भारत में शिक्षा का क्या स्तर है, यह साफ हुआ उत्तर प्रदेश के टीचर्स एलिजिबिलिटी टैस्ट के परिणाम से, जिस में बीएड के 92 फीसदी उम्मीदवार फेल हो गए. बीएड को अपनेआप में शिक्षा देने की सही ट्रेनिंग माना जाता रहा है पर बीएड की परीक्षाओं में इस कदर धांधली चल रही है कि इस का प्रमाणपत्र उठाए घूम रहे युवाओं को कुछ भी नहीं आता. इसीलिए टीचर्स एलिजिबिलिटी टैस्ट शुरू करना पड़ा. इस टैस्ट में बैठे 5 लाख 31 हजार में से सिर्फ 4 हजार अभ्यर्थी पास हो पाए.
देश का युवा आज किस तरह के शिक्षकों को झेल रहा है, यह टैस्ट से साफ हो गया. बीएड की परीक्षा का कोई मापदंड नहीं रह गया और उस का कोर्स करने वाले अपनी पढ़ाई के बारे में कुछ नहीं जानते.
अपने को विश्वगुरुसाबित करने में लगा देश असल में बेहद अशिक्षित, अनुशासनहीन और अयोग्य है. वह कोई काम ढंग से नहीं कर सकता. हमारे यहां लोकतंत्र है पर वह नाम का है, क्योंकि लोकतंत्र की मूल भावनाओं पर यहां स्वाधिकार व कट्टरपंथी सोच का कब्जा है. स्कूलकालेजों से जो शिक्षा हमें मिलती है वह हमें और ज्यादा बेईमानी सिखाती है. हमारे यहां पढ़ाने वाले अपने पद को महान समझते हैं, अपने ज्ञान को नहीं. वहीं वे छात्रों को सिखाते हैं कि किसी तरह पद पा लो चाहे योग्यता हो या न हो. आम जीवन में योग्य लोगों की उतनी इज्जत नहीं होती है जितनी जुगाड़ुओं की.
टीचर्स एलिजिबिलिटी टैस्ट में बैठने वाले अधिकांश यही सोच कर बैठते हैं कि जिस तरह वे लेनदेन कर के पिछली परीक्षाएं पास करते रहे हैं, यह भी पहुंच, नकल, हेरफेर के बल पर पास कर लेंगे और फिर शिक्षक बन कर अगली पीढ़ी को यही पाठ पढ़ाएंगे.
देश में शिक्षासुधार के नाम पर सैकड़ों समितियां बनी हैं, विशेषज्ञों ने हजारों घंटे दिमाग लगाया है, अरबों रुपया इस पर लगाया गया है पर नतीजा क्या है? यह पूरा सिस्टम जो थोड़ेबहुत योग्य लोग निकालता है उन में से आधे से ज्यादा देश छोड़ देते हैं और बाकी गुस्से में कानून को तोड़नेमरोड़ने का काम शुरू कर देते हैं. इन योग्यों में से भी अधिकांश देश की मूल बीमारी से ग्रसित ही होते हैं.
देश जिस दिशा की ओर बढ़ रहा है उस से किसी सुधार की अपेक्षा तो है नहीं. यहां तो कानून, संविधान और स्वतंत्रता को अशिक्षा की आग में झोंक देने की बात हो रही है. टीईटी का परिणाम देश की वर्तमान स्थिति की एक इमेज है. उस पर रोएं तो वे, जो सिस्टम को ठीक करना चाहते हैं. यहां तो सिस्टम के कर्णधार ही उसे तोड़ देना चाहते हैं और नए सिस्टम को अराजकता का नाम देना चाहते हैं.
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