Religion and Love: ‘‘हमारी बिटिया अब पापा किस को कहेगी…’’
22-23 साल की एक औरत अपनी गोद में डेढ़ महीने की बेटी को देखदेख कर रोते हुए बारबार यही कह रही थी. उस के पास एक और बूढ़ी औरत भी बैठी थी. वह भी रो रही थी. उन्हें देख कर लग रहा था कि वे दोनों शायद सासबहू हैं, क्योंकि जवान औरत बारबार घूंघट कर रही थी. मरने वाला उस डेढ़ महीने की बेटी का पिता होगा. उन के साथ कुछ दूरी पर एक बूढ़ा, एक लड़का और कुछ उन के साथी खड़े थे.
लखनऊ का पोस्टमार्टम हाउस अंदर से बंद था. बाहर खाली जगह पड़ी थी. वहां इंटरलौकिंग वाली ईंटों से बना फर्श था. पास में सीमेंट से बनी बैंच और एक प्लेटफार्म था. बैंच पर लोग बैठ कर किसी अपने की डैड बौडी का इंतजार करते थे.
सीमेंट से बना प्लेटफार्म डैड बौडी रखने के काम आता था. पूरे शहर से पोस्टमार्टम के लिए वहां वे डैड बौडी आती थीं, जिन में पुलिस केस दर्ज हो. पुलिस पोस्टमार्टम के जरीए यह जानने की कोशिश करती है कि डैड बौडी के साथ क्या हुआ होगा? उस को किस तरह से मारा गया होगा? मरने का क्या समय रहा होगा? पोस्टमार्टम के बाद जब सारी खानापूरी हो जाती है, तभी डैड बौडी घर वालों को सौंपी जाती है.
कुछ देर में एक आदमी हाथ में चाबी का गुच्छा ले कर आता है और पोस्टमार्टम हाउस के एक कमरे को खोलता है. दरवाजा खुलते ही एक अजीब सी गंध 12-15 फुट दूर तक बैठे लोगों तक आती है. वहां आसपास कुछ और लोग भी होते हैं. शायद उन के भी घरपरिवार का कोई वहां रहा हो. वे लोग भी किसी अपने की डैड बौडी का इंतजार कर रहे होंगे.
‘सनी रावत… थाना निगोहां…’ पोस्टमार्टम हाउस के कमरे में गए आदमी ने अंदर से ही आवाज लगाई.
यह सुनते ही उस रोतीबिलखती औरत की आवाज तेज हो गई. साथ वाली औरत भी रो रही थी. उन के पास खड़ा एक नौजवान तेजी से पोस्टमार्टम हाउस की तरफ बढ़ गया. उस के साथ 2 और लड़के भी गए और एक बूढ़ा आदमी लड़खड़ाते कदमों से आगे बढ़ रहा था.
अब तक तेजी से अंदर गए लड़के वापस आ रहे थे. उन के हाथ में काले रंग की पौलीथिन में बंधी एक डैड बौडी थी, जिसे उन लोगों ने उस सीमेंट से बने प्लेटफार्म पर रख दिया था.
पूरे परिवार के लोग रो रहे थे. एक लड़का अपने दुख को सहन करता हुए बाहर गेट की तरफ आया और वहां पहले से खड़ी गाड़ी को अंदर बुलाने लगा. ड्राइवर गाड़ी को मोड़ कर अंदर लाया.
एक बार लड़कों ने फिर डैड बौडी को उठाया और गाड़ी में रख दिया. उसी गाड़ी में घरपरिवार के सारे लोग बैठ गए. गाड़ी चल पड़ी.
यह डैड बौडी थाना मोहनलालगंज के शंकर बक्श खेड़ा गांव के मजरा रायभान खेड़ा के रहने वाले रामनरेश रावत के 24 साल के बेटे सनी रावत की थी. जिस औरत की गोद में 2 महीने की बेटी थी उस का नाम साधना था, जो मरने वाली की पत्नी थी. बूढ़ी औरत मरने वाली की मां इद्रानी और नौजवान का नाम राज बहादुर था, जो मरने वाले का भाई था.
सनी रावत 8 सितंबर, 2025 की शाम को 7 बजे घर से बाहर निकला था. इस के बाद वह घर वापस नहीं लौटा था. तब पिता ने उस के फोन नंबर पर बात की.
तब सनी ने बताया कि वह गोसाईंगंज के देवी खेड़ा के संतोष यादव के साथ है. कुछ देर में घर पहुंच जाएगा, पर देर रात तक जब वह घर नहीं पहुंचा तो पिता ने फिर से फोन किया, तो फोन उठा नहीं. इस के बाद घर वाले सोने चले गए.
अगली सुबह 5 बजे जब सब लोग उठे और सनी को वापस आया नहीं देखा, तो उसे फिर से फोन किया. इस बार फोन बंद था.
घर वाले सनी रावत की गुमशुदगी लिखाने थाना मोहनलालगंज पहुंचे. वहां पर सोशल मीडिया पर यह पता चला कि थाना निगोहां के गौतम खेड़ा गांव के पास बांका नाले में किसी नौजवान की लाश पड़ी है. परिवार के सभी लोग आननफानन में वहां के लिए निकल पड़े.
रामनरेश रावत ने लाश की शिनाख्त अपने बेटे सनी रावत के रूप में की. परिवार वालों का आरोप था कि सनी रावत की हत्या कर के लाश को नाले में फेंक दिया गया.
रामनरेश रावत की तहरीर पर निगोहां थाने में अपराध संख्या 174/2025 धारा – 103(1), 351(3) बीएनएस के तहत संतोष यादव निवासी देवी खेड़ा गोसाईंगंज, जीतू यादव और देवेश यादव के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया. फिर एक के बाद एक आरोपियों को पकड़ लिया गया.
इस के बाद जो खुलासा हुआ, वह एक दर्दनाक कहानी है.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट मे सनी रावत की मौत सिर पर लगी चोट और पानी में डूबने से हुई थी. सनी के घर से जहां उस की डैड बौडी मिली, वह जगह 15 किलोमीटर दूर थी. बांका नाले किनारे सनी कैसे पहुंचा? यह बड़ा सवाल था. जो उसे यहां लाया है, वही इस का जवाब दे सकता था. सनी के घर वालों के मुताबिक हत्या की वजह उस का साधना से प्रेम विवाह करना था.
3-4 साल पहले की बात है. सनी निगोहां थाना के मस्तीपुर गांव में अपनी ननिहाल में रहता था. उस के नाना के घर से कुछ दूरी पर ही जीतू यादव नामक नौजवान का घर था. सनी और जीतू यादव की आपस में दोस्ती हो गई. दोनों का एकदूसरे के घर आना भी हो गया. जीतू की बहन साधना से भी सनी की मुलाकात होने लगी. इस के बाद उन दोनों के बीच प्यार हो गया.
जब उन के प्यार की चर्चा गांव में फैलने लगी, तो जनवरी, 2004 में एक दिन दोनों ने घर से भाग कर लव मैरिज कर ली. इस से गुस्से में आए जीतू, उस के भाई देवेश और परिवार के दूसरे लोगों ने सनी के पिता रामनरेश और मां इद्रानी को मारपीट कर घर से भगा दिया. इन के घर में आग लगा दी.
राम नरेश अपनी पत्नी समेत अपने पुश्तैनी गांव शंकर बक्श खेड़ा में आ कर रहने लगे. सनी अपनी पत्नी साधना को ले कर मुंबई भाग गया. जब साधना पेट से हुई तो सनी उस को लेकर गोसाईंगंज आ गया, जो मोहनलालगंज कसबे के ही पास है.
2 साल बीत जाने के बाद भी साधना के भाई उस के पति को धमकी दे रहे थे. ऐसे में साधना और सनी छिपछिप कर रह रहे थे. डेढ़ महीना पहले ही साधना को बेटी हुई थी.
गांव के लोगों ने जीतू और उस के परिवार को ताना मारने के अंदाज में बधाई दी. इस से जीतू और उस के परिवार के लोगों के मन में लगे घाव हरे हो गए. अब जीतू ने तय कर लिया कि सनी को मार देना ही आखिरी इलाज है.
8 सितंबर, 2025 की शाम को जब सनी रावत जेल रोड के पास देशी शराब के ठेके के पास बैठा था, तो साधना के भाई जीतू यादव ने उस को अपनी स्कार्पियो गाड़ी में बैठा लिया. गाड़ी में उस का भाई देवेश यादव, साला संतोष यादव और दोस्त राज कपूर पहले से बैठे थे. गाड़ी सुनसान रास्तों में आगे बढ़ रही थी.
देवेश और जीतू ने सनी पर लोहे की रौड से वार कर के उसे मार दिया.
इस के बाद सनी की लाश को छिपाने के मकसद से वे लोग सिसेंडी रोड पर गौतमखेड़ा के पास बांका नाला के पास गए. सनी कहीं जिंदा न बच जाए, इस के लिए वहां रोड पर एक बार फिर लोहे की रौड से उसे मारा गया, फिर उस की लाश को नाले में फेंक दिया. इस के बाद वे सब अपनेअपने घर चले गए.
जब दूसरे दिन सनी रावत की लाश बरामद हुई और नामजद मुकदमा लिखा गया, तब पुलिस ने इन की धरपकड़ का अभियान चलाया. 11 सितंबर, 2025 को देवेश और संतोष को सिसेंडी रोड पर जंगल तिराहा के पास से पकड़ा गया.
उन की निशानदेही पर स्कार्पियो गाड़ी नंबर यूपी32 पीडब्ल्यू 6758, लोहे की रौड और खून से सना अंगोछा भी बरामद किया गया. पुलिस ने बरामद सामान जब्त कर पकड़े गए दोनों आरोपियों देवेश और संतोष को जेल भेज दिया.
पुलिस को अभी भी जीतू और राज कपूर की तलाश थी. 13 सितंबर, 2025 की शाम पुलिस को सूचना मिली कि जय सिंह और राज कपूर जबरौली के पास जंगल में छिपे हैं. पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया.
आरोपी जेल पहुंच गए. डेढ़ महीने की बच्ची अनाथ हो गई. उस की 24 साल की मां साधना विधवा हो गई. पिता सनी बदले की भेंट चढ़ गया.
लाख कानून बन जाएं, लेकिन समाज अभी भी अपने हिसाब से चल रहा है. बेटी अभी भी पिता की जायदाद में हिस्सा नहीं ले पाती है. क्या साधना को अपने पिता की जायदाद में उस के भाइयों के बराबर हिस्सा मिलेगा? यह बड़ा सवाल है, जिस का जवाब अमूमन ‘न’ ही होता है. ऐसे में साधना अपनी बाकी जिंदगी कैसे काटेगी? अपनी छोटी बेटी का पालनपोषण कैसे करेगी? इस की वजह केवल इतनी थी कि साधना और सनी ने गैरजाति में प्रेम विवाह किया, जो उन के घर वालों को मंजूर नहीं था.
क्यों नहीं स्वीकारे जाते प्रेम विवाह
हमारे समाज में जाति और धर्म के रीतिरिवाजों की जड़ें इतने गहरे तक धंसी हैं कि उन से उबर पाना आसान नहीं है. जिंदगी के हर मोड़ पर कुछ न कुछ रीतिरिवाज होते हैं, जो धर्म से जुड़े होते हैं. अगर कहीं जन्मदिन भी मनाया जा रहा है, जिस में केक कटना है, जिस को हिंदू धर्म मानता नहीं है, वहां भी अब पूजापाठ होने लगी है. एक तरफ केक कटेगा, तो दूसरी तरफ पूजापाठ होगी.
धर्म को मानने वाले केवल हिंदू ही नहीं हैं, बल्कि जो ईसाई, मुसलिम यहां तक कि बौद्ध धर्म को मानते हैं, वे भी धार्मिक पाखंड का शिकार होते हैं. धर्म चलाने वालों को पता है कि जिस दिन जाति खत्म हो जाएगी, उस दिन धर्म और उस का पाखंड भी खत्म हो जाएगा.
धर्म और जाति की बात होती है, तो यह माना जाता है कि विवाद केवल जनरल, ओबीसी और एससी के होते हैं. असल में ऐसा नहीं है. जब भी प्रेम विवाह की बात होती है, तो जनरल में भी जातीय विभेद है. एससी और ओबीसी में भी अलगअलग जाति को ले कर भेदभाव है.
आजादी के बाद से 1980 तक जब तक राममंदिर आंदोलन का असर नहीं था, जाति के भेद मिटाने के कानून भी बने ठगे, जिन में स्पैशल मैरिज ऐक्ट सब से बड़ा उदाहरण है. उस समय ‘जाति तोड़ो’ का नारा भी दिया गया था और धर्म को ले कर विरोध हो रहा था.
पर बाद में धीरेधीरे यह विरोध खत्म हो गया. उस की वजह यह रही कि धर्म का प्रचार करने वाले को तो पैसा मिलता है, लेकिन उस के पाखंड का विरोध करने वाले को पैसा नहीं मिलता. उलटा धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप में कई मुकदमे कायम होने लगे. ऐसे में धर्म के पाखंड और जातीयता का विरोध करने वाले कमजोर होते गए. समाज का यह असर घरपरिवार के भीतर रसोईघर और बैडरूम तक पहुंच गया.
1980 के धार्मिक काल के बाद समाज में गैरजाति और गैरधर्म में प्रेम विवाह का विरोध होने लगा. संविधान, कानून और कोर्ट के आदेशों के बाद भी प्रेम विवाह करने वालों की जिंदगी महफूज नहीं है.
ऐसे में एक ही उपाय है कि अगर प्रेम विवाह करना है, तो हर तरह का धर्म छोड़ना होगा. इस के अलावा अपना घर छोड़ कर अलग रहना पड़ेगा, तभी जिंदगी महफूज हो सकेगी. अगर इतना करने की ताकत या हिम्मत नहीं है, तो प्रेम और विवाह दोनों करने का हक नहीं है, क्योंकि प्रेम जाति और धर्म देख कर नहीं होता है. जहां इस तरह का काम होगा, वहां समाज और घरपरिवार विरोध में खड़ा होगा.
सनी रावत के बेटी होने पर जीतू यादव को मामा बनने की बधाई देते समय समाज के लोग अगर उसे ताने नहीं मारते, तो सनी रावत की हत्या होने से बच सकती थी. दोनों परिवार तहसनहस नहीं होते. सनी और साधना मुंबई से वापस नहीं आते, तो भी यह वारदात टल सकती थी.
ऐसे में अगर प्रेम विवाह करने का फैसला लिया है, तो घरपरिवार और धर्म छोड़ कर जिंदगी गुजारनी होगी. Religion and Love



 
  
                 
            




 
                
                
                
                
                
               