देश में बेरोजगारी का आलम यह है कि पक्की ठीकठाक लंबी नौकरी देने वाली सेना की भरती पर आमतौर पर हर जगह धक्कामुक्की तो होती ही है, अकसर लाठीचार्ज होता है, पुलिस बंदोबस्त करना पड़ता है और कई दफा इस दौरान एकदो मौतें हो जाती हैं. सासाराम, बिहार में मिलिटरी पोलिस कंपाउंड में घुसने के समय भीड़ में कुचलने से 1 की मौत हो गई और 4 बुरी तरह घायल हो गए.

यह 6000 की भीड़ सर्दियों के दिनों में सुबह 3 बजे देशभक्ति के जज्बे की वजह से रिक्रूटमैंट सैंटर पर नहीं खड़ी थी. यह तो एक ऐसी नौकरी पाना चाहती थी जिस में खाने, पीने, रहने, कपड़ों, घूमने के साथ एक अच्छी पगार भी मिलती हो.

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देश के गांवोंकसबों में आज जो मारामारी सरकारी नौकरियों की है वह साफ जाहिर करती है कि देश का माहौल ऐसा है कि अपनी मेहनत के बलबूते पर अच्छी जिंदगी बिताना हरेक के बस का नहीं. सरकार नौकरियां देने के कितने वादे करती रहे, असल यही है कि आज न खेतों में नौकरियां हैं, न कारखानों में, न दुकानों में और न दफ्तरों में.

यह देश की असल आर्थिक स्थिति की पोल तो खोलती ही है, यह भी साबित करती है कि अपनी मनचाही नौकरी पाना अब मुश्किल होता जा रहा है. यहां के लोगों को अपने पर इतना कम भरोसा है कि वे पक्की सरकारी नौकरी ही लपकना चाहते हैं जिस में काम कम हो, वेतन ठीकठाक, पर यदि ऊपरी कमाई हो तो पौबारह. अगर राजस्थान में चपरासी की नौकरी के लिए इंजीनियर परचा भरते हैं और विधायक का बेटा ही सिफारिश के बलबूते पर नौकरी पाता है. इस पर चौंकने की जरूरत नहीं. यह तो होना ही है.

यहां मुफ्त की रोटियों को बड़ी इज्जत मिलती है. समाज पंडोंमुल्लाओं को सिरआंखों पर रखता है. जो न एक तिनका उगाते हैं और न एक पैसे का सामान बनाते हैं या बेचते हैं. काम करने वालों को तो यहां शूद्र और अछूत कहा जाता रहा है और आरक्षण के बलबूते उन्हें कुछ लाख सरकारी नौकरियां ही मिली हैं, जबकि उन की गिनती पूरी जनसंख्या में 80-85 फीसदी है. बाकी 10-15 फीसदी से आने वालों ने ही सरकारी नौकरियों पर कब्जा कर रखा है और इसीलिए सब से निचली रैंक के लिए हो रही भरती पर हर जगह हजारों जमा हो जाते हैं.

यह देश के लिए परेशानी की बात होनी चाहिए. दूसरे कई देशों में सदियों तक सेना में भरती के लिए जबरदस्ती की जाती थी पर यहां हमेशा ही इसे नियामत समझा गया है क्योंकि इस में पैसा, परमानैंसी और पौवर तीनों हैं. यह बेरोजगारी का हल नहीं है, यह बदन पर हर जगह बहते नासूरों को मैले कपड़ों से ढकना भर है.

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