Honour Killing: बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री रह चुके तेजस्वी यादव ने एक वादा यह भी किया था कि ‘हमारी सरकार बनेगी, तो जिन भाईबहनों की शादी नहीं हो रही है, उन की शादी भी कराई जाएगी. घर में खुशहाली हो जाएगी और बालबच्चा भी हो जाएगा’.
तेजस्वी यादव की इस बात से साफ पता चलता है कि शादी न हो पाना एक समस्या बन रही है. शादी इसलिए नहीं हो रही है, क्योंकि अब लड़कियां अपने मातापिता की पसंद से अपनी ही जाति और गोत्र में शादी नहीं करना चाहती हैं, क्योंकि वहां लड़का और लड़की में समानता नहीं मिलती है.
लड़कियां अब दबना नहीं चाहती हैं. जो लड़कियां अपनी पसंद की शादी कर लेती हैं, उन में से कुछ को तो औनर किलिंग जैसे अपराध का सामना करना पड़ता है. यह केवल बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे 1-2 राज्यों की समस्या नहीं है, बल्कि इस की जड़ें पूरे देश में फैली हुई हैं. इस में घर, परिवार और समाज के साथसाथ पुलिस भी शामिल होती है.
पुलिस इस तरह की घटनाओं को गंभीरता से नहीं लेती है. कई पुलिस वाले पितृसत्ता के हिमायती होते हैं. वे लड़की को ही गलत मानते हैं. वे मुकदमे को लिखने से ले कर उस की जांचपड़ताल तक में बचाव का रास्ता निकालने की कोशिश करते हैं.
पुलिस को भी मिली सजा
साल 2003 की बात है. तमिलनाडु के कुड्डालोर जिले में पुडकूरापेट्टई गांव में 20 साल की रत्ना और 22 साल का प्रभाकर रहते थे. रत्ना वन्नियार समुदाय से थी, जबकि प्रभाकर एससी था. वे दोनों आपस में प्यार करते थे, लेकिन वे यह भी जानते थे कि समाज उन को मिलने नहीं देगा.
इस वजह से उन्होंने चुपके से शादी कर ली और अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन भी करवा लिया. शादी के बाद वे दोनों अपने गांव लौट आए और अपनेअपने परिवारों के साथ रहने लगे.
जुलाई, 2003 के पहले हफ्ते में रत्ना और प्रभाकर चुपचाप गांव छोड़ कर चले गए. घर वालों ने खोजना शुरू किया, तो प्रभाकर गांव से दूर एक सुनसान जगह पर मरा पाया गया. उस के सारे कपड़े उतार दिए गए थे. उसे एक खंभे से बांध दिया गया था. गांव वालों के सामने उस की बेरहमी से पिटाई की गई थी.
दरअसल, गांव वाले प्रभाकर से रत्ना का पता पूछने के लिए कर रहे थे. रत्ना का पता चलने के बाद उन दोनों को गांव के पास काजू के एक बाग में ले जाया गया, जहां दोनो को जहर दिया गया, जिस से उन की मौत हो गई. इस के बाद उन दोनों की लाश को अलगअलग जगह पर जला दिया गया.
पुलिस को इस वारदात के बारे में जानकारी मिली. वह घटना वाली जगह पर गई. इस के बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई. 9 दिनों के बाद, जब एससी समुदाय के कुछ नेताओं ने मीडिया में इस मुद्दे को उठाया, तब आखिर में 17 जुलाई, 2003 को मामला दर्ज किया गया.
पर लोकल पुलिस द्वारा की गई पूरी जांच जिस तरीके से की गई, उस के चलते प्रभाकर के परिवार को मद्रास हाईकोर्ट से दखल देने की मांग करनी पड़ी. एक याचिका दायर कर इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की गुजारिश की गई, जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया.
सीबीआई जांच के बाद कुल 15 लोगों पर मुकदमा चला. ट्रायल कोर्ट ने 13 लोगों को इस मामले में कुसूरवार ठहराया. यही नहीं, ट्रायल कोर्ट ने आरोपी पुलिस वालों को भारतीय दंड संहिता की धारा 217, 218 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(2)(प), 4 के तहत कुसूरवार ठहराया और उन दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई.
बाद में मद्रास हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आरोपी दारोगा की दोषसिद्धि और सजा को संशोधित करते हुए
उसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(2)(प) और भारतीय दंड संहिता की धारा 218 के तहत अपराधों के लिए बरी कर दिया, लेकिन अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 4 और भारतीय दंड संहिता की धारा 217 के तहत अपराधों के लिए उस की दोषसिद्धि को बरकरार रखा और इस तरह उस की सजा को उम्रकैद से घटा कर 11 साल की कड़ी कैद में बदल दिया.
आरोपी पुलिस वालों समेत 11 आरोपियों ने अपनी दोषसिद्धि और सजा को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एफआईआर दर्ज होने से ले कर ट्रायल कोर्ट तक हुई लंबी और बहुत ज्यादा हुई देरी पर ध्यान दिया.
कोर्ट ने कहा कि यह एक ओर अभियोजन पक्ष की घोर अक्षमता और दूसरी ओर बचाव पक्ष द्वारा अपनाई गई टालमटोल की रणनीति को दिखाता है, जिस के चलते मुकदमा धीमा चला.
इस के अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया कि इस मामले में अभियोजन पक्ष के कई गवाह अपने बयान से पलट गए हैं.
इस मामले में घटना साल 2003 में घटी. मामला साल 2010 में सैशन कोर्ट को सौंपा गया और आरोप साल 2017 में तय किए गए. ट्रायल कोर्ट ने अपना फैसला 24 सितंबर, 2021 को सुनाया. इस में 18 साल का समय लग गया.
कोर्ट ने पुलिस के लोगों को जिम्मेदार इसलिए ठहराया, क्योंकि स्थानीय पुलिस द्वारा की गई जांच पूरी तरह से गलत और बेईमानी से भरपूर थी, जिस का मकसद यह दिखाना था कि अपराध वन्नियार और एससी समुदाय द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था.
यह अपराधियों और पीडि़त दोनों को एकसाथ आरोपी बनाता है. पुलिस ने मारे गए लड़के के पिता को भी आरोपियों में से एक बताया, जो एक छल था.
कोर्ट ने कहा कि किसी मुकदमे की तरह ही जांच का मकसद भी सच तक पहुंचना है. जांच अधिकारी का फर्ज विधिपूर्वक सुबूत जमा करना है. इस मामले में जांच अधिकारी ने न केवल सुबूतों को छिपाया, बल्कि खुद भी सुबूत गढ़े.
इस के जरीए बेकुसूरों को फंसाने और कुसूरवारों को छुड़ाने की कोशिश की गई. सीआरपीसी की धारा 154 और 157(1) के साथसाथ पुलिस अधिनियम, 1861 की धारा 23 और 24 का उल्लंघन किया.
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले में किसी भी तरह का दखल देने से इनकार करते हुए राज्य सरकार को मारे गए लड़के के परिवार वालों को मुआवजा देने का निर्देश दिया. कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सभी अपीलकर्त्ता जो जमानत पर हैं, अपनी बाकी सजा काटने के लिए 2 हफ्ते के भीतर सरैंडर कर दें.
25 जुलाई, 2025 की घटना है. उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के पलड़ा गांव में 16 साल की सानिया का गला दबा कर हत्या कर दी गई, जिस के बाद परिवार ने टीबी से मौत बता कर लाश को दफना दिया. 24 जुलाई को सानिया के प्रेमी सागर के पिता रामपाल ने घटना की जानकारी दोघट थाने में दी.
पुलिस ने सूचना को गंभीरता से नहीं लिया और रामपाल को टरकाते हुए दाहा पुलिस चौकी पर भेज दिया. इस के बाद भी पुलिस हरकत में नहीं आई, तो रामपाल ने इस घटना की सूचना एसपी बागपत को दी, जिस के बाद 25 जुलाई को दोघट पुलिस हरकत में आई और पूरे मामले की जांच शुरू कर दी.
पुलिस ने सानिया के ताऊ मतलूब को हिरासत में ले कर पूछताछ की, तो उस ने सारा राज उगल दिया. एसडीएम मनीष कुमार यादव और सीओ विजय कुमार की देखरेख में पुलिस ने सानिया की लाश को कब्र से निकाला और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.
पुलिस ने बताया कि 22 और 23 जुलाई की रात सानिया की हत्या करने की सूचना मिली थी. अब पुलिस ने कुसूरवारों को पकड़ कर सजा दिलाने की बात कर रही है. वैसे, पहले पुलिस ने इस को हलके में लिया था. वह मामले को उछालना ठीक नहीं समझ रही थी.
28 सितंबर, 2025 को मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में औनर किलिंग का सनसनीखेज मामला सामने आया. 17 साल की 12वीं जमात में पढ़ने वाली छात्रा दिव्या सिकरवार की घर के अंदर गोली मार कर हत्या कर दी गई और उस की लाश को परिवार वाले ही कुआरी नदी में फेंक आए. इस के बाद दिव्या की गुमशुदगी की बात पुलिस में दर्ज कराई.
पुलिस ने जब जांच की तो पता चला कि पिता भरत सिकरवार अपनी बेटी की लाश प्लास्टिक की पन्नी में लपेट कर कार से नदी तक ले गए थे. उसे पत्थर से बांधा और नदी में फेंक दिया.
पूछताछ में दिव्या के मातापिता बारबार बयान बदलते रहे. पहले कहा कि बेटी की मौत पंखे से करंट लगने से हुई, फिर कहा कि उस ने खुदकुशी कर ली. लेकिन फौरैंसिक जांच में साफ हुआ कि दिव्या को बेहद नजदीक से सिर में गोली मारी गई थी. घटना की रात से दिव्या का नाबालिग भाई और बहन भी गायब हो गए थे, जिस से पुलिस को घटना की जानकारी न मिल सके.
दिव्या के पिता भरत सिकरवार कहते हैं, ‘‘घर में माता की झांकी लगी थी. मैं बाहर था, तभी अंदर से बच्चा चीखा. मैं अंदर गया तो दिव्या घायल पड़ी थी. मैं ने उसे उठाया और महल्ले के एक लड़के की गाड़ी में साथ अस्पताल गया. रास्ते में दिव्या की मौत हो गई और मैं बेहोश हो गया. मैं अस्पताल के अंदर नहीं गया.’’
औनर किलिंग का यह कोई पहला मामला नहीं है. जून, 2025 में मुरैना की ही मलिका की हत्या उस के दादा ने कर दी थी. मलिका पर गैरजाति के लड़के से प्रेम संबंध रखने का आरोप था.
जनवरी, 2025 में ग्वालियर की 20 साल की तनु गुर्जर को उस के पिता और चचेरे भाई ने शादी से पहले ही मौत के घाट उतार दिया.
जून, 2023 में मुरैना में एक लड़की और उस के प्रेमी की हत्या कर लाश को चंबल नदी में फेंका गया.
हर राज्य है गुनाहगार
तमिलनाडु की घटना औनर किलिंग को सही से सम?ाने के लिए काफी है. इस से यह भी पता चलता है कि केवल उत्तर भारत में ही औनर किलिंग की घटनाएं नहीं घटती हैं, बल्कि दक्षिण भारत के राज्यों में भी ऐसी घटनाएं घटती हैं.
साल 1993 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांधला थाना क्षेत्र के गांव खंद्रावली में सतीश और सरिता की भरी पंचायत के बीच लड़की के पिता ने हत्या कर दी थी. साल 1998 में झिंझाना थाना क्षेत्र के अलीनगर में पिता ने अपनी बेटी को एक लड़के के साथ देख लिया था. इस के बाद दोनों को फांसी पर लटका कर हत्या कर दी थी.
साल 1999 में शामली कोतवाली क्षेत्र के महल्ला ब्रह्मानन से एक लड़की किसी लड़के के साथ चली गई थी. लड़की के लौटने के बाद पिता ने सड़क पर उसे कुल्हाड़ी से काट कर हत्या कर दी थी. साल 2022 में झिंझाना थाना क्षेत्र के नयागांव में पिता ने बेटी की हत्या कर लाश को गांव शामली शामला में बिटौड़े में फूंक दिया था.
यह सही है कि अब ज्यादा से ज्यादा मामले पुलिस तक पहुंच जाते हैं. इस के बाद भी पुलिस की जांच में मामले को कमजोर बनाने का काम किया जाता है. कोर्ट में सालोंसाल ये मामले चलते हैं. इस वजह से पीडि़त आरोपी दोनों ही परिवार थकहार जाते हैं. बहुत सारे मामले हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचते ही नहीं हैं.
तमिलनाडु के मामले में अगर पुलिस वालों को सजा नहीं मिली होती, तो यह मुकदमा भी सुप्रीम कोर्ट तक नहीं पहुंच पाता. ज्यादातर मामलों में परिवार वाले ही आरोपी होते हैं, तो वे दोहरी सजा भुगत रहे होते हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2019 और 2020 में औनर किलिंग की संख्या हर साल 25 रही है. साल 2021 में यह बढ़ कर 33 हो गई. जानकार लोग मानते हैं कि ये आंकड़े पूरे नहीं हैं. आज भी ज्यादातर मामलों में औनर किलिंग शब्द को हटा दिया जाता है. ऐसी घटनाएं हत्या या खुदकुशी के रूप में दर्ज हो जाती हैं.
तमिलनाडु और पुडुचेरी में एससी और एसटी के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए काम करने वाले एक गैरसरकारी संगठन, ऐविडैंस द्वारा की गई स्टडी के मुताबिक, पिछले 5 सालों में अकेले तमिलनाडु में औनर किलिंग के 195 ज्ञात मामले सामने आए हैं.
नवंबर, 2019 में एक ही हफ्ते के अंतराल में औनर किलिंग की 2 भयावह घटनाएं हुईं. नागपट्टिनम की 17 साल की जननी को उस की मां ने एक एससी लड़के के साथ संबंध रखने के चलते आग लगा दी. 5 दिन बाद 21 साल की नंबिराजन की लाश तिरुनेलवेली में रेल की पटरियों पर मिली. उसे उस की ससुराल वालों ने मार डाला था. जो उस की गरीबी को स्वीकार नहीं कर सकते थे, भले ही वह उसी समुदाय से था.
एनसीआरबी की सालाना रिपोर्ट केंद्र सरकार द्वारा तैयार की जाती है, जिस में राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़े शामिल होते हैं. राज्य सरकारों के पास औनर किलिंग पर नजर रखने का कोई विश्वसनीय तरीका नहीं है या वे ऐसा करना ही नहीं चाहतीं.
ह्यूमन राइट्स वाच औनर किलिंग को हिंसा का कृत्य, आमतौर पर हत्या, परिवार के मर्द सदस्यों द्वारा महिला सदस्यों के खिलाफ किया जाता है, जिन के बारे में माना जाता है कि उन्होंने अपनी जाति, वर्ग या धर्म से बाहर के पुरुषों के साथ प्रेम संबंध बना कर या उन से विवाह कर के परिवार का अपमान किया है.
औनर किलिंग की शिकार तकरीबन 97 फीसदी महिलाएं होती हैं. औनर किलिंग को अकसर रिश्तेदारों द्वारा खुदकुशी के रूप में रिपोर्ट किया जाता है.
परिवार के सदस्य तत्काल दाह संस्कार के नाम पर इस के उलट किसी भी सुबूत को खत्म कर देते हैं, जैसा कि अक्तूबर, 2019 में आंध्र प्रदेश के रेडलापल्ले गांव में एक नाबालिग लड़की की उस के परिवार द्वारा हत्या के मामले में हुआ. उन्हें पुलिस द्वारा हत्या के रूप में माना जाता है या अनुसूचित जातियों और जनजातियों के खिलाफ अत्याचार के रूप में माना जाता है.
एनसीआरबी के मुताबिक, साल 2018 में 10,773 लोग अपने ‘प्रेम संबंधों’ के चलते भाग गए. जो जोड़े भागते हैं, वे आमतौर पर ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि उन्हें अपने वर्ग, जाति या धर्म के फर्क के चलते अपने रिश्तों को पारिवारिक रजामंदी न मिलने का सामना करना पड़ता है.
विदेशों में भी होती है औनर किलिंग
औनर किलिंग की घटनाएं विदेशों में भी होती हैं. ज्यादातर विदेशों में ये घटनाएं भारतीय मूल के लोगों में ही होती हैं. कुछ सालों में ब्रिटेन की अदालतों में ज्यादा मामले पहुंचे हैं.
कुछ मामलों में बलात्कार की शिकार महिलाओं की हत्या भी पीडि़त होने के ‘अपमान’ और इस से उन के परिवार पर पड़ने वाले असर के चलते की जाती है. ब्रिटेन में हर साल तकरीबन 12 औनर किलिंग होती हैं. ये आमतौर पर दक्षिण एशियाई और मध्यपूर्वी एशियाई परिवारों में होती हैं.
सब से ज्यादा उछले मामलों में से एक सरे की बानाज महमूद का मामला है, जिस की साल 2006 में हत्या उस के पिता और चाचा ने कराई थी. उस ने एक नाखुश अरेंज मैरिज छोड़ दी थी, जिस के बाद उस ने किसी और आदमी के साथ रिश्ता शुरू कर दिया था.
20 साल की इस लड़की की गला घोंट कर हत्या कर दी गई और उसे एक सूटकेस में छिपा कर बर्मिंघम
के एक मकान के नीचे दफना दिया गया था.
इस मामले को ठीक से न संभालने के लिए पुलिस की आलोचना की गई थी, जब बानाज महमूद ने अपनी मौत से पहले कई बार पुलिस से संपर्क किया था.
जबरन विवाह को रोकने और पहले से ही बिना सहमति के विवाह में रह रहे लोगों को इस से बाहर निकलने का रास्ता देने के लिए कानून नवंबर, 2008 में इंगलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड में पेश किए गए थे.
किसी को विवाह के लिए मजबूर करने की कोशिश करने के कुसूरवार पाए जाने पर 2 साल तक की जेल हो सकती है. पहले साल के भीतर 86 जबरन विवाह संरक्षण आदेश लागू किए गए. दुनिया का कोई भी प्रमुख धर्म सम्मान से संबंधित अपराधों को स्वीकार नहीं करता. अपराधी धार्मिक आधार पर अपनी करतूत को उचित ठहराने की कोशिश करते हैं.
जाति और धर्म हैं ज्यादा जिम्मेदार
भारत में जाति व्यवस्था समाज में गहरे तक पैठी गई है. औनर किलिंग इस का ही एक रूप है. जो शादीविवाह पर खूनी शिकंजा जैसा है.
हिंदू विवाह कानून बनने के बाद भी उस में ब्राह्मण, जाति और कुंडली का कसर खत्म नहीं हुआ. अंतर्जातीय विवाहों को संरक्षित करने के लिए स्पैशल मैरिज ऐक्ट भी बना है. इस के बाद भी मनपसंद शादी करने की आजादी नहीं है.
पूरे देश में औनर किलिंग की घटनाएं बढ़ रही हैं. इस के अलगअलग रूप सामने आ रहे है. औनर किलिंग बताती है कि कैसे परिवार और समाज ऐसी हिंसा को सही ठहराते हैं और संवैधानिक मूल्यों को कमजोर करते हैं.
औनर किलिंग हिंसा का वह रूप है, जो आमतौर पर हत्या के रूप में सामने आता है. ज्यादातर मामलों में परिवार के सदस्य ही इसे अंजाम देते हैं.
इस का शिकार वे जोड़े बनते हैं, जिन्हें यह माना जाता है कि उन्होंने जाति, समुदाय या धर्म के बनाए नियमों की अनदेखी कर के आपस में शादी की और परिवार की बेइज्जती की. इस में जाति, अंतर्विवाह और गोत्र बहिर्विवाह जैसे नियमों का उल्लंघन भी शामिल है. इस में परिवार के लोग ही औनर किलिंग को अंजाम देते हैं.
झूठी शान की खातिर मांबाप ही अपने बच्चों का कत्ल करते हैं. कभी पिता ने बेटी की कुल्हाड़ी से हत्या की, तो कभी पिता ने बेटी को बिटौड़े में जला दिया. कभी फांसी पर लटका कर लड़के और लड़की को मार दिया गया, तो कभी गोली मार कर हत्या कर दी.
सब से बड़ी बात, इन घटनाओं के बाद कानून और पुलिस अपना काम करते हैं. औनर किलिंग करने वाले और उस के साथियों के खिलाफ अब हत्या का मुकदमा दर्ज होता है. इस के बाद पुलिस और कोर्ट के चक्कर में पूरा परिवार तबाह हो जाता है. ऐसे में समाज भी साथ नहीं देता.
कितने लोग जमानत का पैसा और जमानत लेने वालों का इंतजाम नहीं करा पाते, जिस के चलते जेल से बाहर ही नहीं निकल पाते हैं.
औनर किलिंग को बढ़ावा देने वाली वजह
औनर किलिंग की सब से बड़ी वजह धर्म, परिवार और समाज हैं. शहरीकरण, शिक्षा और आधुनिक विचारों के बावजूद जाति की दीवार अब भी बनी हुई है. किसी भी लड़केलड़की को अपना मनपंसद जीवनसाथी चुनने का हक नहीं है. परिवार द्वारा तय की गई शादी में धार्मिक रीतिरिवाजों, अनुष्ठानों, पूजापाठ का पालन होता है. यह सब बच्चों को बचपन से ही सिखाया जाता है. बच्चे बचपन से ही जातिगत सीमाओं को स्वीकार कर लेते हैं, जिस से उन के सामाजिक संबंध, विवाह संबंधी फैसले के प्रति सोच पर असर पड़ता है.
तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्य, जहां दलित सशक्तीकरण थोड़ा ज्यादा है, वहां अंतर्जातीय विवाह भी ज्यादा होते हैं और साथ ही औनर किलिंग की घटनाएं भी ज्यादा सामने आती हैं. यह हिंसा उन प्रदेशों में ज्यादा दिखाई देती है, जहां जातिगत व्यवस्था की जड़ें गहरे तक पैठी होती हैं. एक सोच और भी है, जिस में यह माना जाता है कि इस के पूरी तरह से कुसूरवार मर्द ही होते हैं.
यह पूरा सच नहीं है. तमाम घटनाओं में यह देखा गया है कि लड़की की मां या लड़के की मां भी लड़की को कुसूरवार बताती है. कई बार लड़की की जान लेने में उस की मां का हाथ भी होता है.
कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं, जिन में लड़कालड़की आपसी प्यार के साथ ही साथ शादी के पहले ही सैक्स संबंध बना लेते हैं. इस दौरान अगर लड़की को बच्चा ठहर गया, तो लड़की को मार कर खुदकुशी का रूप देने की कोशिश होती है. इस में पुलिस पैसा और दबाव दोनों चाहती है. कई मामलों में केस दब भी जाता है.
कई बार अगर लड़के वाले एतराज करते हैं, तो मामले की जांच हो जाती है. लड़की के घर वाले फंस भी जाते हैं. ज्यादातर मामलों में लड़कियां ऊंची जाति की होती हैं. उन के परिवार वाले लड़के की निचली जाति को सहन नहीं कर पाते हैं.
कई मामलों में उदारता देखी जाती है, जहां आपस में शादी कर के मामले का निबटारा कर दिया जाता है. कुछ मामलों में तो पुलिस भी पंडित बन कर गले में माला पहना कर आग के चक्कर लगवा कर शादियां करा देती है. मसला वहीं फंसता है, जहां जाति, धर्म और समाज का विवाद खड़ा हो जाता है. जाति और खाप पंचायतों का रुख ठीक न होने से यह परेशानी बनी हुई है.
लड़कियों की कमी के बाद भी लड़के और उन के घर वाले जाति और गोत्र का मोह छोड़ नहीं पा रहे हैं. इस परेशानी के शिकार लड़का या लड़की अगर जिंदा रहते हैं, तो उन के लिए समाज से शादी के रिश्ते आने बेहद कम हो जाते हैं. Honour Killing




