Society News in Hindi: वह शक्ल सूरत से भी सुंदर हैं और मन से भी. उन का पूरा नाम है सुंदर पिचाई (Sundar Pichai). सुंदर देखने में भले ही भोलेभाले लगते हैं, लेकिन उन की गिनती दुनिया की प्रमुख हस्तियों में होती हैं. वह दुनिया के सब से बड़े सर्चइंजन गूगल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी  (Google CEO) हैं. पिचाई के हुनर और योग्यता को पूरी दुनिया जानती है. सुंदर अपने काम से जरूर प्रेम करते हैं, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उन्हें अपने परिवार से प्रेम नहीं है. मजाकिया स्वभाव के सुंदर अपनी पत्नी अंजलि (Sundar Pichai Wife Anjali) और दोनों बच्चों पर जान छिड़कते हैं. ऐसा हो भी क्यों न, अंजलि उन का प्यार हैं, जिन के लिए उन्हें सालों तक तपस्या करनी पड़ी थी. सुंदर पिचाई दक्षिण भारत के रहने वाले थे, जबकि अंजलि राजस्थान के कोटा शहर की थीं. दोनों की भाषा भी अलग थी और संस्कृति भी. यहां तक कि रहनसहन और खानपान भी अलगअलग थे. सुंदर की आर्थिक स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं थी.

लेकिन जब प्यार परवान चढ़ता है तो न भाषा आड़े आती है, न जातिधर्म की दीवार और न अमीरीगरीबी. अंजलि और सुंदर के मामले में भी यही हुआ. सुंदर ने 23 साल पहले सन 1993 में खड़गपुर आईआईटी से ही बीटेक की डिग्री हासिल की थी. डिग्री मिलने के 23 साल बाद वह आईआईटी खड़गपुर पहुंचे थे. इसी आईआईटी के कैंपस में सुंदर और अंजलि के बीच प्यार के अंकुर फूटे थे. यहीं पढ़ाई करते हुए उन का प्यार परवान चढ़ा और दोनों ने एकदूसरे के साथ जीवन बिताने का फैसला कर लिया. लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था.

नए साल 2017 की खुशियां मनाने अमेरिका के कैलिफोर्निया से भारत आए सुंदर पिचाई ने बीती 5 जनवरी को पश्चिम बंगाल के खड़गपुर स्थित आईआईटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) में अपने कैरियर, जीवन और प्रेमप्रसंग के कई किस्से सुनाए. आईआईटी कैंपस के उन पेड़ों के झुरमुट और हाल के कोनों में जा कर झांका, जहां वह कभी अंजलि से मिला करते थे. उन्होंने पुरानी यादों में खो कर हंसते हुए कहा, ‘‘भारत में बहुत कुछ बदल गया है और तेजी से बदल रहा है, लेकिन आईआईटी का नेहरू हाल आज भी वैसा ही है, जैसा 25 साल पहले था. उस में कुछ भी नहीं बदला.’’

सुंदर पिचाई ने अपने प्यार का किस्सा सुनाते हुए कहा, ‘‘मैं अंजलि से पहली बार इसी आईआईटी कैंपस में मिला था. वह यहां मेरी क्लासमेट थी. यह गर्ल्स हौस्टल में रहती थी और मैं बौयज हौस्टल में. उस समय आज की तरह किसी के पास यूं ही चले जाना और बातें करना आसान काम नहीं था. आज हमारे पास संचार के तमाम साधन हैं, लेकिन तब न तो मोबाइल फोन थे और न ही ईमेल.

‘‘मैं ने आईआईटी में ही पहला कंप्यूटर देखा था. तब यहां बात करने में भी बड़ी परेशानी होती थी. जब कभी अंजलि से बात करने का मन होता तो हम गर्ल्स हौस्टल के सामने जा कर खड़े हो जाते थे. हौस्टल से जब कोई लड़की बाहर निकलती या अंदर जाती दिखती तो उसे अंजलि को बाहर भेजने के लिए कहते थे. वह लड़की अंदर जाती और चिल्ला कर कहती, ‘अंजलि, बाहर सुंदर खड़ा है. बुला रहा है, जा कर मिल लो.’

सुंदर ने अपने जौब की याद ताजा करते हुए कहा, ‘‘गूगल में मेरा इंटरव्यू 1 अप्रैल, 2004 को हुआ था. अप्रैल फूल वाले दिन. गूगल ने तब जीमेल लौंच किया था. 3 इंटरव्यू में मुझ से जीमेल के बारे में पूछा गया तो मुझे यही लगता रहा कि मुझे अप्रैल फूल बनाया जा रहा है. चौथे इंटरव्यू में मुझे जीमेल दिखाया गया, तब मैं कुछ बता पाया.’’

सुंदर पिचाई ने क्लास बंक करने के अपने अनुभव भी आईआईटी विद्यार्थियों को सुनाए. उन्होंने एक वाकया याद करते हुए कहा, ‘‘मैं ने स्कूल में हिंदी सीखी थी, लेकिन ज्यादा बोल नहीं पाता था. मैं चेन्नै से आया था. आईआईटी में एडमिशन लिए कुछ ही हफ्ते बीते थे. यहां मैं ने कई लोगों को आपस में ‘साले…’ बोलते हुए सुना. एक दिन मैस में किसी को बुलाने के लिए मैं ने कह दिया, ‘अबे साले…’ तब मैं समझ रहा था कि सामान्य रूप से ऐसे ही बोला जाता है. लेकिन मेरे ‘अबे साले’ कहने पर नाराज हो कर मैस वाले ने कुछ देर के लिए मैस बंद कर दी. मैस में मेरे साथी मुझ से खाने के बारे में कई तरह के सवाल करते थे. वे पूछते थे कि यह दाल है या सांभर?’’

सुंदर ने बताया कि उस समय भी रैगिंग होती थी. रैगिंग में मुझे सीनियर साथियों के लिए खड़गपुर रेलवे स्टेशन के लंबे प्लेटफार्म पर उन का लगेज उठाना पड़ा था. सुंदर राजन पिचाई का जन्म 12 जुलाई, 1972 को मदुरै के एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था. सुंदर की मां लक्ष्मी स्टेनोग्राफर थीं, जबकि पिता रघुनाथ पिचाई चेन्नै में बिजली उपकरण बनाने वाली एक कंपनी में वरिष्ठ इलैक्ट्रिकल इंजीनियर के पद पर काम करते थे. उन का बचपन मद्रास में बीता, जिसे अब चेन्नै कहा जाता है.

उन का परिवार चेन्नै के अशोकनगर में 2 कमरों के मकान में रहता था. सुंदर ने 10वीं तक की पढ़ाई आईआईटी मद्रास कैंपस स्थित जवाहर विद्यालय से की. इस के बाद उन्होंने चेन्नै के वानावाणी मैट्रिकुलेशन हायर सैकेंडरी स्कूल से हायर सैकेंडरी की पढ़ाई की. उस दौर में सुंदर अपने स्कूल की क्रिकेट टीम के कप्तान थे. सुंदर आईआईटी में प्रवेश लेना चाहते थे. इस के लिए वह पढ़ाई में खूब मेहनत कर रहे थे. वह चाहते थे कि किसी तरह मद्रास आईआईटी में इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन मिल जाए, लेकिन उन की रैंक उस के अनुरूप नहीं थी. फलस्वरूप उन्हें आईआईटी खड़गपुर में मेटालर्जिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन लेना पड़ा.

दक्षिण भारतीय सुंदर पिचाई के प्यार में रंग कर उन की अर्द्धांगिनी बनी अंजलि के पिता होलाराम हरियानी राजस्थान के कोटा में राजकीय पौलीटेक्निक में अध्यापक थे. अंजलि की मां का नाम नीलू था. होलाराम के एक बेटा और एक बेटी थी. उन का बेटा अमित न्यूजर्सी में एक कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर है.

अंजलि ने हायर सैकेंडरी की पढ़ाई के बाद सन 1989 में खड़गपुर आईआईटी में एडमिशन लिया था. वह कैमिकल इंजीनियरिंग में बीटेक कर रही थीं. आईआईटी में ही उन की मुलाकात सुंदर से हुई थी. उन्होंने भी सन 1989 में ही आईआईटी खड़गपुर में एडमिशन लिया था. वह मेटालर्जिकल इंजीनियरिंग में बीटेक कर रहे थे.

तमिलनाडु के रहने वाले सुंदर राजन पिचाई के लिए पश्चिम बंगाल के शहर खड़गपुर स्थित आईआईटी पूरी तरह से अंजान था. यही हाल अंजलि का भी था. कोटा से खड़गपुर पहुंची अंजलि भी इस शहर से अंजान थी. आईआईटी में देश के विभिन्न राज्यों के विद्यार्थी पढ़ते थे. स्कूल से निकल कर एकदम नए शहर, नए माहौल और नए दोस्तों में खुद को एडजस्ट करने में सभी को परेशानी आती है.

सब का रहना-खाना बोली भाषा और पहनावा अलग-अलग था. सभी अलगअलग माहौल में पढ़ कर आए थे. कोई गांव में पढ़ा था तो कोई शहर में. किसी ने इंगलिश मीडियम से पढ़ाई की थी तो किसी ने हिंदी से. उम्र भी ऐसी कि जीवन का कोई अनुभव नहीं था. किशोरावस्था से निकल कर जवानी की दहलीज पर खड़े युवाओं को हौस्टल की दुनिया कुछ अजीब सी लगती है. ऐसी स्थितियों में खुद को नए माहौल में एडजस्ट करने के लिए हर विद्यार्थी अपने लिए कोई ऐसा सहयोगी तलाशता है, जो पढ़ाई में मदद कर सके.

आईआईटी में सुंदर और अंजलि की फैकल्टी अलगअलग थी. फिर भी दोनों के कुछ सब्जेक्ट कौमन थे. सुंदर की याद्दाश्त गजब की थी. वह एक बार जो पढ़ लेते थे, याद हो जाता था. क्लासरूम में वह जवाब देने में सभी साथियों से आगे रहते थे. इस मामले में अंजलि भी कुछ कम नहीं थी.

बीटेक के पहले साल में ही अंजलि सुंदर की कुशाग्रता को ले कर प्रभावित हो गईं. कभी कोई कठिन सवाल होता तो वह सुंदर से पूछ लेतीं. सुंदर उन्हें अच्छे तरीके से समझा देते. अंजलि को उन का सवाल समझाने का तरीका पसंद आ गया. अगर सुंदर को भी कोई सवाल कठिन लगता तो वह अंजलि से पूछ लेते.

आईआईटी की पढ़ाई सब से कठिन मानी जाती है. केवल क्लासरूम की पढ़ाई से ही काम नहीं चलता. घर हो या हौस्टल, सब कुछ भूल कर ज्यादा से ज्यादा समय पढ़ाई करनी होती है. जो वास्तव में कुछ बनना चाहते हैं, वे केवल सोने और जरूरी दिनचर्या के कामों के अलावा पढ़ाई में ही लगे रहते हैं. यहां तक कि वे खेल और मनोरंजन से ज्यादा महत्त्व पढ़ाई को देते हैं.

जाहिर है इस स्थिति में घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर हौस्टल में रह कर पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट काफी परेशान रहते हैं. सुंदर और अंजलि भी परेशान थे. इसलिए क्लासरूम के बाहर भी वे आईआईटी कैंपस में किताबों में खोए रहते थे. इसी पढ़ाई के दौरान दोनों कब एकदूसरे को चाहने लगे, पता ही नहीं चला. बीटेक का पहला साल इसी तरह बीत गया.

दूसरे साल की पढ़ाई शुरू होतेहोते उन की चाहत और भी बढ़ गई. लेकिन 25 साल पहले किसी लड़की से मिलना आसान नहीं था. वह भी खड़गपुर आईआईटी में, जहां काफी सख्त अनुशासन था. वैसे भी दोनों के हौस्टल अलगअलग थे. आईआईटी खड़गपुर का कैंपस बहुत बड़ा है. कैंपस में सैकड़ों विशाल पेड़ हैं. मनभावन हरियाली और जगहजगह फूलों की क्यारियां.

पढ़ाई के बहाने सुंदर और अंजलि आईआईटी के कैंपस में ही पेड़ों के झुरमुट के बीच मिलते. दोनों साथसाथ पढ़ाई भी करते और बीचबीच में मन की बातें भी. दोनों ही मध्यमवर्गीय परिवारों से थे, इसलिए उन्हें हमेशा पैसों की समस्या रहती थी.

मातापिता जो पैसे भेजते या देते थे, उसी में से खर्च चलाना पड़ता था. उन की माली हालत भले ही ज्यादा अच्छा नहीं थी, लेकिन उन के सपने बहुत ऊंचे थे. एक बार सुंदर ने मजाक करते हुए अंजलि ने कहा था, ‘‘मैं यहां से बीटेक करने के बाद 7 समंदर पार चला जाऊंगा. तब तुम क्या करोगी?’’

अंजलि ने भी सुंदर को चिढ़ाते हुए कहा था, ‘‘7 समंदर पार क्या साइकिल या स्कूटर से जाओगे? वहां जाने के लिए प्लेन में बैठना पड़ेगा. कभी बैठे हो प्लेन में?’’

‘‘आज तक तो नहीं बैठ सका हूं, लेकिन मेरा सपना है कि एयरोप्लेन में बैठूं.’’ सुंदर ने आसमान की ओर ताकते हुए कहा, ‘‘देख लेना, एक दिन मेरा यह सपना जरूर पूरा होगा. एक दिन मैं अपने इस सपने को हकीकत में बदल दूंगा.’’

अंजलि सुंदर का हौसला बढ़ाते हुए बोली, ‘‘मैं दुआ करूंगी कि तुम्हारी काबिलियत तुम्हें तुम्हारी मंजिल तक पहुंचा दे.’’

हंसीमजाक और पढ़ाई के बीच सुंदर और अंजलि की प्रेमकहानी रफ्तारफ्ता आगे बढ़ती ही गई. बीटेक के दूसरे और तीसरे साल में उन का प्यार और भी ज्यादा फलताफूलता गया. इस बीच एकदो बार वे दोस्तों के साथ हौस्टल से बाहर निकल कर खड़गपुर शहर के बाजार में घूम आए और साथसाथ फिल्म भी देखी.

आईआईटी में चौथे और अंतिम वर्ष में एक दिन जब सुंदर की क्लास खत्म हो गई तो उन्होंने क्लासरूम के बाहर मिली अंजलि को इशारे से कैंपस से बाहर चलने को कहा. एक पेड़ के नीचे पहुंच कर सुंदर ने कहा, ‘‘अंजलि, आज मुझे तुम से कुछ खास बात करनी है.’’

‘‘ऐसी क्या खास बात है?’’ अंजलि ने पूछा.

कुछ क्षण चुप रह कर सुंदर ने बिना किसी भूमिका के अंजलि को प्रपोज करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. आई लव यू अंजलि.’’

सुंदर की यह बात सुन कर अंजलि झेंप गईं. वह भी सुंदर से प्यार करती थी. लेकिन कभी उन्होंने यह बात किसी पर जाहिर नहीं की थी. वैसे भी वह कोटा से सैकड़ों किलोमीटर दूर खड़गपुर में प्यार करने नहीं, बीटेक की पढ़ाई करने आई थीं.

अंजलि को चुप देख कर सुंदर ने उन का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मैं जानता हूं, तुम्हारी और हमारी संस्कृति, बोलीभाषा और रीतिरिवाज बिलकुल अलगअलग हैं, लेकिन हम दोनों का मन एक है. इन 4 सालों में मैं ने तुम्हें करीब से समझा है, इसलिए सोचसमझ कर तुम्हें प्रपोज किया है.’’

सुंदर की बातें अंजलि के दिलोदिमाग में जादू सा असर कर रही थीं. वह तो पहले से ही अपने दिल में सुंदर को बसाए थीं. बहरहाल कुछ शरमाते हुए और कुछ अदा दिखाते हुए अंजलि ने सुंदर को अपनी सहमति दे दी.

उस दिन दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ कर काफी देर तक रोमांस की बातें करते रहे. जब सूरज डूबने लगा तो उन्हें समय का अहसास हुआ. इस के बाद सुंदर बौयज हौस्टल चले गए और अंजलि गर्ल्स हौस्टल. फाइनल ईयर की पढ़ाई थी. दोनों ही अपने हौस्टल के कमरों में रात को पढ़ाई करते थे. लेकिन उस रात न तो सुंदर का मन पढ़ाई में लग रहा था और न ही अंजलि का. दोनों अपनेअपने कमरे में एकदूसरे की बातों को, शरारतों को याद करते हुए भविष्य के सपने बुनते रहे.

अगले दिन जब दोनों आईआईटी कैंपस में मिले तो सुंदर ने पूछा, ‘‘कैसी हो अंजलि?’’

‘‘मैं तो पूरी रात नहीं सो सकी.’’ अंजलि बोलीं, ‘‘लेकिन तुम जरूर रातभर खर्राटे लेते रहे होंगे.’’

‘‘अरे नहीं यार, मैं भी रात भर नहीं सो सका.’’ सुंदर ने जवाब में कहा.

कुछ देर प्रेमप्यार की बातें करने के बाद सुंदर बोले, ‘‘अभी हम लोगों की फाइनल ईयर की पढ़ाई है, जो सब से टफ है. हमें पूरी मेहनत करनी है, ताकि अच्छे मार्क्स आ सकें. अच्छे मार्क्स आ गए तो जौब भी अच्छी और जल्दी मिल जाएगी. एक बार बढि़या जौब मिल जाए, उस के बाद हम अगला कदम बढ़ाएंगे.’’

‘‘तुम ठीक कहते हो सुंदर. हमारा यह समय सब से कठिन है. इस में हमें पढ़ाई करनी है. किसी तरह अच्छे मार्क्स हासिल कर लें तो फिर कोई परेशानी नहीं होगी. अभी हम प्रेमप्यार में खोने लगे तो जिंदगी कठिन हो जाएगी.’’

रोजाना अपने प्यार के दीदार करने और छोटीमोटी बातें करने के साथ दोनों अपनी पढ़ाई में लगे रहे. सुंदर रात भर पढ़ाई करने के बाद सुबह देर तक सोते थे तो कई बार क्लास बंक कर देते थे. फिर भी सुंदर की मेहनत रंग लाई. उन्होंने बीटेक की पढ़ाई अच्छे मार्क्स से पूरी कर ली.

अंजलि को भी अच्छे मार्क्स मिले. सुंदर ने अपने बैच में सिल्वर मैडल हासिल किया. बीटेक की डिग्री हासिल कर अंजलि अपने घर कोटा चली गईं और सुंदर अपने घर चेन्नै. खड़गपुर रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर चेन्नै पहुंचने पर सुंदर को पहली बार बहुत बुरा लगा था. यह बात उन्होंने इसी 5 जनवरी को खड़गपुर आईआईटी में 23 साल बाद विद्यार्थियों के सवालों के जवाब में कही.

खैर, बीटेक की डिग्री हासिल कर सुंदर जब चेन्नै पहुंचे तो वहां उन का मन नहीं लगा. एक ओर उन का मन अंजलि में उलझा था तो दूसरी तरफ वह आगे पढ़ाई करना चाहते थे. आखिर उन्होंने पढ़ाई करने का फैसला किया. उन्होंने पिता रघुनाथ पिचाई को अपने मन की बात बताई, साथ ही अंजलि से प्रेम करने की बात भी मां को बता दी. उस समय सुंदर के मातापिता ने कहा, ‘‘पहले कैरियर बना लो, फिर शादी कर लेना.’’

सुंदर आगे की पढ़ाई अमेरिका जा कर करना चाहते थे. लेकिन इस के लिए जितने पैसे चाहिए थे, उतने पिचाई परिवार के पास नहीं थे. रघुनाथ पिचाई ने बेटे सुंदर की आगे पढ़ने की ललक और उस के भविष्य को देखते हुए कर्ज लिया. कर्ज की रकम से सुंदर सन 1993 में अमेरिका पहुंच गए. वहां स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में उन्होंने एमएस में एडमिशन लिया.

अच्छे मार्क्स होने के कारण सुंदर को स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से स्कौलरशिप मिल गई. इस से उन्हें वहां रहने में काफी आसानी हो गई. इस के बाद उन्होंने पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के व्हार्टन स्कूल से एमबीए किया.

इस बीच मौका मिलने पर सुंदर भारत आए तो जरूर, लेकिन उन का आना बहुत कम हो पाता था. कारण यह था कि अमेरिका से हवाई यात्रा से भारत आने और वापस जाने के लिए जितना पैसा चाहिए होता था, उतना सुंदर और उन के घर वालों के पास नहीं होता था. सुंदर जब भी आते थे, अंजलि से जरूर मिलते थे. अंजलि यही शिकायत करती रहतीं कि तुम से बात करना भी मुश्किल हो गया है.

उस समय लैंडलाइन फोन का जमाना था. भारत और विदेश में बात करना बेहद मुश्किल भरा काम था. भारत में एसटीडी या विदेश में आईएसडी पर इंटरनैशनल काल करने में बहुत ज्यादा खर्च आता था. इस के अलावा लाइन मिलने में भी बहुत समय लगता था. अंजलि शिकायत करती थीं कि कई बार पास में पैसे नहीं होने के कारण वह 6-6 महीने तक उस से फोन पर बात नहीं कर पातीं.

इन सब अभावों के बावजूद अंजलि को अपने प्यार पर पूरा भरोसा था. यही हाल सुंदर का भी था, उन्हें सात समंदर पार रह रहे अपने प्यार पर खुद से ज्यादा विश्वास था. एकदूसरे के विश्वास पर ही वे अपने प्यार की कहानी आगे बढ़ाते रहे. प्यार की इस कहानी का एक छोर राजस्थान के कोटा शहर में था और दूसरा छोर अमेरिका में. दोनों के बीच हजारों मील की दूरियां थीं. लेकिन सच्चे प्यार ने दोनों में किसी को कमजोर नहीं होने दिया.

पढ़ाई पूरी करने के बाद सुंदर को अमेरिका में ही सब से पहले एक सेमी कंडक्टर बनाने वाली कंपनी में ठीकठाक नौकरी मिल गई. उस समय तक सुंदर के पास अमेरिका में न तो अपनी कार थी और न ही मकान. किराए के उस घर में सुंदर के पास टीवी भी नहीं था. नौकरी मिलने के बाद सुंदर के हाथ में पैसे आने लगे तो आर्थिक स्थिति सुधरने लगी.

इस के बाद सुंदर ने भारत आ कर दोनों परिवारों की सहमति से अंजलि से शादी कर ली. करीब 10 साल बाद उन की प्रेम तपस्या पूरी हुई. शादी के कुछ समय बाद सुंदर अंजलि को अमेरिका ले गए.

पुरानी कहावत है कि किसी भी सफलतम पुरुष के पीछे किसी न किसी महिला का हाथ होता है. सुंदर की सफलता के पीछे भी अंजलि का हाथ रहा. अंजलि से शादी के बाद सुंदर की तरक्की के रास्ते खुलते चले गए. सब से पहले उन के घर बेटी ने जन्म लिया, बेटी अब करीब 13 साल की है.

बेटी के जन्म के बाद ही सुंदर को गूगल से जौब का औफर आया. यह संयोग था कि उस समय तक गूगल के कोफाउंडर लैरी पेज इंटरव्यू लेना छोड़ चुके थे. सुंदर आज भी मजाक में कहते हैं कि गूगल में मुझे जौब इसीलिए मिली, क्योंकि लैरी ने मेरा इंटरव्यू नहीं लिया था.

यह अलग बात है कि आज सुंदर ही लैरी पेज के सब से विश्वस्त सहयोगी हैं. गूगल में जौब मिलने पर सब से पहले सुंदर को प्रोडक्ट और इनोवेशन अफसर की जिम्मेदारी दी गई. गूगल में नौकरी करते हुए ही सुंदर और अंजलि का एक बेटा हुआ. अब वह 9 साल का है.

बाद में सुंदर अपने काम, हुनर और मेहनत से तरक्की हासिल करते रहे. सन 2008 में लौंच हुए गूगल क्रोम में सुंदर की बड़ी भूमिका रही. एंड्रायड औपरेटिंग सिस्टम के डेवलपमेंट में भी सुंदर की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी. बाद मे सुंदर पिचाई गूगल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) बने. उसी दौरान ट्विटर ने सुंदर को जौब औफर की, लेकिन अंजलि ने उन्हें गूगल न छोड़ने की सलाह दी.

सुंदर पिचाई आज दुनिया के जानेमाने टेक्नो लीडर हैं. अब वह अपने पूरे परिवार के साथ कैलिफोर्निया में रहते हैं. लौस अल्टोस हिल पर उन का विशाल बंगला है. क्रिसमस और नए साल की खुशियां मनाने के लिए सुंदर अपने परिवार के साथ दिसंबर, 2016 के आखिर में भारत आए.

इस दौरान उन्होंने 25 दिसंबर से 5 दिनों तक जयपुर और आसपास के इलाकों में परिवार के साथ सैरसपाटा किया. बारबार प्रयास के बावजूद उन्होंने मीडिया से बातचीत नहीं की. सुंदर की पर्सनल सिक्युरिटी के अधिकारियों के अनुसार जयपुर प्रवास के दौरान वह किसी सरकारी अधिकारी से भी नहीं मिले. 29 दिसंबर को वह जयपुर एयरपोर्ट से वापस लौट गए.

अंजलि के पिता होलाराम हरियानी की भी अनूठी प्रेम कहानी है. गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई के ससुर होलाराम हरियानी ने 73 साल की उम्र में 12 सितंबर, 2015 को 65 साल की माधुरी शर्मा से शादी की. दरअसल अंजलि की मां नीलू का सन 2013 में निधन हो गया था. उन के निधन के बाद होलाराम अकेले रह गए थे. बेटी अंजलि सुंदर के साथ कैलिफोर्निया में रहती है और बेटा न्यूजर्सी में. अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए होलाराम ने माधुरी से शादी की.

माधुरी शर्मा के पति राजेश की 4 साल पहले मौत हो गई थी. दोनों में बात हुई और फिर उन्होंने आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली. दोनों कोटा के नयापुरा में रहते हैं. अंजलि ने पिता को शादी की बधाई दी है.

माधुरी कोटा की ही रहने वाली हैं. उन की शादी दिल्ली के राजेश शर्मा से हुई थी. राजेश मिलिट्री की रोड कंस्ट्रक्शन विंग में थे. माधुरी के एकलौते बेटे भारत की भी सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी. बाद में वह दिल्ली से कोटा आ गईं और नयापुरा स्थित चंबल रेजीडेंसी में फ्लैट खरीद कर रहने लगीं.

पौलीटेक्निक से रिटायर्ड होलाराम हरियानी का कोटा में सिविल लाइन में मकान है. हरियानी और माधुरी कुछ महीने पहले जयपुर गोल्डन के निकट स्थित एक आश्रम में सत्संग के दौरान मिले थे. विचार मिले तो दोनों ने शादी का मन बना लिया.

होलाराम ने यह बात अपने बच्चों को बताई तो वे खुश हो कर बोले कि इस से बढि़या कुछ नहीं हो सकता. हालांकि इस शादी को ले कर होलाराम की सुंदर पिचाई से कोई बात नहीं हुई थी.

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