर के पब्लिश होने के बाद दुनिया भर में इस पर चर्चा होनी शुरू हो गई. इसका नुकसान ये रहा कि इसके बाद से कई आरोपियों के वकील अपने मुवक्किल को रेप के केस से बचाने के लिए इस डिसऑर्डर का सहारा लेने लगे.

पेरोसोम्निया की स्थिति

स्लीप सेक्स असल में एक पेरोसोम्निया की स्थिति है जिसमें मरीज को ये नहीं पता होता कि वो जगा है या सोया हुआ है. मरीज का दिमाग कन्फ्यूज रहता है. मरीज को देखकर कोई नहीं कह सकता की वो सोया हुआ है. जबकि सच्चाई ये होती है कि मरीज को पता नहीं होता कि वो क्या कर रहा है.

अब भी इस पर दुनिया के शोधकर्ता रिसर्च कर रहे हैं. शोधकर्ता इस बीमारी का कारण पता नहीं कर पा रहे हैं. लेकिन डॉक्टरों का मानना है कि जिन लोगों को नींद में चलने और बोलने की बीमारी है उनमें सेक्सोनोमिया होने की ज्यादा संभावना है.

क्या आपको भी सेक्स के समय दर्द होता है?

अंजली के पति अजय को अधिकतर अपने व्यवसाय के सिलसिले में दौरे पर रहना पड़ता है. जब भी वे दौरे से लौटने वाले होते हैं, अंजली को खुशी के बजाय घबराहट होने लगती है, क्योंकि लंबे अंतराल के बाद सेक्स के समय उसे दर्द होता है. इस कारण वह इस से बचना चाहती है. इस मानसिक तनाव के कारण वह अपनी दिनचर्या में भी चिड़चिड़ी होती जा रही है. अजय भी परेशान है कि आखिर क्या वजह है अंजली के बहानों की. क्यों वह दूर होती जा रही है या मेरे शहर से बाहर रहने पर कोई और आ गया है उस के संपर्क में? यदि शारीरिक संबंधों के समय दर्द की शिकायत बनी रही तो दोनों ही इस सुख से वंचित रहेंगे.

दर्द का प्रमुख कारण स्त्री का उत्तेजित न होना हो सकता है, जब वह उत्तेजित हो जाती है तो रक्त का प्रवाह तेज होता है, सांसों की गति तीव्र हो जाती है और उस के अंग में गीलापन आ जाता है. मार्ग लचीला हो जाता है, संबंध आसानी से बन जाता है.

फोरप्ले जरूरी

बगैर फोरप्ले के संबंध बनाना आमतौर पर महिलाओं के लिए पीड़ादायक होता है. फोरप्ले से संबंध की अवधि व आनंद दोनों ही बढ़ जाते हैं. महिलाओं को संबंध के लिए शारीरिक रूप से तैयार होने में थोड़ा समय लगता है. उसे इसे सामान्य बात मानते हुए किसी दवा आदि लेने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. यह देखा गया है कि कुछ दवाएं महिलाओं के गीलेपन में रुकावट पैदा करती हैं. इसीलिए सेक्स को भी एक आम खेल की तरह ही लेना चाहिए. जिस तरह खिलाड़ी खेल शुरू करने से पहले अपने शरीर में चुस्ती व गरमी लाने के लिए अभ्यास करते हैं उसी तरह से वार्मअप अभ्यास करते हुए फोरप्ले की शुरुआत करनी चाहिए. पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर इस का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. महिलाओं के शरीर में कुछ बिंदु ऐसे होते हैं जिन्हें हाथों या होंठों के स्पर्श से स्पंदित किया जा सकता है. हलके स्पर्श से सहला कर उन की भावनाओं को जाग्रत किया जा सकता है.

अगर पर्याप्त फोरप्ले के बावजूद गीलापन न हो, उस स्थिति में चिकनाई वाली क्रीम इस्तेमाल की जा सकती है, जो एक प्रकार की जैली होती है. इस को लगाने के बाद कंडोम का प्रयोग करना चाहिए. कुछ कंडोम ऐसे होते हैं, जिन के बाहरी हिस्से में चिकना पदार्थ लगा होता है. इस से पुरुष का अंग आसानी से प्रवेश हो जाता है.

चिकनाईयुक्त कंडोम

यहां यह सावधानी बरतने योग्य बात है कि यदि सामान्य कंडोम प्रयोग किया जा रहा हो तो उस स्थिति में तेल आधारित क्रीम का प्रयोग न करें, क्योंकि तेल कंडोम में इस्तेमाल की गई रबड़ को कमजोर बना देता है व संबंध के दौरान कंडोम के फट जाने की संभावना बनी रहती है. कई बार कंडोम का प्रयोग करने से योनि में दर्द होता है. जलन या खुजली होने लगती है. इस का प्रमुख कारण कंडोम में प्रयोग होने वाली रबड़ से एलर्जी होना हो सकता है. पुरुषों के ज्यादातर कंडोम रबड़ या लैटेक्स के बने होते हैं. आमतौर पर 1 से 2% महिलाओं को इस से एलर्जी होती है. वे इस के संपर्क में आने पर बेचैनी, दिल घबराना यहां तक कि सांस रुकने तक की तकलीफ महसूस करती हैं. अत: यदि पति द्वारा इस्तेमाल कंडोम से ये लक्षण दिखाई पड़ें तो बेहतर है उन्हें अपने कंडोम का ब्रांड बदलने को कहें. इस का कारण कंडोम के ऊपर शुक्राणुओं को समाप्त करने के लिए जो रसायन लगाया जाता है, वह भी एलर्जी का कारण हो सकता है. सामान्य कंडोम का प्रयोग कर के भी इस एलर्जी से नजात पाई जा सकती है. इस के बावजूद यदि समस्या बनी रहे तो पुरुष कंडोम की जगह पत्नी स्वयं महिलाओं के लिए बनाए गए कंडोम का प्रयोग करे.

महिलाओं के कंडोम रबड़ की जगह पोलीयूरेथेन के बने होते हैं. वैसे बाजार में पुरुषों के लिए पोलीयूरेथेन कंडोम भी उपलब्ध हैं. इन के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि यह आम रबड़ के बने कंडोम की तुलना में कमजोर होते हैं, संबंध के दौरान इन के फटने की आशंका बनी रहती है. यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि संबंध के दौरान कंडोम के प्रयोग से अनेक लाभ होते हैं. इसके कारण अनचाहे गर्भ से छुटकारा मिलता ही है, रोगों के संक्रमण से भी नजात मिल जाती है.

आखिर क्यों घातक है खुद को बिस्तर पर कमतर समझना?

एक नहीं, बल्कि अनेक बातों से यह साफ है कि सैक्स करने के दौरान शरीर से ज्यादा भावनाएं असरकारी होती हैं, क्योंकि सैक्स भले शरीर के जरीए होता हो, लेकिन उसे तैयार मन ही करता है, भावनाएं करती हैं, इसलिए इस काम में शरीर से ज्यादा मन और भावनाओं की जरूरत होती है.

जब हम किसी बात को ले कर खुद को कमतर आंकने लगते हैं, तो भले मजदूरी कर लें, बो झा उठा लें, गाड़ी चला लें, लेकिन सैक्स नहीं कर सकते, क्योंकि सैक्स में सिर्फ मांसपेशियों की ताकत से काम नहीं चलता, बल्कि इस के लिए मन में एक खास किस्म की भावनात्मक लहर का होना जरूरी है और वह मेकैनिकल नहीं होती. मतलब, कामयाब सैक्स का कोई मेकैनिज्म नहीं है कि हर बार उसे एक ही तरीके से दोहरा दिया जाए.

मन की लहर एक ऐसी आजाद लहर जैसी है, जो भावनाओं के जोर में ही पैदा होती है. यह जोर तकनीकी रूप से पैदा तो नहीं किया जा सकता, पर तकनीकी रूप से इसे कई सामाजिक और दिमागी बाधाएं रोक जरूर देती हैं.

जब हम में डर, अपराध और कमतर होने की सोच पैदा होती है, तो हमारे अंदर खुशी की तरंगें नहीं पैदा होतीं. ऐसे में हम गुस्से की तमाम चीजें तो कर सकते हैं, लेकिन खुशी और प्यार नहीं जता सकते, इसीलिए हम सैक्स भी नहीं कर सकते, क्योंकि सैक्स करना आखिरकार मन को खुशियों और भावनाओं से भरा होना होता है.

नैगेटिव भावनाएं खुशियों को छीन लेती हैं और मन में पैदा होने वाली लहर से हमें वंचित कर देती हैं, इसलिए शरीर में तरंगें नहीं जागती हैं और वह सैक्स के लिए तैयार नहीं होता. नतीजतन, हम डिप्रैशन में, हीन भावनाओं के शिकार होने पर या ऐसे ही दूसरे तनाव के पलों में सैक्स के लिए तैयार नहीं होते हैं.

कुदरत ने इस मामले में अच्छे डीलडौल वाले या बहुत ताकतवर को यह खासीयत नहीं बख्शी है कि वह किसी भी मानसिक और शारीरिक हालात में सेक्स कर सके.

अच्छे से अच्छे पहलवान, बड़े से बड़े एथलीट के दिमाग में भी अगर यह बात बैठ जाए कि वह सही से सैक्स नहीं कर पाएगा, तो फिर चाहे कुछ भी हो जाए, वह ऐसा नहीं कर सकेगा.

सच कहें तो सैक्स भावनाओं की ड्राइव है और इस में जरा सी भी किसी भावना को ठेस लग जाए, जरा सी हिचक आ जाए, शक पैदा हो जाए, तो फिर कुछ नहीं हो सकता.

दरअसल, हीन भावनाएं हमारे दिलोदिमाग में कई तरह से आती हैं. एक वजह तो सामाजिक होती है, जिस में हमें बचपन से ही ठूंसठूंस कर दिमाग में भरा जाता है कि यह छोटा है, यह बड़ा. यह ऊंची जाति का है, यह नीची जाति का है. यह बैस्ट है, यह नहीं है. फिर कर्मकांडों का भी एक बड़ा रोल होता है.

छोटीबड़ी उम्र और सामाजिक रिश्तों की भी एक लक्ष्मण रेखा होती है. कई बार वह सही होती है, कई बार मन का वहम होती है. लेकिन सैक्स के मामले में जो सब से बड़ी हीन भावना होती है, वह ऐसे गलत प्रचारों से आई है, जिन के जरीए कुछ लोग अपनी रोटी सेंकते हैं. मतलब सैक्स की कमजोरी, शारीरिक कद, रंग, हैसियत, ये सब बातें दिमाग में भरी गई ऐसी हीन भावनाएं हैं, जो हमें सैक्स के मामले में कमजोर बनाती हैं.

हीन भावना से छुटकारे के लिए खुद पर यकीन की जरूरत होती है. अपनी हैसियत को पहचानने और अपनी ताकत को सही आंकने से भी कमतर होने की सोच से उबरा जा सकता है.

ऐसे उपाय न करने से कमतर होने के भाव आप की पूरी जिंदगी पर छाए रहेंगे, जो आप की पूरी ताकत को खोखला बनाते रहेंगे.

खुद को कमतर सम झना सैक्स को सब से ज्यादा प्रभावित करता है, क्योंकि इस का शिकार इनसान अपने दिलोदिमाग में एक तनाव लिए रहता है कि वह सही से संबंध नहीं बना पाएगा.

यह चिंता हर समय किसी न किसी रूप में दिमाग में हथौड़ा बजाती रहती है, इसलिए वह मन से पूरी तरह सैक्स नहीं कर पाता, फिर चाहे कितना ही काबिल क्यों न हो.

इस दिमागी कमी को जितनी जल्दी हो खत्म करना चाहिए. अकसर यह बोध भ्रामक सोच से पैदा होता है. ऐसी हालत में मर्द या औरत के मन में यह बात बैठ जाती है कि उस से कामयाब सैक्स नहीं हो पाएगा. इस भ्रामक सोच के चलते  वह हकीकत में सैक्स में कामयाब नहीं हो पाता.

प्रैक्टिकल नजरिए से ऐसी सोच इन बातों से आती है जैसे मर्दाना अंग को छोटा सम झ कर हीन भावना से पीडि़त होना, औरत के बेहतर होने का खयाल करना, उस के अच्छे पद को ले कर हर समय तनाव में रहना, परिवार का अमीर या फिर गरीब होना, अनमेल माली हालात वगैरह.

ये तमाम सोच सैक्स के लिए बेहद नैगेटिव हैं. एक बात सम झ लीजिए कि मर्दाना अंग की लंबाईमोटाई सैक्स पर बिलकुल भी असर नहीं डालती. छोटे अंग वाले मर्द को जान लेना चाहिए कि औरत के अंग की बनावट ऐसी होती है, जिस में हर तरह का मर्दाना अंग पूरा मजा देता है.

मर्द को इस गलत सोच से ध्यान हटा कर सही तकनीक के मुताबिक सैक्स करना चाहिए. अगर मर्द इस सोच को नहीं छोड़ेगा, तो उसे सैक्स में नाकामी ही मिलेगी. वह अपनी साथी को पूरी तरह से संतुष्टि नहीं दे पाएगा. जब औरत संतुष्ट होगी, तब कमतर होने का भाव अपनेआप खत्म हो जाएगा.

गांव की लड़कियो, सैक्स ऐजुकेशन नहीं है शर्म की बात

गांव हो या शहर लड़के और लड़कियों को सैक्स की जानकारी बेहद कम होती है, जो जानकारी होती भी है वह बेहद सतही होती है. इस की वजह यह है कि पढ़नेलिखने की जगह सोशल मीडिया से यह जानकारी मिलती है, जो भ्रामक होती है. सोशल मीडिया के अलावा पोर्न फिल्मों से सैक्स की जानकारी मिलती है, ये दोनों ही पूरी तरह से गलत होती है. कई बार लड़कियों को पता ही नहीं होता है और गर्भवती हो जाती हैं. बात केवल लड़कियों में नासमझी की नहीं लड़कों को भी सैक्स की पूरी जानकारी नहीं होती है.

स्त्रीरोग की जानकार डाक्टर रमा श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘बहुत सारी घटनाएं हम लोगों के सामने आती हैं जिन में लड़की को पता ही नहीं चलता है कि उस के साथ क्या हो गया है. इसीलिए इस बात की जरूरत होती है कि किशोर उम्र में ही लड़की को सैक्स शिक्षा दी जाए. घर में मां और स्कूल में टीचर ही यह काम सरलता से कर सकती है. मां और टीचर को पता होना चाहिए कि बच्चों को सैक्स की क्या और कितनी शिक्षा देनी चाहिए. इस के लिए मां को खुद भी जानकारी रखनी चाहिए.’’

गर्भनिरोध की जानकारी हो

डाक्टर रमा श्रीवास्तव का कहना है कि आजकल जिस तरह की बातें सामने आ रही हैं उन से पता चलता है कि कम उम्र में लड़कियों के साथ होने वाला शारीरिक शोषण उन के रिश्तेदारों या फिर घनिष्ठ दोस्तों के द्वारा किया जाता है. इसलिए जरूरी है कि लड़की को 10 से 12 साल के बीच यह बता दिया जाए कि सैक्स क्या होता है और यह बहलाफुसला कर किस तरह किया जा सकता है. लड़कियों को बताया जाना चाहिए कि वे किसी के साथ एकांत में न जाएं. अगर इस तरह की कोई घटना हो जाती है तो लड़की को यह बता दें कि मां को पूरी बात बता दे ताकि मां उस की मदद कर सके.

शारीरिक संबंधों से यौनरोग हो सकते हैं, जिन का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. इन बीमारियों में एड्स जैसी जानलेवा बीमारी भी शामिल हैं, जिस का इलाज तक नहीं है.

इसी तरह स्कूल में टीचर को चाहिए कि वह लड़कियों को बताए कि गर्भनिरोधक गोलियां क्या होती हैं? इन का उपयोग क्यों किया जाता है. बहुत सारी लड़कियों के साथ बलात्कार जैसी घटना हो जाती तो वह या तो मां बन जाती है या फिर आत्महत्या कर लेती है. ऐसी लड़कियों को इस बात की जानकारी दी जानी चाहिए कि अब इस तरह की गोली भी आती है जिस के खाने से अनचाहे गर्भ को रोका जा सकता है. मौर्निंग आफ्टर पिल्स नाम से यह दवा की दुकानों पर मिलती है.

अस्पतालों में मिले मुफ्त

डाक्टर रमा श्रीवास्तव की कहना है कि प्राइवेट अस्पतालों में महिला डाक्टरों को एक दिन कुछ घंटे ऐसे रखने चाहिए जिन के दौरान किशोरियों की परेशानियों को हल किया जाए. यहां पर परिवार नियोजन की बात होनी चाहिए. स्कूलों को भी समयसमय पर डाक्टरों को साथ ले कर ऐसी चर्चा करानी चाहिए. ताकि छात्र और टीचर दोनों को सही जानकारी मिल सके.

किशोर उम्र में सब से बड़ी परेशानी लड़कियों में माहवारी को ले कर होती है. आमतौर पर माहवारी आने की उम्र 12 साल से 15 साल के बीच होती है. अगर इस बीच में माहवारी न आए तो डाक्टर से मिल कर पता करना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है. माहवारी में देरी का कारण पारिवारिक इतिहास जैसे मां और बहन को अगर माहवारी देर से आई होगी तो उस के साथ भी देरी हो सकती है.

इस के अलावा कुछ बीमारियों के चलते भी ऐसा होता है. इन बीमारियों में गर्भाशय का न होना, उस का छोटा होना, अंडाशय में कमी होना, क्षय रोग और एनीमिया के कारण भी देरी हो सकती है. डाक्टर के पास जा कर ही पता चल सकता है कि सही कारण क्या है.

यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कभीकभी लड़की उस समय भी गर्भधारण कर लेती है जब उस के माहवारी नहीं होती है. ऐसा तब होता है जब लड़की का शरीर गर्भधारण के योग्य हो जाता है, लेकिन माहवारी किसी कारण से नहीं आती है. यह नहीं सोचना चाहिए कि जब तक माहवारी नहीं होगी गर्भ नहीं ठहर सकता है.

माहवारी में रखें खयाल

माहवारी में दूसरी तरह की परेशानी भी आती है. कभीकभी यह समय से शुरू तो हो जाती है, लेकिन बीच में 1-2 माह का गैप भी हो जाता है. शुरुआत में यह नार्मल होता है लेकिन अगर यह परेशानी बारबार हो तो डाक्टर से मिलना जरूरी हो जाता है. कभीकभी माहवारी का समय तो ठीक होता है, लेकिन यह ज्यादा मात्रा में होती है. अगर ध्यान न दिया जाए तो लड़की का हीमोग्लोबिन कम हो जाता है और उस का विकास कम हो जाता है.

परेशानी की बात यह है कि कुछ लोग अपनी लड़की को डाक्टर के पास ले जाने से घबराती हैं. उन का मानना होता है कि अविवाहित लड़की की जांच कराने से उस के अंग को नुकसान हो सकता है, जिस से पति उस पर शक कर सकता है. ऐसे लोगों को पता होना चाहिए कि अब ऐसा नहीं है. अल्ट्रासाउंड और दूसरे तरीकों से जांच बिना किसी नुकसान के हो सकती है.

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