Hindi Family Story, लेखिका – डा. के. रानी
वन संरक्षक के पद पर काम करते हुए अविनाश को 5 साल हो गए थे. नौकरी के दौरान उन का ज्यादातर समय बहुत अच्छा बीता था. उन की पत्नी रूही ने अपने परिवार की खातिर कभी जौब करने के बारे में सोचा ही नहीं. वे घर पर रह कर बच्चों को पूरा समय देतीं और विभागीय कार्यक्रम के साथ समाजसेवा में बढ़चढ़ कर भाग लेतीं.
समय जैसे पंख लगा कर उड़ रहा था. अविनाश की दोनों बेटियां नताशा और न्यासा पढ़ने में बहुत अच्छी थीं. नताशा अभी ग्रेजुएशन कर रही थी. पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद न्यासा का रु?ान सिविल सेवा की ओर था. वह उस के लिए तैयारी भी कर रही थी, लेकिन उस की मेहनत कामयाब नहीं हो पा रही थी.
रूही ने बेटियों को बहुत अच्छे संस्कार दिए थे. खुद भी वे संस्कारवान थीं, लेकिन अविनाश का स्वभाव थोड़ा उग्र था. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन शांति की कमी थी.
रूही को अविनाश की ऊपरी कमाई से एतराज था. वे दबे स्वर में इस का कई बार विरोध भी कर चुकी थीं, लेकिन अविनाश कुछ सुनने को तैयार नहीं थे.
‘‘घर में ये जितने ठाटबाट हैं न, ये केवल तनख्वाह से नहीं आते. इस के लिए और कुछ भी करना पड़ता है,’’ अविनाश बोले.
‘‘हमारे पास सबकुछ अविनाश. हमें इस की जरूरत क्या है?’’ रूही बोलीं.
‘‘यह तुम नहीं समझोगी. अच्छा होगा कि तुम इस मामले में दखल न दिया करो और चैन की जिंदगी बसर करो. मौज करो और बेटियों को भी कुछ सिखाओ. हर समय घर के अंदर किताबों में घुसी रहती हैं. न कामयाबी हासिल कर पा रही हैं और न ही अपने लिए कोई अच्छा वर,’’ अविनाश गुस्से से बोले.
अविनाश को अपने पद का अभिमान था. अपने से छोटे कर्मचारियों को वे कुछ न समझते थे और सब के सामने कई बार उन की बेइज्जती भी कर देते थे.
औफिस में घुसते ही अविनाश सब से पहले औफिस असिस्टैंट रामदीन पर बरसते… रोज कोई न कोई नया बहाना ले कर. कभी तुम ने औफिस की सफाई ठीक से नहीं की तो कभी सामान ठीक से नहीं रखा. उन के हर काम का समय बंधा हुआ था. वे उसी के हिसाब से दूसरों से भी काम की उम्मीद रखते थे.
रामदीन को यहां काम करते हुए पूरे 30 बरस हो गए थे. 2 साल बाद उन्हें रिटायर होना था. वे बहुत मेहनती थे और दिल लगा कर काम करते थे.
पर अविनाश को तो जैसे औफिस के हर कर्मचारी से शिकायत थी. आज भी औफिस आते ही उन्होंने सब से पहले घंटी बजा कर रामदीन को बुलाया और कहा, ‘‘बड़े बाबू को बुला कर लाओ.’’
रामदीन ने बड़े बाबू को सूचना दी और अपने काम पर लग गए. बड़े बाबू जरा देर में उठ कर बौस के कमरे की ओर बढ़ गए. उन से कुछ पूछने की बजाय उन्होंने फिर घंटी बजाई और बोले, ‘‘क्या तुम ने बड़े बाबू को सही समय पर सूचना नहीं दी थी रामदीन?’’
‘‘दे दी थी साहब,’’ रामदीन ने कहा.
‘‘तो फिर वर इतनी देर से क्यों आए? तुम से अब नौकरी नहीं हो पाती तो काम छोड़ दो. बहुत सारे बेरोजगार हैं, जो यह काम करने के लिए तैयार हैं,’’ अविनाश चिल्लाए.
बात को आगे न बढ़ाते हुए रामदीन बोले, ‘‘गलती हो गई. माफ कर दीजिए.’’
लेकिन अविनाश का गुस्सा अभी उतरा नहीं था. वे इसी बात को ले कर बड़ी देर तक नसीहतें देते रहे.
बड़े बाबू सबकुछ सुन रहे थे, लेकिन उन की हिम्मत कुछ कहने की न हो सकी.
‘‘सर, आप ने मुझे बुलाया था…’’ बड़े बाबू ने पूछा.
‘‘आप यहां से जाइए. इस समय मेरा मूड ठीक नहीं है,’’ कह कर अविनाश ने बड़े बाबू को वापस भेज दिया.
अविनाश को अपने सामने हर कोई बहुत तुच्छ नजर आता था. बड़ेछोटे के बीच की खाई उन्होंने कभी पाटनी नहीं चाही थी. रामदीन बौस की बात से बहुत आहत थे. सारा दिन वे अनमने ही रहे. घर आ कर भी वे उदास थे. वे सोच रहे थे, ‘अपना बेटा पलाश कुछ बन जाए, फिर आराम करूंगा. बहुत नौकरी कर ली है.’
रूही और अविनाश न्यासा के भविष्य को ले कर चिंतित थे. न्यासा मास्टर्स करने के बाद एक कोचिंग इंस्टिट्यूट से कोचिंग ले रही थी. उम्र बढ़ रही थी और अभी भी वह कंपीटिशन में कामयाबी हासिल नहीं कर सकी थी. अविनाश चाहते थे कि वह शादी कर ले.
अविनाश ने न्यासा को कई बार समझाया, ‘‘न्यासा, कंपीटिशन के साथसाथ और जगह भी ट्राई करती रहो. कभी किस्मत साथ दे जाती है और सबकुछ देखते ही देखते बदल जाता है.’’
‘‘पापा, आप भी कंपीटिशन से यहां पहुंचे हैं. मुझे भी छोटी नौकरी नहीं करनी. आप की तरह बड़ी नौकरी से काम की शुरुआत करनी है.’’
न्यासा की बात सुन कर अविनाश को अच्छा न लगा. वे जानते थे कि उन की बात पर न्यासा हमेशा तीखा जवाब देती है. उसे पापा का बरताव जरा भी अच्छा नहीं लगता था. पढ़ाई तो वह शादी के बाद भी जारी रख सकती थी.
अच्छी पोजीशन वाला लड़का देख कर अगर पहले उस की शादी कर दी जाए, तो ज्यादा ठीक रहता. अभी अविनाश बड़े पद पर थे. न्यासा के लिए रिश्ते भी बहुत आ रहे थे, लेकिन वह सब को मना कर रही थी.
अविनाश बोले, ‘‘रूही, तुम ही न्यासा को सम?ा दो. उस की उम्र बढ़ रही है. उसे कोई लड़का पसंद हो तो बता दे. उस की खुशी की खातिर हम सबकुछ करने को तैयार हैं. शादी भी समय की अच्छी होती है.’’
‘‘यह बात तुम मुझे नहीं न्यासा को कहो. वह पहले कुछ बन कर दिखाना चाहती है. शादी का क्या है, वह तो बाद में भी हो जाएगी,’’ रूही ने अपनी बात कही.
‘‘तुम्हारी इन बातों से उसे बढ़ावा मिल रहा है. आजकल शादी के बाद भी लड़कियां पढ़लिख कर बहुतकुछ बन रही हैं. वह बाद में भी अपनी पढ़ाई जारी रख सकती है.’’
‘‘तुम उसे ले कर परेशान मत हो. जल्दी ही उसे कामयाबी मिलेगी और उस का घर भी बस जाएगा,’’ रूही ने कहा.
सबकुछ जानते हुए भी रूही ने न्यासा का ही पक्ष लिया. नौकरी पर रहते हुए बेटियों की शादी करने का मजा ही कुछ और था. पदप्रतिष्ठा के साथ अच्छे रिश्तों की कमी नहीं थी. न्यासा ने अपनी ओर से किसी लड़के में कभी उत्सुकता नहीं दिखाई थी. अभी उस का सारा ध्यान पढ़ाई पर था. इसी वजह से वह शादी को तवज्जुह नहीं दे रही थी.
अविनाश की नौकरी का एक साल बाकी रह गया था. इस दौरान अगर न्यासा को कहीं कामयाबी मिल जाती, तो वे तुरंत उस के हाथ पीले कर देते. पर न्यासा को इस बात की चिंता नहीं थी. वह जानती थी कि अच्छे पद पर कामयाबी हासिल करने के बाद उसे जीवनसाथी ढूंढ़ने में कोई परेशानी नहीं होगी. वह अपने लैवल का लड़का देख कर उससे शादी कर सकती है. उस की कई लड़कों से अच्छी दोस्ती थी, लेकिन शादी को ले कर वह अभी सीरियस नहीं थी. दोनों ही अपनी जगह पर सही थे.
पीढ़ी का अंतर साफ दिखाई दे रहा है. इसी वजह से सोच में भी फर्क आया था, लेकिन मम्मीपापा की चिंता अपनी जगह पर वाजिब थी.
न्यासा ने इस बार सिविल सर्विसेज के लिए बहुत तैयारी की थी. उसे उम्मीद थी कि उस का सिलैक्शन हो जाएगा. वह बड़ी बेसब्री से रिजल्ट का इंतजार कर रही थी, लेकिन इस बार भी उसे नाकामी का मुंह देखना पड़ा. रिजल्ट देख कर उसे बहुत तगड़ा झटका लगा था.
अविनाश के लिए भी यह बड़ी परेशानी वाली बात थी. वे बोले, ‘‘रूही, अब बहुत हो गया. कब तक कंपीटिशन के चक्कर में न्यासा अपनी जवानी इस तरह बरबाद करती रहेगी.’’
‘‘यह समय ऐसी बातों का नहीं है. तुम्हें उसे दिलासा देनी चाहिए. ऊपर से तुम उसे ताना मार रहे हो,’’ रूही ने कहा.
‘‘मैं उसे सुना नहीं रहा हूं. तुम्हारे सामने हकीकत बयां कर रहा हूं. कंपीटिशन की तैयारी जिंदगी का मजा लेते हुए भी की जा सकती है. इस बार तो उस ने घर से बाहर निकलना तक छोड़ दिया था. उस की सारी उम्मीद है इसी पर टिकी थी, लेकिन हासिल क्या हुआ?’’
‘‘कोई बात नहीं है. कभीकभी ऐसा हो जाता है. तुम्हें इस समय उसे हिम्मत बंधानी चाहिए,’’ रूही बोलीं.
‘‘अब मेरा भी सब्र टूटा जा रहा है. यह बात तुम नहीं समझोगी,’’ अविनाश ने कहा.
‘‘तुम बड़ी पोस्ट पर हो. कोई अच्छा सा लड़का देख कर न्यासा की जिंदगी संवार दो,’’ रूही ने अपनी राय दी.
‘‘कोशिश करूंगा. इस ने तो आज तक कभी किसी लड़के का जिक्र तक नहीं किया. घर से बाहर निकले तब तो अपने लिए कोई जीवनसाथी ढूंढ़ेगी. पढ़ाई के पीछे उस ने अपने सारे सपने एक तरफ रख दिए. बस, एक ही धुन ले कर चल रही है,’’ अविनाश बोले तो रूही चुप हो गईं.
एक पिता होने के चलते अविनाश की चिंता वाजिब थी, लेकिन क्या करें? रूही न्यासा को ऐसे हालात में अकेला भी तो नहीं छोड़ सकती थीं. न्यासा का भी एक सपना है. अगर वह कुछ बनना चाहती है तो मम्मीपापा का फर्ज बनता है कि उसे हर तरीके से सपोर्ट करें.
थके मन से अविनाश औफिस पहुंचे थे, लेकिन वहां पर खुशी का माहौल देख कर वे चौंक गए. उन से कुछ पूछते न बना. सब रामदीन को बधाई दे रहे थे. उन की खुशी देखते ही बनती थी. उन्हें समझ नहीं आया कि ऐसी क्या बात हो गई है, जो औफिस असिस्टैंट रामदीन औफिस का हीरो बना हुआ है. उन्होंने घंटी बजाई. रामदीन तुरंत हाजिर हो गए.
‘‘बड़े बाबू को बुलाओ,’’ अविनाश ने कहा.
‘‘जी साहब,’’ कह कर रामदीन तुरंत कमरे से बाहर निकल गए. थोड़ी देर में बड़े बाबू अविनाश के सामने हाजिर थे.
तभी रामदीन मिठाई ले कर आ गए.
‘‘यह किस खुशी में है?’’ अविनाश ने पूछा.
‘‘सर, रामदीन का बेटा सिविल सर्विस में बहुत अच्छी पोजीशन ले कर कामयाब हो गया,’’ बड़े बाबू ने खुश हो कर कहा.
यह सुनते ही अविनाश का मुंह खुला का खुला रह गया. वे कभी सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि एक औफिस असिस्टैंट का बेटा इतनी ऊंची जगह तक पहुंच सकता है.
उन्होंने मिठाई का एक टुकड़ा तोड़ा और ‘बधाई हो रामदीन’ कह कर अपनी बात खत्म कर दी. इस से आगे उन्होंने रामदीन से कुछ नहीं पूछा.
बड़े बाबू को काम समझा कर अविनाश ने उन्हें भी कमरे से विदा कर दिया था.
यह खबर अविनाश के लिए किसी धमाके से कम नहीं थी. आज तक उन्होंने रामदीन के बारे में कुछ भी जानना नहीं चाहा था. इस समय उन की दिलचस्पी रामदीन के बारे में जानने की थी, लेकिन कोई बताने वाला नहीं था. उन्हें समझ नहीं आ रहा था आखिर पूछें तो किस से?
अविनाश ने तुरंत आज का अखबार मंगवाया और उसे पलट कर देखने लगे. एक पेज पर रामदीन की परिवार के साथ तसवीर छपी थी. वे उसे ध्यान से देखने लगे. ‘कार्यालय सहायक का बेटा बनेगा डीएम’ हैडिंग देख कर वे एकसाथ सारी खबर पढ़ गए. तब जा कर उन्हें पता चला की रामदीन के परिवार में एक
बेटा और एक बेटी है. दोनों ही पढ़ने में होशियार हैं. उस के बेटे को दूसरी बार में यह कामयाबी हासिल हुई थी. हालांकि, वह रिजर्व्ड कैटेगरी का था लेकिन उस ने मैरिट में यह जगह अनरिजर्व्ड सूची में बनाई थी.
अविनाश का आज काम में मन नहीं लग रहा था. रहरह कर उन के सामने कभी रामदीन का तो कभी न्यासा का चेहरा घूम रहा था. उन्हें सम?ा नहीं आ रहा था कहां कमी रह गई जो छोटे पद पर काम करने वाले रिजर्व्ड कैटेगरी के रामदीन का बेटा पलाश इतनी बड़ी कामयाबी हासिल कर गया और सुविधाओं में पलीबढ़ी न्यासा चूक गई.
आज अविनाश औफिस से जल्दी घर चले आए थे. घर पर भी मायूसी छाई हुई थी. रूही चाय पीते हुए उन के सामने बैठी हुई थीं.
अविनाश बोले, ‘‘यही हाल रहा तो न्यासा डिप्रैशन में चली जाएगी. तुम उसे सम?ा कर शादी के लिए राजी कर लो. इस से उस की जिंदगी में खुशी लौट आएगी.’’
‘‘यह काम तुम भी तो कर सकते हो,’’ रूही बोलीं.
‘‘वह मेरी बात नहीं सुनती. हो सकता है तुम्हारी बात मान जाए. तुम्हें वह बहुत मानती है,’’ अविनाश ने कहा.
‘‘कोशिश कर के देखती हूं. मैं भी उस की खुशी चाहती हूं. कामयाबी हासिल करने के लिए हम ने उसे साधन दिए बाकी काम तो उसे ही करना है,’’ रूही बोलीं.
‘‘वह पढ़ने में अच्छी है और उसे ले कर गंभीर भी है. फिर भी पता नहीं क्यों यह नौबत आ गई,’’ अविनाश बोले.
‘‘मैं उसे शादी के लिए मना भी लूं, लेकिन उस के लिए कोई काबिल लड़का भी तो चाहिए,’’ रूही ने कहा.
‘‘जहां तक वह खुद नहीं पहुंच सकी उस पोजीशन पर उस का जीवनसाथी होगा, तो शायद वह अपनी इस कसक को भूल जाए,’’ अविनाश ने कहा.
‘‘तुम्हारे लिंक बहुत अच्छे हैं. कोशिश करोगे तो कोई अच्छा लड़का भी मिल जाएगा. अब हमें इस काम में देरी नहीं करनी चाहिए,’’ रूही बोलीं तो अविनाश चुप हो गए.
रात को डाइनिंग टेबल पर अविनाश की न्यासा से मुलाकात हो गई. वह अनमने मन से खाना खा रही थी. रूही उस की हालत को समझ रही थी. इस समय अविनाश कुछ कह कर उसे और दुखी कर सकते थे. रूही ने इशारे से उन्हें चुप रहने का संकेत किया.
अगले दिन औफिस में रामदीन का दमकता चेहरा देख कर अविनाश उन के सामने अपने को बहुत छोटा महसूस कर रहे थे. कल तक जिस आदमी की हैसियत उन के सामने कुछ नहीं थी, आज वह औफिस में सब का हीरो बना हुआ था.
कुछ देर बाद रामदीन अविनाश के सामने हाजिर हो गए. अपनी आवाज में मिठास घोलते हुए अविनाश बोले, ‘‘रामदीन, मैं तुम्हारी बेटे की कामयाबी पर बहुत खुश हूं. मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं उसे अपने घर डिनर पर बुलाऊं. साथ बैठ कर खाना खाएंगे तो ढेर सारी बातें ही हो जाएंगी.’’
‘‘अभी तो वह अपने दोस्तों और रिश्तेदारों में बिजी है साहब. मैं पूछ कर बताता हूं,’’ रामदीन हाथ जोड़ कर बोले, तो अविनाश के चेहरे पर तनाव दिखाई देने लगा.
रामदीन की इस हरकत पर उन्हें बड़ा गुस्सा आ रहा था. हिम्मत तो देखो अपने बौस को डिनर के लिए टाल रहा था.
रामदीन ने अभी इस बात का जिक्र किसी से नहीं किया. घर आ कर वे अपनी पत्नी रूपमती से बोले, ‘‘साहब ने हम सब को डिनर पर बुलाया है बेटे की खुशी के लिए.’’
‘‘यह इज्जत तुम्हें नहीं, बल्कि बेटे की उस कामयाबी को मिल रही है, जो उस ने अपनी मेहनत से हासिल की है. इस बारे में उस से बात कर लेना. वही आपको ठीक से समझ सकेगा,’’ रूपमती बोली.
अविनाश भी दिनभर बेटी के भविष्य को ले कर मंथन कर रहे थे. उन्हें लगा कि न्यासा न सही रामदीन का बेटा आज उस पोजीशन पर पहुंच गया था, जिसे वह हासिल करना चाहती थी. अगर वह उसे शादी के लिए मना लें तो उस की जिंदगी संवर जाएगी.
तसवीर में देखने पर पलाश लंबाचौड़ा और खूबसूरत जवान लग रहा था. रामदीन के मुकाबले उस की पर्सनैलिटी बहुत अच्छी थी.
घर आ कर अविनाश ने यह बात रूही से कह दी, ‘‘जानती हो मेरा मेरे औफिस असिस्टैंट रामदीन का बेटा सिविल सर्विसेज में अच्छी पोजीशन लाया है.’’
‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है,’’ रूही ने कहा.
‘‘मैं ने उसे घर पर डिनर का न्योता दिया है,’’ अविनाश बोले.
‘‘तुम यह आयोजन किसी होटल में भी कर सकते हो. अगर तुम्हें उस के बेटे की कामयाबी की इतनी खुशी हुई है तो,’’ रूही तमक कर बोलीं.
‘‘बात समझा करो. होटल और घर के माहौल में फर्क होता है. मैं चाहता हूं कि न्यासा उस से एक बार मिल ले,’’ अविनाश ने अपने मन की बात कही.
‘‘कहां तुम और कहां रामदीन? हमारे स्टेटस में कुछ तो मेल होना चाहिए.’’
‘‘ये सब बाद की बातें हैं रूही. एक बार न्यासा उसे पसंद कर ले, बस उस के बाद समझ लड़का हमारा हुआ. कौन सा हमें रामदीन को बारबार घर पर बुलाना है?’’ अविनाश बोले.
उन्होंने रूही से उस की जाति भी छिपा दी थी. उन्हें एक ही धुन सवार थी कि किसी तरह न्यासा का रिश्ता सिविल सर्विस पास करने वाले लड़के से हो जाए. इतने बड़े सरकारी अफसर की जाति कहां पूछी जाती है.
‘‘कब आ रहे हैं वे डिनर के लिए?’’ रूही ने पूछा.
‘‘अभी वह लड़का पलाश अपने दोस्तों के साथ जश्न मनाने में लगा हुआ है. तुम तो ऐसे लोगों को जानती ही हो. कई दिन तक उन के पैर धरती पर नहीं पड़ेंगे,’’ अविनाश बोले.
अविनाश को पूरी उम्मीद थी कि उन के कहने पर न्यासा रामदीन के बेटे पलाश से मिलने को तैयार हो जाएगी.
एक हफ्ता बीत गया था. रामदीन ने कोई जवाब नहीं दिया था. अविनाश का सब्र चूकने लगा था. वे बोले, ‘‘रामदीन, तुम ने घर पर बात की थी डिनर के लिए?’’
‘‘जी, कहा तो था, लेकिन बेटे को यह सब अच्छा नहीं लग रहा. कह रहा था कि सोच कर बताता हूं,’’ रामदीन बोले.
अविनाश को उस से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी. कोई और समय होता तो वे उसे उस की औकात दिखा देते, लेकिन इस समय उन्होंने चुप रहना ही ठीक सम?ा. तेवर दिखा कर बात बिगड़ भी सकती थी.
पलाश को यह समझते देर नहीं लगी थी कि क्यों अचानक अविनाश सर का उस के पापा के प्रति इतना अच्छा बरताव हो गया था.
रामदीन के बारबार कहने पर वह बोला, ‘‘पापा, उन के घर डिनर करने से पहले मैं एक बार कल ही उन से औफिस में मिल लेता हूं. अगर मुझे ठीक लगेगा तो मैं उन के घर आप सब के साथ डिनर पर चला जाऊंगा, लेकिन यह बात उन्हें पहले मत बताइएगा.’’
इस दौरान पलाश ने अविनाश के बारे में सारी जानकारी जुटा ली थी. उन का चरित्र और मकसद सब उस की समझ में आ गया था. अगर वे इतने ही बड़े दिल के होते तो उन के घर आ कर भी बधाई दे सकते थे. रामदीन इन सब बातों से अनजान थे.
अगले दिन पलाश अपने पापा के साथ ही औफिस के लिए चल पड़ा. उसे अपने बीच देख कर औफिस के बाकी लोग बहुत खुश थे. ज्यादातर तो उस के घर जा कर पहले ही बधाई दे आए थे.
‘‘आज कैसे आना हुआ पलाश?’’ बड़े बाबू ने पूछा.
‘‘पापा की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी. उन्हें छोड़ने चला आया,’’ बात बदल कर पलाश बोला.
यह बात अविनाश तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने खुद ही तुरंत पलाश को अपने केबिन में बुला लिया.
हैंडसम पलाश को अविनाश अपलक देखते ही रह गए. पलाश ने आगे बढ़ कर उन के पैर छुए तो उन्होंने उसे ढेर सारे आशीर्वाद के साथ गले लगा लिया और बोले, ‘‘तुम सोच भी नहीं सकते कि तुम्हारी इस कामयाबी पर मुझे कितनी खुशी हुई है.’’
‘‘यह मेरा सौभाग्य है सर.’’
‘‘कुछ दिन में तुम्हें ट्रेनिंग पर जाना होगा?’’
‘‘जी सर, अभी लैटर नहीं आया.’’
‘‘सिविल सर्विस का ठप्पा लगना अपनेआप में बहुत बड़ी बात होती है बेटा. लाखों अभ्यर्थियों में से लगभग हजार स्टूडैंट का ही सपना हर साल पूरा होता है.’’
‘‘आप इतने सीनियर औफिसर हैं. आप को इन सब बातों की पूरी जानकारी है. मेरा अनुभव आप के सामने कुछ भी नहीं है.’’
‘‘समय के साथ सबकुछ सीख जाओगे. मुझे पूरी उम्मीद है तुम एक बहुत काबिल अफसर बनोगे.’’
‘‘मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगा सर.’’
‘‘मुझे सर मत कहो, अंकल कह सकते हो. मैं तुम्हारे पापा की ही उम्र का हूं और अगले साल रिटायर होने वाला हूं. मैं चाहता हूं तुम एक दिन मेरे परिवार के साथ डिनर करो, जिस से हमारा आपसी मेलजोल बढ़ सके.’’
‘‘अंकल, मेरे पापा आप के सामने बैठ कर खाना खाने की जुर्रत नहीं कर सकते. मैं नहीं चाहता कि वे हीनभावना से ग्रस्त हो जाएं.’’
‘‘तुम्हारी सोच बहुत अच्छी है. अगर रामदीन नहीं आ सकते तो तुम ही आ जाओ मेरे घर डिनर पर.’’
‘‘यह नहीं हो सकता. आप का और मेरा संबंध पापा की वजह से है. मैं उन्हें दरकिनार कर शौर्टकट नहीं अपना सकता. एक साल बाद जब आप रिटायर हो जाएंगे, तब आप के और पापा के बीच में औफिस का यह रिश्ता खत्म हो जाएगा. तब मैं खुशीखुशी आप के घर डिनर के लिए आ जाऊंगा. मुझे उम्मीद है आप इस बात को अन्यथा नहीं लेंगे.’’
‘‘मुझे उस दिन का इंतजार रहेगा जब तुम अपनी ओर से हमारे घर आने के लिए उत्सुकता दिखाओगे.’’
‘‘इस के लिए थोड़ा सब्र करना होगा. तब तक मेरी ट्रेनिंग भी खत्म हो जाएगी और मुझे अच्छी पोस्टिंग भी मिल जाएगी. इस दौरान मुझे अपने साथ के प्रशिक्षुओं से मिलनेजुलने का अवसर मिलेगा. मैं ने सोच लिया है कि मैं उन में से किसी को अपना जीवनसाथी चुन लूंगा. हम साथ ही आप के घर डिनर पर आएंगे अंकल. बस, मुझे थोड़ा समय दे दीजिए,’’ पलाश बड़ी बेबाकी से मुसकरा कर बोला.
अविनाश को पलाश से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी. वे बोले, ‘‘तुम अपने जैसी पोजीशन वाली जीवनसाथी चुनने में उत्सुक हो?’’
‘‘जी अंकल, इस से विचारों का लैवल बराबर रहता है. वह भी अपने काम में बिजी रहेगी और मैं भी,’’
एक झटके में पलाश की बातों ने अविनाश की सारी उम्मीद पर पानी फेर दिया था.
कुछ देर और इधरउधर की बात कर पलाश वापस घर चला गया था. रामदीन के कुछ कहने से पहले ही पलाश बोला, ‘‘आप निश्चिंत रहें पापा. अब इस बात को वे कभी नहीं उठाएंगे.’’
‘‘ऐसा क्या हो गया?’’
‘‘कुछ नहीं. मैं चाहता हूं पापा कि अब आप यह नौकरी छोड़ दें.’’
‘‘मैं ने सालों ईमानदारी से काम किया है और तुम्हारी कामयाबी में उस का भी बड़ा हाथ है. अब समय बचा ही कितना है? मैं अपना कार्यकाल पूरा कर इज्जत के साथ रिटायर होना चाहता हूं,’’ रामदीन बोले.
‘‘जैसी आप की मरजी,’’ कह कर पलाश ने बात खत्म कर दी.
अगले दिन सुबह पलाश ने रामदीन को कुछ समझाया और सावधान के रहने की चेतावनी भी दी. अविनाश का बरताव रामदीन के साथ वैसा नहीं रह गया था, जैसा वे कुछ दिनों से दिखाने की कोशिश कर रहे थे.
पलाश की बातों ने अविनाश को बहुत आहत किया था. उन्होंने सोच लिया था कि वे बापबेटे को अच्छा खासा सबक सिखा कर रहेंगे. जरा सी कामयाबी मिलते ही इन के पर निकल आए हैं.
हफ्तेभर बाद एक दिन अविनाश ने बड़े बाबू से एक फाइल मंगाई और बोले, ‘‘तुम जानते हो यह फाइल कितनी जरूरी है. कल इस पर फैसला होना है. तुम ने इसे पढ़ लिया न?’’
‘‘जी सर, पढ़ लिया.’’
‘‘इसे यहीं रख दो. मैं फिर पढ़ूंगा.’’
बड़े बाबू फाइल छोड़ कर चले गए. सारा दिन सामान्य बीता. अगली सुबह जब रामदीन औफिस पहुंचे तो वहां पुलिस खड़ी थी.
‘‘क्या हुआ?’’ रामदीन ने घबरा कर पूछा.
‘‘औफिस से एक जरूरी फाइल चोरी हो गई है. सर का शक तुम पर है. तुम्हीं उस कमरे में आतेजाते हो, बाकी तो कोई नहीं जाता,’’ औफिस का एक मुलाजिम रूपेश बोला.
‘‘मेरा फाइल से क्या लेनादेना?’’ रामदीन बोले.
‘‘यह तो साहब ही जानें. उन्होंने ही पुलिस बुलाई है. तुम से पूछताछ होगी.’’
पुलिस के नाम से रामदीन डर गए. उन्होंने तुरंत पलाश को फोन कर सारी बात बता दी.
पुलिस अभी रामदीन से पूछताछ कर ही रही थी की पलाश आ गया. उस ने अपना परिचय दिया, तो पुलिस वालों ने भी उसे सलाम ठोंक दिया.
‘‘पापा से पूछने से पहले मैं आप को कुछ दिखाना चाहता हूं,’’ पलाश बोला.
पलाश ने अपना लैपटौप खोला और कल की रिकौर्डिंग उन्हें दिखा दी. बड़े बाबू भी बड़े ध्यान से यह सब देख रहे थे. लैपटौप पर सामने दिखाई दे रहा था कि अविनाश ने वह फाइल आलमारी से निकाल कर अपने ब्रीफकेस में रखी और कमरे से बाहर चले गए. अविनाश को सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि उन की यह कोशिश नाकाम हो जाएगी.
‘‘थैंक यू मिस्टर पलाश,’’ पुलिस इंस्पैक्टर बोला.
‘‘हो सकता है गलती से फाइल घर चली गई हो. मुझे ध्यान नहीं रहा,’’ अविनाश अपनी खीज मिटाते हुए बोले.
‘‘लेकिन आप को यह रिकौर्डिंग कहां मिली?’’
‘‘यह बात मुझ से अच्छी तरह आप जानते होंगे इंस्पैक्टर,’’ कह कर पलाश हंस दिया.
रामदीन को संतोष था कि बेटे की वजह से आज उन की इज्जत रह गई थी. अब उन्हें समझ आ गया कि उस दिन क्यों पलाश ने उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए कहा था? उन्हें अविनाश का मकसद पहले ही दिखाई देने लगा था, तभी वे रोज उन्हें औफिस आते हुए एक डिबिया थमा देते थे.
रामदीन के सामने आज एक बार फिर अविनाश को मुंह की खानी पड़ी. उन का चरित्र सब के सामने उजागर हो गया था.




