इंदौर शहर की रौनक देखते ही बनती है. इंदौर शहर लजीज व्यंजन के लिए महशूर है. विशेषत: रात को सराफा बाजार बंद होने के बाद वहाँ खाने पीने की दुकानें लगती है. खाने के शौकीन लोगों का हुजुम देर रात सराफा बाजार मेंं ऐसे उमडता है जैसे कि दिन निकला हो. वहां का स्वाद, खाने के लजीज व्यंजन, लोगों का जिंदगी को जिंदादिली से जीने की स्वभाव, मालवा की माटी में रचा बसा है. एक बार जो शहर में आया तो वहीं का होकर रह जाता है. मालवा की माटी की सौंधी महक किसी का भी मन मोह लेने में सक्षम है.
रात को शहरों की रौनक देखते ही बनती है, सराफा की गलियों में व्यजंनो की महक हवा में घुली होती है. व्यजंनों का स्वाद व राजवाडा की रौनक रात का भ्रम पैदा करतें है. रात 9 बजे के बाद जैसे यहाँ दिन निकलता है.
पुराने शहर की गलियों में लोग एक दूसरे से बहुत परिचित रहते हैं. उनसे परिवार के सदस्य क्या, पूरे खानदान का ब्यौरा मिल सकता है. शहर के कुछ नामी-गिरामी लोगों में राय साहब का रुतबा बहुत है. राजघराने से संबंधित होने के कारण मुख पर वही तेज सुशोभित रहता है. कहतें है न कि मिल्कियत भले चली जाये लेकिन शानो शौकत व जीने का अंदाज नहीं बदलता. यह इंसान के खून में ही शामिल होता है. यदि पुरखे राजा महाराजा रहे हों, तब राजपुताना अंदाज उनके रहन सहन में झलकता है.
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शहर के बीचों -बीच राय साहब का बंगला है. बाहर बडा सा शाही दरवाजा बंगले की शान है, जिसके भीतर देख पाना मुश्किल है . गेट पर छोटा सा कमरानुमा जगह है जहाँ दरबान का पहरा रहता है. या यह कहे कि दिन भर उसके रहने का आशियाना है. बंगले के एक कोने में शानदार 2-2 गाड़ियां खड़ी है. बंगले के चारों तरफ गुलमोहर, संतरा, चीकू, गुलाब, आम, पपई, अनगिनत फूलों के पौधे बंगले की खूबसूरती में चार चांद लगा रहें हैं . लेकिन इतने बडे घर में रहने वाले सिर्फ दो लोग है . राय साहब और उनकी पत्नी दामिनी. एक बेटा है जिसे लंदन पढ़ाई करने के लिए भेजा है. दोनों की खूबसूरती व सौंदर्य के चर्चे शहर भर में होते रहते हैं. रूप की रानी दामिनी जितनी सौंदर्य की स्वामिनी है , उतनी ही गुणों की खान भी है. बंगले का चप्पा चप्पा दामिनी की कला व सौंदर्य से सुशोभित था. वह दोनों जितने बड़े बंगले के मालिक है उतने ही दिल के बहुत अच्छे इंसान भी है . वह दोनों लोगों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते थे.
अमीर घरों में पार्टी का चलन आम बात है . जहाँ शबाब और कबाब पूरे चरम पर रहता है. कुछ समय पहले एक पार्टी में रात मालिनी को देखकर राय साहब की आंखें फटी रह गई. मालिनी उनके साथ लंदन में पढ़ती थी जिस पर राय साहब दिलों जान से फिदा थे. मालिनी स्वच्छंद विचरण में यकीन रखती थी. कोलेज के दिनों में उसने राय साहब के प्रस्ताव को ठोकर मार दी. बात वही समाप्त हो गई . खानदानी परंपरा के अनुसार राय साहब का विवाह दामिनी से हुआ. अप्रतिम सौंदर्य के स्वामिनी दामिनी का शाही अंदाज उसके व्यक्तित्व में झलकता था.
लेकिन इतने बरसों बाद मालिनी को देखकर राय साहब को अपना पहला अधूरा प्यार याद आ गया. ह्रदय में दबी हुई चिंगारी चुपके से सुलगने लगी. जिस की हवा देने में मालिनी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. अविवाहित मालिनी भी एक कांधे की तलाश में थी जो उसे अपने पुराने आशिक में मिल सकता था.
“और राय कैसे हो ?” … हाथों में जाम लिए, अधरों पर छलकती मुस्कान व नशीली आंखों से भरी शरारती के साथ मालिनी ने साहब के कंधे पर हाथ रखा.
“अच्छा हूं … मालिनी इतनी बरसो बाद यहां कैसे…? मालिनी ने बात काटकर कहा
“काम के सिलसिले में आई थी, आजकल तुम कहां हो? लंबे समय बाद मुलाकत हो रही है . कभी अपने घर बुलाना… !
इससे पहले मालिनी कुछ बोल पाती कि दामिनी ने आकर राय साहब के हाथों में हाथ डाल दिए.
“अब घर चलो, कितनी देर हो गई है, आज आपने बहुत पी रखी है”.
दामिनी के आने पर राय ने मालिनी को दामिनी का परिचय कराया और औपचारिक संवादों के बाद वह दोनों वहां से चले गए.
पर मुलाकाते यहां समाप्त नहीं हुई, यह मुलाकातों की शुरुआत थी. मालिनी यदा कदा बंगले पर आने लगी. अविवाहित मालिनी को राय के जलवे, मिल्कियत व दामिनी की किस्मत से रश्क होने लगा. एक टीस सी उठती थी कि काश उसने राय के प्रस्ताव को उस समय ठुकराया ना होता, तो आज दामिनी की जगह वह होती.
मालिनी के आने जाने से राय के हृदय में दबी हुई चिंगारी सुलग रही थी . जिसे मालिनी ने भी महसूस किया. इस भावना ने दबे पांव उन्हें एक दूसरे की तरफ धकेल दिया जिसका उन्हें एहसास भी नहीं हुआ.
दोनों उम्र के इस पड़ाव में आकर्षण ,नई ताजगी, रोमांस, रूमानियत से जीवन में रंग भर रहे थे . मालिनी अब अक्सर उनके घर आने लगी व उसने दामिनी से भी उतने ही अपनत्व से मित्रता कर ली.
इन बढ़ते हुए कदमों ने मालिनी व राय साहब को एक दूसरे से बहुत करीब ला दिया. प्रेम में घायल पंछी अपनी उड़ान भर रहा था. एक दिन मौका पाकर मालिनी ने राय से कहा-
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“प्रिय कब तक ऐसा चलेगा, यह दूरी अब सही नहीं जाती है ” दोनों तड़प रहे थे लेकिन किस्मत ने जल्दी उन्हें मौका दे दिया .
आज बंगले पर कुछ करीबी दोस्तों के साथ पार्टी थी. इसमें मालिनी ने भी शिरकत की. देर रात तक चली पार्टी का नशा पूरे शबाब था. मालिनी ने चुपके से दामिनी के ड्रिंक में नशे व नींद की गोलियां मिला दी. अधूरी तमन्नाएं व जिंदगी को रंगीन करने की चाहत ने उसे अंधा बना दिया था.
नशे का असर जब शुरू होने लगा, तो वह दामिनी को लेकर उसके कमरे में गई. राय ने यह सब देखा तो पीछे – पीछे आकर पूछा कि – दामिनी को क्या हुआ?
मालिनी ने उसे चुप कराया, कहा-
“पार्टी समाप्त करो फिर बात करते हैं. सब ठीक है ” कहकर उसने राय को सब कुछ बताकर कहा –
” राय तुम चिंता मत करो, नशा ज्यादा हो गया .अब वह सुबह तक नहीं उठेगी. उसे कुछ नही होगा, बस रात की ही बात है. ”
ऐसा कहकर मालिनी उसके गले लग गई. लेकिन दामिनी अचानक नशे की हालत में उठी तो डर कर मालिनी ने उसे धक्का दे दिया, जिससे वह पलंग से टकराकर वही लुढ़क गई. फिर उनसे वह गलती हो गई जो नहीं होनी चाहिए.
पार्टी को वहीं खत्म करके सबने विदा ली. सुबह जब नशे कि खुमारी उतरी तो राय को अपनी गलती का एहसास हुअा. वह तेजी से अपने कमरे की तरफ भागा . लेकिन दामिनी कमरे में नहीं थी. उसने बाथरूम का दरवाजा खोला तो उसकी चीख जोर से निकल गई . दामिनी बाथटब में पानी के अंदर पड़ी हुई थी, उसने उसे बाहर निकालकर पेट से पानी निकालने का प्रयास किया. मुख से साँस का प्रयास किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. शरीर निस्तेज हो चुका था.
राय की चीख सुनकर मालिनी दौड़ी आई.
“क्या हुआ… यह कैसे हो गया ? बात गले में अटक गई. “ वह बडबडाने लगी –
” मैंने ड्रिंक में सिर्फ नशे व नींद की गोलियां मिलाई थी, मैं किसी की जान नहीं लेना चाहती थी….”
राय ने उसे गुस्से में परे धकेला-
” जाओ जल्दी से किसी डॉक्टर को बुलाओ… यह नही होना चाहिये था”.
भय से मालिनी ने उसे शांत करने का प्रयास किया-
” देखो तुम शांत हो जाओ. इसकी साँसे नहीं चल रही है . डाक्टर से क्या कहोगे. पुलिस केस बनेगा . तहकीकात होगी. बात का बतंगड़ बनेगा. शाम को चुपचाप दाह संस्कार करने में ही भलाई है. इन परेशानियों से बचने के लिए हमारा चुप रहना ही हितकर होगा . मैं तुम्हारे साथ हूं . चिंता मत करो . मैं रात को आऊंगी. घर के नौकर छुट्टी पर है. किसी को पता नहीं चलेगा….” मालिनी उसे शांत करने का प्रयास करती रही.
राय, जब मालिनी की बात से सहमत हो गया तो उसने चैन की साँस ली . राय ने बाहर दरबान को आवाज दी
“रामू ,मैडम को घर छोड़ कर आओ और तुम कई दिनों से अपने घर जाना चाहते थे . दो-चार दिन गांव होकर आ जाओ, अभी ज्यादा कुछ काम भी नहीं है”
मालिनी ने जाते जाते इशारा किया घबराओ मत, हम शाम को मिलते हैं.
राय ने किसी तरह दिन काटा और शाम को मालिनी के आने का इंतजार करने लगा. मन को बहलाने के लिए वह टीवी में समाचार सुन रहा था कि एक खबर ने उसे चौंका दिया . देश में महामारी फैलने के कारण कर्फ्यू दिया गया है. किसी को भी घर से बाहर निकलने की मनाही है. उसने कल ध्यान नही दिया था. मसलन आज रात को वह बाहर नही जा सकते है.
उसने जल्दी से मालिनी को फोन किया कि
” तुम अभी घर आ जाओ, हमें दाह संकार करना होगा. लाश को घर में नही रख सकतें है.”
लेकिन मालिनी ने असमर्थता जाहिर करके अाने से इंकार कर दिया कि आज शहर भर में पुलिस ड्यूटी पर है . मैं नहीं आ सकती हूं. कल मिलती हूँ एक दिन की बात है. अब राय अकेला घर में परेशान घूम रहा था.
काल की मार देखो कि वह अगला दिन नहीं आया ही नही. लाक डाउन की मियाद बढाकर एक महीने कर दी गई . मालिनी आ नहीं सकी व इधर राय को आत्मग्लानि होने लगी. भय के बादल मँडरा रहे थे. उसने जल्दी से अपने घर के सब खिड़की दरवाजे सब बंद कर लिए, बाहर गेट पर ताला लगा दिया जिससे कोई अंदर ना आ सके.
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कुछ पल बैठकर उसने खुद को संभाला. विचार किया कि घर में गाड़ी है. उसे निकालकार लाश को गाडी में ले जाकर रात को उसका क्रिया कर्म करवा दूंगा. बंगले से बाहर के लोग अंदर कुछ नहीं देख सकता थे. किंतु बंगले के चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे थे. जिससे उसे घर से बाहर सड़क पर अाने जाने वालों की सब जानकारी मिल जाती थी. उसमें अपने मोबाइल पर सीसीटीवी फुटेज देखें . चारों तरफ मुस्तैदी से तैनात पुलिस कर्मी नजर अाए. कर्फ्यू का सख्ती से पालन कराया जा रहा है. आने जाने वालों की चेंकिग हो रही थी. ऐसे में बाहर जाना खतरे से खाली नही था.
एक लाश के साथ इतने दिन गुजारना भयावह था . समय ने ऐसा चक्र घुमाया कि जिंदगी ठहर गई. राय की हालत अजीब सी होने लगी. लाश के साथ रहना उसकी मजबूरी थी. बार-बार बेडरूम में जाकर चेक करता कि शरीर सुरक्षित है या नहीं. पूरे बंगले में सिर्फ वह था और दामिनी का मृत शरीर .
लाश को घर में रखना चिंता का विषय था. शरीर के सड़ने से बदबू फैल सकती है. उसने बेडरूम में ऐसी चलाकर दामिनी के शरीर को पलंग पर लिटा दिया व कमरे का दरवाजा बंद कर दिया . कभी वह कमरे के बाहर जाता तो कभी वह खिड़कियों से झांकता वहीं बैठा रहता .
घबराहट धीरे-धीरे कुंठा में परिवर्तित हो रही थी. भय और ग्लानि के भाव मुख पर नजर आ रहे थे. वह खुद को संयत करने का जितना प्रयास करता उतना ही खुद को दामिनी का दोषी मानता. अब इन हालातों में जैसे भी हो दिन काटना मजबूरी है.
एक दिन वह कमरे में दामिनी को देखने गया तो जाने किस भावावेश मेंं उसके मृत शरीर से लिपट गया और पागलों की तरह चिल्लाने लगा.
“दामिनी मुझे माफ कर दो . मेरी गलती की सजा तुम्हें मिल रही है. घर का कोना कोना तुम्हारी महक में रचा बसा है, तुम्हारे बिना मैं नहीं जी सकता, प्लीज वापिस आ जाओ… मैने मालिनी पर विश्वास करके गलती की है…मुझे माफ कर दो ….” रोते हुए उसकी आंख लग गई.
थोड़ी देर बाद उसने महसूस किया कि कोई उसके हाथ को सहला रहा है. किसी की गर्म सांसे मुख पर महसूस हो रही है. चिर परिचित महक उसके आगोश में लिपटी हुई है. वह मदमस्त सा उस निश्चल धारा में बहने लगा. तभी अचानक ना जाने कहाँ से उसके पालतू कुत्ते आ गये, जो उनके साथ खेलने लगे.
लेकिन खेलते खेलते अचानक उन्होंने उसके हाथों की उंगलियों को मुंह में दबा लिया. वह उंगलियों को छुड़ाना चाहता है, लेकिन उनकी पकड मजबूत से दर्द का अहसास हो रहा था. पैने नुकीले दांतो के बीच दबी उंगलियां कट सकती हैं. इस डर से जोर से चिल्लाने लगा. भयभीत आंखें खोली तो खुद को बिस्तर पर पाकर स्वप्न का अहसास हुआ.
लेकिन हाथ की मजबूत पकड अभी भी महसूस हो रही थी. तभी उसने देखा कि दामिनी के हाथ में उसका हाथ फंसा हुआ था और वह उसके शरीर से लिपटी हुई थी. डर से चीखें निकल गई. वह पसीने से तरबतर, भय से कांपता हुआ जमीन पर बैठ गया. सांसें उखड़ने लगी, गला सूख रहा था . किसी तरह उठ कर लडखडाते हुए कदमों से वह रसोई की तरफ भागा. जग से पानी लेकर दो-तीन गिलास पानी पीकर खुद को संयत किया.
लाश के साथ घर में रहते हुए उसे 15 20 दिन हो चुके थे. हर एक दिन एक वर्ष के समान लग रहा था . बढ़ी हुई दाढ़ी, बिखरे बाल, भयग्रस्त चेहरा उसके सुंदर मुख को डरावना बना रहे थे. घर में जो मिला वह खा लिया. पर अब खाने से ज्यादा पीने शुरू कर दिया .
धीरे-धीरे उसे इन बातों की आदत पडने लगी. पहले वह लाश को देखकर डरता था लेकिन अब वह उससे बातें करने लगा. उसकी मन: स्थिति अजीब सी हो रही थी. दामिनी उसकी कल्पना में फिर से जी उठी. दामिनी की अच्छाई व उसका निस्वार्थ प्रेम अकल्पनीय था. उसकी दुनिया पुन: दामिनी के इर्द-गिर्द सिमटने लगी. कल्पनिक दुनिया में उसने अपने सारे गिले-शिकवे दूर कर लिए. अब काल्पनिक दामिनी हर जगह उसके साथ थी.
घंटों नशे में धुत्त दामिनी से बातें करना, उसका श्रृंगार करना व उसके पास ही सो जाना उसकी दिनचर्या में शामिल हो गए.
आत्मग्लानि, अकेलापन और दुख उसे मानसिक रूप से विक्षिप्त कर रहा था . बिछोह की अग्नि प्रबल हो रही थी . एक दिन वह पागलों जैसी हरकतें करने लगा. दामिनी के सडते हुए शरीर को गंदा समझकर गीले कपडे साफ करने लगा तो शरीर से चमडी निकलने लगी. उसके पास से बदबू आ रही थी. पर पागल दीवाना राय उसका शृंगार कर रहा था. अंत में उसने शादी वाली साडी अलमारी से निकाली अौर शरीर पर डाल कर दुल्हन जैसा सजा दिया. माँग में सिंदूर भरकर अपनी मोहर लगा दी.
उसकी नजर में वह उसकी वही सुंदर दामिनी थी. फिर वह उससे बातें करने लगा .देखो दामिनी कितनी सुंदर लग रही हो. उसने उसके माथे पर अपने प्यार की मोहर लगाई, फिर गले लगकर .
“अब तुम आराम करों, तुम तैयार हो गई हो. मै भी नहाकर आता हूँ. हमें बाहर जाना है. ”
पगला दीवाना मुस्कुराया. वह कई दिनों से सोया नही था. वह सुकुन से सोना चाहता था. आंखों में नींद भरी थी. पर आंखे बंद नहीं हो रही थी. गला सूख रहा था. उसने उठकर पानी पिया . फिर जाने किस नशे में अभिभूत होकर नींद की गोलियां खा ली. उसके बाद वह बाथरूम में गया और टब से टकराकर गिर पडा. नींद मे अस्फुट शब्द फूट रहे थे कि आज उसका व दामिनी आज पुनर्मिलन होगा.
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एक महीने बाद जब कर्फ्यू खत्म हुआ. तो घर के नौकर -चाकर काम पर वापिस लौट अाए. घर का बंद दरवाजा देखा तो फोन लगाया लेकिन किसी ने भी फोन नही उठाया . काफी देर तक घंटी बजाने के बाद किसी ने दरवाजा नही खोला तो उन्होंने पुलिस को बुलाया. बंगले के अंदर करीब जाने पर तेज आती गंध से सभी को कुछ अनहोनी होने की आंशका होने लगी. अंदर जाकर देखा तो दोनो की लाशें पड़ी थी. लाशें सड रही थी. एक लाश पलंग पर सुंदर कपडों में सजी थी, दूसरी वहीं जमीन पर तकिए के साथ पडी थी. उनकी हालत देखकर सबका कलेजा मुँह को आ गया. दोनो का पोस्ट मार्टम कराया गया. रिपोर्ट आने पर पता चला कि दोनों की दम घुटने के कारण मौत हुई थी. पुलिस आज तक इस मर्डर मिस्ट्री को सॉल्व करने का प्रयास कर रही है . यह रहस्य कोई समझ नहीं सका कि बंद घर के अंदर दोनो का मर्डर कैसे हुआ.