आप को इस फील्ड में आने की प्रेरणा कैसे और कहां से मिली?
मेरे परिवार से कोई भी इस फील्ड से नहीं है, लेकिन मेरे पिताजी संभाजी इंदलकर को किस्से सुनाने और उन्हें मजाकिया ढंग से पेश करने में बहुत मजा आता है, जो वे ज्यादातर ग्रुप में करते हैं. उन्हीं से मुझे प्रेरणा मिली.
जब मैं 5वीं क्लास में थी, तब गरमियों की छुट्टियों में मेरी मां अस्मिता इंदलकर ने मुझे एक पर्सनैलिटी डवलपमैंट और थिएटर वर्कशौप में डाल दिया था. इस से मुझ में थिएटर में काम करने की इच्छा जगी और मैं ने कई जगह थिएटर किया.
9वीं क्लास में मैं ने मराठी का एक स्टैंडअप कौमेडी का शो किया था, जिस में मैं जीत गई थी. तब से मैं ने इसे अपना कैरियर बना लिया. इस के बाद मैं मुंबई आ गई और ‘हास्य जत्रा’ में काम करने लगी. इस में मैं साल 2019 से काम कर रही हूं.
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आप को पहला ब्रेक कैसे मिला था? इस में परिवार का सहयोग कितना था?
सोनी मराठी चैनल के शुरू होते ही मैं ने एक शो के लिए औडिशन में भाग लिया था. मैं ने अपनी एक सहेली के साथ औडिशन दिया था. उस में सभी कलाकार उम्र में मुझ से बड़े थे, इसलिए उन्होंने मुझे बाद में बुलाने की बात कही और कुछ दिनों बाद ही बुला भी लिया.
इस सब में मुझे अपने परिवार का सहयोग मिला, क्योंकि मैं ने उन की शर्तों के मुताबिक अपनी पढ़ाई पूरी की थी. उन का मानना था कि अगर मैं ऐक्टिंग के फील्ड में कामयाब नहीं हुई, तो किसी दूसरी फील्ड में जा सकती हूं.
मैं जानती थी कि केवल थिएटर करने से कोई कलाकार नहीं बन सकता, उसे किसी को भी विजुअल मीडियम में दिखने की जरूरत होती है. ‘हास्य जत्रा’ ने मुझे वह कामयाबी दिलवाई. घर वालों ने भी इसे देखा और मुझे सहयोग मिलता गया.
इस से पहले जब तक मैं ने थिएटर किया, उस में पैसे नहीं मिलते थे, सिर्फ काम होता है, तब वे मेरे लिए ज्यादा असुरक्षित महसूस करने लगे थे, लेकिन अब सब ठीक है.
‘हास्य जत्रा’ में आप का किरदार क्या है?
इस शो में मेरे अलगअलग किरदार होते हैं, कोई डिसाइड हुआ रोल नहीं होता है, इसलिए तैयारियां बहुत करनी पड़ती हैं.
आप पर रिजैक्शन का असर कितना पड़ा? उसे कैसे लिया?
औडिशन देना इस फील्ड का सब से जरूरी पार्ट होता है, जिस में स्क्रीन टैस्ट, लुक टैस्ट सब होने के बाद कई बार पता चलता है कि मैं ऐक्टिंग के लिए नहीं चुनी गई. किसी कलाकार को यह सब सहना ही पड़ता है. तनाव होने पर खुद को ही इस का हल ढूंढ़ना पड़ता है, क्योंकि कई बार मैं ने महसूस किया है कि खूबसूरती की तारीफ यहां होती है, टैलेंट की नहीं.
आप त्योहार कैसे मनाती हैं?
हर बड़े त्योहार को मैं अपने परिवार और दोस्तों के साथ मनाना पसंद करती हूं. परिवार के साथ मिल कर गुजिया बनाना मुझे अच्छा लगता है, क्योंकि इस में दादी, मां, बहन के साथ बातचीत करना, एकदूसरे की कहानियां सुनना, हंसनागाना सब चलता रहता है.
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नौजवान पीढ़ी खासकर लड़कियों के लिए कोई मैसेज?
मेरा मानना है कि लड़कियों को अपने जैंडर से आगे बढ़ना चाहिए. उन्हें किसी बात से डरना या घबराना नहीं चाहिए. अपने काम से नाम कमाना अच्छा होता है, जैंडर, खूबसूरती या फिगर से नहीं.
पसंदीदा रंग : नीला.
मनपसंद कपड़े : वैस्टर्न स्टाइल.
पसंदीदा किताब : कोसला, लेखक भालेचंद्र निमाड़े.
खाली समय में : फिल्में देखना, यारदोस्तों के साथ मस्ती करना.
मनपसंद परफ्यूम : इत्र.
पसंदीदा जगह : अंडमान निकोबार और स्वीडन.
जीवन के आदर्श : जियो और जीने दो.
सामाजिक काम : गरीब बच्चों के लिए परफौर्म करना.
सपना : सभी डायरैक्टरों के साथ काम करना.
सपनों का राजकुमार : फैमिनिस्ट हो, अच्छा पार्टनर हो.