Story In Hindi: ‘‘निशा, अब हमें शादी कर लेनी चाहिए?’’ मुनार ने कहा.
‘‘हां, लेकिन इस से पहले हमें बहुतकुछ सोचना पड़ेगा,’’ निशा बोली.
‘‘क्या सोचना पड़ेगा?’’ मुनीर ने सवाल किया.
‘‘यही कि तुम मुसलिम हो, मैं हिंदू हूं. वैसे तो न तुम मुसलिम हो. न मैं हिंदू. न तुम ने कभी दिन में 5 बार नमाज पढ़ी है, न रमजान में पूरे रोजे रखे हैं, न कभी हज किया है, न कभी जकात (दान) देने के बारे में सोचा है.
‘‘मैं भी न कभी मंदिर जाती हूं, न पूजापाठ करती हूं, न गंगा नहाने किसी तीर्थ पर गई हूं. लेकिन हमारे समाज का कानून कहता है कि जिस धर्म के मानने वाले मांबाप ने तुम्हें जन्म दिया है, वही तुम्हारा धर्म है,’’ निशा ने अपनी बात रखी.
‘‘यह हिंदूमुसलिम की बात कहां से आ गई हमारे बीच? सच तो यह है कि हम दोनों का धर्म अगर कोई है तो वह है इश्क का धर्म और इश्क का धर्म समाज के किसी भी बंधन को नहीं मानता,’’ मुनीर बोला.
‘‘लेकिन हमें लोगों की चिंता तो करनी पड़ेगी. हम शादी करेंगे तो हो सकता है कि हिंदू समाज तुम पर लव जिहाद का इलजाम लगा कर तुम्हारी हत्या कर दे और हो सकता है कि तुम्हारा परिवार मुझे कलमा पढ़ाने पर जोर देने लगे,’’ निशा ने कहा.
‘‘हां, हो तो सकता है. होने को तो कुछ भी हो सकता है,’’ मुनीर ने मामले की गंभीरता को समझने की कोशिश करते हुए कहा.
‘‘मुनीर, तुम मुनीर हो. मुनीर का मतलब होता है प्रकाश. मैं निशा हूं. निशा का मतलब होता है रात, अंधकार. न अंधेरे के बिना प्रकाश की कल्पना की जा सकती है, न प्रकाश के बिना अंधेरे की. हमें कोई जुदा नहीं कर सकता, लेकिन रहना तो हमें इसी समाज में है. हम दोनों हिंदुओं की कंपनियों में काम करते हैं. हो सकता है कि हमारी शादी को लव जिहाद कह कर हम दोनों को नौकरी से निकाल दिया जाए. तब
हम पेट भरने के लिए किस के सामने हाथ फैलाएंगे?
धर्म की हिफाजत के नाम पर कोई कट्टरपंथी तुम्हारे खिलाफ एफआईआर लिखा सकता है. तुम जेल चले जाओगे तो मैं क्या करूंगी? किस की मां को मौसी कहूंगी? राज्य सरकार ने लव जिहाद विरोधी कानून भी तो बना रखा है,’’ निशा ने कहा.
‘‘लेकिन यह सब होता क्यों है?’’ मुनीर ने सवाल किया.
‘‘इसलिए कि जो लोग अपने धर्म को खतरे में पड़ा हुआ महसूस करते हैं, उन को धर्म का मतलब पता ही नहीं है. धर्म की परिभाषा है ‘धर्मो धारयते प्रजा:’ यानी जिस तरह से लोग बरताव करते हैं, वही उन का धर्म होता है. इन लोगों ने अपने विश्वास को अपना धर्म मान लिया है.
‘‘धर्म कोई पवित्र शब्द नहीं है. पवित्र शब्द होता तो औरत की माहवारी को मासिक धर्म न कहा जाता. चोरधर्म, वेश्याधर्म, राजधर्म जैसे शब्द न बनते.
‘‘मुनीर, किसी का अपना विश्वास जब कट्टरता बन जाता है तब उसे लगता है कि उसी का धर्म दुनिया का सब से अच्छा धर्म है. वही एक सच्चा धर्म है. सब को उसी का धर्म अपनाना चाहिए. जो इसे अपनाने से इनकार करता है, उसे जिंदा रहने का हक नहीं है. दूसरे किसी विश्वास को वजूद में रहने का हक नहीं है.
यह धर्म नहीं, धर्मांधता है,’’ निशा बोली.
निशा ने भाषण सा ही दे दिया था. मुनीर एकटक उस की ओर देखता रहा.
तनिक दम ले कर निशा फिर बोली, ‘‘इन लोगों ने धर्म को जिस मतलब में लिया है, उस का नतीजा देखो. अमेरिका में ईसाई यहूदियों को मार रहे हैं. भारत में गोहत्या के शक में हिंदू मुसलिम को मार रहे हैं.
लखनऊ में शिया और सुन्नी एकदूसरे को मार रहे हैं. अफगानिस्तान में मुसलिम ही मुसलिम को मार रहे हैं. पाकिस्तान में नमाज पढ़ रहे लोगों पर बम गिराया जाता है.’’
‘‘यह धर्म नहीं, पागलपन है निशा. सरासर पागलपन,’’ मुनीर ने कहा.
‘‘लेकिन इस पागलपन का शिकार हम क्यों बनें?’’ निशा बोली.
‘‘निशा, न हम निकाह करने के लिए किसी मौलवी के पास जाएंगे, न फेरे लेने के लिए किसी पंडित को बुलाएंगे. हम कोर्टमैरिज करेंगे,’’ मुनीर ने राय दी.
‘‘कोर्टमैरिज से पहले नोटिस भी लगेगा मैरिज औफिस में. उसे कोई भी पढ़ सकता है,’’ निशा बोली.
मुनीर का दिमाग भन्ना गया. उस से कुछ कहते नहीं बन रहा था. वह उठ कर खिड़की के पास खड़ा हो गया. बाहर आसमान में घने बादल छाए हुए थे. बीचबीच में बिजली कड़क रही थी.
आसमान की ओर उंगली उठा कर मुनीर ने कहा, ‘‘यहां आओ निशा, देखो घने बादलों ने जो अंधेरा कर रखा है, उस के बीच चमक कर बिजली कैसी रोशनी फैला रही है.’’
निशा जहां बैठी थी, वहीं बैठी रही. वह बोली, ‘‘यह शायरी करने का समय नहीं है मुनीर. हम इस तरह तुम्हारे दोस्त के कमरे में चोरीछिपे कब तक मिलते रहेंगे?’’
‘‘तो हम ऐसा करते हैं, एकसाथ खुदखुशी कर के यह साबित कर देते हैं कि समाज तो क्या, मौत भी हमें अलग नहीं कर सकती.’’
‘‘फिर वही शायराना बात. खुदकुशी किसी समस्या का हल नहीं होती. बुजदिली की हद है खुदखुशी,’’ निशा बोली.
‘‘तुम तो संजीदा हो गईं. मैं तो पलों के बोझ को हलका करने के लिए मजाक कर रहा था,’’ मुनीर ने कहा.
‘‘यह मजाक का समय भी नहीं है,’’ निशा बोली.
मुनीर आ कर कुरसी पर बैठ गया. सोचता रहा, सोचता रहा. अपने प्यार और अपनी हिम्मत को आंकता रहा. बाहर बादलों ने झमाझम बारिश शुरू कर दी थी. खिड़की के शीशे पर धड़ाधड़ बारिश की बौछारें पड़ रही थीं. उन के शोर में उसे अपने और निशा के ऊपर छोड़े जाने वाले तानों की आवाज सुनाई दे रही थी.
निशा भी चुपचाप बैठी सोचती रही. आज पहली बार ऐसा हुआ था कि दोस्त के कमरे के एकांत में उन्होंने न एकदूसरे को छुआ था, न गले लगे थे, न एकदूसरे को चूमा था.
मुनीर ने एक भरपूर नजर निशा पर डाली और कहा, ‘‘हम यह देश छोड़ कर किसी और देश में जा कर रहेंगे. यहां के समाज से, यहां के लोगों से कोई वास्ता ही नहीं रखेंगे.’’
‘‘यह इतना आसान नहीं है मुनीर. कहीं पर भी हमें वर्कपरमिट कैसे मिलेगा? रहेंगे कहां? खाएंगे क्या?’’
फिर बहुत ज्यादा गंभीर हो कर निशा ने कहा, ‘‘तुम में हिम्मत है तो समाज से लोहा लो. यह लड़ाई अपने घर से शुरू करो. अपने मातापिता को समझाओ कि वे मुझे बगैर कलमा पढ़ाए अपना लें. इधर मैं भी यही लड़ाई लड़ती हूं. और अगर उन को तुम स्वीकार नहीं हो, तो मैं उन से नाता तोड़ लूंगी.’’
अब तक मुनीर भी किसी फैसले पर पहुंचने की पूरी तैयारी कर चुका था. वह बोला, ‘‘मुझे मंजूर है. मैं साबित कर दूंगा कि कोई कितना ही कट्टरतावादी क्यों न हो, न मुझ से मेरा प्यार छीन सकता है, न ही मेरी जिंदगी.’’
दोनों के चेहरों पर एक उदास सी मुसकराहट दौड़ी. वे दोनों उठ खड़े हुए. निशा ने लपक कर मुनीर को आगोश में ले लिया.
मुनीर ने उसे भींच कर छाती से लगाते हुए कहा, ‘‘चलो देखें, बाहर धरती अपने बाल खोले बारिश के झरने में नहा रहा होगी. बस, तुम धरती बनी रहना, मैं बारिश का पानी बन कर तुम्हारे अंदर समा जाऊंगा.’’
मुनीर की बांहों में से निकलते हुए निशा ने कहा, ‘‘चलो, हम जिहाद शुरू करते हैं. लव जिहाद नहीं, इनसानी हकों की हिफाजत का जिहाद, इश्क करने की आजादी का जिहाद.’’ Story In Hindi