सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश से देश के 20 लाख मंदिरों, 3 लाख मसजिदों और हजारों चर्चों व गुरुद्वारों को सकते में डाल दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों और जिला न्यायालयों को एक तरह से सरकार चलाने पर निगरानी करने के लिए आदेश दिया है. कहने को आदेश स्वच्छता, प्रवेश और पैसे की संभाल से संबंधित है पर यदि यह लागू हो गया तो मंदिर मसजिद दुकानदारी पर सही और गहरा आघात होगा.
सृष्टि निर्माण ईश्वर, जन्म, मृत्यु, पुनर्जन्म मृत्यु पश्चात स्वर्गनर्क की बातें कर के असल में धर्म लोगों की जेबें काटने वाले अनूठे तरीके ही बने रहे हैं. सभी धर्मों ने बड़ी चतुरता से आम व्यक्ति को अपने पंडे पुरोहितों के थोड़े ज्ञान के सहारे एक अनूठे जाल में फांस लिया और पीढ़ीदरपीढ़ी लोगों को जन्म से मृत्यु तक ले कर धर्म टैक्स देना पड़ रहा है. इसी टैक्स को सुरक्षित करने के लिए धर्म के दुकानदारों मसजिद, मठ, मंदिर, चर्च, गुरुद्वारे, …. बनवाए और उन में नियुक्त लोगों को बैठे ठाले हलवा पूरी भी दिलाई, औरतें पहुंचवाई, ताकत दी और सुरक्षा दी.
धर्म की दुकानदारी में लोग सदियों से अपनी सत्ता की सुरक्षा के लिए लोगों को बहकाते रहे हैं और सामाजिक प्रबंध के नाम पर प्रतिबंधों की लंबी फेहरिश्त बनाते रहे हैं. धर्मों ने केवल अपने को सुरक्षित करने के लिए अरबों की हत्याएं कराई हैं. ज्यादातर युद्घ जर, जमीन और जोरू के लिए नहीं धार्मिक सत्ता के लिए हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश इस सत्ता पर नियंत्रण करने का प्रयास है. यह सफल होगा इस में पूरा संदेह है क्योंकि बुद्ध, महावीर, धर्वाक, मार्टिन लूथर जैसे प्रारंभिक सफलताओं के बावजूद मूल धर्मों का खास बिगाड़ नहीं पाए.
सुप्रीम कोर्ट ने अभी सावधानी रखी है कि आदेश केवल भक्तों की आड़ में दिया है कि उन्हें असुविधाएं न हों और उन के चढ़ावे का सदुपयोग हो. सुप्रीम कोर्ट मंदिरों मसजिदों का प्रबंध नहीं छेड़ रहीं. जो कमा रहा है, कमाता रहे पर हिसाब रखे. उसे चुनौती देना आसान नहीं होगा.
अन्य देशों ने जब भी धार्मिक दुकानों को नियंत्रित करने की कोशिश की है, उन्होंने या तो प्रवेश बंद कराया या राज्य या सरकार ने उन्हें छीन लिया. सुप्रीम कोर्ट का आदेश आल्वीयत कर कोई रोकटोक नहीं लगाता पर यह सभी धर्मों के दुकानदारों को नहीं भाएगा, पक्का है. धर्म पर आधारित भारतीय जनता पार्टी की सरकार को अपनों के ही दिए आघात का मुकाबला करने के उपाय ढूंढ़ने होंगे.