रविवार होने की वजह से रमन घर में बिस्तर पर लेटा शांता के साथ मौजमस्ती कर रहा था. इस की एक वजह तो यह थी कि अपनी कंपनी के झंझंटों से उसे छुट्टी के दिन कुछ राहत मिल जाती और वह अपने ढंग से खापी सकता था, लेकिन इस की दूसरी और ज्यादा अहम वजह यह भी थी कि उसे शांता के साथ सारा दिन गुजारने का सुनहरा मौका जो मिल जाता था.

कोई दूसरा शख्स रमन और शांता के इस नाजायज संबंध को देखता, तो हैरान होने के अलावा रमन की बेवकूफी पर भी उसे कोसता.

शांता कोई मौडर्न या पढ़ीलिखी औरत नहीं थी, बल्कि रमन के घर में काम करने वाली एक नौकरानी थी. दूसरी ओर रमन एक मल्टीनैशनल कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर था.

रमन की कंपनी के अपने रिहायशी फ्लैट थे, जिन में कंपनी के दूसरे मुलाजिम भी रहते थे. उन में से ज्यादातर शादीशुदा थे और अपनेअपने परिवारों के साथ रहते थे.

रमन की तरह केवल 1-2 मुलाजिम ऐसे थे, जो अभी कुंआरे थे और उन को घर की देखभाल के लिए नौकर की जरूरत पड़ना लाजिम था.

शांता नेपाल की रहने वाली थी. उस का पति उसे अपने साथ कोलकाता ले आया था, जहां पर वह एक कारखाने में बतौर चपरासी नौकरी करता था. उस का नाम जंग बहादुर था.

जंग बहादुर वैसे तो शांता से बहुत प्यार करता था, लेकिन उस को रोजाना शराब पीने की लत पड़ चुकी थी, जिस से उस का हाथ हमेशा तंग ही रहता था.

पैसे की कमी के चलते शांता और जंग बहादुर का अकसर झगड़ा होता था, इसलिए शांता ने शहर की इस अफसर कालोनी के कुछ घरों में बतौर नौकरानी काम करना शुरू कर दिया था.

शांता खूबसूरत तो थी ही, उस का मिजाज भी बहुत अच्छा था, इसलिए रमन की कालोनी के सभी लोग उस को अपने परिवार के एक सदस्य की तरह ही समझाते थे.

रमन के साथ शांता के रिश्ते मालिक और नौकरानी के न रह कर पतिपत्नी जैसे कैसे बन गए, इस की भी एक अलग ही कहानी है.

दरअसल, जब शांता ने रमन के फ्लैट पर काम करना शुरू किया था, तो शुरूशुरू में तो उन के संबंध मालिक और नौकरानी जैसे ही थे, लेकिन शांता के खूबसूरत चेहरे में पता नहीं रमन को क्या नजर आया कि जब वह उस के घर में काम कर रही होती, तो वह चोरी से उस के अंगों को देखा करता था.

शांता भी रमन के इस झकाव से बेखबर नहीं थी. कई बार जब वह रमन को कनखियों से उसे ताड़ते हुए देखती, तो वह धीरे से मुसकरा देती. इस का नतीजा यह निकला कि उन दोनों में अकसर हंसीमजाक होता रहता.

रमन ने अपने फ्लैट की डुप्लीकेट चाबियां तक शांता को सौंप दी थीं. वह अपनी मरजी और समय के मुताबिक आती और घर का काम कर के चली जाती थी.

बात यहां तक रहती तो ठीक थी, लेकिन चक्कर कुछ ऐसा चला कि उन दोनों की दूरियां और ज्यादा मिटती गईं और वे एक नाजायज रिश्ते में बंध कर रह गए.

इस नाजायज रिश्ते का कोई नाम नहीं था, पर वे दोनों इस से दूर भागने के बजाय अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा समझने लगे थे.

इस रिश्ते की बुनियाद उस दिन से शुरू हुई, जब शांता ने रमन से उधार लिए 5 सौ रुपए वापस करने चाहे.

माली तंगी और जंग बहादुर की फुजूलखर्ची की वजह से शांता अकसर अपने कुछ मालिकों से पैसे एडवांस में मांग लिया करती थी और फिर धीरेधीरे अपनी तनख्वाह में से उस रकम को चुकता कर दिया करती थी.

रमन से भी उस ने कई बार पहले भी पैसे उधार लिए थे और अपनी सुविधा के मुताबिक लौटा दिए थे. लेकिन इस बार जब शांता ने पैसे लौटाने चाहे, तो रमन ने उसे मना कर दिया.

ऐसा करते हुए रमन के होंठों पर कुटिल मुसकराहट तैर रही थी और आंखों में वासना की ?ालक साफ दिखाई दे रही थी.

शांता ने भी उस की भावनाओं को पढ़ लिया था. इस सचाई के बावजूद उस ने रमन को पैसे लौटाने की जिद नहीं की. रमन को यही रजामंदी ही तो चाहिए थी.

‘देखो शांता, आगे से तुम मुझ से पैसे वापस करने की बात मत करना. मेरेतुम्हारे पैसे अलग थोड़े ही हैं? मेरा पर्स मेज पर पड़ा रहता है. तुम जब चाहो, इस पर्स में से अपनी जरूरत के मुताबिक पैसे निकाल सकती हो,’ रमन ने शांता को अपने प्यार का मीठा जहर पिलाते हुए कहा था.

शांता तो यही चाहती थी. उस ने सिर हिला कर हामी भर दी थी.

खुशी से पगलाए रमन ने शांता को अपनी बांहों में भर लिया और उस के खिलेखिले चेहरे पर चुंबनों की बरसात कर डाली थी. फिर उस ने शांता को अपनी बांहों में कस कर भींच लिया और ड्राइंगरूम की ओर बढ़ गया था.

तब से दोनों के बीच यह जिस्मानी संबंधों वाला सिलसिला चल रहा था. रमन और शांता की जिंदगी में एक अजीब सा नशा छाया हुआ था. शांता तो यह भूल ही चली थी कि जंग बहादुर उस का पति है.

दूसरी ओर रमन ने भी कुछ महीने पहले अपनी ही कंपनी की दिल्ली में काम कर रही एक मुलाजिम निशा से अपनी मां की मरजी से सगाई की थी.

सगाई होने के कुछ दिन बाद तक तो रमन का निशा के प्रति झुकाव ठीकठाक रहा, लेकिन अब वह कई महीनों से निशा से बिलकुल कट गया था.

निशा ने उस से कई बार फोन पर इस बदलाव की शिकायत भी की थी और शादी की तारीख तय करने के लिए कई बार कह चकी थी, लेकिन रमन पर निशा की शिकायतों का कोई असर नहीं था. वह तो शांता के संगमरमरी जिस्म की जंजीरों में पूरी तरह से कैद हो चुका था.

आज छुट्टी थी, इसलिए तय कार्यक्रम के मुताबिक शांता सुबह से ही उस के फ्लैट पर आ गई थी.

आते ही शांता रमन के बिस्तर में घुस गई. दोनों एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले सुख तलाशते रहे.

तकरीबन एक घंटा बीत चुका था. इस दौरान शांता सिर्फ एक बार रमन के बिस्तर से उठी थी और चाय बना कर लाई थी.

अब दोनों एक ही कप से बारीबारी से चाय की चुसकियां ले रहे थे. उन के कपड़े अभी भी नीचे फर्श पर ही पड़े थे.

अचानक बाहर के दरवाजे से किसी के अंदर आने की आहट हुई. शायद, शांता ने अंदर आते समय बाहर का दरवाजा ठीक से बंद नहीं किया था.

इस से पहले कि रमन और शांता कुछ समझ पाते, एक बूढ़ी औरत के साथ एक लड़की अंदर आ गई. वे निशा और उस की मां थीं. उन को देख कर रमन के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं और चाय का कप छूट कर नीचे गिर गया. अपने कपड़ों की तलाश में वह नीचे फर्श पर हाथ मारने लगा. शर्मिंदगी से उस के मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे.

दूसरी ओर शांता का हाल तो रमन से भी ज्यादा बुरा था. उसे जैसे पहली बार अपनी जिंदगी की कड़वी सचाई से सामना करना पड़ा था. लिहाजा, वह एक ही पल में अर्श से फर्श पर आ गिरी थी.

शांता अपने जिस्म को अपनी बांहों से किसी न किसी तरह ढकते हुए उठी और फर्श पर पड़े अपने कपड़े उठा कर तेजी से बगल वाले कमरे की ओर भाग गई.

निशा तब तक पूरे मामले को समझ चुकी थी, इसलिए वह बोली, ‘‘रमन, अब मैं तुम्हारी सारी असलियत जान गई हूं. तुम से शादी कर के मैं कैसे जिंदा रह सकती हूं? यह तो अच्छा हुआ कि मां के ज्यादा कहने पर मैं तुम्हारा हाल पूछने और शादी से आनाकानी करने की वजह जानने के लिए अचानक यहां आ गई. अब मैं अपनी सगाई तोड़ने का फैसला तुम्हें सुनाती हूं.’’

यह कह कर निशा अपनी मां के साथ कमरे से बाहर चली गई.

रमन बौखलाया सा अकेला अपने बिस्तर पर लेटा यह जानने की कोशिश कर रहा था कि जो कुछ उस के साथ हुआ, वह वाकई कोई सचाई थी या एक बुरा सपना.

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