भा रत की केंद्र सरकार कितना ही गरीबों की भलाई की स्कीमों का ढोल पीट ले, पर एक कड़वी हकीकत यह भी है कि आज भी गरीबी और सामाजिक भेदभाव के चलते दलित और आदिवासी बच्चियों की पढ़ाई छोड़ने की दर सब से ज्यादा है. सरकारी स्कूलों में ऐसी बच्चियों के साथ मिड डे मील परोसने तक में भेदभाव किया जाता है.

कितनी हैरत और शर्म की बात है कि देश आजाद होने के इतने साल बाद आज भी कोई बच्चा नाम और जाति सब से पहले सीखता है और दूसरे बच्चे किस जाति के हैं, यह भी वह अपनेआप सीख जाता है. यही फर्क आगे स्कूली जीवन में भी दिखता है, तभी तो वंचित समाज की लड़कियां जल्दी पढ़ाई छोड़ देती हैं और उन के घर बैठने से या तो वे बाल मजदूरी करती हैं या फिर जल्दी ही कम उम्र में ब्याह दी जाती हैं.

पर भारत का पड़ोसी देश अफगानिस्तान तो एक कदम और आगे निकल गया है. आप ही सोचिए कि सालभर पढ़ाई करने के बाद जब कोई बच्चा इम्तिहान पास करता है, तो नई जमात में पहुंचने का जोश और खुशी हद पर होती है. भविष्य के सुंदर सपने आंखों में तैरते हैं, मगर अफगानिस्तान में छठी जमात पास करने वाली लड़कियों की आंखों में आंसू हैं. वजह, अफगानिस्तान का दमनकारी तालिबानी शासन छठी जमात के बाद लड़कियों को आगे पढ़ने की इजाजत नहीं देता.

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में रहने वाली 13 साला सेतायेश साहिबजादा अपने भविष्य को ले कर चिंतित है और अपने सपनों को पूरा करने के लिए स्कूल न जा पाने के चलते उदास है.

सेतायेश साहिबजादा कहती है, ‘‘मैं अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती. मैं टीचर बनना चाहती थी, लेकिन अब मैं पढ़ नहीं सकती, स्कूल नहीं जा सकती.’’

13 साल की बहारा रुस्तम काबुल के बीबी रजिया स्कूल में 11 दिसंबर, 2023 को आखिरी बार स्कूल गई थी. उसे पता है कि उसे अब आगे पढ़ने का मौका नहीं दिया जाएगा. तालिबान के राज में वह फिर से क्लास में कदम नहीं रख पाएगी. उस की सारी सहेलियां छूट जाएंगी. अब वह उन के साथ खेल नहीं पाएगी. उन से अपने सुखदुख नहीं बांट पाएगी.

लड़कियों की पढ़ाई पर रोक

अफगानी लड़कियां तालिबानी शासन, जो शरीयत पर चलता है, के तहत छठी जमात पास करने के बाद घरों में कैद कर दी जाएंगी. उन की शादी हो जाएगी, फिर वे बच्चे पैदा करेंगी, नौकरों की तरह ताउम्र किसी दूसरे के घर के काम करेंगी, मारीपीटी जाती रहेंगी, फिर एक दिन मर कर जलील जिंदगी से छुटकारा पा लेंगी.

अफगानी औरतें एक ऐसी जिंदगी जी रही हैं, जहां वे अपना कोई फैसला नहीं ले सकती हैं. किसी के आगे अपनी कोई राय नहीं रख सकती हैं. अपनी मरजी से कोई काम नहीं कर सकती हैं. उन्हें कोई हक नहीं है. वे सार्वजनिक जगहों पर नहीं जा सकतीं. उन्हें नौकरियों से बैन कर उन के घरों तक ही सिमटा दिया गया है.

अफगानिस्तान में इस साल लड़कियों व औरतों की एक पीढ़ी से पढ़ाईलिखाई का हक छीन लिया गया है. अगर यह सिलसिला जारी रहा, तो अफगानिस्तान में महिला डाक्टर, महिला नर्सें नहीं होंगी. महिलाओं की गर्भ संबंधी दिक्कतों का इलाज, बच्चे की डिलीवरी सब अशिक्षित घरेलू दवाएं करेंगी. वे बचेंगी या मरेंगी, इस की चिंता किसी को नहीं है. शरीयत का शासन अफगानी औरतों की जिंदगी को उस काल में धकेल रहा है, जब इनसान जंगलों में रहा करता था.

धर्म की सत्ता

धर्म की बुनियाद पर खड़े हुए देश और दुनिया में जहां भी धर्म सत्ता चला रहा है, उस देश और समाज में औरतों की औकात दासी की है. वे सिर्फ आदमी के हुक्म की गुलाम हैं. आदमी औरत को घर में कैद कर के रखे, जब चाहे उस के जिस्म को रौंदे, सालदरसाल उस से बच्चे पैदा करवाए, यह आदमी के लिए धर्मसम्मत है. वह हुक्म देता है कि औरत उस का घर साफ करे, उस के लिए लजीज खाना पकाए, बरतन मांजे, उस के बच्चे पाले, उस के घर वालों की खिदमत करे और अगर उस ने इस में कहीं कोई कोताही दिखाई, तो आदमी हंटरों की मार से उस का पूरा जिस्म लहूलुहान कर दे या उसे गोली से उड़ा दे, इस की इजाजत धर्म देता है.

औरत के लिए धर्म से बड़ा दुश्मन कोई नहीं है. अपनी बीवी का दूसरे मर्द से बलात्कार कराने का रास्ता धर्म बताता है. अपनी पत्नी को गर्भावस्था में छोड़ देने और उसे जंगल जाने के लिए मजबूर करने पर धर्म पुरुष की बुराई नहीं करता, बल्कि उसे पुरुषोत्तम बना देता है. एक स्त्री को भरी सभा में नंगा करने पर तमाम धार्मिक लोगों की जबान तालू से चिपक जाती है.

बड़ेबड़े हथियार उठाने वाले सूरमाओं के हाथों को लकवा मार जाता है, नसों का खून बर्फ हो जाता है. धर्म के हाथों औरत की इस बदहाली की कहानियों से धर्मग्रंथ भरे पड़े हैं और मूर्ख औरतें ऐसे धर्मग्रंथों को सिर पर उठाए फिरती हैं.

अफगानिस्तान में जब तालिबानी अपना दबदबा कायम करने की कोशिशों में थे, तब शरीयत का शासन चाहने वालों में औरतें भी शामिल थीं. हैरानी होती है कि जिस धर्म को हथियार बना कर प्राचीनकाल से मर्द औरत पर हावी रहा, उस पर जोरजुल्म करता रहा, उस को अपना गुलाम बनाए रखा, उस धर्म का त्याग करने के बजाय औरत दिनरात उस के महिमामंडन और प्रसार में क्यों लगी है?

दुनियाभर में चाहे कोई भी धर्म हो, औरतें बढ़चढ़ कर खुशीखुशी सारे कर्मकांडों को पूरा करती हैं. क्या औरतों को आज तक यह समझ में नहीं आया कि धर्म की जंजीरों में उन की खुशहाली और आजादी दम तोड़ रही हैं? क्या औरत कभी यह बात समझोगी कि अनपढ़ लोग कभी भी आजाद और खुशहाल नहीं हो सकते? फिर वह अफगानिस्तान हो या भारत.

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