भारत और पाकिस्तान की लड़ाई में बहादुरी दिखाने वाले दीनानाथ को इस बात का फख्र रहा कि वह जीत का गवाह बना, लेकिन बौर्डर पर बहादुरी दिखाने वाला अपने ही घर में जिंदगी की जंग में हार गया.

छोटे से कमरे के एक कोने पर खटिया पर खांसता दीनानाथ इतना लाचार तब भी नहीं हुआ था, जब दुश्मनों ने चारों तरफ से उसे घेर लिया था.

खटिया के सामने छोटी सी टेबल पर आईना रखा हुआ है. उस ने जब अपना चेहरा देखा, तो मन ही मन सोचने लगा कि क्या वह वही दीनानाथ है, जो सेना में जोश से भरा रहता था.

पिछले 2 महीने से उस ने दाढ़ी नहीं बनाई थी. वह खुद को नहीं पहचान पा रहा था. वह यादों में खो गया.

‘आओ मेरे जंग बहादुर. दुश्मन को मात देने वाले, तुम्हारा स्वागत है. मालूम है, तुम जब लड़ाई में गए थे, तो मैं ने मन ही मन सोचा था कि जब तुम दुश्मन को हरा कर घर लौटोगे, तभी मैं कुछ खाऊंगीपीऊंगी. आओ, हम साथसाथ भोजन करें,’ कहते हुए सुचित्रा दीनानाथ के गले लग गई थी.

दीनानाथ की शादी को अभी हफ्ताभर भी नहीं हुआ था कि बौर्डर पर जंग छिड़ गई और उसे जाना पड़ा था. जब वह जीत कर घर लौटा, तो पत्नी सुचित्रा समेत सभी खुश थे.

लेकिन सुचित्रा को तब बहुत दुख हुआ, जब उस की सास रूपा देवी और ससुर कानराज आपस में बतिया रहे थे.

रूपा देवी कह रही थीं, ‘अरे, अभी से इस ने मेरे बेटे पर ऐसा जादू किया है कि बस इसी से चिपका रहता है. मायके से तो कुछ लाई नहीं और यहां बेटे को अपने काबू में कर लिया.’

‘तुम चिंता मत करो, मैं इस कलमुंही का बंदोबस्त कर दूंगा,’ कानराज ने रूपा देवी को सम?ाया था.

‘अरे बेटा, कितने दिन की छुट्टी पर आया है?’ कानराज ने बेटे दीनानाथ से पूछा था.

दीनानाथ बोला था, ‘बस पिताजी, मैं कल सुबह जा रहा हूं.’

‘बेटा, तेरी मां की तबीयत ठीक नहीं है, कुछ दिन और रुक जाता.’

‘नहीं पिताजी, अब मुझे जाना होगा.’

‘हमारी बहू को तो यहीं रहने देना. अपने साथ मत ले जाना. तेरी मां की तबीयत ठीक नहीं है. मेरा भी अब बुढ़ापा आ गया है. बहू रहेगी, तो जी लगा रहेगा.’

‘‘अच्छा पिताजी, आप बहू को अपने पास ही रखो. मैं कुछ दिनों बाद उसे बुला लूंगा.’

इस के बाद दीनानाथ कश्मीर लौट गया था. फौज में रहते हुए पत्नी को साथ रखने की इजाजत नहीं थी, मगर इन दिनों दीनानाथ की ड्यूटी मैस में थी, इसलिए वह पत्नी को अपने साथ रख सकता था.

‘बहू, तुम्हें दीनानाथ ने कुछ पैसेवैसे दिए हैं कि नहीं?’ कानराज ने अपनी बहू सुचित्रा से पूछा था.

‘जी, 2 हजार रुपए दिए हैं.’

‘उन्हें हमें दे दो, तुम्हारा क्या काम?’

‘ले लीजिए बाबूजी, मु?ो जरूरत होगी, तो आप से मांग लूंगी,’ कह कर सुचित्रा ने वे रुपए कानराज को दे दिए.

‘पोस्टमैन,’ तभी पोस्टमैन की आवाज कानों में पड़ी.

‘बहू, देखो तो क्या लाया है पोस्टमैन?’ कानराज ने कहा था.

‘जी, अभी देखती हूं.’

पोस्टमैन रजिस्ट्री चिट्ठी लाया था. सुचित्रा ने दस्तखत कर के वह चिट्ठी

ले ली. वह चिट्ठी सुचित्रा के नाम की ही थी.

ससुर कानराज ने पूछा, ‘बहू, क्या है?’

‘जी, आप के बेटे की चिट्ठी है. मेरे नाम से आई है.’

‘हां, अब वह तुम्हें ही तो चिट्ठी लिखेगा. हम तो उस के कुछ हैं ही नहीं.’

‘नहीं बाबूजी, ऐसी बात नहीं है. उन्होंने आप का हालचाल भी पूछा है.’

‘और क्या लिखा है मेरे बेटे ने?’

‘बस, राजीखुशी के समाचार हैं.’

‘आ…आ…आ…ओ…ओ…उह…’ करते हुए सुचित्रा को उलटियां होने लगीं.

‘क्या हुआ बहू?’ रूपा देवी ने घबरा कर पूछा था.

‘जी, कुछ नहीं. बस, उलटियां हो रही हैं.’

‘अरे, यह तो अच्छी बात है. कहीं तुम… तुम मां बनने वाली हो.’

‘हो सकता है मांजी.’’

‘चलो, यह तो अच्छी खबर है. अब तुम कोई काम मत करना. हम घर के लिए एक बाई रख लेंगे.

‘हां, इस का खर्च तुम मायके से मंगा लेना. पहला बच्चा मायके में होता है, मगर तुम्हें मायके जाने की कोई जरूरत नहीं है, सारा खर्च यहीं मंगा लो,’ रूपा देवी बोली थीं.

‘मांजी, मेरे घर में बूढ़े पिताजी के अलावा भला कौन है, जो मेरी देखभाल करे. रही बात पैसे मंगवाने की, तो रिटायर चपरासी भला क्या दे सकता है?’

‘हम से जबान लड़ाती हो,’ कह कर रूपा देवी ने सुचित्रा के गाल पर तमाचा जड़ दिया था.

उस दिन सुचित्रा खूब रोई थी. रात को अपने कमरे में रोतेरोते ही उस ने दीनानाथ को चिट्ठी लिखी थी और उस में अपने पेट से होने और सासससुर के गलत बरताव के बारे में लिखा था.

दीनानाथ ने जवाब में लिखा था कि कुछ दिनों की बात है, सहन कर लो. बाद में मैं तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगा. वह चिट्ठी कानराज के हाथ लग गई थी. उन्होंने चिट्ठी खोल कर पढ़ी, तो वे आगबबूला हो गए थे.

अब तो कानराज अपनी बहू पर और जुल्म करने लगे. एक दिन गुस्से में उन्होंने सुचित्रा को तेजाब पिला दिया था. इस से सुचित्रा की मौत हो गई और पेट में पल रहा बच्चा भी मर गया था.

पुलिस की तफतीश में यही सामने लाया गया कि सुचित्रा ने रात के अंधेरे में दवा सम?ा कर तेजाब पी लिया था.

दीनानाथ को जब इस मामले की जानकारी मिली, तो वह छुट्टी ले कर घर लौटने लगा. रास्ते में आतंकवादियों ने बम धमाका कर दिया, जिस से उस के दोनों पैर कट गए.

कई दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद उसे छुट्टी तो मिल गई, मगर फौज की नौकरी से भी हमेशा के लिए रिटायर कर दिया गया.

दीनानाथ घर आया, तो रूपा देवी और कानराज ने यही बताया कि सुचित्रा ने दवा सम?ा कर तेजाब पी लिया था, जिस से उस की मौत हो गई.

दीनानाथ बहुत दुखी हुआ. उस को लगा कि काश, वह सुचित्रा को अपने साथ ले जाता. दुखी मन से उस के दिन गुजरने लगे.

कानराज का छोटा भाई मानमल मर चुका था. जिस मकान में कानराज और मानमल रहते थे, वह कानराज के नाम पर था.

मानमल के 2 बेटे देवेंद्र और विजेंद्र थे. वे दोनों लंबे समय से कानराज से वह मकान अपने नाम करने की मांग कर रहे थे. ऐसा नहीं करने से उन में अनबन रहने लगी थी.

जब तक दीनानाथ फौज में था, तब तक देवेंद्र और विजेंद्र की उस से पंगा लेने की हिम्मत नहीं होती थी. जैसे ही उस के पैर जाते रहे और फौज की नौकरी छूटी, वे उस के घर आए और अचानक हमला कर दिया.

उन्होंने कानराज और रूपा देवी के पैरों में गोली मार दी. जान से मारने की धमकी देने के बाद उन्होंने कानराज से मकान के सभी कागजात अपने नाम करा लिए. जातेजाते उन्होंने कानराज और रूपा देवी के सीने में भी गोली मार दी.

मरने से पहले कानराज और रूपा देवी ने अपनी बहू सुचित्रा के साथ जो गलत बरताव किया था, उस की हकीकत दीनानाथ के सामने बयां कर दी.

पुरानी बातें सोचतेसोचते दीनानाथ अपनी लाचारी पर आंसू बहा रहा था.

अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई.

‘‘कौन है? अंदर आ जाओ, दरवाजा खुला है,’’ दीनानाथ बोला.

वह सुशील था, उस का पड़ोसी. वह उस के लिए खाना लाया था.

दीनानाथ रो रहा था. सुशील ने पूछा, तो वह बोला, ‘‘पुरानी यादों में खो गया था. बौर्डर पर दुश्मनों को मात देने वाला दीनानाथ जिंदगी की जंग में हार गया.’’

बौर्डर पर जंग जीतने पर जो मैडल मिले थे, उन्हें देख कर वह सुशील से बोला, ‘‘ये मैडल बचे हैं, इन्हें बेच दो और मुझे जहर ला कर दे दो. मैं अब जीना नहीं चाहता.

‘‘एक फौजी के लिए हारी हुई जिंदगी मौत से भी बदतर होती है. अब मैं जीना नहीं चाहता. मैं हार गया हूं.’’

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