अविनाश साबले की दिलचस्प कहानी

हाल ही में हुए पैरिस ओलिंपिक, 2024 खेलों में भारत ने कुल 6 मैडल जीते, पर कुछ इवैंट्स में भारतीय खिलाडि़यों ने इतिहास रच दिया. आज ऐसे ही एक होनहार खिलाड़ी की बात करते हैं, जिन का नाम अविनाश साबले है. 3000 मीटर की स्टीपलचेज यानी बाधा दौड़ में वे ऐसे पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं, जिन्होंने फाइनल मुकाबले में अपनी जगह बनाई.

स्टीपलचेज एक ऐसी प्रतियोगिता होती है, जिस में खिलाडि़यों को ट्रैक पर आने वाली बाधाओं को पार करना होता है और पानी में छलांग लगानी होती है.

13 सितंबर, 1994 को जनमे अविनाश साबले महाराष्ट्र के बीड जिले में अष्टि तालुका के एक छोटे से गांव मंडवा में पलेबढ़े हैं और पैरिस ओलिंपिक तक पहुंच कर उन्होंने अपने गांव और जिले के साथसाथ पूरे देश का नाम रोशन किया है.

अविनाश साबले ने बताया कि उन का एक सामान्य परिवार में जन्म हुआ है, लेकिन ईंटभट्ठे में मजदूरी करने वाले उन के मातापिता ने हमेशा से अपने बच्चों को बेहतर तालीम दिलाना ही अपनी जिंदगी का मकसद माना है.

3 भाईबहनों में अविनाश बचपन से ही दौड़ में नंबर वन रहे हैं. यही नहीं, 5-6 साल की उम्र में ही अपने मातापिता की मुश्किलों को देख कर उन्होंने तय कर लिया था कि वे अपने घरपरिवार का संबल बनेंगे.

अविनाश साबले की मां गांव के ईंटभट्ठे पर मजदूरी करती थीं और खाना बना कर अविनाश के पिता के साथ काम पर चली जाती थीं. एक दफा सुबह घर से निकलने के बाद वे सब लोग उन्हें सिर्फ रात में ही मिल पाते थे. उन्हें ऐसे काम करते हुए देख कर अविनाश को उन की कड़ी मेहनत का अंदाजा नहीं था. यहीं से अविनाश को यह प्रेरणा मिली कि उन्हें कुछ बहुत बड़ा काम करना है.

अविनाश साबले के घर से स्कूल की दूरी महज 6 किलोमीटर थी. ऐसे में वे दौड़ कर स्कूल पहुंच जाते थे और धीरेधीरे दौड़ना उसे अच्छा लगने लगा. अविनाश को दौड़ते हुए स्कूल जाते देख कर मास्टरों ने उन की रेस उन से बड़ी क्लास के छात्र के साथ कराई, जिस में अविनाश के जीतने के बाद मास्टरों ने उन की इस प्रतिभा पर भी ध्यान देना शुरू किया.

इस के बाद अविनाश साबले को 500 मीटर की रेस में ले जाया गया. उस समय वे प्राइमरी स्कूल के छात्र थे और उन की उम्र तब 9 साल ही थी. इस रेस को ले कर उन्होंने कोई तैयारी भी नहीं की थी. मगर अविनाश ने मास्टरों और स्कूल को निराश नहीं किया. मजेदार बात तो यह है कि उस दिन रेस के साथसाथ अविनाश ने 100 रुपए का नकद इनाम भी जीता था, जिसे याद कर के वे आज भी खुश हो जाते हैं.

इस के बाद अविनाश साबले को स्कूल के मास्टर 2 साल धनोरा मैराथन ले गए थे. इस में भी अविनाश दोनों बार रेस में जीते. इस कारण से भी अविनाश को शिक्षकों का विशेष स्नेह मिलता था. 12वीं क्लास पास करने के बाद अविनाश सेना भरती परीक्षा में सफल हुए और पैरिस ओलिंपिक के बाद तो चर्चित चेहरे बन गए हैं.

याद रहे कि कभी अविनाश साबले बीड जिले के मंडवा गांव में राजमिस्त्री का काम किया करते थे. वहां से निकल कर आज वे भारत के सब से बेहतरीन लंबी दूरी के धावक बन कर सामने आए हैं.

साल 2017 में एक दौड़ के दौरान सेना के कोच अमरीश कुमार ने अविनाश साबले की तेज रफ्तार को देखा और फिर उन्हें स्टीपलचेज वर्ग में दौड़ने की सलाह दी. बता दें कि साल 2017 के फैडरेशन कप में अविनाश साबले 5वें नंबर पर रहे  थे और फिर चेन्नई में ओपन नैशनल में स्टीपलचेज नैशनल रिकौर्ड से सिर्फ 9 सैकंड दूर रहे थे.

इस के बाद भुवनेश्वर में आयोजित साल 2018 में ओपन नैशनल में अविनाश साबले ने 3000 मीटर स्टीपलचेज में 8:29.88 का समय लेते हुए 30 साल के नैशनल रिकौर्ड को 0.12 सैकंड से तोड़ कर इतिहास रच दिया था.

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