आप लोग किसी मुगालते में न रहें, सरकार तो अकेले शिवराज के दम पर चल रही है, शिवराज तम्बू हैं ,विधायकों और कार्यकर्ताओं को बम्बू बनना होगा, तभी सरकार ठीक से चल सकती है. संगठन के पास सबकी परफ़ार्मेंस रिपोर्ट है, उसी के आधार पर टिकिट दिये जाएंगे, ये उद्गार मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नन्दकुमार सिंह चौहान ने पचमढ़ी में सम्पन्न विधायक प्रशिक्षण वर्ग में व्यक्त किए, तो कई बातें एक साथ उजागर हुईं. इनमे से पहली जो आखिरी भी है यह है कि हाल फिलहाल मध्य प्रदेश भाजपा में शिवराजसिंह पहले और आखिरी विकल्प हैं, इसलिए किसी और को मुंगेरीलाल सरीखे सपने देखने की जहमत नहीं उठानी चाहिए. दूसरा संदेशा यह दिया गया कि ये बातें महज बकवास और कोरी अफवाहें हैं कि आरएसएस और शिवराज के बीच कोई अनबन है. तीसरी अहम बात यह थी कि इसके बाद भी जिसे सपने आना बंद न हों, तो उसकी नींद रिपोर्ट कार्ड नाम के चिट्ठे के जरिये उड़ा दी जाएगी, अब जिसे जो करना हो कर ले.
विधायकों के लिए यह प्रशिक्षण वर्ग चेतावनी और मुख्यमंत्री के लिए वरदान साबित हुआ, जिसमे हमेशा की तरह हीरो शिवराजसिंह चौहान ही रहे. लाख टके के इस सवाल का जबाब किसी के पास नहीं कि आखिर क्यों भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को शिवराज की सर्वमान्यता का नवीनीकरण कराना पड़ा, वह भी धोंस धपट बाले लहजे में. दरअसल में एमपी में सब कुछ ठीक ठाक नहीं है. बहुत कुछ होने के बाद भी कुछ होता नहीं दिख रहा है, जिससे जनता त्रस्त हो चली है. सिवा शिवराज के किसी के पास कोई अधिकार नहीं है, नौकरशाही हावी हो रही है और सूबे की कानून व्यवस्था चरमराने लगी है. अगला साल चुनावी है लिहाजा भाजपा ने अपने इस गढ़ को बनाए रखने कसरत अभी से शुरू कर दी है और यह ऐलान भी कर दिया है कि भाजपाई जिम के ट्रेनर शिवराज ही रहेंगे.
इधर परेशानी वे राजनैतिक विश्लेषक खड़ी कर रहे हैं जो दबी जुबान में यह मशवरा देने लगे हैं कि अगर भाजपा को प्रदेश अपने हाथ में रखना है तो सीएम बदल देना चाहिए, क्योंकि लोग शिवराज से ठीक वैसे ही ऊब चले हैं जैसे साल 2003 में दिग्विजयसिंह से ऊब गए थे. इतिहास तो नहीं पर हालात अपने आप को दोहरा रहे हैं, मसलन कर्मचारी सातवां वेतन आयोग लागू न होने से खफा हैं, उन्हे मालूम है कि सरकार यह घोषणा चुनाव के पहले कर देगी, पर यह हक वक्त पाए दे दे तो उसमें निष्ठा बनाए रखी जा सकती है. किसानों की परेशानियां जस की तस हैं और दलित वर्ग भाजपा से छिटकने लगा है और काम उतने हुये नहीं हैं जितने कि गिनाए जाते हैं.
यह ठीक है कि कांग्रेस की हालत पतली है पर लोकतन्त्र में कुछ भी हो सकता है. अरविंद केजरीवाल ने सूबे पर नजरें गड़ा दी हैं और अगर कमलनाथ या ज्योतिरादित्य सिंधिया में से किसी एक ने प्रदेश कांग्रेस की कमान संभाल ली, तो बदलाव की मानसिकता में आ रहा वोटर उनसे चेटिंग शुरू न कर दे. लेकिन भाजपा शिवराज के बारे में कुछ सुनने तैयार नहीं तो कुछ विधायकों और कई कार्यकर्ताओं को भी महसूस होने लगा है कि पार्टी में आंतरिक लोकतन्त्र नाम की व्यवस्था खत्म हो चली है. अगर शिवराज की ही पालकी ढोने मजबूर किया जा रहा है, तो दूसरे दर्जे के नेताओं से मौका छीनना इसे क्यों न कहा जाये. चुनाव के वक्त जिन कार्यकर्ताओं की तारीफ में कसीदे गढ़े जाते हैं, आज उसके कहने पर राशन कार्ड भी नहीं बन रहा, तो प्रचार के वक्त वोटर को क्या मुंह दिखाएंगे.
पचमढ़ी में कुछ विधायकों ने मंत्रियों की शिकायत की तो उन पर ध्यान नहीं दिया गया उलटे नसीहत विधायकों को ही दे दी गई. ऐसे में इसी तम्बू के नीचे बम्बू बनकर खड़े रहने की मजबूरी बड़ी उठा पटक की भी वजह बन सकती है. एक पूर्व भाजपा विधायक की मानें तो पार्टी अति आत्म विश्वास का शिकार हो चली है. पचमढ़ी में किसी को मुंह खोलने की इजाजत नहीं थी, पर कान खुले रखने सभी को निर्देश थे. हमने सुना पर हमारी कौन सुनेगा, वे अध्यक्ष महोदय जो सीएम की चाटुकारिता करते रहे, ताकि अध्यक्ष बने रहें, तो बेहतर होगा कि अध्यक्ष भी शिवराज को ही बना दिया जाये. इस नेता के मुताबिक जब बुरा वक्त आता है तो अच्छे अच्छे तम्बू उखड़ जाते हैं. शिवराज का जरूरत से ज्यादा गुणगान और महिमामंडन यूं ही होता रहा तो उनसे चिढ़ने वालों की तादाद और बढ़ेगी, इसलिए वक्त रहते पार्टी को संभल जाना चाहिए .