Society News in Hindi: देशभर में लड़कियों और छोटी बच्चियों के साथ घट रही सैक्स अपराध की तमाम घटनाओं से साबित हो चुका है कि हमारी बेटियां कहीं भी महफूज नहीं हैं. पड़ोस से ले कर घरपरिवार, रिश्तेदारों के बीच कब और कहां वे रेप की शिकार हो जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता.

अपनी दिमागी बीमारी और जिस्मानी भूख को अंजाम देने वाले सफेदपोश से ले कर सड़कछाप दरिंदे राजपथ से ले कर गलीमहल्लों तक में घूम रहे हैं.

दरअसल, ऐसी घटिया सोच वाले लोग डेढ़ साल से ले कर किशोर उम्र के बच्चों का इस्तेमाल अपने विकार को अंजाम देने के लिए करते हैं.

कुछ साल पहले निठारी कांड ने हमें चौंका दिया था. हालांकि मधुर भंडारकर की फिल्म ‘पेज-3’ के जरीए हम सफेदपोशों की सैक्स भूख को जान चुके हैं, लेकिन सैक्स से जुड़ी लोगों की घटिया सोच किस हद तक दरिंदगी का रूप ले सकती है, इस का पता हमें राजधानी नई दिल्ली समेत देश के अलगअलग हिस्सों में कुछ समय पहले घटी घटनाओं से चला है.

मध्य कोलकाता की कालेज स्ट्रीट में चौथी क्लास का एक बच्चा ट्यूशन पढ़ने के लिए ट्यूटर के घर जाने में हर रोज आनाकानी करता था. उस बच्चे ने कई बार बताने की कोशिश की कि वह ट्यूटर उसे अच्छा नहीं लगता, पर मां डांटडपट कर उसे ट्यूशन पढ़ने के लिए छोड़ आया करती थी.

एक दिन अचानक बच्चा जख्मी हालत में रोतेरोते घर पहुंचा, पर वह कुछ भी बताने से इनकार करता रहा. बाद में उस ने बताया कि शुरू से ही ट्यूटर उस की मासूमियत का फायदा उठा कर लाड़दुलार के बहाने इधरउधर हाथ लगाया करता था, पर आखिर में मामला जहां आ कर पहुंचा था, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला था.

कुछ समय पहले पिंकी विरानी की एक किताब आई थी, ‘बिटर चौकलेट: चाइल्ड सैक्सुअल एब्यूज इन इंडिया’. इस में छपे सर्वे में बताया गया है कि

90 फीसदी मामलों में बच्चे घर पर अपने नौकरचाकर से ले कर ट्यूटर, बालिग, पारिवारिक सदस्यों से ले कर सगेसंबंधियों, यहां तक कि बाप की भी हैवानियत के शिकार होते हैं.

साल 2006 में निठारी कांड ने भी खास से ले कर आम लोगों के होश उड़ा दिए थे. मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली पर बच्चों को अगवा कर उन का बलात्कार करने के बाद हत्या ही नहीं, बल्कि बच्चों का मांस पका कर खाने जैसी दरिंदगी के मामले ने सब को हिला दिया था.

नोएडा के पौश इलाके से सटे निठारी गांव से एक के बाद एक गरीब तबके के बच्चे गायब होते रहे.

जांच में 19 बच्चों का मामला सामने आया, जिन में से 14 साल की रिंपी हालदार के मामले में मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली को विशेष सीबीआई अदालत ने फांसी की सजा सुनाई.

निठारी से सबक नहीं लिया

निठारी कांड से हम ने सबक नहीं लिया. अब तो आएदिन हमारी बेटियां न केवल रेप की शिकार हो रही हैं, बल्कि दरिंदगी की शिकार हो कर उन की जान पर भी बन आती है.

इस साल मार्च में मंगोलपुरी, दिल्ली में 7 साल की और फिर अप्रैल में संगम विहार में 8 साल की, गांधीनगर में 5 साल की, नजफगढ़ में 3 साल की, गोविंदपुरा में 5 साल की और एक चार्टर्ड बस में 10 साल की मासूम के साथ ऐसी घटनाएं सामने आईं. इन में मजदूर, पड़ोसी, बस ड्राइवर से ले कर स्कूली टीचर तक के नाम सामने आए.

वहीं मध्य प्रदेश में सिवनी, इंदौर, भोपाल और मारूगढ़ व उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ में हाल में बच्चियों के साथ हुए रेप ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया.

मनोवैज्ञानिक नजरिया

कोलकाता में इंस्टीट्यूट औफ विहेवियरल साइंस की श्रीलेखा विश्वास का कहना है कि हाल में बच्चों के साथ भारत में हुई दरिंदगी ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है, लेकिन नाबालिगों के साथ सैक्स हिंसा केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी हो रही है. चिंता की बात यह है कि अभी भी इस बारे में भारत में जागरूकता की कमी है.

दरअसल, इस तरह के मामले दिमागी बीमारी के होते हैं और विहेवियरल साइंस में इसे ‘पेडोफिलिया’ कहते हैं. इस सोच वाले लोग छोटी सी उम्र के नन्हेमुन्ने बच्चों की नंगी तसवीर में भी अपने लिए ‘सुख’ ढूंढ़ लेते हैं.

श्रीलेखा आगे कहती हैं कि ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि बच्चे पड़ोसियों और ट्यूटर जैसे परिचितों व पारिवारिक या दोस्तों द्वारा सैक्स की हिंसा के शिकार होते हैं.

इन का यह भी कहना है कि बच्चों को इस बात की खबर ही नहीं होती है कि सामने वाला शख्स किस नजर से इन्हें देख रहा है.

दरअसल, बच्चे सामने वाले के छूने को समझ ही नहीं पाते हैं. वे इसे लाड़दुलार समझ बैठते हैं. हर ऐसा आदमी जो सैक्स भावना से बच्चों को प्यारदुलार करता है, ‘पेडोफिलिक’ होता है.

ऐसी दिमागी बीमारी वाले लोग अकसर पहले बच्चों के प्राइवेट हिस्सों को छू कर उन्हें जोश में लाते हैं. कभीकभी बच्चे उन की इस हरकत का मजा लेने लगते हैं और तब इन का काम आसान हो जाता है. लेकिन अगर कभी पकड़े गए, तो सारा कुसूर बच्चों के सिर मढ़ देते हैं, इसलिए मांबाप को उन की किसी बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए, बल्कि बच्चा कभी कोई शिकायत करे, तो तसल्ली से उस की बातों को सुनना चाहिए.

लेकिन यह दुख की बात है कि हमारे देश और समाज में बच्चों की भावना को तूल नहीं दिया जाता है. कई बार देखा जाता है कि बच्चे को किसी खास शख्स का लाड़दुलार रास नहीं आता है. कुछ सगेसंबंधियों को वे बिलकुल पसंद नहीं करते. बाकायदा कुछ लोगों से वे चिढ़ते हैं. वे उन के पास नहीं जाना चाहते हैं. बच्चा न चाहे तो ज्यादा जोर नहीं देना चाहिए.

हमारे आसपास हर जगह ऐसी तमाम मुखौटाधारी रिश्तेदार व दोस्त भरे पड़े हैं. जाने कब, कहां और कैसे हमारे बच्चे किसी की जिस्मानी भूख के शिकार हो जाएं, कहा नहीं जा सकता, इसीलिए मांबाप को खुद तो सचेत रहना ही चाहिए, साथ ही बच्चों को भी जागरूक बनाना चाहिए.

बच्चा अगर ऐसी किसी बात की ओर इशारा करता है या शिकायत करे, तो उस की बातों को गंभीरता से लें. उन के भीतर हिम्मत पैदा करें. अगर कभी कोई हादसा हो गया, तो हिम्मत से काम लें. बच्चे से खुल कर बात करें. अगर बच्चा खुल कर न कह पाए या कहना न चाहे, तो उस की अनकही बातों को समझाने की कोशिश करें.

एक समय के बाद बच्चों को यह समझना जरूरी है कि छिपा कर किया हुआ या मन को अच्छा नहीं लगने वाला कोई भी काम ठीक नहीं होता. ऐसे काम से दूर रहना चाहिए. अगर कोई और करे, तो चुप रह जाना चाहिए.

बच्चों को समझाना होगा कि अगर कोई प्यारदुलार के बहाने बदन के किसी हिस्से को हाथ लगाए, तो फौरन मांबाप को बताएं.

बच्चों का जिस्मानी शोषण केवल मर्द करते हैं, गलत है. आरतें भी बच्चों का यौन शोषण करती हैं.

अनजान लोग ही ऐसा काम करते हैं, ऐसा भी नहीं है. ज्यादातर मामलों में पारिवारिक सदस्य, जानने वाले लोग भी बच्चों का जिस्मानी शोषण करते हैं.

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