Society News in Hindi: गांव में शादियों के मामले में सरकारी नौकरी बनाम पकौड़ा रोजगार के मद्देनजर पकौड़े बेचने वाले युवाओं को लोग कम पसंद कर रहे हैं. ऐसे में खेतीकिसानी और उस से जुड़े रोजगार करने वालों को तो गांव की सही लड़की मिल भी जा रही है पर बेरोजगार (Employment) और नशेड़ी युवाओं (Drug Addicts) के लिए शादी के रिश्ते ही नहीं आ रहे हैं. गांव में शादी योग्य लड़कों की संख्या बढ़ती जा रही है. लड़कियों की जनसंख्या (Population of Girl Child) कम होने से लड़कों के सामने शादी एक समस्या बनती जा रही है. योग्य लड़कों की तलाश की वजह से दहेज (Dowry) भी बढ़ता जा रहा है. अच्छे लड़कों की गिनती में सरकारी नौकरी (Goverment Job) वाले सब से आगे हैं. गांव में रोजगार करने वाले लड़कों के लिए गांव की लड़कियों के रिश्ते भले ही आ रहे हों पर उन के लिए पढ़ीलिखी व नौकरी करने वाली शहरी लड़कियों के रिश्ते नहीं आ रहे हैं.

कानपुर में विवाह का एक कार्यक्रम था. लड़कालड़की वाले सभी रीतिरिवाजों में व्यस्त थे. शादी में शामिल होने आए नातेरिश्तेदार इस चर्चा में मशगूल थे कि गांव में लड़कों की शादियों के लिए बहुत कम रिश्ते आ रहे हैं. इस शादी में कानपुर, रायबरेली, हरदोई, उन्नाव और लखनऊ जैसे करीबी शहरों के तमाम लोग शामिल हुए थे.

हर किसी का कहना था कि उन के गांव में 20 से ले कर 50 तक की संख्या में लड़के शादीयोग्य उम्र के हैं, लेकिन उन की शादी नहीं हो पा रही है. उन की उम्र बढ़ती जा रही है. यह परेशानी केवल कानपुर की शादी में ही चर्चा का विषय नहीं थी बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में एक शादी समारोह में भी ऐसी ही चर्चा हो रही थी. यहां गोंडा, बलरामपुर, बस्ती, सुल्तानपुर और गोरखपुर के लोग इसी परेशानी की चर्चा में लगे दिखे.

सामान्यतौर पर देखें तो ऐसे हालात हर गांव में दिख रहे हैं. अगड़ी और पिछड़ी दोनों ही जातियों में यह समस्या दिख रही है. पिछड़ी जातियों में यह समस्या उन जातियों में सब से अधिक है जो पिछड़ों में अगड़ी जातियां जैसे यादव, कुर्मी, पटेल हैं. अगड़ी और पिछड़ी जातियों के मुकाबले दलितों में ऐसे हालात नहीं हैं.

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव जब मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कन्या विद्याधन योजना चलाई थी जिस के तहत हाईस्कूल और इंटर पास करने वाली लड़कियों को नकद पैसे मिले. इस के साथ उन्हें साइकिल भी मिली थी. इस योजना के  बाद गांवों में लड़कियों के स्कूल जाने की तादाद में तेजी से बढ़ोतरी हुई थी. अब गंवई इलाकों में ग्रेजुएट लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक हो गई है. इन इलाकों में शिक्षक के रूप में नौकरी पाने वालों में भी लड़कों के मुकाबले लड़कियां अधिक हैं.

आगे निकल रही हैं लड़कियां

एक तरफ समाज में यह कहा जा रहा है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की संख्या कम होती जा रही है, दूसरी तरफ लड़कों की शादी के लिए लड़कियों के परिवारों से रिश्ते नहीं आ रहे हैं. इस स्थिति को समझने के लिए जब कई ग्रामीणों से बात की गई तो पता चला कि योग्यता के पैमाने पर लड़कियां लड़कों से आगे निकल रही हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों, जैसे देवरिया, बलिया, गोरखपुर में शादियों के रिश्ते ज्यादातर बिहार से आते हैं. बिहार  में लड़कियां शिक्षा के मामले में ज्यादा आगे निकल रही हैं. ऐसे में बिहार से शादी के लिए उत्तर प्रदेश के इन जिलों में आने वाले रिश्ते खत्म हो गए हैं. उत्तर प्रदेश के इन जिलों के गांवों में रहने वाले लड़कों के लिए अब रिश्ते नहीं आ रहे हैं. बिहार में यह परेशानी जस की तस उत्तर प्रदेश जैसी ही है.

गांव में रहने वालों में से करीब 50 फीसदी लोग अब दूरदराज के शहरों में रहने लगे हैं. ये लोग अपना परिवार सीमित रखते हैं. लड़की हो या लड़का, दोनों को पढ़ने का समान अवसर देते हैं. ऐसे में ये परिवार अपनी लड़की को शादी के लिए शहर से गांव में नहीं ले जाते हैं. उस का कारण गांव में रहने वालों की संकीर्ण विचारधारा और रूढि़वादी सोच है. गांव में भले ही लड़के के पास जमीन या रोजगार हो, वह शहर में प्राइवेट नौकरी करने वाले से अधिक पैसा कमा रहा हो पर उस की सोच वही होती है, ऐसे में पढ़ीलिखी लड़की खुद को वहां ऐडजस्ट नहीं कर पाती है. परिवारों के सीमित होने से लड़की के परिवार के पास अब लड़की की शादी में खर्च करने के लिए पैसा है और वह बेटी के भविष्य को सुखमय देखना चाहता है. ऐसे में वह नौकरी करने वाले लड़कों को प्राथमिकता देता है.

जाति और गोत्र की परेशानी

गांव में रहने वाले परिवार आज भी जाति व गोत्र की ऊंचनीच में फंसे हैं. गैरबिरादरी में शादी तो बड़ी दूर की बात है. सब से पहली इच्छा भी यही होती है कि लड़के की शादी एक गोत्र नीचे और लड़की की शादी एक गोत्र ऊपर की जाए. हालांकि, अब इस प्रथा को छोड़ने के लिए लोग तैयार हो गए हैं.

अब लोगों की इच्छा रहती है कि अपनी ही बिरादरी में शादी हो जाए. गोत्र को ले कर लोग समझौते करने लगे हैं. अभी गैरबिरादरी में वे शादी करने को तैयार नहीं होते हैं. अपनी ही जाति में योग्य लड़कों की संख्या सब से कम मिलती है. अगर मिलती भी है तो वहां दहेज अधिक देना पड़ता है. दहेज की मांग इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि योग्य लड़कों की संख्या बहुत कम है, सो, उन के लिए शादी के औफर ज्यादा हैं. योग्यता  के पैमाने के बाद पर्सनैलिटी के हिसाब से देखें तो गांव के लड़केलड़कियों से कमतर दिखते हैं.

गांव के लोगों में गैरबिरादरी में शादी का रिवाज नहीं है. ऐसा केवल अगड़ी जाति में ही नहीं है. पिछड़ी और दलित जातियों में भी अपनी जाति से बाहर शादी करने का चलन नहीं है. यही कारण है कि विवाह योग्य कुछ लोग जब अपनी शादी होते नहीं देखते तो वे दूरदराज से शादी कर के लड़की ले आते हैं. उस की जाति के बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता है और धीरेधीरे उस को सामाजिक स्वीकृति भी मिल जाती है.

हरियाणा और पंजाब में ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं जहां पर बिहार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और नेपाल की लड़कियां आ जाती हैं. कई लोग तो ऐसी लड़कियों को खरीद कर लाते हैं.

नशे के शिकार

गांव में खेतीकिसानी ही मुख्य पेशा होता है. हाल के कुछ सालों में किसानी बेहाल होती जा रही है. गांव के आसपास शहरों का विकास होने लगा है. गांव की जमीन महंगी होती जा रही है. गांव के आसपास सड़क बनने से सरकार ग्रामीणों से जमीन खरीद कर उन्हें अच्छाखासा मुआवजा देने लगी है. घर और रिसोर्ट बनाने वाले भी गांवों की जमीन की खरीदारी कर रहे हैं. शहरों में रहने वाले लोग भी गांव की जमीनें खरीदने लगे हैं. ऐसे में गांव के लोगों के पास जमीन बेचने से  पैसा आने लगा है.

पैसा आने के बाद ये लोग उस का उपयोग अपने ऐशोआराम में करने लगे हैं. ऐसे में नशे की प्रवृत्ति सब से अधिक बढ़ती है. गांव में रहने वाले 90 फीसदी युवा नशे के शिकार हो रहे हैं. ये शराब, भांग और गांजा सहित तंबाकू का सेवन करने लगे हैं. पढ़ाईलिखाई से दूर ऐसे बेरोजगार युवाओं से लोग अपनी लड़की की शादी नहीं करना चाहते हैं.

नशे के आदी इन युवाओं की छवि बेहद खराब है. लड़कियों को लगता है कि ये लोग शादी के बाद मारपीट और गालीगलौज अधिक करते हैं. ऐसे में इन के पास जमीनजायदाद होते हुए भी लड़कियां शादी के लिए तैयार नहीं होतीं. कई बार अगर मातापिता के दबाव में लड़की शादी करने को राजी हो भी जाए तो आखिर में शादी टूट ही जाती है. नशे और स्वभाव के चलते गंवई लड़के लड़कियों को पसंद नहीं आते. गांव के माहौल में ग्रामीण लड़कियां तो किसी तरह से अपने को ढाल भी लें पर शहरी लड़कियां ऐसा नहीं कर पाती हैं.

समाजसेवी राकेश कुमार कहते हैं, ‘‘गांव में भी अब परिवार सीमित होने लगे हैं. ऐसे में लड़कियों के मातापिता अपनी लड़की की शादी नौकरी करने वालों से करना चाहते हैं. इस के अलावा, उन की यह चाहत भी रहती है कि लड़की शहर में रहे.’’

रूढ़िवादी सोच

शहरों के मुकाबले ग्रामीणों की रूढि़वादी सोच भी यहां की शादियों में एक बड़ी परेशानी बन रही है. तमाम तरह के रीतिरिवाज पुराने ढंग से निभाए जा रहे हैं, जिन के बारे में शहरों में रह रही लड़कियां कुछ जानती भी नहीं. ऐसे में उन को वहां सामंजस्य बैठाना सरल नहीं होता. रूढि़वादी सोच के कारण लड़कियों को वहां टीकाटिप्पणी का सामना भी करना पड़ता है, जिस से नई सोच की लड़कियों को परेशानी होने लगती है.

गांव में आज भी परदा प्रथा हावी है. अभी भी वहां घूघंट निकाल कर रहना पड़ता है. किसी काम के लिए बाहर आनेजाने पर मनाही है, जिस की वजह से पढ़ीलिखी लड़कियों को लगता है कि वे गांव में शादी कर के अपने कैरियर को हाशिए पर ले जा रही हैं.

अभी भी बहुत सारे गांवों में घरों में शौचालय नहीं हैं. जिन घरों में हैं भी, वहां वे प्रयोग में नहीं हैं. ऐसे में शहरों या कसबों की लड़कियों के लिए वहां शादी करना मुश्किल हो रहा है. अब गांव के लोग भी अपनी लड़कियों की शादी शहरों में करना चाहते हैं. वे उन लड़कों को अधिक महत्त्व देते हैं जो गांव और शहर दोनों जगह रहते हैं.

सब से बड़ी शर्त सरकारी नौकरी की होने लगी है. सरकारी नौकरी वाले लड़के से अपेक्षा की जाती है कि वह गांव में रहने के साथसाथ शहर या कसबे में भी अपना घर जरूर बना लेगा. ऐसे में लड़की को गांव में ही नहीं रहना होगा. आज जिस तरह से महिलाओं के मजबूर होने की बात हो रही है उस से शादी के मामले में लड़कियों की पसंद का भी खयाल रखा जाने लगा है.

बदलती जीवनशैली

लड़कियों की बदलती जीवनशैली, पहनावा और शिक्षा भी इस के लिए एक महत्त्वपूर्ण कारक बन गया है. इस के अलावा लड़कियों की शादी की उम्र भी बढ़ गई है. पहले जहां 18 से 20 साल में लड़की की शादी हो जाती थी वहीं अब 20 से 25 वर्ष तक की उम्र में शादी हो रही है. लड़की कम से कम अब ग्रेजुएशन कर रही है और किसी न किसी रूप में रोजगार या नौकरी से जुड़ रही है.

ऐसे में वह आसानी से समझौते नहीं करती है. उस की पसंद गांव वाली शादी नहीं होती है. वह शहर में शादी कर के रहना चाहती है. इस वजह से भी गांव में शादी करने के लिए लोग रिश्ते ले कर कम आ रहे हैं.

गांव में पहले ज्यादातर शादियां आपसी रिश्तों में तय होती थीं. अब आपसी रिश्तेदारियों में लोग शादी कर शादी के बाद होने वाली परेशानियों से बचना चाहते हैं.

ऐसे में जानकारी के बाद भी लोग शादी के बीच में नहीं पड़ना चाहते हैं. गांव के रहने वालों के सामने लड़की को तलाश करने का कोई दूसरा माध्यम नहीं है. गांव के लोगों का अभी भी वैवाहिक विज्ञापनों पर भरोसा नहीं है. ऐसे में शादी लायक युवकों के सामने परेशानी बढ़ती जा रही है.

कई बारबार ऐसे गांवों का हाल प्रमुखता से खबरों में आता है जहां पानी या सड़क की परेशानी के चलते शादियां कम होती हैं. ऐसे गांवों की संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है जहां पर लड़कों की शादियों के लिए रिश्ते कम आ रहे हैं. इस के अपने अलगअलग कारण हैं. परेशानी की बात यह है कि सालदरसाल वह परेशानी बढ़ती जा रही है. इस से गांव में एक अलग किस्म का बदलाव महसूस किया जा रहा है. गंवई युवा पहले से अधिक कुंठित हो कर मानसिक रोगों के शिकार होते जा रहे हैं.

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