खेमेबाजी हमारे देश के हर गांव की एक खासियत है. 1000 घरों के गांव में 4.5 खीमे होना आम बात है और जाति, धर्म, काम, पैसे के नाम पर बने ये खेमे एकदूसरे से लड़ते ज्यादा रहते हैं, गांव की देखभाल, आम जगहों को बनवाने, सिक्योरिटी पर कम ध्यान देते है. हर खेमा दूसरे से लड़ता रहता है और दूसरे में सेंध लगाना रहता है कि कैसे उसे कमजोर किया जाए. गांव के भले की सोचने की फुर्सत किसी को नहीं होती.

हमारी राजनीति में यह अर्से से चल रहा है पर 2014 में वादा किया गया था कि भारतीय जनता पार्टी को मिली भारी भरकम जीत के बाद दलबदल खत्म हो जाएगा क्योंकि देश की कट्टर हो चुकी ङ्क्षहदू जनता के बड़े हिस्से ने नरेंद्र मोदी को वोट दिया था.

अफसोस यही है कि 2014 के बाद सुॢखयों नहीं बनती हैं कि भाजपा ने सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल दूसरी पाॢटयों को तोडऩे और अपने में मिलाने में किया और ङ्क्षहदूङ्क्षहदू करते हुए भी उस के हाथ से सत्ता फिसलती नजर आती रही.

उस की वह जनता के पास जा कर नहीं, खेमों में सेंध लगा कर या पुलिस को दूसरे खेमों के सरगनों को परेशान करने में लगाती रही. देश का कल्याण तो हवा हो गया है, पार्टी का कल्याण ही अकेला मकसद बच गया है.

महाराष्ट्र में 2 साल पहले जब पुराने साथी शिवसेना के उद्धव ठाकरे से समझौता नहीं हुआ और शिवसेना ने नेशनल कांग्रेस और इंडियन कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बना ली तो बजाए अगले चुनाव तक इंतजार करने के उस ने खीज में आ कर तीनों पाॢटयों के विधायकों की खरीद शुरू कर दी. पहले एकनाथ ङ्क्षशदे को शिवसेना को तोड़ा और अब एनसीपी के अजीत पंवार को तोड़ कर एक टेढ़ीमेढ़ी ऊंची इमारत बना ली.

ऐसा काम पहले ही वह कर्नाटक व मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों और गोवा, मेघालय, मिजोरम, अरुणांचल में कर चुकी है.

यह साबित करता है भाजपा के खेमे की हवेली चाहे कितनी बड़ी दिखती हो, उस के सामने से गुजरने वाले चाहे चप्पल को बगल में दबा कर और सलाम कर के गुजरते हो, मन में लोगों को कोई भरोसा नहीं है कि खेमेदार कुछ भला करेगा. इसलिए भाजपा के खेमेदारों को लाठी और पैसे के दम पर हमारे खेमों में तोडफ़ोड़ करनी पड़ रही है.

यह भारतीय जनता पार्टी की कमजोरी दिखाती है कि उसे केंद्र में भारी सीटें मिलने के बावजूद राज्यों में दलबदलूओं के सहारे सरकारें चलाना पड़ रहा है. मतलब यह है कि पार्टी को जनता से डर  लगता है जीते हुए विधायकों और सांसदों से नहीं.

महाराष्ट्र में जो हुआ वह वैसे पौराणिक युकों से ङ्क्षहदू राजा करते आए हैं पर हमेशा उन्होंने छल से राज्य किया है. अमृत मंथन में भी दस्युओं को मिला कर देवताओं ने अमृत निकाला पर बजाए बांटने के सारा हड़प गए. यही आज हो रहा है.

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