आज मैं ने वह सब देखा जिसे देखने की मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी. कालिज से घर लौटते समय मुझे डैडी अपनी कार में एक बेहद खूबसूरत औरत के साथ बैठे दिखाई दिए. जिस अंदाज में वह औरत डैडी से बात कर रही थी, उसे देख कर कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि वह डैडी के बेहद करीब थी.

10 साल पहले जब मेरी मां की मृत्यु हुई थी तब सारे रिश्तेदारों ने डैडी को दूसरा विवाह करने की सलाह दी थी लेकिन डैडी ने सख्ती से मना करते हुए कहा था कि मैं अपनी बेटी शिवानी के लिए दूसरी मां किसी भी सूरत में नहीं लाऊंगा और डैडी अपने वादे पर अब तक कायम रहे थे, लेकिन आज अचानक ऐसा क्या हो गया, जो वह एक औरत के करीब हो कर मेरे वजूद को उपेक्षा की गरम सलाखों से भेद रहे थे.

मुझे अच्छी तरह  से याद है कि मम्मी और डैडी के बीच कभी नहीं बनी थी. मम्मी के खानदान के मुकाबले में डैडी के खानदान की हैसियत कम थी, इसलिए मम्मी बातबात पर अपनी अमीरी के किस्से बयान कर के डैडी को मानसिक पीड़ा पहुंचाया करती थीं. मेरी समझ में आज तक यह बात नहीं आई कि जब डैडी और मम्मी के विचार आपस में मिलते नहीं थे तब डैडी ने उन्हें अपनी जीवनसंगिनी क्यों बनाया था.

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कालिज से घर आते ही काकी मां ने मुझ से चाय के लिए पूछा तो मैं उन्हें मना कर अपने कमरे मेें आ गई और अपने आंसुओं से तकिए को भिगोने लगी.

5 बजे के आसपास डैडी का फोन आया तो मैं अपने गुस्से पर जबरन काबू पाते हुए बोली, ‘‘डैडी, इस वक्त आप कहां हैं?’’

‘‘बेटे, इस वक्त मैं अपनी कार ड्राइव कर रहा हूं,’’ डैडी बडे़ प्यार से बोले.

‘‘आप के साथ कोई और भी है?’’ मैं ने शक भरे अंदाज में पूछा.

‘‘अरे, तुम्हें कैसे पता चला कि इस समय मेरे साथ कोई और भी है. क्या तुम्हें फोन पर किसी की खुशबू आ गई?’’ डैडी हंसते हुए बोले.

‘‘हां, मैं आप की इकलौती बेटी हूं, इसलिए मुझे आप के बारे में सब पता चल जाता है. बताइए, कौन है आप के साथ?’’

‘‘देखा तुम ने अरुणिमा, मेरी बेटी मेरे बारे मेें हर खबर रखती है.’’

मुझे समझते देर नहीं लगी कि डैडी के साथ कार में बैठी औरत का नाम अरुणिमा है.

‘‘जनाब, यहां आप गलत फरमा रहे हैं,’’ डैडी के मोबाइल से मुझे एक औरत की खनकती आवाज सुनाई दी, ‘‘अब वह आप की नहीं, मेरी भी बेटी है.’’

उस औरत का यह जुमला जहरीले तीर की तरह मेरे सीने में लगा. एकाएक मेरे दिमाग की नसें तनने लगीं और मेरा जी चाहा कि मैं सारी दुनिया को आग लगा दूं.

‘‘शिवानी बेटे, तुम लाइन पर तो हो न?’’ मुझे डैडी का बेफिक्री से भरा स्वर सुनाई दिया.

‘‘हां,’’ मैं बेजान स्वर में बोली, ‘‘डैडी, यह सब क्या हो रहा है? आप के साथ कौन है?’’

‘‘बेटे, मैं तुम्हें घर आ कर सब बताता हूं,’’ इसी के साथ डैडी ने फोन काट दिया और मैं सोचती रह गई कि यह अरुणिमा कौन है? यह डैडी के जीवन में कब और कैसे आ गई?

डैडी और अरुणिमा के बारे में सोचतेसोचते कब मेरी आंख लग गई, मुझे पता ही नहीं चला.

7 बजे शाम को काकी मां ने मुझे उठाया और चिंतित स्वर में बोलीं, ‘‘बेटी शिवानी, क्या बात है? आज तुम ने चाय नहीं पी. तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘काकी मां, मेरी तबीयत ठीक है. डैडी आ गए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, और वह तुम्हें बुला रहे हैं. उन्होंने कहा है कि तुम अच्छी तरह से तैयार हो कर आना,’’ इतना कह      कर काकी मां कमरे से बाहर निकल गईं.

थोड़ी देर बाद मैं ड्राइंगरूम में आई तो मुझे सोफे पर वही औरत बैठी दिखाई दी जिसे आज मैं ने डैडी के साथ उन की कार में देखा था.

‘‘अरु, यह है मेरी बेटी, शिवानी,’’ डैडी उस औरत से मेरा परिचय कराते हुए बोले.

न चाहते हुए भी मेरे हाथ नमस्कार करने की मुद्रा में जुड़ गए.

‘‘जीती रहो,’’ वह खुद ही उठ कर मेरे करीब आ गईं और फिर मेरा चेहरा अपने हाथों में ले कर उन्होंने मेरे माथे पर एक प्यारा चुंबन अंकित कर दिया.

‘‘अगर मेरी कोई बेटी होती तो वह बिलकुल तुम्हारे जैसी होती. सच में तुम बहुत प्यारी हो.’’

‘‘अरु, यह भी तो तुम्हारी बेटी है,’’ डैडी हंसते हुए बोले.

डैडी के ये शब्द पिघले सीसे की तरह मेरे कानों में उतरते चले गए. मेरा जी चाहा कि मैं अपने कमरे में जाऊं और खूब फूटफूट कर रोऊं. आखिर डैडी ने मेरे विश्वास का खून जो किया था.

‘‘बेटी, तुम करती क्या हो?’’  अरुणिमाजी ने मुझे अपने साथ बैठाते हुए पूछा.

उस वक्त मेरी हालत बड़ी अजीब सी थी. जिस औरत से मुझे नफरत करनी चाहिए थी वह औरत मेरे वजूद पर अपने आप छाती जा रही थी.

मैं उन्हें अपनी पढ़ाई के बारे में बताने लगी. हम दोनों के बीच बहुत देर तक बातें हुईं.

‘‘काकी मां, देखो तो कौन आया है?’’ डैडी ने काकी मां को आवाज दी.

‘‘मैं जानती हूं, कौन आया है,’’ काकी मां ने वहां चाय की ट्राली के साथ कदम रखा.

‘‘अरे, काकी मां आप,’’  अरुणिमा उन्हें देखते ही खड़ी हो गईं.

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चाय की ट्राली मेज पर रख कर काकी मां उन की तरफ बढ़ीं. फिर दोनों प्यार से गले मिलीं तो मैं दोनों को उलझन भरी निगाहों से देखने लगी.

अरुणिमा का इस घर से पूर्व में गहरा संबंध था, यह बात तो मैं समझ गई थी, लेकिन कोई सिरा मेरे हाथों में नहीं आ रहा था.

‘‘काकी मां, आप इन्हें जानती हैं?’’ मैं ने हैरत भरे स्वर में काकी मां से पूछा.

काकी मां के बोलने से पहले ही डैडी बोल पड़े, ‘‘बेटी, अरुणिमाजी का इस घर से गहरा संबंध रहा है. हम दोनों एक ही स्कूल और एक ही कालिज में पढ़े हैं.’’

तभी अरुणिमाजी ने डैडी को इशारा किया तो डैडी ने फौरन अपनी बात पलटी और सब को चाय पीने के लिए कहने लगे.

अब मेरी समझ में कुछकुछ आने लगा था कि मम्मीडैडी के बीच ऐसा क्या था जो वे एकदूसरे से बात करना तो दूर, देखना तक पसंद नहीं करते थे. निसंदेह डैडी शादी से पहले इसी अरुणिमाजी से प्यार करते थे.

चाय पीने के दौरान मैं ने अरुणिमाजी से काफी बातें कीं. वह बहुत जहीन थीं. वह हर विषय पर खुल कर बोल सकती थीं. उन की नालेज को देख कर मेरी उन के प्रति कुछ देर पहले जमी नफरत की बर्फ तेजी से पिघलने लगी.

उन की बातों से मुझे यह भी पता चला कि वह एक प्रोफेसर थीं. कुछ साल पहले उन के पति का देहांत हो गया था. उन का अपना कहने को इकलौता बेटा नितिन था, जो बिजनेस के सिलसिले में कुछ दिनों के लिए लंदन गया हुआ था.

रात का डिनर करने के बाद जब अरुणिमा गईं तो मैं अपने कमरे में आ गई. मैं ने कहीं पढ़ा था कि कुछ औरतों की भृकुटियों में संसार भर की राजनीति की लिपि होती है, जब उन की पलकें झुक जाती हैं तो न जाने कितने सिंहासन उठ जाते हैं और जब उन की पलकें उठती हैं तो न जाने कितने राजवंश गौरव से गिर जाते हैं.

अरुणिमाजी भी शायद उन्हीं औरतों में एक थीं, तभी डैडी ने दूसरी शादी न करने की जो कसम खाई थी, उसे आज वह तोड़ने के लिए हरगिज तैयार नहीं होते. मैं बिलकुल नहीं चाहती कि इस उम्र में डैडी अरुणिमाजी से शादी कर के दीनदुनिया की नजरों में उपहास का पात्र बनें.

सुबह टेलीफोन की घंटी से मेरी आंख खुली. मैं ने फोन उठाया तो मुझे अरुणिमाजी की मधुर आवाज सुनाई दी. ‘‘स्वीट बेबी, मैं ने तुम्हें डिस्टर्ब तो नहीं किया?’’

‘‘नहीं, आंटीजी,’’ मैं जरा संभल कर बोली, ‘‘आज मेरे कालिज की छुट्टी थी, इसलिए मैं देर तक सोने का मजा लेना चाह रही थी.’’

‘‘इस का मतलब मैं ने तुम्हारी नींद में खलल डाला. सौरी, बेटे.’’

‘‘नहीं, आंटीजी, ऐसी कोई बात नहीं है. कहिए, कैसे याद किया?’’

‘‘आज तुम्हारी छुट्टी है. तुम मेरे घर आ जाओ. हम खूब बातें करेंगे. सच कहूं तो बेटे, कल तुम से बात कर के बहुत अच्छा लगा था.’’

‘‘लेकिन आंटी, डैडी की इजाजत के बिना…’’ मैं ने अपना वाक्य जानबूझ कर अधूरा छोड़ दिया.

‘‘तुम्हारे डैडी से मैं बात कर लूंगी,’’ वह बडे़ हक से बोली, ‘‘वह मना नहीं करेंगे.’’

उस पल जेहन में एक ही सवाल परेशान कर रहा था कि जिस से मुझे बेहद नफरत होनी चाहिए, मैं धीरेधीरे उस के करीब क्यों होती जा रही हूं?

1 घंटे बाद मैं अरुणिमाजी के सामने थी. उन्होंने पहले तो मुझे गले लगाया, फिर बड़े प्यार से सोफे पर बैठाया. इस के बाद वह मेरे लिए नाश्ता बना कर लाईं. नाश्ते के दौरान मैं ने उन से पूछा, ‘‘आंटी, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप से मिले हुए मुझे अभी सिर्फ 1 दिन हुआ है. सच कहूं तो मैं कल से सिर्फ आप के बारे में ही सोचे जा रही हूं. अगर आप मुझे पहले मिल जातीं तो कितना अच्छा होता,’’ यह कह कर मैं उन के घर को देखने लगी.

उन का सलीका और हुनर ड्राइंग रूम से बैडरूम तक हर जगह दिखाई दे रहा था. हर चीज करीने से रखी हुई थी. उन का घर इतना साफसुथरा और खूबसूरत था कि वह मुझे मुहब्बतों का आईना जान पड़ा.

उन के सलीके और हुनर को देख कर मेरे दिल में एक हूक सी उठ रही थी. मैं सोच रही थी कि काश, उन के जैसी मेरी मां होतीं. तभी मेरी आंखों के सामने मेरी मम्मी का चेहरा घूम गया. मेरी मम्मी एक मगरूर औरत थीं, उन्होंने अपनी जिंदगी का ज्यादातर वक्त डैडी से लड़ते हुए बिताया था.

मेरी मम्मी ने बेशक मेरे डैडी के शरीर पर कब्जा कर लिया था, लेकिन वह उन के दिल में जगह नहीं बना पाई थीं, जोकि एक स्त्री अपने पति के दिल में बनाती है.

अब अरुणिमाजी की जिंदगी एक खुली किताब की तरह मेरे सामने आ गई थी. उन के दिल के किसी कोने में मेरे डैडी के लिए जगह जरूर थी. लेकिन उन्होंने डैडी से शादी क्यों नहीं की थी, यह बात मेरी समझ से बाहर थी.

शाम होते ही डैडी मुझे लेने आ गए. रास्ते में मैं ने उन से पूछा, ‘‘डैडी, अगर आप बुरा न मानें तो मैं आप से एक बात पूछ सकती हूं?’’

डैडी ने बड़ी हैरानी से मुझे देखा, फिर आहत भाव से बोले, ‘‘बेटे, मैं ने आज तक  तुम्हारी किसी बात का बुरा माना है, जो आज तुम ऐसी बात कह रही हो. तुम जो पूछना चाहती हो पूछ सकती हो. मैं तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं मानूंगा.’’

‘‘आप अरुणिमाजी से प्यार करते हैं न?’’ मैं ने बिना किसी भूमिका के कहा.

डैडी पहले काफी देर तक चुप रहे फिर एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोले, ‘‘यह सच है कि एक वक्त था जब हम दोनों एकदूसरे को हद से ज्यादा चाहते थे और हमेशा के लिए एकदूसरे का होने का फैसला कर चुके थे.’’

‘‘ऐसी बात थी तो आप ने एकदूसरे से शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘क्योंकि तुम्हारे दादा ने मुझे अरुणिमा से शादी करने से मना किया था. तब मैं ने अपने मांबाप की मर्जी के बिना घर से भाग कर अरुणिमा से शादी करने का फैसला किया, लेकिन उस वक्त अरुणिमा ने मेरा साथ नहीं दिया था. तब उस का यही कहना था कि हमारे मांबाप के हम पर बहुत एहसान हैं, हमें उन के एहसानों का सिला उन के अरमानों का खून कर के नहीं देना चाहिए. उन की खुशियों के लिए हमें अपने प्यार का बलिदान करना पडे़गा.

‘‘मैं ने तब अरुणिमा को काफी समझाया, लेकिन वह नहीं मानी. इसलिए हमें एकदूसरे की जिंदगी से दूर जाना पड़ा. कुछ दिन पहले वह मुझे एक पार्टी में नहीं मिलती तो मैं उसे तुम्हारी मम्मी कभी नहीं बना पाता. आज की तारीख में उस का एक ही लड़का है, जिसे अरुणिमा के तुम्हारी मम्मी बनने से कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘लेकिन डैडी, मुझे एतराज है,’’ मैं कड़े स्वर में बोली.

‘‘क्यों?’’ डैडी की भवें तन उठीं.

‘‘क्योंकि मैं नहीं चाहती कि आप की जगहंसाई हो.’’

‘‘मुझे किसी की परवा नहीं है,’’ डैडी सख्ती से बोले, ‘‘तुम्हें मेरा कहा मानना ही होगा. तुम अपने को दिमागी तौर पर तैयार कर लो. कुछ ही दिनों में वह तुम्हारी मम्मी बनने जा रही है.’’

उस वक्त मुझे अपने डैडी एक इनसान न लग कर एक हैवान लगे थे, जो दूसरों की इच्छाओं को अपने नुकीले नाखूनों से नोंचनोंच कर तारतार कर देता है.

2 दिन पहले ही अरुणिमाजी का इकलौता बेटा नितिन लंदन से वापस लौटा तो उन्होंने उस से सब से पहले मुझे मिलाया. नितिन के बारे में मैं केवल इतना ही कहूंगी कि वह मेरे सपनों का राजकुमार है. मैं ने अपने जीवन साथी की जो कल्पना की थी वह हूबहू नितिन जैसा ही था.

कितनी अजीब बात है, जिस बाप को शादी की उम्र की दहलीज पर खड़ी अपनी औलाद के हाथ पीले करने के बारे में सोचना चाहिए वह बाप अपने स्वार्थ के लिए अपनी औलाद की खुशियों का खून कर के अपने सिर पर सेहरा बांधने की सोच रहा है.

आज अरुणिमाजी खरीदारी के लिए मुझे अपने साथ ले गई थीं. मैं उन के साथ नहीं जाना चाहती थी, लेकिन डैडी के कहने पर मुझे उन के साथ जाना पड़ा. शौपिंग के दौरान जब अरुणिमाजी ने एक नई नवेली दुलहन के कपड़े और जेवर खरीदे, तो मुझे उन से भी नफरत होने लगी थी.

मैं ने मन ही मन निश्चय कर अपनी डायरी में लिख दिया कि जिस दिन डैडी अपने माथे पर सेहरा बांधेंगे, उसी दिन इस घर से मेरी अर्थी उठेगी.

आज मुझे अपने नसीब पर रोना आ रहा है और हंसना भी. रोना इस बात पर आ रहा है कि जो मैं ने सोचा था वह हुआ नहीं और जो मैं ने नहीं सोचा था वह हो गया.

यह बात मुझे पता चल गई थी कि डैडी को अरुणिमा आंटी को मेरी मां बनाने का फैसला आगे आने वाले दिन 28 नवंबर को करना था और यह विवाह बहुत सादगी से गिनेचुने लोगों के बीच ही होना था.

28 नवंबर को सुबह होते ही मैं ने खुदकुशी करने की पूरी तैयारी कर ली थी. मैं ने सोच लिया था कि डैडी जैसे ही अरुणिमा आंटी के साथ सात फेरे लेंगे, वैसे ही मैं अपने कमरे में आ कर पंखे से लटक कर फांसी लगा लूंगी.

दोपहर को जब मैं अपने कमरे में मायूस बैठी थी तभी काकी मां ने कुछ सामान के साथ वहां कदम रखा और धीमे स्वर में बोलीं, ‘‘ये कपड़े तुम्हारे डैडी की पसंद के हैं, जोकि उन्होंने अरुणिमा बेटी से खरीदवाए थे. उन्होंने कहा है कि तुम जल्दी से ये कपड़े पहन कर नीचे आ जाओ.’’

मैं काकी मां से कुछ पूछ पाती उस से पहले वह कमरे से बाहर निकल गईं और कुछ लड़कियां मेरे कमरे में आ कर मुझे संवारने लगीं.

थोड़ी देर बाद मैं ने ड्राइंगरूम में कदम रखा तो वहां काफी मेहमान बैठे थे. मेहमानों की गहमागहमी देख कर मेरी समझ में कुछ नहीं आया.

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मैं सोफे पर बैठी ही थी कि वहां अरुणिमाजी आ गईं. उन के साथ नितिन नहीं आया था.

‘‘शिशिर, हमें इजाजत है?’’ उन्होंने डैडी से पूछा.

‘‘हां, हां, क्यों नहीं, यह रही तुम्हारी अमानत. इसे संभाल कर रखिएगा,’’  डैडी भावुक स्वर में बोले.

तभी वहां नितिन ने कदम रखा, जो दूल्हा बना हुआ था. मेरा सिर घूम गया. मैं ने उलझन भरी निगाहों से डैडी की तरफ देखा तो वह मेरे करीब आ कर बोले, ‘‘मैं ने तुम से कहा था न कि मैं अरुणिमा आंटी को तुम्हारी मम्मी बनाऊंगा. आज से अरुणिमा आंटी तुम्हारी मम्मी हैं. इन्हें हमेशा खुश रखना.’’ एकाएक मेरी रुलाई फूट पड़ी. मैं डैडी के गले लग गई और फूटफूट कर रोने लगी. इस के बाद पवित्र अग्नि के सात फेरे ले कर मैं नितिन की हमसफर और अरुणिमाजी की बेटी बन गई.

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