‘‘तुम कब तक यों अकेली रहोगी?’’ लोग जब उस से यह सवाल करते, तो वह मुसकरा कर कह देती, ‘‘आप सब के साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं…’’

उस की शांत आंखों के पीछे की अब वह हलचल नहीं है. हरपल बोलने वाली अब सब के बीच रह कर भी चुप सी हो गई है मानो इंतजार हो किसी के जवाब का.

जानकी ने दुनिया देखी है और उस की अनुभवी आंखें सब समझती हैं. न जाने इस चंचल सी गुडि़या को क्या हो गया है.

‘‘सांदली, क्या मैं तुम्हारे पास बैठ जाऊं थोड़ी देर?’’

‘‘जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने वाली बात है…’’

‘‘कैसी हो? क्या चल रहा है आजकल?’’

‘‘बस आंटी, वही रूटीन… कालेज से घर और घर से कालेज… आप बताइए?’’

जानकी बोली, ‘‘अरे बेटा, वह क्या कहते हैं व्हाट्सअप और फेसबुक, तुम तो जानती हो कि नया जमाना है, किसी को रिश्ता बताओ तो पहले फोटो भेजो… हमें तो बस फोन सुनना और काटना आता है. फोटो कहां से भेजें? अब वही सब सीखना पड़ रहा है.

‘‘क्या करें बिटिया, समय ही ऐसा आ गया है. बस, घर बैठेबिठाए सब काम हो जाएं… यह फोन भी अजीब चीज है…’’

जानकी को पूरा महल्ला जानता था. वह रिश्ते करवाती थी. सांदली का रिश्ता भी जानकी ने ही करवाया था.

सांदली के पिता बैंक में नौकरी करते थे यहीं पर चंडीगढ़ में. 6 साल यहां पर रहे इसी महल्ले में, फिर देहरादून तबादला हो गया. किसी का मन नहीं था यहां से जाने का, लेकिन नौकरी है तो जाना तो होगा.

सांदली 10वीं क्लास में थी. चुलबुली सी, बला की खूबसूरत. हंस कर प्यार से बोलने वाली, सब की चहेती. उन के जाने की बात सुन कर सब उदास हो गए.

देहरादून के अच्छे महल्ले में घर मिल गया था, लेकिन सांदली जब बीकौम फर्स्ट ईयर में थी, तब उस के पिता का तबादला फिर से चंडीगढ़ हो गया.

चंडीगढ़ में वे उसी महल्ले में आ कर रहने लगे. सब लोग खुश थे. इस बात को 2 साल होने को थे. सांदली कालेज के तीसरे साल में थी.

एक दिन जानकी सांदली की मम्मी के पास उस के लिए बहुत अच्छा रिश्ता लाई, लेकिन सांदली अभी आगे पढ़ना चाहती थी, तो लड़के वालों से बात की और वे मान गए कि सांदली बाद में  अपनी पढ़ाई जारी रख सकती है.

रिश्ता पक्का हो गया. सगाई के बाद एक दिन लड़का वरुण सांदली से मिलने आता आया और वे दोनों घूमने गए.

वहां वरुण ने सांदली को चूमने की कोशिश की.

‘‘प्लीज वरुण, यह सब शादी से पहले नहीं.’’

‘‘क्या दिक्कत है? यह सब चलता है आजकल और तुम पर अब मेरा हक है, मैं कुछ भी करूं…’’

‘‘मेरा हक का क्या मतलब है? मैं कोई तुम्हारी प्रौपर्टी नहीं.’’

वरुण जबरदस्ती करने लगा कि इतने में सांदली के भाई का फोन आ गया.

सांदली ने एकदम से फोन औन किया और रोने लगी.

‘अरे, क्या हुआ?’ भाई ने पूछा.

‘‘भाई, जल्दी आ कर मुझे ले जाओ.’’

‘बता कहां हो तुम लोग, मैं अभी आया.’

सांदली का भाई वहां पहुंच गया. उस के आते ही वरुण वहां से निकल गया.

‘‘सांदली, क्या हुआ मेरी बच्ची?’’ मां ने पूछा.

‘‘मां, मुझे वरुण से कोई रिश्ता

नहीं रखना.’’

सांदली की मां सारी बात जान कर रिश्ता तोड़ दिया. यह हादसा सांदली को इस तरह से हताश कर गया कि उस ने शादी न करने की कसम उठा ली.

‘‘पर बेटी, आज नहीं तो कल शादी तो करनी होगी न. इस तरह सारी उम्र अकेले कहां कटती है…’’ जानकी ने सांदली से कहा.

‘‘आंटी, आप सब हैं न… मैं अभी पढ़ूंगी. और ये मर्द सब हवस के पुजारी  हैं. कोई प्यार नहीं करता किसी को. सब औरत के जिस्म के भूखे हैं. ये रिश्ते प्यार के नहीं सिर्फ हवस के हैं. मुझे नहीं चाहिए ये हवस के रिश्ते…’’

समय गुजरता गया. पोस्ट ग्रेजुएशन की डिगरी लेने के बाद सांदली को दिल्ली की एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई.

सांदली दिल्ली शिफ्ट हो गई और जब भी घर आती तो अकसर उस की शादी की बात छिड़ती, मगर सांदली हर बार टाल जाती.

सांदली को नौकरी करते 2 साल बीत गए थे. वह औफिस में किसी मर्द से कोई ज्यादा बात न करती, बस अपने काम से काम रखती थी.

एक बार सांदली के मैसेंजर पर ‘हैलो’ का मैसेज आया, मगर सांदली ने कोई जवाब न दिया. इस तरह 2-3 दिन कभी ‘गुडमौर्निंग’ तो कभी ‘हैलो’ का मैसेज आता रहा.

सांदली ने देखना चाहा कि कौन है जो रोज मैसेज करता है, लेकिन वह उस के बारे में कुछ न जान सकी, क्योंकि प्रोफाइल पर ताजमहल की तसवीर थी.

‘‘सांदली को बचपन से ही ताजमहल बहुत पसंद था, लेकिन अपने साथ हुए हादसे के बाद वह अकसर ताजमहल की तसवीर देखा करती थी और सोचती, ‘प्यार तो उस जमाने में हुआ करता था, आजकल प्यार ने हवस का रूप ले लिया है.’

मगर मैसेज आने का सिलसिला जारी रहा. अब तो ‘गुड नाइट’ का मैसेज भी आने लगा.

आखिरकार एक दिन सांदली ने मैसेज पर पूछा, ‘कौन हैं आप और मुझे मैसेज क्यों करते हैं?’

सामने से जवाब आया, ‘आप मुझे अच्छी लगती हैं. क्या ‘गुड मौर्निंग’ और ‘गुड नाइट’ करना गुनाह है? अगर आप की नजर में यह गुनाह है तो आप जो सजा देना चाहती हैं, मुझे कुबूल है, लेकिन मेरे मैसेज का जवाब तो दें.’

सांदली ने किसी मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन मैसेज सुबहशाम आते रहे. वह शख्स कभीकभी अजीब सी चेहरे वाले इमोजी भेजता था, जिसे देख कर सांदली को हंसी आती थी.

न जाने क्यों उस अजनबी से कैसा लगाव हो गया था, सांदली उस के मैसेज रोज पढ़ा करती थी और इमोजी देख कर हंसा करती थी.

धीरेधीरे सांदली ने भी जवाब देना शुरू किया कर दिया. वह कभी ‘गुड मौर्निंग’ और कभी ‘गुड नाइट’ का मैसेज कर देती.

धीरेधीरे उन दोनों में दोस्ती हो गई. तकरीबन 6 महीने तक यह सिलसिला चलता रहा. लेकिन सांदली सोचती कि अजनबी मुझे बिना देखे या बिना जाने क्यों दोस्ती करना चाहता है? क्या वह मुझ से प्यार करता है? लेकिन उस ने तो मेरी कोई तसवीर तक भी नहीं देखी, तो प्यार कैसे?

दरअसल, सांदली ने अपनी प्रोफाइल पर नरगिस के फूल की तसवीर लगाई हुई थी और न ही अपने फेसबुक अकाउंट में अपनी कोई तसवीर डाली हुई थी. वह सोचने लगी कि क्या सचमुच अभी भी प्यार जिंदा है?

अब सांदली का मन अजनबी की तरफ खिंचने लगा. वह उसे देखने को उतावली हो रही थी.

एक दिन सांदली ने मैसेज किया, ‘एक बात पूछूं?’

‘बाप रे, पहले बता दो क्या पूछना है, फिर हम सोच कर परमिशन देंगे, मेरी उम्र मत पूछना…’ वहां से मैसेज आया.

‘कभी तो सीरियस तरीके से बात किया कीजिए, हर पल मस्ती…’

‘चलिए, बताइए क्या पूछना है आप को? यह मैसेज कर के सैड इमोजी भेज दी गई, जिसे देख कर सांदली हंसे बिना न रह सकी.

‘आप ने अपनी तसवीर क्यों नहीं लगाई प्रोफाइल पर?’

‘जैसे आप ने नहीं लगाई. तसवीर का क्या करना है, दिल तो एकदूजे को जानते हैं न.’

अब सांदली शर्म के मारे कोई जवाब न दे सकी. उस का दिल उछल कर बाहर आने को हुआ जा रहा था. अजनबी की खयालों में सूरत बनाने लगी. उस ने महसूस किया कि उसे अजनबी से प्यार हो गया है.

एक दिन अजनबी का मैसेज आया, ‘आज ठीक 5 बजे ताज होटल में चाय एकसाथ पीएंगे.’

सांदली खुशी से उछल पड़ी. उस ने औफिस से हाफ डे ले लिया, कमरे पर आ कर फ्रैश हो कर डार्क ब्लू कलर की ड्रैस पहनी. गोरा रंग होने पर नीले रंग में बला की खूबसूरत लगती थी. हलका मेकअप किया और चल दी

ताज होटल.

सांदली का दिल प्यार की अंगड़ाइयां ले रहा था. आज उसे रास्ता भी लंबा लग रहा था, लेकिन जैसे ही बताई गई टेबल पर पहुंची तो बौस को देख कर ठिठक गई.

‘‘आओ सांदली, बैठो…’’

‘‘सर, आप…’’

‘‘जी. पर पहले चाय पी लें, जिस के लिए इतने बड़े होटल में आए हैं.’’

सांदली को समझते देर न लगी कि वह अजनबी उस का बौस ही था.

सांदली का दिल बड़ी जोर से धड़क रहा था. उसे अपने बौस अच्छे तो लगते थे, मगर उन के साथ ऐसा रिश्ता तो वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी. औफिस में उस ने कभी उन्हें किसी से भी हंसीमजाक करते भी नहीं देखा था, इसलिए अजनबी के मिलने की खुशी के साथ उसे हैरानी भी थी कि  क्या सचमुच बौस ही वे अजनबी हैं.

बौस उस की हालत को समझते हुए बोले, ‘‘सांदली, मैं सचमुच तुम्हें चाहता हूं, लेकिन अगर मैं बौस बन कर यह बात कहता तो शायद तुम नौकरी के दबाव में आ कर हां करती या तुम्हें मंजूर न होता तो नौकरी छोड़ कर चली जाती…

‘‘और मैं तुम्हें न तो खोना चाहता था, न ही तुम्हें किसी दबाव या डर में देख सकता था, इसलिए मैं अब तक अजनबी बना रहा. अब तुम्हारा जो भी फैसला हो मुझे मंजूर है, मगर एक रिक्वैस्ट है, तुम नौकरी छोड़ कर मत जाना.’’

सांदली नजरें झुकाए बस इतना ही कह पाई, ‘‘आप चंडीगढ़ जा कर मेरे मम्मीपापा से बात कर लें.’’

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