जिसतरह दीए के साथ बाती का गहरा नाता होता है, अपनी आखिरी सांस तक वह दीए को नहीं छोड़ती, उसी के साथ ही जीती है और उस की बांहों में ही अपना दम तोड़ देती है, कुछ इसी तरह का प्यार करती थी रश्मि अपने प्रेमी आदित्य से. साथ जीनेमरने के वादे करने वाले आदित्य और रश्मि प्यार की राह पर एकदूसरे का हाथ पकड़े बहुत दूर निकल आए थे. एकदूसरे को देखे बिना कभी भी उन का दिन पूरा नहीं होता था. दोनों के परिवार भी इस रिश्ते को बहुत पसंद करते थे. दोनों के असीम प्यार को मिलाने के लिए दोनों परिवारों ने जोरशोर से तैयारियां शुरू कर दी थीं.

आदित्य की मां अनीता ही ने रश्मि के लिए उस की पसंद के कपड़े, गहने सबकुछ तैयार करवा लिया था. इकलौता ही बेटा तो था आदित्य उन का. अपने सूने आंगन में एक बेटी के कदमों को लाने की उन्हें बड़ी जल्दी थी. अपनी मंजिल को पूरा होता देख आदित्य और रश्मि की खुशी का ठिकाना न था. रश्मि के परिवार में भी जोरशोर से विवाह की तैयारियां चल रही थीं.

विवाह का मुहूर्त 1 माह बाद का निकला था. सभी को जल्दी थी, किंतु उस से पहले का कोई मुहूर्त था ही नहीं. अब सभी उस तारीख का इंतजार कर रहे थे. 1-1 कर के दिन बड़ी मुश्किल से कट रहे थे. सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. वह कहते हैं न कि समय से पहले और हिस्से से ज्यादा किसी को नहीं मिलता. कुछ ऐसा ही आदित्य और रश्मि के साथ भी हुआ.

आज करवाचौथ है. रश्मि बहुत ही उत्साह में थी. आदित्य से भले ही अब तक उस का विवाह न हुआ हो पर मन ही मन वह उसे पति तो मान ही चुकी थी. यही सब सोच कर उस ने भी आज करवाचौथ का व्रत रख लिया.

सुबहसुबह आदित्य के फोन की घंटी बजी. आदित्य गहरी नींद में सो रहा था. जैसे ही देखा रश्मि का फोन है, ‘अरे इतनी सुबह रश्मि का फोन? क्यों किया होगा,’ सोचते हुए उस ने

फोन उठाया.

रश्मि ने कहा, ‘‘आदित्य, आज शाम का कोई प्रोग्राम नहीं बनाना. मैं ने आज करवाचौथ का व्रत रखा है, निर्जला तुम्हारे लिए. रात को

चांद देख कर तुम्हारे हाथों से पानी पी कर ही उपवास तोड़ूंगी. शाम को तुम मेरे लिए बिलकुल फ्री रखना.’’

‘‘अरे रश्मि यह उपवास छोड़ो यार, कहां भूखी रहोगी दिन भर.’’

‘‘नहीं आदित्य, यह व्रत तो मुझे रखना ही है. सिर्फ आज ही नहीं, हर वर्ष तुम्हारे लिए, तुम्हारी लंबी उम्र के लिए.’’

‘‘ठीक है रश्मि, तुम से कभी मैं जीत सका हूं क्या? मैं शाम को अपनेआप को तुम्हारे हवाले कर दूंगा, अब खुश?’’

‘‘आदित्य शाम को 7 बजे तक तुम मुझे लेने आ जाना, शाम को पूजा मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर पर ही करूंगी.’’

‘‘ठीक है रश्मि, जो आज्ञा.’’

रश्मि शाम का इंतजार कर रही थी. हाथों में मेहंदी, सोलहशृंगार, लाल जोड़े में सजीधजी रश्मि बहुत ही सुंदर लग रही थी. ऐसा लग रहा था मानो आज ही उस का विवाह हो.

दुलहन की तरह सजीधजी रश्मि को देख कर अनीता भी फूली नहीं समा रही थीं. चांद का इंतजार सभी कर रहे थे. रश्मि को जोर की भूख लगी थी.

रश्मि बारबार आदित्य से कह रही थी, ‘‘आदि जाओ न बाहर चांद को ढूंढ़ो, कहां छिप कर बैठा है?’’

आदित्य ने कहा, ‘‘कहां जाऊं रश्मि, मुझे तो चांद मेरी आंखों के सामने ही दिखाई दे रहा है. इस चांद के सामने उस चांद को देखने कौन जाएगा.’’

‘‘जाओ न आदि, भूख लग रही है.’’

कुछ ही समय में चांद भी निकल आया. पूजा कर के छलनी से चांद के साथ आदित्य

को निहारते हुए रश्मि ने धीरे से कहा, ‘‘आई

लव यू आदित्य.’’

आदित्य ने भी वही 3 शब्द कहते हुए अपने हाथों से उसे पानी पिलाया और मिठाई खिला कर उस का व्रत खुलवाया. रश्मि को ये क्षण ऐसे मनमोहक लग रहे थे मानो जिंदगी की सारी खुशियां सिमट कर इन पलों में समा गई हों.

रश्मि की झल सी गहरी आंखों में आदित्य को प्यार ही प्यार नजर आ रहा था. वह उस गहराई में डूबता ही चला जा रहा था.

तभी पीछे से अनीता की आवाज आई, ‘‘आदि चलो रश्मि को खाना खिलाना है या नहीं?’’

‘‘हांहां मां आते हैं.’’

दोनों डाइनिंगरूम में चले गए और फिर सब ने साथ खाना खाया. परिवार के सदस्यों के साथ बातें करते हुए रात के 12 बज गए. रश्मि का घर आदित्य के घर से बहुत दूर था. आदित्य रश्मि को छोड़ने कार से निकला.

दोनों बातें करते हुए एकदूसरे में खोए चले जा रहे थे. रात काफी हो गई थी. हर तरफ अंधेरा पसरा था. रास्ता भी सुनसान था. कहीं कोई हलचल नहीं थी. आदित्य की कार मंजिल की तरफ बढ़ रही थी कि तभी अचानक कार झटके मारने लगी और बंद हो गई.

‘‘रश्मि घबरा गई, क्या हुआ आदित्य?’’

‘‘मालूम नहीं रश्मि, अचानक क्या हो

गया. आज के पहले कभी कार इस तरह रुकी नहीं थी.’’

आदित्य ने अंदर बैठेबैठे 2-3 बार कार स्टार्ट करने की कोशिश की, किंतु वह सफल नहीं हो पाया.

‘‘रश्मि रुको, मैं बाहर बोनट खोल कर देखता हूं. क्या हो गया है, वरना फोन कर के घर से किसी को बुलाना पड़ेगा. तुम अंदर, बैठो,’’ कहते हुए आदित्य बाहर निकल गया.

तब तक अचानक मौसम का अंदाज भी बदल गया. हवा के साथ हलकीहलकी बारिश शुरू हो गई. इस बिन मौसम की बारिश से घबरा कर रश्मि भी कार से बाहर निकल आई और अपने मोबाइल से लाइट दिखाने लगी.

तभी रश्मि ने कहा, ‘‘आदि, मुझे डर लग रहा है, जल्दी से घर पर फोन कर देते हैं पापा

आ जाएंगे.’’

‘‘हां रश्मि, यह कार अपने से तो ठीक होने से रही.’’

तभी अचानक तेजी से एक कार उन के पास आ कर रुकी. उस में नशे में धुत्त 4 लड़के बैठे थे. कार से बाहर निकल कर एक लड़के ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाई? कोई मदद चाहिए क्या?’’

आदित्य ने कहा, ‘‘जी नहीं थैंक यू.’’

तभी एक लड़के ने आदित्य को जोर से धक्का दिया. आदित्य को बिलकुल

आइडिया नहीं था. अत: वह उस धक्के से कुछ दूर तक लड़खड़ाने के बाद संभलने लगा. तब तक दूसरे दोनों लड़कों ने रश्मि को कार में खींच लिया. तीसरा भी जल्दी से बैठ गया और चौथा ड्राइवर सीट पर पहले से ही बैठा था. उस ने तेजी से कार को भगाना शुरू कर दिया.

रश्मि चिल्लाती रही, आदित्य कार के पीछे भाग रहा था. पीछे के कांच से रश्मि की काली परछाईं कुछ क्षणों तक तड़पते हुए आदित्य को दिखाई देती रही और फिर गायब हो गई. कार दूर तक सुनसान रास्ते पर दौड़ती हुई दिखाई देती रही. आदित्य कुछ भी न कर पाया. उस की आंखों के सामने ही उस की रश्मि का हरण हो गया. एक नहीं यहां तो 4-4 रावण थे.

आदित्य ने तुरंत पुलिस को फोन लगा कर बताया. पुलिस हरकत में आए तब तक वह हैवान रश्मि को कहीं बहुत दूर ले जा चुके थे.

दोनों परिवारों में इस खबर ने तूफान ला दिया. सब चिंता में थे, सदमे में थे. घर में आंसू और सन्नाटे के सिवा कुछ भी नहीं था. दोनों परिवार इस दुख की घड़ी में साथ थे. पुलिस अपना काम कर रही थी.

2-3 घंटों के बाद उन लड़कों ने रश्मि को सड़क के किनारे झडि़यों में फेंक दिया.

उन्होंने रश्मि को धमकी देते हुए कहा, ‘‘जान प्यारी हो तो चुपचाप ही रहना वरना हम ने तुम्हारे पति का फोटो भी ले लिया है. हम उसे नहीं छोड़ेंगे, समझ.’’

रश्मि बेहोशी की हालत में सड़क के

किनारे झडि़यों में पड़ी हुई थी. सुबह मौर्निंग वाक करने आए पतिपत्नी को झडि़यों में लड़की पड़ी दिखाई दी.

तभी उस महिला ने अपने पति से कहा, ‘‘अरे यह तो कोई दुलहन लग रही है, पर इस तरह झडि़यों में… जल्दी से पुलिस को फोन करो. इस की हालत देख कर लग रहा है मामला कुछ और ही है.’’

उस के पति ने पुलिस को फोन किया. वह महिला रश्मि को होश में लाने की कोशिश कर रही थी. तब तक पुलिस भी आ गई. रश्मि को तुरंत अस्पताल ले जाया गया.

पुलिस ने आदित्य को फोन कर के बताया, ‘‘आदित्य, एक लड़की सड़क के

किनारे झडि़यों में पड़ी मिली है. उस की हालत गंभीर है. उसे हम ने अस्पताल में भरती करा दिया है. किसी बुजुर्ग दंपती को वह बेहोशी की हालत में मिली थी. उन्होंने ही हमें खबर दी है. आप आ कर देख लीजिए, लगता है यह वही है, जिस के लिए आप ने शिकायत दर्ज करवाई थी.’’

आदित्य और रश्मि के परिवार तुरंत अस्पताल पहुंच गए. रश्मि की हालत बहुत ही खराब थी. जीवन और मौत के बीच संघर्ष करती रश्मि इस वक्त बिलकुल असहाय लग रही थी. वह इस समय होश में भी नहीं थी. उस के चेहरे पर लालनीले निशान दिख रहे थे. बाकी शरीर चादर से ढका था. रश्मि की ऐसी हालत देख कर परिवार वालों की तो क्या डाक्टर और नर्स की आंखों में भी आंसू छलक आए.

आदित्य अपनी मां के कंधे पर सिर रख कर आंसू बहा रहा था. वह बहुत देर तक रश्मि की ऐसी हालत देख न पाया और वहां से बाहर निकल गया.

रश्मि को जब होश आया, दोनों परिवार

वहां मौजूद थे. उस ने चारों तरफ नजर दौड़ाई, लेकिन जिस की चाहत थी, वही उसे दिखाई नहीं दिया. उस की आंखों से आंसू बिना रुके बहते जा रहे थे.

उस के मुंह से एक ही शब्द निकल रहा था, ‘‘आदि बचाओ मुझे…’’

कुछ समय के लिए वह होश में आती, फिर उस की आंखें बंद हो जातीं. दूसरे दिन सुबह उसे पूरी तरह से होश आया. अपनी मम्मी के गले लग कर वह बुरी तरह रो रही थी. उसे सांत्वना किस तरह से दें, कोई कुछ बोल नहीं पा रहा था. सब की आंखों में सिर्फ आंसू थे. मुंह में मानो जबान नहीं है.

आखिरकार रश्मि ने चुप्पी तोड़ते हुए अपनी मम्मी से पूछा, ‘‘मम्मी आदित्य कहां है?’’

‘‘बेटा अभी तो यहीं था, शायद डाक्टर से बात करने गया होगा.’’

अनीता ने तुरंत आदित्य को फोन लगाया, ‘‘आदि कहां हो तुम? जल्दी आओ रश्मि को होश आ गया है. वह तुम्हें ही बुला रही है.’’

‘‘मां मैं उसे इस तरह तड़पता नहीं देख सकता… मैं उस का सामना नहीं कर पाऊंगा.’’

‘‘कैसी बात कर रहे हो आदित्य तुम? जल्दी से यहां आ जाओ.’’

आदित्य के मन में एक अलग ही तूफान उठा हुआ था. बलात्कार की शिकार हुई रश्मि को स्वीकार करने में अब वह हिचकिचा रहा था. इस तूफान में फंसा आदित्य अपनी मां की बात मान कर रश्मि के सामने आखिरकार आ ही गया.

रश्मि आदित्य से ऐसे लिपट गई जैसे किसी वृक्ष से बेल लिपट जाती है और उसे

छोड़ती ही नहीं. रश्मि बिना कुछ कहे रोती ही जा रही थी.

तब आदित्य ने कहा, ‘‘आई एम सौरी रश्मि, मैं तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाया,’’ इतना कहते हुए आंखों में आंसू लिए वह तुरंत कमरे से बाहर निकल गया. रश्मि अभी भी बांहें फैलाए उसे जाते देख रही थी.

अनीता को आदित्य का ऐसा व्यवहार देख कर बिलकुल अच्छा नहीं लगा. वे तुरंत रश्मि के पास आईं और उसे सीने से लगाते हुए कहने लगीं, ‘‘रश्मि बेटा सब ठीक हो जाएगा. तुम अपने आप को संभालो, हिम्मत रखो बेटा. यह बुरा वक्त था हम दोनों परिवारों के लिए… अब जितनी जल्दी हो सके, हमें इस से बाहर निकलना होगा. आदित्य अपनेआप को दोषी मान रहा है कि वह तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाया. इसलिए तुम से नजरें चुरा रहा है.’’

अगले 2 दिनों तक भी आदित्य अस्पताल नहीं आया. अनीता रोज 3-4 घंटे

रश्मि के पास आ कर रुकती थीं.

तीसरे दिन रश्मि ने पूछ ही लिया, ‘‘मां, आदित्य मुझ से मिलने क्यों नहीं आ रहा? क्या वह मुझ से नाराज है?’’

‘‘नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं, वह भी बहुत दुखी है. खुद से नाराज है. तुम्हारा सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. मैं आज ही उसे भेजती हूं.’’

‘‘नहीं मां, जब उस की इच्छा होगी तब वह खुद आएगा. आप उस से जबरदस्ती बिलकुल

मत करना.’’

‘‘ठीक है बेटा.’’

अनीता जब घर पहुंचीं तब मन में ठान चुकी थीं कि आदित्य के मन में क्या चल रहा है, आज वे जान कर ही रहेंगी.

शाम को वे आदित्य के पास जा कर बैठीं और बड़े ही प्यार से कहा, ‘‘आदि बेटा

तुम रश्मि से मिलने आखिर क्यों नहीं जा रहे हो? आज उसे तुम्हारी बहुत जरूरत है. मैं जानती हूं तुम दुखी हो, किंतु तुम्हारा इस तरह का व्यवहार रश्मि को तोड़ देगा. जाओ जा कर उस के पास बैठो, उस से बातें करो. उसे यह विश्वास दिलाओ कि तुम उस के साथ हो.

अपने कंधे का सहारा दे कर उस के बहते आंसुओं को तुम्हें ही पोंछना होगा आदित्य. जब भी कुछ आहट होती है, उस की आंखों में केवल यह उम्मीद होती है कि दरवाजे से तुम ही अंदर आओगे. उस की आंखें हर समय केवल और केवल तुम्हें ही ढूंढ़ती रहती हैं, लेकिन हर बार उस की उम्मीद टूट जाती है, जो उस की सूनी आंखों से पानी बन कर बहने लगती है. उठो आदित्य जाओ… उस के परिवार में भी सभी को लग रहा होगा कि आदित्य आखिर क्यों नहीं आ रहा. मैं कब तक बात को संभालूंगी बेटा.’’

इतना सब सुनने के उपरांत भी आदित्य जाने के लिए तैयार नहीं हुआ. अनीता का प्यार गुस्से में बदल रहा था. वे समझ रही थीं कि आदित्य जाना नहीं चाहता.

अनीता ने गुस्से में पूछा, ‘‘आदित्य, तुम्हारे दिल में क्या चल रहा है, साफसाफ बताओ. क्या तुम अपने पांव पीछे खींच रहे हो?’’

‘‘मां आप क्या चाहती हैं? बलात्कार हुआ है उस के साथ. क्या मैं उस के साथ विवाह कर लूं? समाज, दोस्त सब मेरा मजाक उड़ाएंगे. मुझे कैसीकैसी नजरों से देखेंगे. यदि उस के साथ घर से बाहर जाऊंगा तो कैसी नजरों से उसे देखेंगे? कैसेकैसे तंज कसेंगे? ये सब सोच कर ही मैं कांप जाता हूं. मैं इस का सामना नहीं कर

सकता मां.’’

‘‘अच्छा आदित्य तो यह खिचड़ी पक रही है, तुम्हारे अंदर. मैं तो सच में यह सोच रही थी कि तुम उस की रक्षा नहीं कर पाए, इसलिए दुखी हो, शर्मिंदा हो, इसलिए उस के पास नहीं जा रहे हो. तुम्हारे ऐसे विचार सुन कर मुझे तुम्हारी मानसिकता पर तरस आ रहा है. मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी. तुम ने आज मेरा सिर नीचे झका दिया है. इतने वर्षों से प्यार के वादे करने वाले, जन्मों तक साथ रहने के सपने देखने वाले, एक तूफान के आ जाने से साथी को बीच भंवर में डूबने के लिए छोड़ जाते हैं क्या? मैं ने तो रश्मि को इस घर की बेटी मान लिया है. जो भी हुआ, आखिर उस में दोषी कौन है? क्या गलती रश्मि की है?’’

‘‘मां मुझे भी बहुत दुख है पर मैं क्या करूं. मैं अपने मन को कैसे समझऊं?’’

‘‘आदि जो भी हुआ है, तुम्हें उस का सामना करना चाहिए. यों पीठ दिखाने से कुछ नहीं होगा. जो मुझे नहीं बोलना चाहिए, वह भी मैं तुम से पूछती हूं कि आज यदि ऐसा कुछ मेरे साथ हो जाए तो क्या तुम मुझे भी छोड़ दोगे?’’

‘‘मां यह क्या बोल रही हैं आप?’’

‘‘तुम्हें सुनना होगा आदित्य, समाज तो तब भी कुछ न कुछ कहेगा. मुझे कैसीकैसी नजरों से देखेगा. तुम्हारे साथ बाहर कहीं जाऊंगी तो तंज कसेगा. बोलो आदित्य बोलो… यदि तुम्हारी

बहन होती और उस के साथ ऐसा करती तो

क्या तुम उसे भी छोड़ देते? पूरा जीवन उसे अकेले रहने देते? क्या उस के विवाह की कोशिश नहीं करते? नहीं आदित्य, तब तुम कोई ऐसा लड़का अवश्य ढूंढ़ते जो उसे ये सब जान कर भी अपना लेता. तुम खुद ऐसा लड़का क्यों नहीं बन सकते आदित्य?’’

अपनी मां के इस तरह के तेवर देख कर आदित्य घबरा गया. वह कुछ

बोलता उस के पहले ही अनीता ने कहा, ‘‘तुम जैसे कुछ मर्द ही ऐसी घटनाओं को अंजाम देते

हैं और जीवनभर उस की सजा भोगनी पड़ती है स्त्री को. आदित्य तुम यह रिश्ता तोड़ना चाहते हो, तो तोड़ दो. मैं उस के लिए तुम से भी अच्छा लड़का ढूंढ़ूंगी जो उसे इसी रूप में स्वीकार करे और उतनी ही इज्जत और प्यार दे जितना उस

का हक है. इस के बाद कभी भी मुझे मां कहने की कोशिश भी मत करना,’’ कहते हुए अनीता

रो पड़ीं.

अनीता का हर शब्द आदित्य के सीने को छलनी कर गया. उसे उन का हर शब्द चुभ रहा था.

दूसरे दिन अनीता जब अस्पताल पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर वे दंग रह गईं. आदित्य रश्मि के सिरहाने बैठे उस की आंखों से लगातार बहते आंसुओं को अपने हाथों से पोंछ रहा था. साथ ही वह कह रहा था, ‘‘रश्मि मुझे माफ कर दो. मैं तुम्हारी रक्षा नहीं कर पाया.’’

रश्मि के माथे का चुंबन लेने के लिए जैसे ही वह झका उस की आंखों के आंसू

रश्मि के आंसुओं से जा मिले. यह संगम था आंसुओं के साथसाथ उन दोनों के मिलन का, आदित्य के पश्चात्ताप का, रश्मि की उम्मीदों का और अनीता के प्यार और विश्वास का.

अनीता उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थीं. उन्होंने जैसे ही अपने कदम वापस जाने के लिए उठाए, उस के कानों में आवाज आई, ‘‘आदि मैं

3 दिनों से दरवाजे पर टकटकी लगा कर तुम्हारा इंतजार कर रही थी. मैं जानती हूं कि मैं तुम्हारे लायक नहीं रही. सिर्फ एक बार तुम से मिल कर, तुम्हारी बांहों में सो जाना चाहती थी. आज तुम ने मेरी वह इच्छा पूरी कर दी,’’ कहते हुए वह आदित्य की बांहों से लिपट गई.

‘‘यह क्या कह रही हो रश्मि? मैं तो

तुम्हें एक बार नहीं हजारों बार पूरी जिंदगी

अपने सीने से लगा कर अपनी बांहों में रखना चाहता हूं.’’

तब तक रश्मि की मम्मी भी आ कर अनीता के साथ खड़े हो कर दुनिया का यह सब से सुंदर अलौकिक नजारा देख रही थीं. उन दोनों ने एकदूसरे को गले मिल कर बधाई दी.

तब तक आदित्य ने रश्मि को अपनी गोद में उठा लिया और कहा, ‘‘चलो रश्मि घर चलते हैं.’’

रश्मि अपना सारा दुखदर्द भूल कर

आदित्य को निहारे जा रही थी. इस समय उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो धरती पर ही उसे स्वर्ग मिल गया हो.

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