Hindi Story, लेखक – पंकज त्रिवेदी

आंगन के चारों ओर दीवार थी. लोहे का दरवाजा खुलने की आवाज सुनाई दी. मनोज बिस्तर पर पड़ा जाग रहा था. जाड़े की बहुत घनी रात थी.

मनोज ने घड़ी में देखा. अभी तो रात के 10 बजे हैं. इस वक्त कौन होगा? ऐसा सोच कर मनोज बिस्तर से उठ गया. ठीक उसी समय बरामदे के दरवाजे पर धीरे से किसी ने दस्तक दी.

मनोज ने बत्ती जलाई. दरवाजा खोला. वह सामने खड़ी औरत का चेहरा ठीक से पहचान न पाया. घर के सामने खुला मैदान अंधकार ओढ़ कर सोया हुआ था. दूरदूर तक खेत ही खेत थे. माहौल में नमी के साथ जाड़े की फसल की खुशबू फैली हुई थी. झींगुर की आवाज के अलावा सबकुछ शांत था. मनोज को गांव के बाहर ग्राम पंचायत के पास एक सरकारी मकान मिला था.

उस औरत ने कुछ कदम आगे बढ़ कर बरामदे में पैर रखा.

‘‘अरे जीवली, तुम…?’’ मनोज ने हैरान हो कर पूछा.

जीवली की आंखों में आंसू थे. वह दरवाजे के पास ही बैठ गई.

‘‘जीवली, तुम इस समय क्यों आई? क्या हुआ?’’ मनोज ने पूछा.

जवाब देने के बदले जीवली को रोती हुई देख कर मनोज और ज्यादा हैरानी में पड़ गया.

‘‘कुछ बोलो तो सही… क्यों रो रही हो?’’ मनोज की आवाज में थोड़ी सख्ती आ गई.

जीवली ने कुछ बोले बिना ही दरवाजे को बंद कर दिया. मनोज को अचरज हुआ और मन में कहीं डर भी था. उसे कड़ाके की ठंड में भी पसीना आने लगा.

मनोज पिछले 2 साल से इस गांव में था. पूरा गांव उसे इज्जत की नजरों से देखता था. यह उस के पढ़ेलिखे और संस्कारी इनसान की पहचान थी. ग्रामसेवक के पद पर उस की उज्ज्वल छवि रही है. ऐसे समय जीवली उस के घर में आ कर दरवाजा बंद कर दे, तो पसीना निकल आएगा ही न. वह अभी भी रो रही थी.

मनोज ने हिम्मत कर के धीरे से पूछा, ‘‘जीवली, तुम क्यों रो रही हो? कुछ बात करोगी तो सम झ आएगा न? और यह दरवाजा तो खोल,’’ इतना कह कर मनोज दरवाजे की ओर मुड़ा.

उसी समय जीवली ने मनोज के पैर पकड़ लिए. मनोज रुक गया और फिर वहीं घुटनों के बल बैठ गया और बोला, ‘‘जीवली, अभी कितने बजे हैं उस का अंदाजा है तुम्हें? बाहर अंधेरा और यहां मैं अकेला हूं.

अगर किसी को पता चला न तो… जो भी काम हो जल्दी से बोल दो.’’

लालटेन के उजास में जीवली ने धीरे से चुनरी उतार दी और मनोज कुछ कदम पीछे चला गया. उसे लगा कि यह जीवली क्या करने लगी है? उसे धक्का मार कर बाहर निकालने की इच्छा हो गई, मगर वह ऐसा न कर पाया.

जीवली ने अंगिया की डोरी छोड़ दी. मनोज ने अपनी आंखें बंद कर लीं.

‘‘साहब, आप के पास मरहम है क्या? मैं यहां से जल गई हूं.’’

मनोज ने धीरे से आंखें खोलीं. जीवली के बाईं करवट पर बड़ा सा फोड़ा (फफोला) हो गया था. वह सच में जल गई थी.

मनोज को कुछ याद हो आया. उस दिन पहली ही बार जीवली पानी भरने आई थी. तब मनोज को यह सरकारी मकान मिले एक हफ्ता भी नहीं हुआ था. गांव में ज्यादा जानपहचान नहीं थी. दोपहर का समय था. खाना खा कर थोड़ा आराम कर के मनोज ने सोचा कि गांव ही घूम लिया जाए.

उस मकान के आंगन के कुएं में जीवली घड़े से बड़ी मटकी में पानी डालने के लिए नीचे झुकी, उसी समय मनोज का ध्यान उस तरफ गया. एक पल के लिए तो वह जड़ हो गया. इतनी उम्र में उस ने कई औरतें देखी थीं, मगर आज पहली बार उसे लगा कि चीथड़ों में लिपटा हुआ रत्न भी होता है.

जीवली ने तिरछी नजरों से मनोज की ओर देख लिया था. उस ने जल्दी से चुनरी ठीक से ओढ़ ली और मनोज की ओर मादक मुसकान फेंक दी, फिर धीरे से बोली, ‘‘साहब, लगन कब करना है?’’

फिर मनोज के जवाब का इंतजार किए बिना जीवली जल्दी से चली गई.

‘‘साहब, कौन सी सोच में पड़ गए? मरहम हो तो जल्दी से लगा दो न. कुछ देर में वह आएगा, तो फिर…’’

मनोज अपनी यादों से लौट आया. उस ने जल्दी से अंदर के कमरे में जा कर बरनोल ला कर फोड़े पर हलके हाथों से मरहम लगाना शुरू किया.

‘‘साहब, जल्दी लगा दो न, बहुत जलन हो रही है…’’ कह कर जीवली कराहने लगी.

मनोज का हाथ कांपने लगा. जलन के चलते बड़ा सा फोड़ा हो गया था.

उस की नजरों के सामने कुएं पर पानी भरती जीवली का ही सीन था, जिस के लिए वह बारबार तरसता था.

उसे लगा कि वह ठीक से मरहम लगा नहीं पाएगा.

उस समय जीवली ने खुद कलेजे को मजबूत कर के मनोज का हाथ पकड़ कर उंगली पर लगा मरहम फोड़े पर लगा दिया.

मनोज तो हैरान सा देखता ही रह गया. जीवली की आंखों में आंसू थे, फिर भी उस ने मनोज के सामने मुसकरा कर देखा. वैसे भी जो पीड़ा सह पाए, वही मुसकरा सकते हैं.

मनोज कुछ सम झ न पाया. उस ने पूछा, ‘‘तुम यहां कैसे जल गई?’’

‘‘उस ने दाग दिया,’’ अंगिया की डोरी बांधते हुए जीवली ने कहा.

‘‘क्यों, ऐसा भी क्या हो गया था?’’

‘‘वह दारू पी कर आया और बोला मु झे जल्दी खाना दे. खातेखाते बोला कि कल तु झे अर्जुन के खेत में खाना देने जाना है, तैयार हो कर रहना.’’

‘‘उस ने तुम से ऐसा क्यों कहा?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘उस मुए ने कहा कि अर्जुन मु झे हमेशा शराब पिलाता है, इसलिए तु झे उसे राजी करना होगा… समझ गई न?’’

‘‘बहुत घटिया आदमी है वह तो,’’ मनोज ने कहा.

‘‘आप सुनो तो सही. मैं ने उस से कहा कि कोई कामधंधा करो तो गुलामी करनी न पड़े. अर्जुन जान गया है कि तुझे दारू के बगैर चलेगा नहीं, इसलिए मु झ पर नजर डाली. तू भी कितना हलकट है कि हां कह कर चला आया,’’ इतना बोलते हुए जीवली ने अपने आंसू पोंछे.

‘‘तो इस में तुम ने क्या गलत कहा,’’ मनोज ने कहा.

‘‘बस, उस का तौर ही ऐसा है. मैं ने झट से कह दिया तो उस ने चूल्हे में से जलती हुई लकड़ी उठा ली. मैं अपना हाथ आगे बढ़ाऊं, उस से पहले तो बाईं ओर करवट पर दे मारी… फिर कहता कि अपने रूप का बहुत घमंड है न तुझे?’’

‘‘मगर इसे इनसान कहें या…?’’ मनोज बोला, ‘‘बिलकुल जाहिल आदमी है.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते, कोई बात नहीं. वह तो जब भी दारू पी कर आता है, तब मारता है. मगर आज सुलगती लकड़ी हाथ आ गई,’’ जीवली बोली.

थोड़ी देर के बाद जीवली बाहर निकली. उस ने आसपास देखा. घना अंधेरा था.

मनोज ने धीरे से कहा, ‘‘तुम अकेली जा पाओगी कि छोड़ने आऊं?’’

‘‘नहींनहीं, मैं चली जाऊंगी.’’

‘‘वह जाहिल तुम्हें देख लेगा तो…?’’ मनोज को चिंता होने लगी.

‘‘वह तो खर्राटे मारता होगा. दारू पी कर आने के बाद कुछ देर हंगामा कर देता है. एक बार खटिया पकड़ ले, फिर खेल खल्लास,’’ जीवली ने कहा.

‘‘कुछ दिन और मरहम लगाना होगा… जीवली, सम झ रही हो न…’’ मनोज ने कहा.

‘‘साहब, मुए ने ऐसी जगह दाह लगाया है कि डाक्टर को दिखाने में भी लाज आती है,’’ जीवली ने कहा.

‘‘मेरे पास आते शर्म न आई?’’ मनोज के चेहरे पर शरारती मुसकान उभर आई.

‘‘शर्म लगे मगर क्या करूं मैं? उस दिन मैं पानी भर रही थी न, तब आप मेरे सामने कैसे टकटकी लगा कर देखते थे,’’ जीवली के ये शब्द सुनते ही मनोज झेंप गया.

‘‘मैं कल आऊंगी…’’ कहते हुए जीवली बाहर निकल गई.

अब तो जीवली का इंतजार करना मनोज को अच्छा लगता था. आज वह देर से आई. मनोज के लिए इंतजार का एकएक पल एक युग जितना लंबा लगने लगा था.

जीवली आ गई. मनोज का हाथ उस के फोड़े पर फिरता रहा.

‘‘साहब, एक बात कहूं?’’

हां, बोल…’’ मनोज ने कहा.

‘‘आप मुझे मरहम लगाते हैं, तो कुछ होता नहीं है?’’

‘‘जीवली, तुम तो शादीशुदा हो. यह तो महरम लगा कर दर्द मिटाने का काम है. तेरा घरवाला, वह जाहिल है न?’’ मनोज बोल रहा था, उस से उलट उस के मन में उथलपुथल हो रही थी.

‘‘साहब, उस मुए को तो दारू पी कर मारना ही आता है. घर की औरत पर हाथ उठाए उन में क्या होगा?’’ जीवली की बात से मनोज को अचरज हुआ.

‘‘क्यों?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘उस ने दाह दे कर मुझे फोड़ा दे दिया. छोड़ो न उस कलमुंहे का नाम…’’ फिर जीवली धीरे से बोली, ‘‘मगर आप कहें तो मैं रोज आती रहूंगी…’’ और फिर उस ने अपनी आंखें नचाईं.

‘‘ऐसा भी क्या है कि तुम उस से इतनी नाराज हो?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘साहब, उस की बात ही जाने दो न. उस दिन मु झे कहता था न कि अर्जुन के साथ रात बिताने जा. सच कहूं तो वह मरद में ही नहीं है,’’ इतना बोलते ही जीवली लाल हो गई.

‘‘क्या बात करती हो?’’ मनोज हैरान हो कर बोला.

‘‘साहब, क्या आप को कुछ नहीं होता?’’ जीवली ने पूछा.

‘‘जीवली, तुम्हारा रूप ही ऐसा है कि कोई भी आदमी पागल हो जाए. जल्दी से अपने घर जा,’’ मनोज को मानो अपनेआप पर अब भरोसा नहीं रहा था.

‘‘आप ने तो कभी ऐसा दिखने ही नहीं दिया…’’ कहते हुए जीवली ने मनोज के गले में हाथ डाल दिए.

जीवली के इस हमले के सामने मनोज पानीपानी हो गया. वह जमीन पर ही चारों खाने चित हो गया और
कुछ देर तक जीवली मस्ती करती रही.

फिर मनोज ने कहा, ‘‘तुम्हारा घरवाला मेरे पास आया था.’’

‘‘क्या…?’’ जीवली के पेट में डर की बिजली फैल गई.

‘‘हां, कल मेरे पास आ कर पैसे मांगे और कह कर गया कि साहब, जीवली आप के पास आती है, मैं जानता हूं. मु झे कोई फर्क नहीं पड़ता. मगर रोज कुछ चिल्लर का जोग करना पड़ेगा. हम दोनों की गाड़ी चलेगी.’’

मनोज ने बात कही तो जीवली के मन पर कोई असर न हुआ.

मनोज ने पूछा, ‘‘जीवली, तुम कुछ बोली नहीं?’’

‘‘मुझे पता है. मैं ने ही उसे कहा था, उस अर्जुन के पास जाने से तो…’’ इतना बोलते जीवली के मुंह पर मनोज ने अपना हाथ रख दिया और बांहों में जकड़ लिया.

ठीक उसी दिन फोड़े में से मवाद बाहर निकलने लगा था और जीवली का दर्द भी कम होने लगा था. आज वह बड़ी खुश थी. Hindi Story

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