बहन जब मरजी से किसी से प्यार करने लगती है, तो ज्यादातर भाई हैवान बन जाते हैं. विरले ही भाई ऐसे होंगे, जिन्होंने अपनी बहन के जज्बात समझते हुए उस की मुहब्बत को शादी में तबदील करने की पहल की होगी…

बि हार में पटना सिटी का गायघाट आएदिन होने वाली आपराधिक वारदात के लिए बदनाम है. ऐसी ही एक वारदात ज्यूडिशियल एकेडमी के नजदीक

26 अप्रैल, 2023 की रात को हुई, जिस में उस वक्त सनाका खिंच गया था, जब फिल्मी स्टाइल में एक नौजवान ने दूसरे नौजवान पर कट्टे से गोली दागते हुए उस की हत्या कर दी. जब तक लोग समझ पाते कि आखिर हुआ क्या है, तब तक अपराधी हवा में फायर करते हुए भाग खड़े हुए.

अफरातफरी मची और कुछ लोग हिम्मत करते हुए उस घायल नौजवान के पास पहुंचे और उसे नजदीक के एनएमसीएच अस्पताल पहुंचाया, जहां इलाज के दौरान नौजवान ने दम तोड़ दिया.

पुलिस आई और जांच शुरू हुई, तो मामला इश्कबाजी का निकला. बाद में यह कहानी सामने आई : मरने वाले 22 साला नौजवान का नाम राजा कुमार था, जो गुड़ की मंडी मालसलामी का रहने वाला था और मारने वाले का नाम अभिषेक कुमार था. वे दोनों दोस्त तो नहीं थे, लेकिन एकदूसरे को जानते जरूर थे.

कुछ दिन पहले ही अभिषेक को भनक लगी थी कि राजा का चक्कर उस की बहन से चल रहा है. इस बाबत उस ने कई बार राजा को समझाया भी था कि वह उस की बहन से मिलनाजुलना छोड़ दे, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.

समझाया तो अभिषेक ने अपनी बहन अर्चना (बदला हुआ नाम) को भी था, लेकिन राजा से उस का मिलनाजुलना बंद नहीं हो रहा था, इसलिए वह कुसूरवार राजा को ही मानता था और चाहता था कि वही मान जाए, फिर चाहे इस के लिए उंगली टेढ़ी भी करनी पड़े, तो बात हर्ज की नहीं, क्योंकि सवाल आखिर घर की इज्जत का था.

लेकिन राजा कहां मानने वाला था, जिसे यह एहसास था कि जब प्यार किया है, तो हजार रुकावटें भी आएंगी, जिन से डरने या भागने के बजाय उन का मुकाबला करना है.

मालसलामी का ही रहने वाला अभिषेक और राजा हमउम्र थे. लिहाजा, राजा को उम्मीद थी कि कभी आमनेसामने बैठ कर बात होगी, तो अभिषेक उस के जज्बात समझते हुए राजी हो जाएगा, क्योंकि अर्चना भी उसे चाहती थी.

वारदात के दिन अभिषेक ने राजा को चाय पीने के लिए ज्यूडिशियल अकेडमी के नजदीक के होटल पर बुलाया, तो

वह झट से राजी हो गया. उसे उम्मीद थी कि वह गुस्साए अभिषेक को मनाने में कामयाब हो जाएगा. लेकिन उसे क्या मालूम था कि अभिषेक कुछ और ही ठाने बैठा था.

रात को राजा अपने एक दोस्त सरवन को साथ ले कर होटल पर पहुंचा तो वहां मौत उस का इंतजार कर रही थी. अभिषेक ने कब कहां से आ कर उस पर गोलियां दागते हुए अपने घर की इज्जत का बदला ले लिया, यह उसे पता भी नहीं चला.

सरवन ने एक पहचान वाले संजीव कुमार की मदद से राजा को अस्पताल पहुंचाया और फिर पुलिस को राजा और अर्चना की लवस्टोरी के बारे में बताया, तो पुलिस ने अभिषेक को हिरासत में ले लिया, जिस ने अपना जुर्म कबूल करते हुए हत्या करने की वजह बता दी. विलेन बनते भाई यह कोई पहला या आखिरी मामला नहीं था, जिस में किसी भाई ने बहन के प्यार का खात्मा यों जानलेवा तरीके से न किया हो. यह रोग हर धर्म, जाति और तबके में बराबरी से है.

इसी साल फरवरी के महीने में मेरठ, उत्तर प्रदेश के लिसाड़ी इलाके में मैडिकल स्टोर चलाने वाले 24 साला साजिद सैफी की दिनदहाड़े हत्या उस की माशूका आयशा के भाइयों ने कर दी थी. साजिद और आयशा पड़ोसी थे और एकदूसरे से बेपनाह मुहब्बत करने लगे थे. यह मामला किसी से छिपा भी नहीं रह गया था. साजिद के घर वाले तो उस की जिद देखते हुए आयशा को घर की बहू बनाने को तैयार हो गए थे, लेकिन आयशा के घर वालों को किसी गैरजाति के नौजवान को दामाद बनाना गवारा न था.

साजिद ने कुछ महीने पहले ही बीफार्मा का कोर्स कर के अपना मैडिकल स्टोर खोला था और आयशा के साथ शादी कर अपने प्यार का जहां बनाने के सपने देखता था. वह दिनरात मेहनत भी कर रहा था.

जब लाख कोशिशों के बाद भी आयशा के घर वाले तैयार नहीं हुए, तो साजिद के घर वालों ने उस की शादी की बात दूसरी जगहों पर चलानी शुरू कर दी थी. वे अपने बेटे को उदास और परेशान नहीं देख पा रहे थे. हालांकि, इस से साजिद टैंशन में था, क्योंकि उस के दिलोदिमाग में तो आयशा गहरे तक बस चुकी थी.

11 फरवरी, 2023 की रात साजिद दुकान बंद करने की सोच ही रहा था कि तभी मोटरसाइकिल से 3 लोग नीचे उतरे. सभी के चेहरे कपड़े से ढके हुए थे. उन्होंने उस पर ताबड़तोड़ 5 गोलियां दाग दीं. साजिद गिर पड़ा, तो उन में से 2 नकाबपोशों ने उसे हिलाडुला कर उस के मरने की तसल्ली भी की. आसपास के लोग कुछ समझ पाते, इस के पहले ही वे तीनों लोग हवा में हथियार लहराते हुए भाग निकले. फिर वही हुआ, जो राजा के मामले में हुआ था कि तरहतरह की बातें, कानून व्यवस्था को कोसना, पोस्टमार्टम, पुलिस में रिपोर्ट, जांच और गवाही, लेकिन मुद्दे की बात हमेशा की तरह गायब है कि क्यों भाइयों से अपनी बहनों का प्यार करना बरदाश्त नहीं होता?

साजिद की मौत के बाद मेरठ में खूब हंगामा हुआ, लेकिन वह सियासी ज्यादा था सामाजिक कम. सैफी परिवार से हर किसी को हमदर्दी थी, क्योंकि साजिद बहुत होनहार और लायक होने के साथसाथ हंसमुख और हैंडसम भी था, जिस की मुहब्बत माशूका के भाइयों रिजवान और फुरकान को रास नहीं आई, तो उन्होंने उस का कत्ल ही कर दिया. इन लोगों ने पहले आयशा को भी

खूब समझायाबुझाया और मारापीटा भी था, लेकिन वह भी झुकने को तैयार नहीं हुई थी. बराबरी का दर्जा क्यों नहीं इन दोनों ही मामलों के आरोपियों की तकलीफ यह थी कि वे अपनी बहनों को नादान समझ रहे थे, साथ ही इस बात पर भी तिलमिलाए हुए थे कि आखिर उस की जुर्रत कैसे हुई किसी से प्यार करने की, जिस से इज्जत पर आंच आती है यानी दिक्कत यह मान लेने की है कि बहनें घर के कामकाज करें, पक्षी की तरह घर के पिंजरे में बंद रहें और हर सहीगलत फैसले को सिर झुका कर मान लें, तो ही सही माने में अच्छी लड़की हैं.

बहनों को अपनी मरजी से जीने और रहने देने का हक हमारे समाज में कभी नहीं मिला. उन की आजादी पर अंकुश लगाने को मर्द शान की बात समझते हैं. यह बात बुनियादी तौर पर सिखाई धर्म ने ही है कि औरत को बचपन में पिता और भाई के, जवानी में पति के और बुढ़ापे में बेटे के कंट्रोल में रहना चाहिए.

बहनभाई के रिश्ते को सब से प्यारा रिश्ता माना गया है. दोनों साथ हंसतेखेलते एकदूसरे का दुखदर्द समझते हुए बड़े होते हैं और जिंदगीभर इन खट्टीमीठी यादों को सीने से लगाए हुए जीते हैं.

शादी के बाद बहन अपनी ससुराल चली जाती है, तो उस की सब से ज्यादा फिक्र भाई ही करता है, लेकिन बहन जब मरजी से किसी से प्यार करने लगती है, तो यही भाई हैवान बन जाते हैं.

बिरले ही भाई ऐसे होंगे, जिन्होंने अपनी बहन के जज्बात समझते हुए उस की मुहब्बत को शादी में तबदील करने की पहल की होगी, क्योंकि उन के लिए जाति, समाज और धर्म से ज्यादा अहम बहन थी.

जिस तरह लड़कों को न केवल प्यार, बल्कि एक उम्र के बाद अपनी जिंदगी से जुड़े तमाम फैसले लेने का हक मिल जाता है, वैसा ही हक लड़कियों को भी मिलना चाहिए, नहीं तो साजिद और राजा जैसे बेकुसूर नौजवान मारे जाते रहेंगे और आयशा और अर्चना जैसी लड़कियां जिंदगीभर अपने भाइयों को कोसती रहेंगी, जो अब जेल में पड़े सड़ रहे हैं. मिला उन्हें भी कुछ नहीं है, सिवा इस झूठी शान और तसल्ली के कि उन्होंने घर की इज्जत बचा ली.

पर अगर यह इज्जत बहन के अरमानों की कब्र है तो यह इज्जत नहीं, बल्कि मर्दों के दबदबे वाले समाज की खोखली बुनियाद है, जिस का दरकना शुरू हो गया है. लेकिन यह बहुत ही छोटे पैमाने पर है.

जिस दिन लोग बेटियों को बेटों के बराबर का दर्जा और हक देने लगेंगे, उस दिन बेटियों को भी अपने इनसान होने का एहसास होगा और वे घर, समाज और देश की तरक्की में अहम रोल निभाएंगी, पर इस के लिए खुले दिल से पहल भाइयों को भी करनी पड़ेगी. उन्हें यह समझना होगा कि बहन को भी अपनी मरजी से रहने, खानेपीने, पहनने और प्यार करने का हक है.

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