सौजन्य- सत्यकथा

पूरे 10 साल बाद संतोष यादव अपने ननिहाल आया था. साल 2021 में मार्च महीने से ही लौकडाउन का दौर चल रहा था.

जून की 10 तरीख थी. उस का ननिहाल रायपुर जिले में खरोरा थानांतर्गत फरहदा गांव में था. गांव में बहुत कुछ बदल गया था. कच्चे मकान पक्के बन चुके थे. सड़कें पहले से अच्छी बन गई थी.

गांव में लोगों को कोरोना का डर तो था, लेकिन उन पर लौकडाउन का कोई खास असर नहीं दिख रहा था. अधिकतर लोगों का आनाजाना पहले की तरह ही बगैर मास्क के सामान्य बना हुआ था.

हां, कुछ लोग मास्क लगा कर, या फिर गमछे, रुमाल आदि से नाकमुंह ढंके हुए थे. इस कारण संतोष को उन्हें पहचानने में थोड़ी दिक्कत आ रही थी.

वैसे भी संतोष गांव के अधिकतर लोगों को नहीं पहचानता था. गांव वालों के लिए भी वह अधिक पहचाना हुआ व्यक्ति नहीं था.

गांव की एक पतली सड़क पर टहलता हुआ संतोष अपने पूर्व चिरपरिचित स्थान तालाब के पास जा पहुंचा. गांव के एक छोर पर बने बड़े तालाब के निकट सड़क की पुलिया के पास उस के पैर ठिठक गए.

तालाब को दूर तक देखता हुआ बीती यादों में खो गया. अचानक उस की आंखों के सामने खूबसूरत रानी का मुसकराता चेहरा घूम गया. रानी की ठेठ ग्रामीण छवि, दाईं आंख के आगे और गालों पर लटकती लटें, अल्हड़पन की चाल और बातूनी अदाएं बरबस याद हो आ आईं.

तभी उसे किसी ने पीछे से कंधे पर हाथ रख दिया. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो देखता ही रह गया. उस का पुराना यार रमेश खड़ा मुसकरा रहा था.

‘‘अरे यार, तू कब आया? पहचाना मुझे, मैं रमेश.’’ वह बोला.

‘‘त..त…त…तुम रमेश…’’ बोलते हुए संतोष ने उस का हाथ पकड़ लिया.

रमेश को देख संतोष बहुत खुश हुआ. खुशी में दोनों गले लग गए. वे 10 साल बाद मिल रहे थे. उसे निहारते हुए संतोष चुटकी ले कर बोला, ‘‘मोटा हो गया है रे तू. तुझे तो तेरी आवाज से ही पहचान पाया.’’ संतोष ने कहा.

‘‘हां यार, क्या करूं 4 महीने से घर में पड़ेपड़े खाखा कर मोटा हो गया हूं. कहीं आनाजाना नहीं होता. बस, एक बार शाम के वक्त मन बहलाने के लिए तालाब का चक्कर लगा लेता हूं.’’ रमेश बोला.

‘‘आओ न कहीं बैठते हैं.’’ संतोष ने कहा.

‘‘यहां नहीं, चलो न मेरे घर पर ही चलते हैं. शाम ढलने वाली है. आज मेरे घर पर ही खाना खा लेना. वहीं खूब बातें करेंगे. पुरानी यादें भी ताजा करेंगे.

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थोड़ी देर में संतोष अपने लंगोटिया यार रमेश के घर पर था. उन के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया. दोनों सालों से मन में दबी अनगिनत यादों के गुबार को निकाल देना चाहते थे बातोंबातों में संतोष ने पूछा, ‘‘यार, रानी कहां होगी, उस का क्या हालचाल है?’’

संतोष के इस सवाल पर रमेश पहले थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘कौन रानी? साहूकार की बेटी? उस का पास के ही गांव में ब्याह हो गया है. वह अब 3 बच्चों की मां बन चुकी है.’’

यह सुन कर संतोष बोला, ‘‘लेकिन भाई, क्या तुम मुझे उस से मिलवा सकते हो? वो आज भी मेरे मन में बसी हुई है.’’

‘‘क्या बात करते हो यार, उस की शादी हो गई है, उस का अपना परिवार है, ससुराल में सुखी जीवन गुजार रही है, तुम उसे भूल जाओ.’’ रमेश ने सलाह दी.

‘‘मैं उसे भला कैसे भूल सकता हूं, उस के कारण मैं ने क्या नहीं किया. अब मैं तुम्हें क्या बताऊं?’’

‘‘क्या कह रहे हो, कुछ समझा नहीं,’’ रमेश बोला.

‘‘उस की वजह से जेल चला जाता, किसी तरह किस्मत से बच गया.’’ संतोष ने कहा.

‘‘क्या कह रहे हो? साफसाफ बताओ, उस ने क्या किया था तुम्हारे साथ?’’ रमेश ने उत्सुकता दिखाई.

‘‘अब मैं और क्या कहूं. रानी ने मेरे साथ कुछ गलत नहीं किया, बल्कि उस के कारण मेरे हाथों एक अपराध हो गया था.’’ संतोष बोला.

‘‘अपराधऽऽ कैसा अपराध? क्या किया तुम ने? कैसा कांड किया?’’ रमेश उत्सुकता से सवाल पर सवाल पूछता चला गया, लेकिन संतोष निरुत्तर बना रहा.

रमेश ने विस्तार से जानने की जिज्ञासा जताई, ‘‘यार, खुल कर बताओ आखिर बात क्या है?’’ इस का जवाब संतोष ने नहीं दिया. उस ने गोलमोल बातें करते हुए रानी से जुड़ी बातें टाल दीं. कुछ समय बाद संतोष वापस अपने घर लौट आया.

अगले दिन शाम के वक्त तालाब के पास दोनों की फिर मुलाकात हुई. वे पास की पुलिया पर बैठ गए. वहां से तालाब का नजारा काफी दूर तक दिखता था. संतोष और रमेश के बीचें बातों का सिलसिला फिर शुरू हो गया.

संतोष ने कहा, ‘‘यार, 10 साल पहले इसी तालाब के पास झाडि़यों से एक आदमी की लाश बरामद हुई थी. उस का क्या हुआ? उन दिनों मैं यहीं था, लेकिन उसी रोज अपने गांव चला गया था.’’

कुछ सोचता हुआ रमेश बोला, ‘‘हां हां, याद आया, तुम शायद लेखराम सेन की बात कर रहे हो. उस का तो पता ही नहीं चला कि उस के साथ आखिर हुआ क्या था? उस ने आत्महत्या कर ली थी या फिर अधिक शराब पीने के कारण उस की मौत हो गई थी.

‘‘कुछ लोग बताते हैं कि उस ने जहर खाया था और कुछ लोग बताते हैं कि वह तेंदुए का शिकार हो गया था. याद होगा उन दिनों गांव में तेंदुए का आतंक था.’’

रमेश की बातें सुन कर संतोष हंसने लगा. फिर बोला, ‘‘यार, तुम्हें एक हैरत की बात बताऊं, लेकिन किसी से मत बताना.’’

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‘‘यार दोस्ती में क्या तुम मुझ पर इतना भी विश्वास नहीं करोगे.’’

‘‘तुम पर तो पूरा भरोसा है, तभी तो मैं ने उस के बारे में पूछा.’’ संतोष बोला.

सहजता दिखाते हुए रमेश भी बोला, ‘‘ठीक है बताओ, तुम क्या बताना चाहते हो?’’

संतोष ने रहस्यमयी मुसकराहट के साथ बताया, ‘‘लेखराम ने न तो खुदकुशी की थी और न ही वह किसी तेंदुए का शिकार हुआ था. उसे तो मैं ने अपनी बेल्ट से गला घोंट कर मार डाला था और यहीं खेत के किनारे की झाडि़यों में फेंक दिया था.’’

‘‘नहींनहीं तुम क्यों मारोगे?’’ रमेश ने आश्चर्य प्रकट किया.

‘‘अरे भाई, उस ने मुझे रानी के साथ देख लिया था और धमकी देने लगा था कि वह गांव वालों को बता देगा. बस, इसी बात पर मैं ने उसे मार डाला.’’

‘‘क्या तुम सच कह रहे हो, इस में कुछ झूठ तो नहीं है?’’ रमेश ने सवाल किया.

‘‘मैं झूठ क्यों बोलूंगा? अब इतने साल बाद मेरा कोई क्या बिगाड़ लेगा? अब तो मामला भी खत्म हो गया है.’’

‘‘हां, यह बात तो सही है कि कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है. उस समय के पुलिस वाले भी अब नहीं हैं. जांच कौन करेगा?’’

संतोष हत्या की बातें बता कर अपने सिर पर से किसी बोझ के उतरने जैसा बेहद हल्का महसूस कर रहा था, जबकि रमेश उस की रहस्यमयी बातें सुन कर चिंता में पड़ गया था.

अपने दोस्त के आचरण और कृत्य के बारे में जान कर उस का मन बोझिल हो गया था. थोड़ी देर तक संतोष और रमेश के बीच शून्यता जैसी स्थिति बन गई थी. वे एकदूसरे को शांत भाव से देखने लगे. अंत में संतोष फिर मिलने का वादा कर खड़ा हुआ और चला गया. रमेश भी उस के पीछेपीछे होता हुआ अपने घर आ गया.

रमेश घर आ कर सोच में पड़ गया कि वह गांव के जिस व्यक्ति की मौत को आत्महत्या समझ रहा था, वास्तव में उस की हत्या हुई थी. और हत्यारा भी खुद उस के सामने अपना गुनाह कबूल चुका था. उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इस अंतरद्वंद्व में पूरी रात करवटें बदलता रहा. किसी तरह से सुबह के करीब 5 बजे उस की आंख लग गई.

रमेश सुबह 8 बजे तक सोता रहा. फटाफट नहानेधोने का काम किया और नाश्ता कर सीधा खरोरा पुलिस थाने जा पहुंचा. उस के साथ यहां तक तो सब कुछ मशीन की तरह होता रहा, किंतु थाने के गेट पर आ कर उस के पैर ठिठक गए.

रमेश वापस लौट आया, लेकिन उस ने निर्णय लिया कि संतोष के अपराध की सूचना वह पुलिस को जरूर देगा. उस के बारे में फोन से बताएगा, जिस से उस का चेहरा किसी के सामने नहीं आएगा.

थाने से कुछ दूर हट कर उस ने पुलिस मुख्यालय को फोन लगा कर कहा, ‘‘मुझे किसी पुलिस अधिकारी से बात करनी है.’’ उधर से कारण पूछने पर बताया कि उसे एक हत्या के आरोपी के खिलाफ जानकारी देनी है. यह कहने पर पर रमेश की बात राजधानी रायपुर के एडिशनल एसपी (ग्रामीण) तारकेश्वर पटेल से करवाई गई.

रमेश ने पूरी जानकारी एसपी साहब को दे दी. इस सिलसिले में रमेश ने बताया कि 10 साल पहले गांव के लेखराम सेन की हत्या गला घोंट कर कर दी गई थी. इन दिनों हत्यारा उस के गांव में निश्चिंत हो ठहरा हुआ है.

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तरकेश्वर पटेल ने कहा, ‘‘तुम फोन पर नहीं, सामने आओ. मुझ से मिलो. घबराओ नहीं, तुम्हें कुछ नहीं होगा, बल्कि पुरस्कार भी दिया जाएगा.’’

‘‘सर, मुझे कोई ईनाम नहीं चाहिए. मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि हत्यारे को सजा मिले, ताकि उस जैसे अपराधी कभी छिपने की कोशिश न करें. वैसे लोगों का यह घमंड भी टूटना चाहिए कि कानून उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है.’’

रमेश की बातें सुन कर एडिशनल एसपी बहुत खुश हुए और उन्होंने एसएसपी अजय यादव से समुचित दिशानिर्देश ले कर लेखराम सेन हत्याकांड की फाइल खुलवाई.

साथ ही एसडीओपी राहुल देव शर्मा और खरोरा थानाप्रभारी तीरथ सिंह ठाकुर को एक पुलिस टीम बनाने के निर्देश दिए.

पुलिस टीम ने संतोष यादव को 24 जून, 2021 को उस के गांव जरौद से हिरासत में ले लिया गया. संतोष पहले तो अचानक हुई गिरफ्तारी से घबराया बाद में उस ने पुलिस के सामने इधरउधर की बातें करते हुए फरहाद गांव में कभी भी जाने तक से इनकार कर दिया.

पुलिस ने जब उस का काला चिट्ठा खोलते हुए उस के ननिहाल में सभी दोस्तों और प्रेमिका के नाम लिए तब वह टूट गया. विवश हो कर उस ने यह स्वीकार कर लिया कि 14 जनवरी, 2011 की रात को उस ने किस तरह से अपने चचेरे भाई लोकेश यादव के साथ मिल कर लेखराम सेन की हत्या कर दी थी.

संतोष यादव ने उस रात की घटना के साथसाथ बारबार अपने ननिहाल और वहां रानी के साथ मौजमस्ती की बातें इस प्रकार बताईं—

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के गांव जरौद थाना मंदिर हसौदा निवासी संतोष यादव उर्फ घनश्याम रमेश यादव का बेटा है. करीब 20 साल की उम्र में उस का अपने ननिहाल फरहदा गांव अकसर आनाजाना होता था. वहां हमउम्र युवाओं के साथ उस की अच्छी दोस्ती हो गई थी.

वहीं उस की जानपहचान 17 साल की रानी से भी हो गई थी. वह रानी को दिल से चाहने लगा था. उसी वजह से वह अपने ननिहाल में हफ्तों तक पड़ा रहता था और इधरउधर मटरगस्ती भी किया करता था. इस मौजमस्ती में उस ने अपने चचेरे भाई लोकेश यादव को भी शामिल कर लिया था.

बात 14 जनवरी, 2011 की है. संतोष रात के 9 बजे के करीब लोकेश के साथ रानी का इंतजार कर रहा था. लोकेश कुछ दिन पहले ही वहां आया था. रमेश ने उसे भी किसी लड़की के साथ संपर्क करवाने का वादा किया था.

उधर रानी अपनी सहेली मधु के साथ घर से शौच के लिए निकली थी. उस ने मधु को फुसलाते हुए तालाब के पास चलने के लिए कहा. मधु के इनकार करने पर उसे अच्छी सहेली होने का हवाला दिया और फिर दोनों तालाब के पास जा पहुंचे.

वहां संतोष पहले से मौजूद था. मधु पहले से 2 लड़कों को देख कर सकपका गई और वहीं सड़क के किनारे बनी पुलिया के पास रुक गई.

रानी तेज कदमों से संतोष के पास चली गई. उसे साथ ले कर मधु के पास आई और उस का परिचय करवाया.

साथ में संतोष के भाई लोकेश का परिचय भी करवाती हुई उस से बोली, ‘‘तुम दोनों यहीं बातें करो.’’

तभी संतोष ने रानी का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम से कुछ कहना है.’’

‘‘बोलो,’’ रानी बोली.

‘‘यहां नहीं उधर चलते हैं.’’ झाडि़यों की ओर इशारा करते हुए संतोष रानी का हाथ खींचने लगा. रानी भी उस का साथ देती हुई साथ चल पड़ी. मधु और लोकेश वहीं रुक गए. झाडि़यों के पास हल्का अंधेरा था. रानी और संतोष उन के पीछे एकदूसरे के प्यार में खो गए.

मधु और लोकेश परिचय के बाद वहीं पुलिया पर बैठ गए. मधु रानी के वापस आने का इंतजार करने लगी.

कुछ समय में मधु को गांव में सैलून की दुकान चलाने वाले लेखराम सेन के गाना गाने की आवाज सुनाई दी. वह घबरा गई. कारण लेखराम उस के पड़ोस में रहता था, उसे अच्छी तरह से पहचानता था.

मधु ने उस से कहा, ‘‘मैं घर जा रही हूं, रानी को बता देना.’’

यह कह कर मधु वहां से चली गई.

लेखराम लोकेश के पास आ कर रुक गया. लड़खड़ाती आवाज में पूछा. ‘‘कौन है भाई? यहां क्या कर रहा है?’’

लोकेश ने कुछ जवाब नहीं दिया. लेखराम ने दोबारा पूछा, ‘‘बोलता क्यों नहीं, तू तो इस गांव का नहीं लगता है.’’

लोकेश अभी कुछ बोलने वाला ही था कि लेखराम की नजर झाडि़यों की ओर घूम गई. वहां से कुछ हलचल दिखी. वह लोकेश से हट कर उस ओर जाने लगा. लेकिन लोकेश ने उधर जाने से रोका, ‘‘बाबूजी, उधर मत जाइए.’’

‘‘क्यों, उधर क्यों नहीं जाऊं? तुम यहां क्या कर रहे हो?’’ लेखराम बोला.

‘‘बाबूजी, आप अपने घर जाइए न. नशे में हैं, गिरपड़ जाएंगे.’’ लोकेश ने समझाया.

‘‘तू कौन होता है मुझे रोकने वाला. आज का लौंडा है, तुम्हारी इतनी हिम्मत.’’ लेखराम कहता हुआ झाडि़यों के पास चला गया. वहां का दृश्य देख कर चीखता हुआ बोला, ‘‘अच्छा तो यह बात है. यहां मौज की जा रही है.’’

लेखराम ने संतोष का हाथ पकड़ कर झाडि़यों में से खींच निकाला. रानी ने अपने कपड़े सहेजते हुए उस की ओर अपनी पीठ कर ली.

‘‘कौन है रे लड़की तू? गांव की इज्जत मिट्टी में मिलाने चली है.’’ लेखराम डांटते हुए बोला. इस बीच संतोष ने उस से हाथ छुटा कर उसे धक्का दिया. लेखराम गिर पड़ा. संतोष ने उसे पीछे से दबोच लिया. उसी समय लोकेश भी वहां पहुंच गया.

‘‘हमारे गांव में यह सब नहीं चलता है. तुम गलत कर रहे हो.’’ लेखराम ने चिल्लाते हुए धमकी दी कि उन्हें गांव में सब के सामने उस की करतूत बताएगा.’’

अब लोकेश ने भी उसे पकड़ लिया. 40 की उम्र का लेखराम जल्द ही असहाय हो गया. तभी उस ने हल्के अंधेरे में लड़की का चेहरा देख लिया. चिल्लाया, ‘‘अरे तू तो साहूकार की बेटी है. चल, मैं तेरे बाप को तुम्हारी करतूत बताता हूं.’’ लेखराम शिकायती लहजे में बोला.

रानी घबरा कर चेहरा हाथों से छिपाती हुई वहां से भाग गई. रानी को जाते देख संतोष और भी तिलमिला गया. उस ने तुरंत अपने पैंट से बेल्ट निकाली और देदनादन लेखराम पर बरसानी शुरू कर दी.

नशे की हालत में लेखराम उठ नहीं पाया. वह एकदम अधमरा हो गया. तब संतोष जाने लगा. इस पर लोकेश ने कहा कि भैया यह तो चोट खाया सांप बन गया है. कभी भी डंस लेगा.

यह सुन कर संतोष बोला, ‘‘ऐसा है क्या, चलो इस का काम ही तमाम कर देते हैं.’’

उस के बाद संतोष ने बेल्ट से ही उस का गला घोंट दिया’’ कुछ समय में ही लेखराम की मौत हो गई.

लेखराम की हत्या से बचने के लिए संतोष और रमेश ने उस की लाश वहां से थोड़ी दूर अंधेरे में फेंक दी. फिर वे तालाब में नहाधो कर अपने नानी के घर आ गए. वहां से एकदम सवेरेसवेरे दोनों अपने गांव लौट आए.

पुलिस की जांच और उस के पकड़े जाने पर संतोष को काफी हैरत हुई. पुलिस ने 10 साल पुरानी लाश के संबंध में जांच का दोबारा विश्लेषण करने के लिए नई फाइल बनाई. उस में संतोष द्वारा सभी इकरारनामे को दर्ज किया.

साथ में उस के दोस्त रमेश के बयान भी गवाही के तौर शामिल कर लिए गए. पुलिस ने 32 वर्षीय लोकश यादव को भी हिरासत में ले लिया और उस के बयान लिए.

इस आधार पर दोनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 201 और 34 के तहत मामला दर्ज कर आरोप पत्र तैयार कर लिया गया. दोनों को रायपुर की अदालत में पेश करने के बाद न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्र के आधार पर और इसमें रानी और मधु के नाम काल्पनिक रखे गए हैं

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