रेलवे स्टेशन पर काफी गहमागहमी थी. दीपक अपनी मोटरसाइकिल की बुकिंग के लिए लोकल रेलवे स्टेशन गया था. वह लाल रंग की टीशर्ट पहने हुए था. स्टेशन के लाउडस्पीकर पर एक गाड़ी के आने का ऐलान हो रहा था. बुकिंग क्लर्क उसे रुकने के लिए कह कर माल उतरवाने के लिए प्लेटफार्म पर चला गया.
दीपक के पास कुछ काम तो था नहीं, इसलिए वह प्लेटफार्म पर आ कर ताकझांक करने लगा. तभी वहां से एक खूबसूरत औरत गुजरी. शायद वह किसी को ढूंढ़ रही थी. उस ने एक बार दीपक की तरफ देखा और आगे निकल गई.
रेलवे स्टेशन पर भीड़ कम होने लगी थी. थोड़ी ही देर में वही औरत दीपक की तरफ देखती हुई वापस जा रही थी. अचानक ही वह पलटी और उस ने उदास लहजे में दीपक से पूछा, ‘‘क्या यहां कुली नहीं मिलेगा?’’
दीपक को बड़ा धक्का लगा. कहीं वह उसे लाल टीशर्ट के चलते कुली तो नहीं समझ रही थी.
दीपक ने अनमने मन से कहा, ‘‘होगा जरूर. क्यों, मिला नहीं?’’
‘‘नहीं,’’ उस औरत ने उसे बड़ी उम्मीद भरी निगाहों से देख कर कहा.
‘‘ऐसा कीजिए, रेलवे स्टेशन के बाहर कई रिकशे वाले हैं. रिकशा तो आप करेंगी ही. रिकशे वाले से कहिएगा, वह कुली का भी काम कर देगा,’’ दीपक ने सुझाव दिया.
वह औरत बोली, ‘‘रिकशे वाला तो तैयार है, लेकिन वह कहता है कि रेलवे स्टेशन पर नहीं जा सकता. कुली आफत मचा देंगे. हां, गेट के बाहर आ कर वह सब करने को तैयार है.’’
‘‘यह तो सच है,’’ दीपक ने कहा.
वह औरत अपने गांव से तकरीबन 35-35 किलो गेहूं व चावल के 2 बोरे लाई थी.
दीपक ने पूछा, ‘‘आप के साथ कोई नहीं है?’’
‘‘11 साल का एक बच्चा है,’’ उस ने कहा.
तभी वहां एक नौजवान कुली आ गया. दीपक ने उस से पूछा, ‘‘ये 2 बोरे गेट के बाहर तक पहुंचा दोगे?’’
‘‘सौ रुपए लगेंगे,’’ उस कुली ने अकड़ कर कहा. वह औरत मन मसोस कर रह गई.
‘‘कुछ रेट तो होता है कि ऐसे ही जो दिल में आए वही बोल देते हो?’’ दीपक ने पूछा.
‘‘रेट तो यही है,’’ कह कर वह कुली चलता बना.
‘चलो, आज इन की मदद कर के कुछ अच्छा काम किया जाए,’ दीपक ने मन ही मन सोचा.
दीपक ने उस औरत से पूछा, ‘‘आप का सामान गेट के बाहर चला जाए, तो फिर आप का काम बन जाएगा न?’’
उस ने ‘हां’ में सिर हिलाया.
दीपक ने फिर पूछा, ‘‘सामान कहां है?’’
‘‘वहां,’’ उस ने इशारा किया.
वहां एक छोटा बच्चा बोरों की रखवाली कर रहा था. दीपक ने उस औरत से पूछा, ‘‘आप एक काम कर सकती हैं?’’
‘‘क्या?’’ उस ने पूछा.
दीपक ने कहा, ‘‘आप को एक तरफ से बोरा पकड़ना होगा.’’
‘‘हांहां, क्यों नहीं…’’ इतना कह कर उस की आंखों में चमक आ गई.
दीपक ने औरत की मदद से 2 बारी में वे दोनों बोरे बाहर रखवा दिए. उस की लाल झकाझक टीशर्ट ऊपर सरक गई थी. हाथ गंदे हो गए थे. गरमी के दिन थे, तो थोड़ी पसीना भी आ गया था. बाल उलटेपुलटे हो गए थे.
दीपक जल्दी से वहां से निबटना चाहता था कि कोई परिचित न मिल जाए और सवालों की ?ाड़ी न लगा दे.
तभी वह औरत दीपक के पास आई, लेकिन दीपक ने उस की तरफ नहीं देखा.
वह बोली, ‘‘शुक्रिया. आप बहुत अच्छे आदमी हैं. आप जैसे लोग कम होते हैं,’’ इतना कह कर वह चली गई.
उस औरत के ये शब्द दीपक के कानों से होते हुए सारी बाधाओं को पार कर सीधे उस के मन में जा कर घुल गए. उस ने मुड़ कर उस औरत को देखने की कोशिश की, लेकिन वह चली गई थी.
दीपक को एक छोटे से काम का उसे कितना बड़ा और यादगार इनाम मिला था.