‘‘मेरी रानी, यह रहा तुम्हारा कैमरा. ऐसा ही चाहिए था न?’’ फौजी रामबहादुर ने बैग से कैमरा निकाल कर माया को देते हुए कहा.

‘‘अरे, वाह. मुझे ऐसा ही कैमरा चाहिए था. फौज की कैंटीन का कैमरा. लो, तुम अभी मेरी तसवीर खींच लो,’’ माया खुशी से चहकते हुए बोली.

रामबहादुर ने माया को अपनी मदमस्त नजरों से देखा. उस दिन वह बेहद खूबसूरत दिख रही थी. वह सजधज कर बाजार जाने वाली थी, तभी रामबहादुर आ गया था. उस ने माया को भींच कर अपनी बांहों में भर लिया और चुंबनों की बरसात कर दी.

‘‘रुक जाओ, कोई आ जाएगा.  दरवाजा खुला है,’’ माया ने मस्तीभरे लहजे में कहा.

‘‘दरवाजा खुला है, तो बंद हो जाएगा,’’ यह कह कर रामबहादुर ने माया से अलग हो कर फौरन दरवाजा बंद कर लिया.

‘‘अरे, तुम्हारा क्या इरादा है? अभी मेरा मूड नहीं है. मैं बाजार जा रही हूं. मेरा मेकअप खराब हो जाएगा,’’ माया ने रामबहादुर को रोकते हुए कहा.

‘‘मेकअप फिर से कर लेना. तुम जितनी बार सजोगी, उतनी बार तुम्हारी छवि निखरेगी. अभी तो मुझे मत रोको,’’ यह कह कर रामबहादुर ने माया को कस कर अपनी बांहों में भींच लिया.

माया ने कोई विरोध नहीं किया.

प्यार का खेल खत्म होेने के बाद वह बोली, ‘‘रामबहादुर, मुझे छोड़ कर तुम कहीं मत जाना. तुम ने मेरी उजड़ी जिंदगी में रंग भर दिए हैं. विधवा होने के बाद मैं पूरी तरह टूट चुकी थी, लेकिन तुम ने दोबारा बहार ला दी.’’

रामबहादुर ठंडा पड़ चुका था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकता, भले ही मेरी नौकरी छूट जाए.’’

माया अपने पसंदीदा कैमरे पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘मैं फिर से मेकअप कर लूं, तो तुम मेरी तसवीरें खींच देना.’’

‘‘ठीक है, तुम तैयार हो कर आओ,’’  कह कर रामबहादुर पलंग पर लेट गया.

रामबहादुर फौज में था. उस की ड्यूटी सेना की कैंटीन में थी. वह माया के घर में किराए पर रहता था. कुछ दिनों के लिए वह गांव से अपनी पत्नी को लाया था, लेकिन मां की तबीयत ठीक न रहने से वह पत्नी को गांव छोड़ आया था. इस के बाद वह माया की ओर खिंच गया था.

माया केवल फौजियों को ही मकान किराए पर देती थी. उस का कहना था कि फौजी कैंटीन से सस्ता सामान ला कर देते हैं और ज्यादा दिनों तक घर पर कब्जा भी नहीं जमाए रहते, क्योंकि उन का जल्दी ही तबादला हो जाता है. जाते समय वे काफी सामान आधे दाम पर बेच कर चले जाते हैं.

रामबहादुर ने कैंटीन का सामान दे कर माया से नजदीकी बढ़ाई. मुफ्त में सामान पा कर माया उस की तरफ खिंचती चली गई.

माया 30 साल की थी. 5 साल पहले अपने पति की एक सड़क हादसे में हुई मौत के बाद वह टूट चुकी थी. अपनी और अपने 7 साल के बेटे मुनमुन की चिंता उसे खाए जा रही थी.

माया का पति एक कंपनी में मैनेजर था. कंपनी के मालिक ने माया को क्लर्क की नौकरी दे दी थी, लेकिन उस का चालचलन ठीक न होने से बाद में उसे निकाल दिया गया.

नौकरी छूटने के बाद माया की रोजीरोटी का जरीया 10 कमरों का मकान ही था. 2 कमरों में वह खुद रहती थी और 8 कमरे किराए पर दिए हुए थे.

रामबहादुर के आने के बाद माया की सारी समस्याएं दूर हो गई थीं. वह उसे हर तरह का सुख दे रहा था.

माया अकसर उस से कैंटीन के किसी न किसी सामान की फरमाइश करती रहती थी.

बात तब की है, जब रामबहादुर माया के लिए कैमरा नहीं लाया था.

एक दिन माया ने पूछा था, ‘रामबहादुर, तुम्हारी कैंटीन में अटैची, कंबल, कैमरा भी तो मिलता होगा न?’

‘सबकुछ मिलता है. बोलो, क्या चाहिए तुम्हें?’ रामबहादुर ने कहा था.

‘फिलहाल तो कैमरा चाहिए,’ यह कह कर माया ने पूछा था, ‘ला दोगे न?’

‘हां, आज ही ला दूंगा कैमरा. ड्यूटी पर जा रहा हूं. लौटूंगा तो कैमरा साथ होगा,’ यह कह कर रामबहादुर ड्यूटी पर चला गया था.

फौजी रामबहादुर से कैमरा पा कर माया बेहद खुश थी. इस के बाद तो उस ने रामबहादुर से कंबल, अटैची और शराब भी मंगवाई.

रामबहादुर कुछ सामान खरीद कर लाता, तो कुछ चुरा कर. उस की चोरी इसलिए नहीं पकड़ी जा रही थी, क्योंकि उस ने अपनी मीठी जबान से अफसरों का दिल जीत रखा था.

उसी कैंटीन में रामबहादुर का दोस्त श्रवण भी काम करता था. उसे शक हो गया था कि रामबहादुर माया की दीवानगी में सैनिक का फर्ज भूल कर चोरी कर रहा है.

उस ने रामबहादुर को खूब समझाया कि वह माया का साथ छोड़ दे और ईमानदारी से ड्यूटी करते हुए अपने घरपरिवार की ओर ध्यान दे.

रामबहादुर उस की बातें सुन कर ‘हांहां’ करता और फिर शराब का नशा करते ही सबकुछ भूल जाता.

एक दिन श्रवण ने रामबहादुर को कैंटीन से सामान चुराते हुए पकड़ लिया.

‘‘देखो श्रवण, तुम मेरे काम में दखल न दो, वरना यह गुस्ताखी तुम्हें बहुत महंगी पड़ेगी,’’ रामबहादुर ने धमकाते हुए कहा.

‘‘नहीं रामबहादुर, नहीं. मैं एक सच्चा फौजी हूं. अपनी मौजूदगी में मैं तुम्हें गलत काम नहीं करने दूंगा. कैंटीन का सामान केवल फौजी भाइयों और उन के परिवार के लिए है. यहां का सामान चोरी करने के लिए नहीं है,’’ यह कह कर श्रवण ने रामबहादुर के हाथ से सामान से भरा बैग छीन लिया.

‘‘तू ने यह क्या किया बे? रुक, मैं अभी तेरी शिकायत अफसर से करता हूं,’’ रामबहादुर गरजा.

‘‘तू क्या शिकायत करेगा मेरी? मैं ने तुझे गलत काम करते हुए पकड़ा है. तेरी शिकायत तो मैं करूंगा,’’ श्रवण ने फटकार लगाई.

श्रवण ने रामबहादुर की शिकायत तमाम अफसरों से की, लेकिन उस की सुनवाई कहीं नहीं हुई. उलटे अफसरों ने श्रवण को ही डांट दिया.

अफसरों के रवैए से श्रवण बेहद दुखी हुआ. उस के मन में आया कि वह सेना की नौकरी छोड़ दे, लेकिन घर की माली हालत ठीक न होने के चलते वह मन मार कर रह गया.

इधर रामबहादुर के गलत काम पर रोक नहीं लगी. वह बदस्तूर कैंटीन का सामान चुरा कर ले जाता रहा. उस पर ईमानदारी का ठप्पा जो लगा हुआ था.

माया के प्रेमजाल में फंस कर वह सैनिक का फर्ज भूल गया था. क्या वह वही रामबहादुर था, जिस ने अपने स्टडीरूम में एक बड़े अफसर की तसवीर टांग रखी थी और उसे देख कर ही वह सेना में जाने का सपना देखा करता था?

जब उस का सपना पूरा हुआ था, तो उस के मातापिता, भाईबहन और गांव के लोग कितने खुश हुए थे. गांव में उस की कितनी जरूरत है. लेकिन अगर इस घिनौनी हरकत का पता चलेगा, तो लोग क्या कहेंगे?

अब रामबहादुर को इस बात की परवाह नहीं थी. वह तो माया का दीवाना था. लेकिन कुछ दिनों बाद माया उस से तनख्वाह के पैसे भी मांगने लगी. यह भी कहने लगी कि वह अपने घर पर पैसे न भेजा करे.

रामबहादुर ने उसे काफी समझाने की कोशिश की, पर उस पर कोई असर नहीं पड़ा. उस ने कहा, ‘‘पत्नी जैसा सुख मैं तुम्हें देती हूं और तुम हो कि सारा पैसा घर भेज देते हो. आखिर तुम्हारी कमाई पर मेरा भी तो हक है.’’

रामबहादुर को यह सब पसंद नहीं था. उसे माया में दिलचस्पी कम होने लगी. उन दोनों के बीच अकसर झगड़ा होने लगा.

रामबहादुर जिस माया पर मरमिटा था, अब उस से वह अपना पिंड छुड़ाना चाहता था.

एक रात को माया ने रामबहादुर को गुंडों से पिटवा दिया.

रामबहादुर को गहरी चोट लगी थी, लेकिन बदनामी के डर से उस ने किसी को कुछ नहीं बताया.

श्रवण को जब यह मालूम हुआ, तो उस से रहा न गया. वह उस के पास गया. उस ने रामबहादुर के घर वालों को बुलाया और बराबर उस की देखरेख करता रहा.

अब रामबहादुर को अपनी करनी पर पछतावा हो रहा था. उस ने श्रवण से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘श्रवण, मुझे माफ कर दे भाई.

‘‘मैं अपना फर्ज भूल गया था. उस सैनिक का फर्ज, जो देश की आन, बान और शान के लिए खुशीखुशी अपनी जान न्योछावर कर देता है. मैं अपने साथियों का हिस्सा बेच रहा था. मेरी अक्ल मारी गई थी.

‘‘जिस माया के लिए मैं चोरी करता था, उसी ने मेरे साथ मारपीट कराई. लेकिन भाई, यह बात किसी से मत कहना. अब मैं कोई गलत काम नहीं करूंगा,’’ कहते हुए रामबहादुर की आंखों में आंसू थे.

श्रवण को असलीनकली आंसुओं की पहचान थी. उसे यकीन हो गया कि रामबहादुर को अपनी करनी पर पछतावा है. वह उसे गले लगा कर बोला, ‘‘मुझे खुशी है कि तुम देर से ही सही, पर संभल गए. चलो, मैं ने तुम्हें माफ किया.

‘‘बेहतर होगा कि तुम माया का घर छोड़ दो और पुरानी बातों को भूल कर एक सच्चे सैनिक का फर्ज निभाओ.

‘‘और हां, गांव तुम्हारे चलते ही बिगड़ा है. आइंदा कभी वहां शराब मत ले जाना.’’

‘‘ठीक है भाई. मैं माया का घर छोड़ दूंगा. मुझे नहीं मालूम था कि वह इतना नीचे गिर सकती है.

‘‘हां, मैं मानता हूं कि गांव के लड़के मेरे चलते ही शराब के आदी हुए हैं. अब मैं कभी वहां शराब नहीं ले जाऊंगा और उन्हें समझाऊंगा कि वे शराब कभी न पीएं,’’ रामबहादुर ने कहा.

ठीक होने के बाद रामबहादुर ने माया का घर छोड़ दिया. माया ने कोई विरोध नहीं किया, क्योंकि वह किसी और को अपने जाल में फंसा चुकी थी.

रामबहादुर का माया से पिंड छूटा. वह दूर किराए का मकान ले कर अपनी पत्नी के साथ सुख से रहने लगा. जब कभी उसे माया की याद आती, तो उस का मन नफरत से भर उठता.

वह सोचता, ‘कहां पत्नी का प्यार और कहां माया का मायाजाल.’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...