यह कहानी है एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की सीमा की. सीमा एक साधारण परिवार में पली बढ़ी और आगे अपने जीवन संघर्ष को पुरजोर किया. जब सीमा 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी तब उसके पिता की मृत्यु बीमारी के कारण हो जाती है . उसके पिता के अकस्मात् मृत्यु के कारण पारिवारिक और अर्थिक स्तिथि पूरी तरह डावाडोल हो जाती है . घर में कोई कमाने वाला नही. बड़ी मुश्किल से उसके पिता के पेंशन के पैसे से दो वक्त की रोटी का गुजारा हो रहा था . ऐसी स्थिति में सीमा अपने आगे की पढ़ाई जैसे-तैसे पूरी की और पारिवारिक स्तिथि को सुधारने के लिए स्वयं एक स्कूल में शिक्षिका की नौकरी करने लगी. सीमा बाहर काम करने जाती तो उसकी माँ घर संभालती. सीमा को अपने पिता की कमी बहुत खलती थी और अपने पिता को याद करके अकेले में रोती थी . छोटे भाई की पढ़ाई का खर्च भी और घर का खर्च स्वयं सीमा ही उठा रही थी . इन्हीं कारणों से उसकी शादी भी नहीं हो पाई थी . कहीं से अच्छे रिश्ते भी नहीं आ रहे थे उसके लिये. सीमा घर और काम में उलझ गई थी. सोचती की मै अगर शादी कर लूंगी तो घर में माँ और भाई का क्या होगा, कौन उनका ध्यान रखेगा, उनकी जरूरतों को पूरा करेगा. 30 वर्ष पार कर चुकी सीमा अब तो शादी के बारे में सोचना ही छोड़ दी.

सीमा और उसके परिवार का जीवन जैसे-तैसे चल रहा रहा था लेकिन सीमा हार नहीं मानी . उसने अच्छे स्कूल में शिक्षिका पद के लिए आवेदन किया और वहाँ उसको काम मिल गया . तन्ख्वाह भी अच्छी मिलने लगी. परिवार की स्तिथि देखते-देखते सुधरने लगी. नये-नये कपड़े बर्तन खरीदा जाने लगे
घर का मरम्मत करवाई. पूरे परिवार में खुशहाली छा गई.

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तभी इसी बीच उसकी मुलाकत रमेश नामक युवक से हुई. रमेश सीमा के स्कूल में कंप्यूटर पर कार्य करता था और शहर में नया आया था . रमेश सीमा के घर के पास ही किराए में रहने लगा. उसे कुछ सहयता और सहयोग की आवश्यकता होती तो वह सीमा के घर पहुँच जाता . सीमा को मदद के लिए बोलता और सीमा झट से उसकी मदद कर देती. अब दोनो का मेलजोल बढ़ गया. घर आने-जाने का सिलसिला हो गया. रमेश मनही मन सीमा को पसंद करने लगा और सीमा भी रमेश को चाहने लगी. दोनों एक दूसरे से मन की बात नहीं कह पा रहे थे और समय बीत रहा था . फिर सीमा लगभग 1 माह के लिए अपने रिश्तेदार के यहां छुट्टियां मनाने चली गई और रमेश भी अपने घर चला गया . रमेश सीमा को बहुत याद करता . वह रोजाना उसे फोन करता और उसका हाल चाल पूछता . उसे अहसास हो गया की वह उसके बगैर नहीं रह पायेगा . सीमा भी रमेश से अपने मन की बात नहीं कह पाई. अब दोनों की छुट्टियां समाप्त हो गई और दोनो फिर स्कूल जाने लगे. दोनो का मिलना-जुलना पहले की तरह ही चलता रहा . लोग भी उनके बारे में तरह तरह की बातें करने लगे . रमेश ने एक दिन हिम्मत जुटाई और मौका देखकर सीमा से अपने प्यार का इजहार कर दिया. रमेश उससे बोला कि वह उससे बहुत प्यार करता है और उसके बगैर नहीं रह सकता . रमेश ने सीमा से पूछा कि वह उससे शादी भी करना चाहता है . सीमा ने जवाब दिया कि वह भी रमेश को बहुत चाहती है लेकिन शादी नही कर सकती.

रमेश सीमा की जात-बिरादरी का नही था और सीमा ने समाज-परिवार को देखते हुये यह निर्णय लिया . लेकिन रमेश उसको हमेशा शादी के लिए मनुहार करते रहता लेकिन सीमा बात टाल जाती . देखते-देखते 5वर्ष बीत गया . अब रमेश की नौकरी बिलासपुर के वन विभाग मे कांस्टेबल पद पर हो गई. तब से वह बिलासपुर में रहने लगा . लेकिन छुट्टी में वह सीमा से मिलने आता और सब से मिलता, उनके लिए उपहार लाता और खुशी खुशी वापस चला जाता. सीमा की माँ भी रमेश के घर आने से बहुत खुश होती और सोचती कि काश मुझे भी ऐसा दामाद मिल जाए जो मेरी बेटी को बहुत खुश रखे.

सात साल हो गये दोनो के प्रेम प्रसंग को लेकिन विवाह की कोई राह नहीं दिखी . अब सीमा सोचने लगी कि आखिर एक दिन किसी न किसी से विवाह करनी ही है तो क्यों न रमेश को ही हां कर दूँ . फिर उसने रमेश को अपने घर बुलवाया और शादी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया . उसने अपना निर्णय अपनी मां को बताया . पहले उसकी माँ जात बिरादरी और समाज के डर से नहीं मानी फिर बेटी का भला सोच कर हामी भर दी . माँ का आशीर्वाद लेकर दोनो ने मन्दिर में विवाह कर लिया . सीमा की सहेलियां, पड़ोसी और रिश्तेदार इस शादी से बहुत खुश हुए . सभी यही कहते हैं कि देर से ही सही बेचारी का घर तो बस गया. उसको जीवन साथी तो मिला.

शादी को 4 माह हो गये. सीमा अपने ससुराल भी जाकर आ गई . उसके ससुराल वाले उसे पूरी तरह से नहीं अपनाये थे. वह अभी भी अपनी मायके मे थी और स्कूल मे ही पढ़ा रही थी . रमेश भी बिलासपुर से सीमा के मायके आते-जाते रहता था.

फिर एक दिन रमेश ने सीमा से कहा कि वह उसे बिलासपुर घुमाने ले जाना चाहता है . सीमा ने कहा कि वह अभी नहीं जा सकती, स्कूल से छुट्टी नहीं मिलेगी . रमेश ने कहा कि शाम तक कैसे भी करके वह उसे वापस घर छोड़ देगा . सीमा मान गई . दोनो बिलासपुर जाने के लिए तैयार हुए और माँ की अनुमति लेकर हँसी खुशी घर से निकले. माँ ने सीमा से कहा कि ध्यान से जाना और अपना ख्याल रखना . सीमा बोली कि हम लोग शाम तक वापस लौट आयेंगे तुम खाना बनाकर रखना . अब दोनो चले गये .
शाम को सीमा की माँ खाना बनाकर सीमा और रमेश का रास्ता देख रही थी लेकिन दोनो की कोई खबर नही थी. मां ने फोन किया पर उनका फोन भी बन्द था. मां बहुत परेशान हो गई. सोची कि ऐसा तो कभी भी नहीं हुआ था कि उसकी बेटी का मोबाईल बन्द हो.

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अगले दिन सुबह ऐसी खबर आई कि सभी के पैरों तले जमीन खिसक गई . पता चला कि सड़क हादसे में सीमा की जान चली गई और रमेश बच गया था. फिर दुर्घटना स्थल से ही सीमा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया . कई पुलिस भी साथ में थे. इस दुखद घटना के बारे में सीमा की माँ को कुछ भी ज्ञात नहीं था . सीमा के छोटे भाई ने अपनी मां को बड़ी मुश्किल से बताया कि दीदी अब इस दुनिया में नहीं रही . मां ने जैसे ही सीमा की मौत की खबर सुनी तो होश खो बैठी और रो रो कर बुरा हाल हो गया. सीमा की मौत के दूसरे दिन लाश को घर लाया गया और उसके बाद मुक्तिधाम में उसका अन्तिम संस्कार कर दिया गया .

सीमा की मौत सच मे एक दुर्घटना थी या हत्या यह कह पाना मुश्किल है किन्तु लोगों की बातों को यदि गौर करें तो मामला हत्या का ही लग रहा था . क्योंकि उसकी माँ ने ही लोगों को बताया कि सीमा जब विवाह के लिए राजी हुई तब रमेश सीमा से विवाह नही करना चाहता था . रमेश के घरवाले उसे अपनी जाति की लड़की से विवाह करने के लिए दबाव डाल रहे थे और रमेश अपने परिवार की पसंद से शादी करना चाहता था . लेकिन सीमा ने रमेश को विवाह के लिए दबिश दी और रमेश ने हालात से घबराकर सीमा से विवाह किया था. शादी के कुछ दिनों बाद ही दोनो के बीच मनमुटाव और झगड़े होने लगे. दोनो का वैवाहिक जीवन खुशहाल नहीं था . रमेश ने सीमा को स्पष्ट बोल दिया कि वह उसे तलाक़ दे दे या दुसरी शादी करने की अनुमति दे. सीमा इस बात के लिए कतई राजी नहीं हुई . अब रमेश उससे पीछा छुड़ाने का उपाय सोचने लगा . और आखिरकार उसने इस शर्मनाक घटना को अंजाम दे दिया . उसने न केवल सीमा का बल्कि विश्वास और प्रेम का भी खून किया.

यह बात कितना सच है या मिथ्या यह तो सीमा को, रमेश को और इश्वर को ही पता होगा क्यौंकि आंखो देखा कोई साक्ष्य नहीं था . लेकिन सीमा की लाश उसके पति के झूठे प्रेम का हाल सुना रहे थे कि उसके ही पति ने किस तरह बेरहमी से उसे मौत के घाट उतारा था . सड़क दुर्घटना और लाश में एक भी चोट नहीं, रमेश भी बिल्कुल सही सलामत, उसके चेहरे पर न दुख न शिकन . तो कोई शक भी क्यो न करे . पुलिस और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार सीमा की मृत्यु को दुर्घटना घोषित किया .

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सीमा का प्रेम उसके लिए अभिशाप बन गया . उसकी जान ले के ही छोड़ा. काश वह समय रहते ही सम्भल गई होती, उसने रमेश से विवाह ही न किया होता. काश वह उस दिन अपने पति की बातों में आकर उसके साथ बाहर ही नहीं गई होती तो शायद आज सीमा सबके बीच जीवित होती. स्कूल में काम कर रही होती और जैसे तैसे अपना जीवन यापन कर रही होती . लेकिन किस्मत के लिखे को कौन टाल सकता है . सीमा के जाने के बाद उसकी माँ बिल्कुल अकेले हो गई. कही आना जाना भी छोड़ दी, घर मे ही चुपचाप पड़ी रहती और सीमा की याद में खोई रहती . आज रमेश दूसरी शादी कर खुशी-खुशी जीवन व्यतीत कर रहा है . यह भी उसके अपराधी होने का सबसे बड़ा साक्ष्य जान पड़ता है . सीमा, उसका प्यार, और उसकी यादें अब रमेश के जीवन से काफी ओझल हो चुका है. काश हर युवती और महिलायें अपने प्रेम के साथ वक्त और हालात की नजाकत को समझते हुए कुछ निर्णय लें तो इस दुनिया में ऐसे दुखद हादसे होना कुछ कम हो जायें .

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