Social Media Reality: सोशल मीडिया पूरी तरह खालिहरों का अड्डा बन चुका है, यह तय है. यहां वे ही बातें लोगों के डिस्कोर्स में बनती हैं जो इस प्लेटफौर्म के पीछे बैठे लोग संगठनात्मक गिरोह बनाते हैं. ये गिरोह कोई भी हो सकते हैं.
लोग, खासकर युवा, किन विषयों पर चर्चा करेंगे, उन के मतलब के क्या मुद्दे होंगे, यह वे तय नहीं करते, अगर करते होते, तो वे अपने लिए रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य या सुरक्षा जैसी बातों पर चर्चा करते न कि जाति, धर्म, क्षेत्र या 19 मिनट के किसी वायरल या जानबूझ कर वायरल किए गए सैक्स वीडियो पर.
जिस सोशल मीडिया को युवा अपनी बातों को कहने, खुद के इमोशन एक्सप्रैस करने या फ्रीडम का टूल मानते हैं, क्या वे सच में उन की फ्रीडम का टूल है, या वे इस टूल के माध्यम से खुद ही गुलाम बन बैठे हैं?
चलो, इस पर एक छोटी पड़ताल कर लेते हैं. बीते कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर कौनकौन मुद्दे जेन जी के सामने आए–
19 मिनट वीडियो में डूबा जेन जी
सब से पहले बात 19 मिनट वायरल वीडियो की. आखिर क्या है इस वीडियो में? एक लड़का और एक लड़की किसी कमरे में सैक्स कर रहे हैं. सैक्स करने की यह वीडियो 19 मिनट का है. यह वीडियो लड़की खुद शूट करती है. और वीडियो सोशल मीडिया पर किसी तरह वायरल हो जाता है या कर दिया जाता है.
बात यहां इसे वायरल करने या वीडियो बनाने वालों की नहीं, वो तो मूर्ख हैं हीं, बात उन लोगों की है जो इसे देख रहे हैं और शेयर कर रहे हैं. ऐसा काम कर क्या वे मूर्खता के चरम पर नहीं पहुंच रहे? अब कोई भी समझदार इंसान इस स्थिति में क्या करे?
सीधी सी बात है, इस तरह के वीडियो को और वायरल होने से रोकें. क्या पब्लिक डोमैन में इस तरह का वीडियो प्रसारित ठीक है? और क्या इस नंगई में खुद भी गोते लगाना ठीक है? क्या जो लड़का इस वीडियो से मजे ले रहा है वो इस बात से अनजान है कि उस का छोटा भाई या बहन भी उसी सोशल मीडिया को इस्तेमाल कर रहा है जिस पर वो इसे वायरल कर रहा है.
दूसरी बात, इस पर मसखरी, मजाक कर युवाओं को मिल क्या रहा है? क्या वे अपना समय बरबाद नहीं कर रहे? जो भी अपने फायदे के लिए इसे मुद्दा बना कर फैला रहे हैं उन का तो समझ आता है कि वे इस से कंटैंट बना कर पैसा पीट रहे हैं मगर जो इस बहकावे में आ कर पूरेपूरे दिन इस वायरल वीडियो पर बात, बहस और मजे ले रहे हैं वे क्या अपना समय बरबाद नहीं कर रहे?
दूसरा – देवव्रत महेश का रिकौर्ड
सोशल मीडिया पर देवव्रत महेश की खूब चर्चा चल रही है, खूब तारीफ की जा रही है. बताया जा रहा है 19 साल के देवव्रत महेश रेखे ने 50 दिनों में शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनी शाखा के 2,000 मंत्रों वाला दंडक्रम पारायण पूरा कर लिया. इसे बहुत कठिन कार्य कहा जा रहा है. और सोशल मीडिया पर इसे भारत का गर्व कहा जा रहा है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देवव्रत को सराहा.
बेशक, 19 साल के लड़के के लिए यह सब रटना बड़ी बात है मगर इन मंत्रों को रटने का प्रिविलेज भी तो उन्हीं के पास है. यह भाषा मंत्रों के अलावा खुद भारत में नहीं बोली जा रही, फिर यह विश्व रिकौर्ड हो कैसे सकता है? सवाल यह कि इस से आम लोगों के जीवन में क्या बदलाव आएगा, सिवा इस के कि आने वाले समय में देवव्रत कोई धार्मिक कथावाचक या संत बन जाए? क्या इस से कोई गणितीय एक़ुएशन सौल्व हो रहे हैं? क्या इस से नया आविष्कार हो रहा है? क्या इस से देश प्रगति करेगा?
देश की 3 प्रतिशत आबादी में से किसी का उन्हीं 3 प्रतिशत आबादी के लिए किया गया यह कृत्य पूरे देश का कैसे हो सकता है? दूसरा यह कि एक समय रटना जरूरी रहा हो मगर आज इस रटन विद्या पर इतना होहल्ला क्यों, जबकि एआई जैसी तकनीक यह काम 50 दिनों की जगह चंद सैकंड में ही कर दे.
तीसरा – गंभीर-कोहली मनमुटाव
सोशल मीडिया पर इस समय गौतम गंभीर और विराट कोहली के आपस के कथित मनमुटाव पर खूब चर्चाएं चल रही हैं. सोशल मीडिया पर सर्चबौक्स में स्पोर्ट्स डालने पर ही इन के मनमुटाव के किस्सेकहानियां आ रहे हैं. अलगअलग थ्योरियां गढ़ी जा रही हैं. इंस्टाग्राम पर एक पक्ष कोहली की साइड ले रहा है तो दूसरा गौतम गंभीर की. कोई कह रहा है, गंभीर ठीक कर रहा है क्रिकेट टीम में स्टारप्लेयर का चलन ख़त्म कर के. दूसरा कह रहा है, कोहली के साथ गलत हो रहा है.
सवाल यह कि जब इन दोनों ने मीडिया में सामने आ कर एकदूसरे के लिए अपने बयान नहीं दिए, अपनी बात नहीं रखी तो ये सब बातें आ क्यों रही हैं? और इस से किसी की जिंदगी में क्या फर्क पड़ जाएगा कि कोहली सही है या गंभीर? दूसरी बात, ईंट-गारे और झोंपड़ी में रहने वाला इस बात की चिंता नहीं कर रहा कि यदि 5 किलोग्राम सरकारी राशन उसे मिलना बंद हो जाए तो घर में खाने के लाले पड़ जाएंगे, उसे ख़ुशी इस बात की है कि कोहली ने शतक बना दिया या गंभीर का चेहरा उतर गया. नौकरी, पढ़ाई तो उस के मुद्दे में है ही नहीं.
समस्या यह है कि ये मुद्दे इसलिए नहीं हिस्सा बन पाते कि युवाओं को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता, बल्कि इसलिए नहीं बन पाते क्योंकि सोशल मीडिया ऐसा भ्रमजाल है जहां उन्हें ऐसे मुद्दों से दूर रखा जाता है. और यह कोई अचानक नहीं होता, बल्कि सोचीसमझी साजिश के तहत उन्हें उन के जरूरी मुद्दों से दूर रखा जाता है. इस के लिए पूरा फौर्मेट तैयार किया जाता है, युवा क्या सोचेंगे, यह खुद युवाओं के नियंत्रण में नहीं है, बल्कि उन्हें वो दिखाया जाता है जो एजेंडा सैट करने वाले दिखाना चाहते हैं. Social Media Reality




